Pages

Tuesday 28 January 2014

SARVYUGAM

सर्वयुगम के द्वारा सर्वनायक की मुख्य शुरुआत आपके हाथो में पहुँच चुकी है! युगांधर के बाद सर्वयुगम को पाने का ज्यादा इंतज़ार तो नहीं करना पड़ा लेकिन इस छोटे से समय में ही मन निरंतर उद्देलित बना रहा कि कैसी होगी सर्वयुगम?कौन कौन किरदार होंगे?कैसे कहानी की शुरुआत होगी? भूत-वर्तमान काल के नायकों का आमना-सामना किस प्रकार होगा? युगम कौन है? क्या पाठकों के सबसे पसंदीदा नायक को कहानी में वज़नदार काम मिला होगा? सवालों की लिस्ट बहुत लम्बी है..तो अब वक़्त है जवाबो को पाने का! इतनी बड़ी श्रंखला के अंत तक पहुंचना अभी किसी पाठक के लिए मुमकिन नहीं है..कहानी को चलने दिया जाना चाहिए और ध्यान कहानी में हो रही घटनाओं और हलचलों पर केन्द्रित करिए! इसमें लेखक ने भी सहायता करी है-सभी भागों को अलग-अलग खण्डों में विभाजित करके! जिससे समीक्षा करना आसान बन गया है!

*प्रस्तावना-उत्

पत्ति सूत्रधार
यह सर्वयुगम का पहला और छोटा सा खंड है! इसमें ज्यादा कुछ नहीं है..सिर्फ इतना पता चलता है कि कॉमिक्स में “अडिग” भी मौजूद है!

*प्रथम अध्याय –गर्भ ग्रह
कहानी की मुख्य शुरुआत इस अध्याय से हुई है! वर्तमान में धरती पर अन्तरिक्ष से एस्टेरोइड बेल्ट्स का आक्रमण हो गया है! वज़ह और किसकी कारस्तानी है..यह अभी किसी को नहीं पता...पता सिर्फ इतना है कि 8 घंटे में धरती का नामो निशाँ मिल जाएगा!
ब्रह्माण्ड रक्षको को तब गर्भ गृह के बारे में वैज्ञानिक बताते हैं...जो कुछ ऐसा है- कि पृथ्वी के “आंतरिक कोर” के ऊपर एक ऐसा गर्भ गृह बना दिया गया है..जिसमे पूरी पृथ्वी की जनसँख्या समा सकती है!
सवाल उठा- किसने बनाई ? जवाब आया- अकेले परमाणु और शक्ति ने प्रोबोट और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर!
प्रोबोट एक रोबोट है...उसके अन्दर जितना ज्ञान है...वो प्रोफेसर कमल कुमार वर्मा का तब का ज्ञान है...जब वो कोमा में चले गए थे..रोबोट में तर्क शक्ति नहीं होती है..कमांड्स पर काम करता है....पर प्रोबोट के मामले में सब उल्टा चलाया जा रहा है!
अनुपम सिन्हा जी ने “कोलाहल” में एक चीज़ दिखाई थी कि परमाणु ने एक ऐसा एंटी लावा सूट पहना जो 30 मिनट तक लावे की गर्मी को सहने के बाद गल जाएगा! पॉवर दी गई मगर conditions apply* के टैग के साथ! यह चीज़ मुमकिन भी थी और मानी भी जा सकती है!
मगर सर्वयुगम में लेखक ने परमाणु को एक ऐसा सूट दिया है..जिसपर कोई conditions apply* नहीं करती हैं...यह “विशेष सूट” कुछ नहीं मांगता है..ना कोई कूलिंग डिवाइस,ना कोई ऐसा प्रतिरोध जिससे यह दिनों..महीनो तक बिना जले या गले टिक गया है!
RC में पहले वैज्ञानिक सिद्धांतो का आदर होता था...बच्चे कॉमिक्स पढ़कर विज्ञान के करीब आते थे...लेकिन अब रोहित शेट्टी की फिल्मों की तरह विज्ञान का मखौल उड़ाया जा रहा है! पृथ्वी के “आंतरिक कोर” तक जाने के लिए क्या तकनीक चाहिए इसके लिए सभी पाठको को एक फिल्म THE CORE जरूर देखनी चाहिए! वरना सर्वयुगम वाली तकनीक उन्हें भ्रमित कर देगी!
शायद यही तक लेखक रुक जाते तो बात संभल जाती...मगर अगले ही पैनल में एक नयी पॉवर बताई गई...Ultra Cold Atoms ! इनकी विशेषता है कि यह लावे तक को ठंडा करने की ताकत रखते हैं! ख़ास बात यह कि इन atoms की सक्रियता को लेकर भी कोई समय सीमा या condition नहीं है...एक बार शक्ति के बनाये धातु के गर्डर पर चढ़ा दिए तो ज़िन्दगी भर चलते रहेंगे!
तो यह थी गर्भ गृह के साथ इस कहानी की खोखली नींव!
इधर सुपर कमांडो ध्रुव दिल्ली से हिमालय की कंदराओं में बैठे समाधी लगाये किरीगी को मानसिक संपर्क कर रहा है?????
नयी पॉवर वाला ध्रुव?
आज मानसिक संपर्क कर रहा है...कल मानसिक विस्फोट करेगा? सीरियसली परमाणु कि जग प्रसिद्ध बर्बादी के बाद अब ध्रुव का ही नंबर लगा दिख रहा है....specials और showstopper की छिछालेदार के बाद अब लगने लगा है अनुपम जी के हाथो में ही ध्रुव सुरक्षित है...वही उसको पुराना रूप दे सकते हैं!
मसीहा पागलखाने से भागकर तो आ गया..पर दण्ड कहाँ से लाया? कृपया आगे के भागो में जरूर बताएं!
उपरोक्त बातों को कॉमिक्स में पढ़कर जिन पाठको को भरपूर मनोरंजन प्राप्त हुआ हो...वो आनंद लें...बाकी आइये द्वितीय अध्याय पर

