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Wednesday, 11 May 2016

Earth 1947 Review – एक दंगे में उलझी हुई खून सने प्रेम की दास्ताँ






Earth 1947 Review – एक दंगे में उलझी हुई खून सने प्रेम की दास्ताँ!
Earth  (1998)
Amir Khan,Rahul Khanna,Nandita Das
Plot- फिल्म की कहानी बंटवारे के बीच के समय में 1947 के लाहौर के एक छोटे से हिस्से को दिखाती है! यहाँ पर एक पारसी परिवार रहता है...किट्टू गिडवानी और आरिफ ज़कारिया का! इनकी एक पोलिओग्रस्त छोटी सी बेटी है! जिसका ध्यान रखने के लिए एक हिन्दू लड़की (नंदिता दास) को रखा है! (आमिर खान) एक आइसक्रीम वाला बने हैं..और (राहुल खन्ना) मालिश वाले! दोनों ही मुस्लिम हैं! इनके अलावा कुछ सिख धर्म के दोस्त भी इनके साथ रहते हैं! मतलब यहाँ पर सभी धर्मो से जुड़े लोग नज़र आते हैं! वैसे तो सभी बहुत प्यार और भाईचारे के साथ रहते हैं...लेकिन जब बंटवारे की बात देश की राजनीती में उठती है तो कई अलग अलग खेमे धर्म के आधार पर बंट रहे हैं! लोगों में बात बात पर तनाव और गर्मागर्मी हो रही है...आपसी विश्वास टूट रहा है! हालात तब ज्यादा खराब हो जाते हैं जब बंटवारे का एलान सरकार कर देती है... हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई अपने अपने घर और कारोबार को छोड़कर भारत से पाकिस्तान और वहां से यहाँ भागने लगते हैं! ऐसे ही एक ट्रेन भारत से लाहौर आती है जिसमे मुस्लिमो की लाशें और महिलाओं के कटे स्तन बोरियों में भरकर भेजे गए हैं! आमिर खान यहाँ पर भटक जाते हैं..क्यूंकि नंदिता दास उनके प्रेम को ठुकराकर राहुल खन्ना से प्रेम करती है..जो की शादी के बाद भारत आकर हिन्दू बनने को तैयार है! मजहबी दंगे बढ़ जाते हैं और लाहौर के मुस्लिम भी हिन्दुओं और सिखों पर हमले शुरू कर देते हैं! इंसानियत को भुलाकर सभी इस बात पर आमादा हैं कि कौन दूसरे से ज्यादा बड़ा जानवर बनकर दिखायेगा! इसमें सभी धर्मो की भीड़ महिलाओं पर अत्यचार के मामले में सबसे आगे है! अंत में राहुल खन्ना को कोई अज्ञात कारण से क़त्ल कर दिया जाता है और आमिर खान भी दंगाई भीड़ में शामिल होकर नंदिता दास को सैकड़ो मुस्लिमो के हवाले करके अपने प्यार को ठुकराए जाने का बदला निकाल लेते हैं!
एक्टिंग के मामले में राहुल खन्ना बुझे बुझे से नज़र आते हैं..उनका रोल भी ज्यादा नहीं है...नंदिता दास का काम ठीक है..आमिर खान ने बढ़िया एक्टिंग करी है...उनका रोल पॉजिटिव और ग्रे होने के बाद एकदम नेगेटिव बन जाता है! शायद धूम-3 से ज्यादा बड़े खलनायक वो earth में हैं! कुलभूषण खरबंदा मीरा नायर की हर फिल्म की तरह यहाँ भी मौजूद हैं! 

