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Wednesday 26 March 2014

LAST STAND/ CITY WITHOUT A HERO SERIES

कॉमिक समीक्षा - सिटी विदाउट ए हीरो सीरीज
मित्रों, देश भर के पाठको की अनगिनत समीक्षाओं के बाद CWAH की यह समीक्षा हम जानबूझकर इतनी देर से दे रहे हैं...ताकि अभी तक जिन्होंने सिटी विदाउट ए हीरो सीरीज नहीं पढ़ी है....उन्हें असुविधा ना हो........इसलिए
विनम्र निवेदन है..कि वही लोग इसको पढ़ें....जिन्होंने कॉमिक्स पढ़ी है!
****जिन्हें किसी भी स्तर की समीक्षा से परहेज़ हो तो अपनी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी पर पढ़ें! (Containing Spoilers*)
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Genre- Action-Adventure-Thriller

Plot- ध्रुव के कार्यक्षेत्र राजनगर का चप्पा चप्पा आज अपराधियों की सैरगाह बना हुआ है...एक से बढ़कर एक कुख्यात चेहरा बिना किसी डर के यहाँ वहां अपने कारनामो की निशान छोड़ रहा है...ऐसे में सबको याद आ रहा है..अपना रखवाला! लेकिन वो आज मौजूद नहीं है..राजनगर को खुद जूझना है इन सबसे! अपने अंतिम पड़ाव पर आ चुकी यह कहानी अब बताएगी कि कैसे ध्रुव, खुद को जिंदा साबित करते हुए राजनगर में दोबारा चमकने के लिए आ चुका है!

Story view- पूरी कहानी पढने के बाद यह साफ़ है कि "सिटी विदाउट ए हीरो सीरीज" को लिखना आसान काम नहीं था....लेखक ने अपनी ओर से हर संभव कोशिश और मेहनत करी है कि पाठकों का भरपूर मनोरंजन हो सके...यह हर पढने वाले को नज़र भी आएगा...इतनी बारीकी से 4 मोटी कॉमिक्स लिखना और उसमे पाठको की रूचि को बनाये रखना आसान बात नहीं थी! हम खुद CNC से ही कई दफा कहानी में होती ऊंच नीच,घुमावदार कथानक से आनंदित होने के साथ विचलित भी हो रहे थे! क्यूंकि यह बात सही है कि ध्रुव की जो ज़िन्दगी अनुपम जी पिछले कुछ सालों से दिखा रहे हैं...वो एक जगह ठहरी होने के साथ साथ ऊबाऊ भी होती जा रही है! ध्रुव को एक निश्चित सांचे में कैद करके रख दिया गया था...जहाँ से उसमे विकास की गुंजाइश ख़त्म होती दिख रही थी!
CWAH ने इस एकसरता पर गहरा प्रहार करके इसको तोडा है! इसकी बुनियाद जीनियस और AXE सरीखी कॉमिक्स में ही पड़ गई थी!

CWAH सिर्फ एक आपराधिक स्थिति का अंत नहीं है..यह एक हीरो और कर्मक्षेत्र के बीच बने रिश्ते को उभारती है! अगर देखा जाए तो..पहले भी राजनगर को केंद्र में रखकर कहानियां लिखी जाती थी..लेकिन तब कभी उन् हालातो के लिए ध्रुव को कठघरे में खड़ा नहीं किया गया...CWAH इसकी अपवाद है....LS के पेज 43 में रोबो के कथन पर नज़र डालेंगे तो उसने अपना किया धरा ध्रुव के सिर् पर डाल दिया! और सैधांतिक रूप से वो सही भी लगा!

किरदारों की बात-

सुपर कमांडो ध्रुव- रोल के हिसाब से ध्रुव का कैदी अवतार काफी बढ़िया रहा...क्यूंकि उससे पहले वो रूटीन काम ही कर रहा था...जो अक्सर देखा जाता है..लेकिन एक चीज़ में दोराय नहीं है..कि जहाँ कहानी की शुरुआत उसने अकेले दम पर करी थी...अंत में बाकी सुपर हीरोज और कॉमेट,चंडिका,मिशा वगैरह की वज़ह से पूरी जीत पर उसका हक नहीं रहा..अपितु यह जीत एक सम्मिलित प्रयास रहा! जहाँ लेखक ने ध्रुव को पिटवाया अत्यधिक... जिताया कम!