* द्वितीय अध्याय-पूर्वजों
की धरती (प्रथम भाग)
विशेषता-इस भाग में स्वर्ग हेतु वाला मुद्दा ही चल रहा है...योध्धा को धकमानघन की प्राप्ति कैसे हुई और शुक्राल के साथ कैसे युगम ने उसको उठाया!

* द्वितीय अध्याय-पूर्वजों
की धरती (द्वितीय भाग)
विशेषता-इस भाग में भेड़िया और गरुडा के साथ अतिक्रूर और शूतान का अधूरा और अनसुलझा टकराव है...और भेड़िया का युगम द्वारा अपहरण!

*तृतीय अध्याय-क्षुद्र ग्रहों का आक्रमण
विशेषता- इस भाग में ध्रुव अपने साथियों के साथ कुछ अच्छे रणनीति पूर्ण कार्य करता नज़र आया है...तिरंगा को भी एक मैनेज़र का रोल मिला है...जो रणनीतिकार बना हुआ है!
कहानी अच्छी भली चल रही थी..कि अचानक से परमाणु ने दोबारा नयी पॉवर निकाल ली-मॉलिक्यूलर एक्सपेंशन ----इसका काम है परमाणु को वामन अवतार दे देना!
यह कब मिली..क्यूँ मिली और कैसे मिली? यह उल्लेखित नहीं करा गया है...परमाणु को नागराज के बड़े शरीर की बराबरी करनी थी तो कर ली!
परमाणु के इस झटके से पाठक अभी उबर भी नहीं पाए थे...कि नागराज बोल पड़ा “मैं अपनी इच्छाशक्ति से ब्लैक होल” बनाऊंगा!
क्या कहा जाए? शायद अगले भाग में यह दोनों परमाणु और नागराज नया ब्रह्माण्ड ही बना देंगे!
तो यहाँ तक इन “असंभव”,”एवें ही”,”कुछ भी” जैसे कारनामो से अपने प्रिय सुपर हीरोज़ को जीतते देखकर अपना सिर धुन रहे पाठको को अंतिम अध्याय अपने पास बुला लेता है!