फिल्म क्यूंकि आज़ादी के वक़्त हुए असली हालातों को दिखाती है..इसलिए इसमें कोई ज्यादा शक नहीं है कि लगभग ऐसा ही नज़ारा उस वक्त देश का रहा होगा! फिल्म के अनुसार 70 लाख मुस्लिम और 50 लाख हिन्दू-सिख मारे गए थे! यह एक काफी बड़ा आंकड़ा कहा जाएगा!
ऐसी फिल्में कुछ ऐतिहासिक बातें बताती हैं तो कुछ गलतियाँ सुधारने की सीख भी देती हैं! बंटवारा सही था या गलत....इसपर सभी अपनी राय है..लेकिन एक बात को रोक जा सकता था वो था खून-खराबा! अगर सभी धर्म वाले इंसानियत को ऊपर रखकर शान्ति से यहाँ से वहां और वहां से यहाँ रहने आ जाते तो ज्यादा बेहतर बात होती! पर हमारे नेताओं के आगे किसकी चली है...इनका बस चले तो आज भी लोगों को धर्म और जातियों पर लड़वाकर और बंटवारे करवा दें! क्यूंकि सबको प्रधानमंत्री बनना है! वैसे एक चीज़ हमेशा दिखाई जाती है कि दंगे-फसाद के समय जो भीड़ होती है....उसको रोकना शायद ऊपर वाले के हाथ में भी नहीं होता! यह भीड़ सिर्फ एक लक्ष्य पर चलती है..जिसको पूरा करने के अलावा दूसरी कोई बात उसको नज़र नहीं आती! चाहे आप उसके अपने भी हो...भीड़ आपको भी कुचल देगी अगर आप उसका साथ नहीं देते! इसलिए या तो भीड़ का हिस्सा बन जाइए या भीड़ से बिल्कुल नाता तोड़ दीजिये! पाकिस्तान आज एक विफल राष्ट्र इसलिए नज़र आता है क्यूंकि वहां सिर्फ एक धर्म का बोलबाला है..और भारत इसलिए खुशहाल है..क्यूंकि यहाँ बहुत सारे धर्म मौजूद हैं! इसकी वज़ह यह है कि जब कोई एक धर्म ही देश के हर अच्छे-बुरे के लिए दोषी होता है तो उससे जुड़े लोगों के अन्दर एक कुंठा पैदा हो जाती है..अगर वो अपने धर्म से जुड़े ही लोगों को कहीं और ज्यादा खुशहाल हालत में देखता है! पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र के नाम पर बना था..लेकिन वहां के मुस्लिमो की तुलना में भारत के मुस्लिम आज ज्यादा बेहतर हालत में हैं! यह एक अकेला कारण काफी है पाकिस्तान के लिए..भारत से नफरत करने का! वहीँ भारत में क्यूंकि अच्छे-बुरे जो काम हो रहे हैं..उसको अलग-अलग वर्गों के लोगों में बाँट दिया जाता है..इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि जो सफलता देश में है..वो सिर्फ किसी एक की वज़ह से हैं..और जो दुःख नहीं वो किसी दूसरे की वज़ह से! एक भारत जैसे बड़े देश में हर चीज़ सबके लिए मुमकिन नहीं होती! यहाँ हिन्दू ज्यादा हैं इसलिए रहन-सहन और जीवनशैली में लचीलापन मौजूद है....वहीँ मुस्लिमों की वज़ह से हमारे देश को दुनिया भर के दूसरे मुस्लिम देशो के साथ कोई भी अंतर्राष्ट्रीय समझौता और डील करने में ज्यादा आसानी होती है! इसके अलावा हम अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर देश की विविधता में एकता वाली बात का ढोल पीटकर पडोसी मुल्को को आइना भी दिखाते रहते हैं! बुद्ध धर्म क्यूंकि भारत में शुरू हुआ और दक्षिण एशिया से लेकर पूर्वी गोलार्ध में फैला..इसलिए वहां के देशो का हमसे अच्छा सम्बन्ध कायम है! सिख कम्युनिटी भारत के अलावा पश्चिम के देशो में हमारे लिए ऐसे बहुत से रास्ते खोलती है..जो हमारे देश के काम आते हैं! पारसी समाज भी हमारे देश में शान्ति से रह रहा है और ईसाई भी! तो हम कह सकते हैं कि खून खराबे और हज़ारो लड़ाइयों के बाद बर्बादी से शुरू हुए आज़ाद भारत को पाने के बाद एक सफल राष्ट्र बनने की तरफ हमने बहुत अच्छे कदम बढ़ाये थे..और इसमें हर वर्ग और धर्म का बराबर का हाथ है!
खैर मुद्दा यह है कि बंटवारे के वक़्त हुए दंगे कभी आगे भविष्य में ना हो...इसके लिए सबसे जरूरी चीज़ है...की जो भी बस्तियां,कॉलोनियां ,गाँव,शहर,जिले बसाए जाते हैं और जाते रहेंगे...उसमे एक मिलीजुली आबादी को बसाने पर ज्यादा ध्यान और प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है! हिन्दू आबादी अगर अलग रहेगी...मुस्लिम आबादी अलग और सिख अलग..ईसाई अलग..तो कभी ना कभी दंगे जरूर होते हैं...क्यूंकि एक धर्म के लिए दूसरे धर्म वाले को निशाना बनाना ज्यादा आसान हो जाता है..अगर उसको पता चले कि फला कम्युनिटी एक ही जगह रहती है! ऐसे हालातों में किसी के बचने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है..क्यूंकि वो ना तो भाग पाते हैं...ना उनकी मदद के लिए कोई बीच में आ सकता है! जैसा हमने कहा कि भीड़ का सिर्फ एक लक्ष्य होता है....जिसको पूरा करना ही है! क्यूंकि आज का माहौल बहुत बोझिल सा बन गया है! इसलिए अगर हो सके तो आपस के छोटे छोटे मुद्दे बड़े ना बनने देने में ही सभी कम्युनिटीज का भला है!
4/5