कॉमेट- "सिटी विदाउट ए हीरो" सीरीज का असली हीरो कॉमेट ही था...अगर यह नहीं होता तो कहानी की शुरुआत से ही अंत में रोबो को हराने का आईडिया उसके द्वारा लेखक नहीं दिखाते! वो ध्रुव के व्यक्तित्व का ही दूसरा पहलु है..जिसमे काम को लेकर कोई उत्कंठा नहीं थी! वो आया और शान के लड़कर वापस चला गया!
उसके साथ मिशा भी एक अच्छी किरदार लगी...जिसने उसका साथ निभाया...इस बात की उम्मीद कम है..कि यह दोनों फिर जल्दी दिखेंगे..पर जब भी आयेंगे...इनका स्वागत होगा!

ग्रैंड मास्टर रोबो- रोबो पर काफी कुछ कहा जा चुका है...उसकी प्लानिंग काबिलेतारीफ् थी...यह कहानी वही कर सकता था..विलेन अगर उसके जैसा कमीना हो तभी मज़ा आता है...अंत में उसने जो काम किया...और ध्रुव के हाथ से भाग निकला...इससे पता चलता है..कि जल्दी ही वो दोबारा हाज़िर होगा!

चंडिका- ध्रुव के बाद राजनगर की दूसरी सच्ची रक्षक वही है..यह साबित हुआ है! उसका रोल अच्छा लिखा गया है! सच कहा जाए तो नताशा की बातों को पढ़कर होती खीज को चंडिका ने ही दूर किया!

ब्लैक कैट- यह सीरीज ऋचा के लिए विशेष महत्त्व वाली रही है...यह बात हर कोई जानता है...कि उसके अन्दर काफी पोटेंशियल है...जिसका उपयोग पहले नहीं हुआ था...लेखक ने उसको एक नयी दिशा दी है...जहाँ उसको एक तरफ ऋचा के रूप में आत्मनिर्भर दिखाया गया..वहीँ ब्लैक कैट के रूप में उसके उन सभी आलोचकों का मुहं बंद किया गया...जो उसको समाज का दुश्मन कहते रहे हैं! आज उसकी अपनी अलहदा पहचान उभरी है और वो समय के साथ और बेहतर होकर निखरेगी!

नताशा- इस पूरी कहानी की एक महान उपलब्धि नताशा रही है!
1-नताशा ध्रुव द्वारा अक्षिता की माँ को उसका अंतिम सन्देश या तो दे नहीं पायी...या देना जरूरी नहीं समझा...या दिया ही नहीं! लेकिन किसी भी सूरत में वो ध्रुव की दी गई एक अहम् ज़िम्मेदारी निभाने से चूक गयी!उसकी इस नाकामी से ही कमांडो फ़ोर्स बंद हुई! एक सच्ची प्रेयसी अपने प्रेमी के काम और उसकी संस्था को आगे बढाती है..ना की ताले लगवाती है! लेकिन सच्चा है कौन?
2-MS के पेज-27 पर कॉमेट से बिना सोचे समझे लिपट जाना..दर्शाता है कि नताशा के लिए ध्रुव का होना सिर्फ शरीर का होना है. आत्मीय रिश्ते पर आज भी प्रश्नचिन्हं है....कॉमेट को पहली बार चंडिका(श्वेता) और ऋचा ने भी देखा...लेकिन उन्होंने अपने संवेगों पर काबू रखा था!
नताशा ने राजनगर में एक लम्बा वक़्त बिताया है..जहाँ वो सभ्य समाज के बीच जीने के लिए झंझावातो से गुजरी है..लेकिन अब रोबो और ध्रुव के बीच की इस अहम् कड़ी को लेखक द्वारा एक मजबूत किरदार के रूप में विकसित किया जा चुका है...जहाँ आगे नयी शक्तियों से लेस होकर वो क्या रास्ता आख्तियार करेगी?..भविष्य बताएगा! लेकिन उसके प्रशंषक इस बात को नहीं समझ पा रहे! कभी-कभी मुश्किल फैसले ही किसी को मजबूती देते हैं...नताशा के साथ भी रोबो का रिश्ता ऐसा ही है! एक बाप जो पहले चाहता था कि उसकी बेटी पर उसके कामो का साया ना पड़े..आज पूरी तरह से बदल चुका है! यह बदलाव आगे नए रास्ते खोलेगा!