*चतुर्थ अध्याय- युगम क्षेत्र
यह अंतिम अध्याय ना होता तो यह कॉमिक्स कंपकंपा कर बिखर गई होती..यही एकमात्र हिस्सा ऐसा है...जो कहानी को वापस ट्रैक पर लाकर पाठको को राहत देगा!
युगम का किरदार बहुत प्रभावशाली है! वो सुसंस्कृत है...महान ज्ञाता और अपराजित भी!
इस भाग में सभी नायको और युगम के बीच में बहुत अच्छे तर्क और सवाल होते हैं!
सर्वयुगम का अंत होता है...भोकाल और नागराज के बीच प्रतिस्पर्धा की शुरुआत के साथ!
युगम धरित्री अस्य:

आप सभी ने सर्वयुगम का एक संछिप्त सारांश पढ़ लिया..अब बात लेखन की! नितिन मिश्रा जी ने जो काम “तक्षक” नाम की महत्वहीन कॉमिक्स में किया था वही सर्वयुगम में भी दोहराया है! एक्शन सीक्वेंस में किसको,कैसे जीतना है,कैसे काम करवाने हैं...इसपर मेहनत और जोर नज़र नहीं आता है! कागज़ी बातों में सभी किरदार बहुत अच्छे संवाद बोल रहे हैं....लेकिन ज़मीनी लड़ाई में उल जलूल प्रयोग हो रहे हैं...कौन कैसे जीत रहा है..कैसे हार रहा है.. कौन कब आया...पिटकर कहाँ गया...जिंदा है की मर गया..इसके बीच में ना सामंजस्य है..और ना ठोस आधार!
इस बात को दृष्टिगत रखते हुए राज कॉमिक्स से निवेदन है कि सर्वनायक सीरीज की वृहद और विस्तृत कथावस्तु को देखते हुए आगे के भागों में श्री अनुपम सिन्हा,तरुण कुमार वाही,विवेक मोहन,और खुद संजय गुप्ता जी एक्शन सीक्वेंस में रचनात्मक सहयोग दें जिससे ऊपर लिखी गई कमियों को यथासंभव दूर करके सर्वनायक को सफल बनाया जाए!

सर्वयुगम की गति ऐसी है-शुरूआती 4 पन्ने बहुत तेज़ी से चलते हैं...फिर संवाद...उसके बाद पेज 19 से ज़मीनी कार्य आरम्भ जो भागा दौड़ी में इस युग से उस युग तक चलते जा रहे हैं...पूरी तरह से एक्शन! अंत में पेज 70 से एक बार फिर संवाद जो अंत तक चलता है!

कहानी-2.5/5
आर्टवर्क-2.5/5

धीरज वर्मा जी का आर्टवर्क सर्वयुगम में है! लेकिन वो धीरज जी नहीं..जो कभी लड़ाके,तुरुपचाल,
मैं हूँ भेडिया या मर्द और मुर्दा के लिए जाने जाते थे! यह बात सच है...कि सर्वयुगम के आर्टवर्क का स्तर वैसा कतई नहीं है..जैसी हर पाठक उम्मीद कर रहा था!
आर्टवर्क का सारा कमाल इसके कलर इफेक्ट्स में छुपा हुआ है...
वरना गौर से देखेंगे तो इसमें rough out lining work के अलावा कुछ नहीं है! पेंसिल की detailngs तो दूर फिनिशिंग तक नहीं हुयी है!
उदहारण के तौर पर देखिये नागराज को जिसके शरीर से जालीदार शल्क गायब हैं...सतयुग में आइये योध्धा के आर्ट पर-सूखी घास के तिनको के समान आर्ट में से कई लाइन्स बाहर निकलती जा रही हैं! परमाणु के ऊपर तो इतने पेंसिल स्ट्रोक्स किये गए हैं...कि उसकी पीली पोशाक मकड़ी के जालों से ढकी नज़र आ रही है!
ऐसा आर्टवर्क इंकिंग के बिना कहीं भी नहीं ठहरने वाला! अब यह राज कॉमिक्स के ऊपर है कि वो कितना वक़्त लगाएगी इस चीज़ पर ध्यान देने में..क्यूंकि धीरज जी के साथ उसका भी नाम खराब हो रहा है!
सर्वयुगम के आर्टवर्क को इसके इफेक्ट्स ने बचा लिया है..जिस स्तर का आर्ट बना है....उसके लिए इफ़ेक्ट आर्टिस्ट्स को पूरे अंक दिए जा सकते हैं..उनकी मेहनत के बिना यह कॉमिक्स पार नहीं लग पाती!
शब्दांकन नीरू जी का है!

कॉमिक्स के मजबूत पक्ष-
*सिर्फ कॉमिक्स का चतुर्थ अध्याय
कॉमिक्स के कमजोर पक्ष-
*अनगिनत (उपरोक्त लिखित हैं)टिप्पणी- अति सुधार व उपचारात्मक सोच और काम की आवश्यकता!

overall सर्वयुगम अपने पिछले भाग युगांधर की आधी प्रतिष्ठा भी बचा नहीं पाई है! यह दुःख का विषय है कि इतनी बड़ी और इंतज़ार वाली कॉमिक्स के अन्दर ऐसा हुआ! राज कॉमिक्स आगे के भागो में ज्यादा सूक्ष्म दृष्टि से मेहनत करे!

NARAK NASHAK

नरक नाशक नागराज की उत्पत्ति श्रंखला का प्रथम खंड आपके हाथों में हैं! नागराज की लम्बी यात्रा का तीसरा चेहरा “नरक नाशक नागराज” जब पहली बार पाठको के सम्मुख आया था तब इसकी सफलता पर कई प्रश्नचिन्ह लगे हुए थे...क्यूंकि महानगर और आतंकहर्ता नागराज लोगों के दिलों में गहराई तक उतर चुके थे! एक तरह से “नरक नाशक” क्या है?कैसा होगा? क्या अलग करेगा? अनगिनत सवाल खड़े थे! ऐसे में नितिन मिश्रा जी द्वारा उसकी कई अच्छी कहानियां लिखी गई,जिससे उसका एक फैन बेस बना..तो अब वक़्त आया कि पाठको को बताया जाए कि नरक नाशक कैसे और क्यूँ बना!
यह पूरी कॉमिक्स narrative style में लिखी गई ....हाल के वर्षों में इस style से कोई पूर्ण कॉमिक्स दूसरी देखने को नहीं मिली है! प्रोफेसर नागमणि द्वारा “नरक नाशक नागराज” के जीवन के उस बाल रूप को चित्रित किया गया है,जिसको उसने पाला और बड़ा किया था!
Parallel Earth का यह नागमणि काफी अच्छा भी है..उसमे भी जज्बात और कुछ सकारात्मक बातें मौजूद हैं! लेखक ने आतंकहर्ता नागराज की शुरूआती कहानियों से कुछ घटनाएं और किरदार लिए हैं...जैसे मंदिर के पुजारी से मृत नागराज का मिलना,बुलडॉग,सि

ल्वर लैंड के मास्टर सुजुकी! लेकिन यह सभी बातें बिलकुल नए अंदाज़ में नए तथ्यों को जोड़कर नए सिरे से लिखी हैं...इससे कहानी एकदम तरो ताज़ा एहसास कराती है!
प्रोफेसर नागमणि का रोल बहुत बढ़िया लिखा गया है! जब एक खलनायक को आप एक नायक को पालते-पोसते देखते हैं..वो भी ठीक इस तरह कि वो उस बच्चे के ऊपर कोई मुसीबत आई देखकर रो भी पड़ता है..ऐसे में सहज रह पाना मुश्किल हो जाता है! महानगर नागराज के नागमणि के उलट NNN का कौटिल्य नागमणि ज्यादा बेहतर और द्रढ़ नज़र आता है! NNN के साथ उसका एक बहुत गहरा और भावनात्मक जुड़ाव है! खलनायक और नायक के बीच ऐसा दूसरा रिश्ता RC में सिर्फ विनय और प्रोफेसर कमल कुमार के बीच ही है!
बाल नागराज को धीरे-धीरे बड़े होते देखना आपको जरूर अभिभूत कर देगा! आप कहानी में खो जाते हैं कि यह बच्चा कैसे और क्या-क्या कर सकता है! अपनी शक्तियों को उपयोग करने की उत्कंठा हो ,या अपने आपको एक योग्य शिष्य साबित करने कि जिजीविषा,किसी कातर पुकार पर पहला द्वंद लड़ना हो या अपराध जगत को अपनी पहली उपस्थिति का एहसास कारन! पाठक जब तक कहानी का अंतिम पन्ना पूरा नहीं कर लेते,पलकें झपकाना भी भूल जायेंगे!
नरक नाशक बहुत संजीदा और आराम से चलती है...कोई जल्दी नहीं...ना लिखने वालो को और ना ही पढने वालो को...इतनी सुन्दरता से हर चीज़ बताई गई है...कि मुश्किल चीज़ें भी पाठक बड़े आराम से पढ़ सकते हैं....एक्शन सीन इस narrative कॉमिक्स में अलंकार की तरह हैं!
और ऐसे में कहानी अभी जारी है...आप सभी पाठक इस कॉमिक्स को एन्जॉय करें और नरक नियति का इंतज़ार भी!

कहानी-4.5/5
आर्टवर्क-4.5/5

हेमंत कुमार जी इस समय अपने सबसे बेहतरीन समय में नज़र आ रहे हैं....वीरगति के बाद नरक नाशक में भी उन्होंने शानदार चित्रांकन दिया है! लगता है उन्हें नागराज पर काम करना विशेष रूप से प्रिय है! छोटू नागराज की मासूमियत को बहुत सुन्दरता से उकेरा गया है! हेमंत जी अब चेहरों पर भाव प्रवीणता लाने में काफी सफल हो रहे हैं! पेज-24 पर नागमणि का भावुक चित्र बहुत उम्दा है! NNN की शिक्षा-दीक्षा और उसके बुलडॉग आर्मी को खात्मे के एक्शन दृश्य शानदार बने हैं!
ईश्वर आर्ट्स द्वारा करी गई इंकिंग भी बेजोड़ है! यह teamup और काम आगे भी बनाये रखें!
शादाब सिद्दीकी और अभिषेक जी द्वारा दिए गए इफेक्ट्स हैं...दोनों ही अपन काम में माहिर हैं...जो कॉमिक्स में नज़र आ रहा है!
कैलीग्राफी नीरू जी की है! नीले रंग के कैप्शन में नागमणि द्वारा कहानी को बताया जाना सुंदर लगता है! डिजिटल कैलीग्राफी से कॉमिक्स और बेहतरीन बन रही हैं!

कॉमिक्स के मजबूत पक्ष-
*नितिन जी का लेखन,हेमंत जी का आर्ट,उम्दा रंग, अच्छी रफ़्तार की कहानी व सभी पहलुओं पर एक समान मेहनत!
कॉमिक्स के कमजोर पक्ष-
*NIL

नरक नाशक एक ऐसी कॉमिक्स है....जिसको पढने के बाद NNN के आलोचक भी उसके प्रशंषक बन जायेंगे! नितिन जी से यही गुजारिश है कि इस momentum को आगे के भागों में भी बनाये रखें!

DO KATORA KHOON

बीस सालों के बाद अपने स्पेशल एडिशन नंबर 4- “एक कटोरा खून” के नाम को विस्तारित करके जब राज कॉमिक्स ने “2 कटोरा खून” की उदघोषणा करी, तो हर THS प्रेमी प्रफुल्लित हो उठा था! क्यूंकि यह genre हमेशा विवादस्पद बनी रहती है,जिसकी वज़ह से सालों तक बंद रहने को मजबूर भी! लेकिन आज तक राज कॉमिक्स की THS में ऐसा कोई भी बिंदु एक भी व्यक्ति निकाल नहीं सका,जिससे इसको बंद रखने का कोई औचित्य मिले! हम तो चाहेंगे राज कॉमिक्स इस genre को बांकेलाल की तरह प्रोत्साहित करे! ताकि हर सेट में एक दिल देहलाऊ कहानी पाठको को मिलती रहे!
“2 कटोरा खून” के बारे में पहली चीज़- कि यह “एक कटोरा खून” से 99% अलग है! ना तो उसके आगे की कहानी है ना ही पीछे की! 1% समानता सिर्फ कनपटीमार चुड़ैल के काम करने के तरीके की है!
चुडैलों की कहानियां मुख्यतः राजे रजवाड़ों से ही जुडी मिलती रही है! यहाँ का प्लाट भी वही है! कहानी के शुरूआती 2 पेज ऐसे मिलते हैं...जो पाठको को पहले ही कहानी का सारांश बिना कुछ कहे ही दिखा देंगे! यानी यहाँ रक्तपिशाचों और नरभेडियों के बीच जानी दुश्मनी पर कहानी लिखी गई है! इसमें कनपटीमार चुड़ैल कैसे फिट बैठती है..यही कहानी में पाठको के पढने योग्य है!

THS की कहानी का सबसे मजबूत फैक्टर होता है- “डर”!
“रोमांच” का पता पाठक को सबसे अंत में लगता है कि क्या वो अगली रात दोबारा कहानी पढना चाहेगा? ऐसा वो तब करेगा जब उसे लगेगा कि कहानी में “सस्पेंस” अच्छा डाला गया हो! यानी अगर रोमांच+सस्पेंस मिल गया तो हॉरर अपने आप निकल आएगा!

इस THS की कहानी में है प्रेम की कोपलें,रंजिश,धो
खा और जन्मों का विछोह! ऐसे में एक पूर्ण कथानक के स्तर पर “2 कटोरा खून” सफल कही जा सकती है! कहानी की केन्द्रीय नायिका के रूप में “अलंकृता” नाम की मासूम लड़की का किरदार एक चुड़ैल के रूप में वीभत्स बन जाना आकर्षित करता है! पाठक यह सोच सकते हैं...कि चुड़ैल के रूप में यही लड़की क्यूँ? तो इसका जवाब उन्हें कहानी के अंतिम पन्नो में मिलता है! गहराई से लिखी गई इस कहानी में हिमालय क्षेत्र में बसे एक छोटे से राज्य स्यालगढ़ को दिखाया गया है जहाँ रक्तपिशाचों और नरभेडियों का आतंक फैला हुआ है!
कहानी का कालखंड बताता है कि यह कहानी आज की नहीं बल्कि सदियों पहले इसका बीज बोया जा चुका था! आज तो सिर्फ अंत होना है! पर यह अंत भी अधूरा है..शायद 3 कटोरा खून के लिए कुछ बचाया गया हो!
*कौन है इसके पीछे?
*कौन रोकेगा इन् दोनों खूनी जातियों को?
*क्या है 2 कटोरे खून का रहस्य?
*क्या विछोह को अपनी परिणीती मिल पाई?

कहानी की गति कुछ यूँ है-पेज 4 से ही रहस्य के साए दिखने शुरू हो जाते हैं...जो पेज 17 तक कहानी को चुड़ैल वाले ट्रैक पर ले आते हैं...40वे पेज तक षड्यंत्रकारी सामने होते हैं...50वे पेज तक कहानी का पूर्वाध दिखाया जाता है...70वे पेज तक कहानी आर-पार की बन जाती है...जो आखिर में क्लाइमेक्स पर खून-खराबे से समाप्त होती है!

बहरहाल राजे रजवाड़ों की दन्त कथाओं से उत्पन्न हुई इस कहानी को आप जरूर पढ़िए! बहुत ज्यादा innovative आईडिया पर तो कहानी नहीं है..लेकिन One Shot THS स्टोरी के लिहाज़ से परफेक्ट और मनोरंजक है!

कहानी-4/5
आर्टवर्क-4.5/5

THS का आर्ट वो भी विनोद कुमार जी का...इससे ज्यादा और ठोस वज़ह नहीं हो सकती कि यह कॉमिक्स हम सभी को खरीदने के लिए कह सकते हैं! एक कटोरा खून उन्होंने ही बनाई थी! विनोद जी के काम से सभी वाकिफ हैं! वो जितने अच्छे इंकर हैं उससे कहीं ज्यादा अच्छे चित्रकार हैं!
पेज 64 से अंतिम पेज तक का आर्टवर्क हेमंत कुमार जी ने बनाया है! जो ठीक ठाक है!
विनोद जी द्वारा बनाई गई कनपटीमार चुड़ैल के हौलकनाक, वीभत्स खून निकालते दृश्य पुरानी कॉमिक्स की याद ताज़ा करा देते हैं! इस कॉमिक्स में बहुत ही डिटेल्ड आर्टवर्क दिया गया है! आपके पूरे पैसे वसूल हो जाते हैं!
कैलीग्राफी- वैसे तो शब्दांकन अच्छा हुआ है...लेकिन एक शिकायत भी है...कि कई जगहों पर डायलाग बलून्स को आर्टवर्क को पूरी तरह से कवर करने के लिए इस्तेमाल किया गया है! जबकि आसपास खाली जगह बची थी! वज़ह जो रही हो...पर यदि एक THS की कॉमिक्स में ही कुछ Mature artwork नहीं दिखाया जा सकता..तो बाकी सुपर हीरोज़ में तो यह 100 साल दूर की कौड़ी नज़र आ रही है! बहरहाल राज कॉमिक्स से निवेदन है...जिस तरह से कवर आर्ट को नितिन मिश्रा जी ने बहुत उम्दा बनाया है,नए क्रिएटिव आज के समय के साथ काफी कुछ नया करना चाहते हैं..उन्हें प्रोत्साहन मिलना चाहिए जिससे THS को एक अलग स्पेशल केटेगरी मानकर इस Mature artwork के विषय में थोडा लचीला रुख अपनाएं...जिससे आर्टिस्ट्स के विज़न को एक रचनात्मक पहलु मिले...और पाठको को भी कॉमिक्स में आधुनिक युग के साथ चलने में आसानी हो!
अब्दुल मोईन और शबनम जी ने इफेक्ट्स दिए हैं...हिमालयी वातावरण में आद्रता को मद्देनज़र रखते हुए...काफी हरियाली और धुंध मौजूद है! रात में माहौल में कुछ अतिरिक्त लाइटिंग इफेक्ट्स मिल सकते थे..आसमान के दृश्य साधारण ही रखे गए हैं...उनमे काफी स्कोप था...जो अनदेखा किया गया...आजकल भक्त रंजन जी के काम को देखते हुए...2 कटोरा खून आधा ही लग रहा है! अनुभव के साथ आगे निरंतर सुधार करें!

कॉमिक्स के मजबूत पक्ष-
*नितिन मिश्रा जी की लेखनी,विनोद जी का आर्ट,कहानी में प्रेम और रंजिश का सही तालमेल,कहानी का नायिका प्रधान होना,
कॉमिक्स के कमजोर पक्ष-
*रंग संयोजन में एकसरता,2014 के समय में भी आर्ट की maturity को लेकर विरोधाभास!

अंत में सभी कॉमिक प्रेमी और जो इस genre से अभी तक अनछुए हैं..वो भी THS की इस वापसी को प्रोत्साहित करें..और 2 कटोरा खून का आनंद लें!


POPAT MEIN JAAN



पोपटलाल अर्रर मतलब बांकेलाल का यह नया विशेषांक प्रस्तुत हुआ है नाम है “पोपट में जान”!
साल 2013 बांकेलाल के लिए काफी अच्छा रहा है! हर सेट में उसको जगह मिलती है और कई कहानियां भी बेहतरीन बनी हैं! वहीँ इस साल तो उसका एक महा विशेषांक भी आपको अगले सेट में मिलेगा!
पोपट में जान का कथावस्तु कुछ यूँ है- बांकेलाल को शक होता है कि विक्रम की जान राजमहल के 5 पशुओं के अन्दर बंद है! पशु ख़त्म तो मोटा भी खत्म! आगे की कहानी आप समझ गए होंगे कि बांके ने सभी पशु मार देने हैं! पर हुआ वही-“कर बुरा हो भला!” यानी विक्रम नहीं मरे! अब क्यूँ नहीं मरे,कहाँ चूक हो गई,यह तो बांकेलाल का रेगुलर पाठक वर्ग खुद ही समझदार है!

“पोपट में जान” में नया कुछ नहीं है! वही घिसा हुआ तिकड़मी प्लाट..कहानी भी साधारण रह गई और पूरी तरह से बांकेलाल पर निर्भर भी! सह भूमिकाओं में किसी को तवज्जो नहीं मिली..सभी एक बार चेहरा दिखाकर चलते बने! एक नई किरदार “धाय माँ” लाइ गई जो पकाऊ निकली..शायद दोबारा कभी आगे फिर दिखेगी(बोला तो ऐसा ही गया है)!
इस कहानी की गति कछुवे जैसी है....आप आराम से चाय-पकोड़े खत्म कर लेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब पूरी हो गई!
कहानी का हास्य पक्ष बहुत कमजोर है...एक बार भी दीदा फाड़ हंसी नहीं निकलती! बांकेलाल सीरीज के साथ यही पेंच रहते हैं....हर सेट में कॉमिक्स आती है इसलिए बीच-बीच में ऐसी नाकाम कहानियां भी मिल जाती हैं..खैर अब दर्शन दो यमराज का इंतज़ार करें!

कहानी-2/5
आर्टवर्क-3/5

सुशांत पांडा जी का है-रेगुलर वाला(ना ऊपर ना नीचे)
इंकिंग-फ्रेंको.
..कलर-बसंत जी...कैलीग्राफी सुखवीर!
एक और महत्पूर्ण सूचना कि “पोपट में जान” के लिए RC ने इस बार बहुत निम्न कोटि के पीताम्बर रंग के कागज़ का प्रयोग किया है!हमने 50-60 कॉमिक्स के ढेर में से बहुत मेहनत से कुछ थोड़े अच्छे कागज़ वाली कॉमिक्स छांटी! यानी पोपट में जान को पूरी तरह से इसी कागज़ पर प्रिंट करवाया गया है! इस कागज़ की उम्र बहुत कम है..ज्यादा आद्रता वाले इलाको में कॉमिक्स ज्यादा समय तक टिक नहीं पाएगी! RC ऐसे कागज़ का प्रयोग बार-बार ना करे!

कॉमिक्स के मजबूत पक्ष-
*सुशांत जी के चित्र!
कॉमिक्स के कमजोर पक्ष-
*उबाऊ कहानी,हास्य की नगण्यता,ख़राब कागज़ का उपयोग

“पोपट में जान” विशेष उल्लेखनीय नहीं है....अगली कॉमिक्स का इंतज़ार करिए!