अंतिम भाग लास्ट स्टैंड को 93 पन्ने समर्पित किये गए हैं! और कहानी भी खत्म! अब वक़्त है निरीक्षण का...{अति जिज्ञासा वश*}कुछ अहम् बातें हमें उल्लेखित नहीं मिली..जिन्हें बताना जरूरी था! (कृपया सभी शान्त मन से पढ़ें)

1=>नताशा के पास ध्रुव-ऋचा की तसवीरें भेजने वाले के बारे में इस सीरीज में भी कुछ पता नहीं चला? यह उम्मीद थी कि लेखक 2 साल से लटके AXE के इस विषय पर कुछ प्रकाश डालेंगे...क्यूंकि CNC में भी नताशा और ध्रुव के बीच उन् तस्वीरों ने काफी ग़लतफहमी पैदा करी थी!

2=> हमने सबसे पहले ध्रुव की कॉमिक्स “खूनी खिलौने” पढ़ी...फिर "बौना वामन" का पहला पन्ना देखा था...उसके बाद "विध्वंस" देखी! सभी जगह बताया गया है...कि नारका जेल राजनगर समुद्र तट से कई किलोमीटर दूर समुद्र के बीचो बीच "सांग द्वीप " पर स्थित जेल है! जिसके चारो तरफ सिर्फ पानी ही पानी है!
फिर ऐसा क्यूँ है कि CWAH सीरीज में इसको राजनगर में दिखाया गया है? इसके पक्ष में कुछ पॉइंट्स देते हैं-
#- Aqua को नारका जेल में घुसने के लिए पानी की बोतलों के अन्दर छुपकर आने की कोई जरूरत नहीं है...वो आराम से पानी में डुबकी मारकर जेल तक तैर सकता था! क्या वज़ह रही कि वो एक ट्रक में आया? और असल बात कि आखिर यह ट्रक कैसे पंख लगाकर समुद्र पार करके आ गया? ऐसी जेलें शहर से दूर बनाई ही इसलिए जाती हैं..ताकि इनका आबादी के साथ कोई लिंक ना हो...महीने या हफ्ते में 1 बार ही रसद और खाद्य आपूर्ति के लिए जहाज़,स्टीमर आदि का प्रयोग होता है!
“खूनी खिलौने” का पेज-7 देखिये...जिसमे स्टीमर से पुलिस नारका जेल तक जाती है!

#- जेल के कैदियों ने भागने के लिए पुलिस जीप्स का प्रयोग किया..बाकी सभी पैदल ही भाग खड़े हुए! जिनमे ध्रूव भी था! जब जेल समुद्र में है..तो यह कैसे संभव हुआ? और अगर यह संभव है... तो मतलब लेखक की जेल शहर में है!
#- CWAH सीरीज की नारका जेल समुद्र में नहीं है..इसके पक्ष में एक और बात है..जब हज़ारो कैदियों को भागने का मौका मिलेगा..तो वो इधर उधर जाकर अंडरग्राउंड होना ज्यादा बेहतर समझेंगे..... बजाय राजनगर में हुडदंग करने के..जिसमे उन्हें वापस पकडे जाने का खतरा था! हुडदंग वे एक ही सूरत में कर सकते थे...जब जेल से बाहर निकलते ही उन्हें शहर मिल जाए..जहाँ से वो ताकू,तलवार वगैरह लेकर शुरू हो सकें!
यानी यहाँ भी लेखक के अनुसार नारका जेल शहर में ही है!
#- अगर लेखक की जेल समुद्र में होती...तो 4 भाग लम्बी कहानी में कहीं ना कहीं जेल से भागे कैदियों को किसी स्टीमर,जहाज़ या तैरते हुए राजनगर में घुसते दिखाया जाता! ऐसा नहीं हुआ...क्यूंकि जेल शहर में ही थी!

इसके बाद भी अगर कहा जाए कि नारका जेल समुद्र में ही थी..तो इसका मतलब है कि
@हज़ारो कैदी 5-10 जीप्स में समा गए थे! और जीप पानी पर चल पड़ी!
@या फिर 100 % सबको तैरना आता था!
@सबने एक सहमति से किसी दूसरी दिशा में भागने की जगह राजनगर की तरफ ही कूच किया!
@राजनगर की जमीन पर कदम रखते ही..उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता से अधिक हुडदंग करना ठीक लगा!

लेखक पूर्व उल्लेखित तथ्यों में मात खा गए लगते हैं...उन्होंने नारका जेल पर होमवर्क नहीं किया...या करना जरूरी नहीं समझा...वरना वो यह बात आसानी से जान सकते थे...कि राजनगर के अन्दर एक जेल और भी मौजूद है- "सेंट्रल जेल"..इसके लिए सभी "वर्दी और बन्दूक" पढ़िए! जो ब्रेकआउट नारका जेल का हुआ दिखाया गया है..असल में वो सेंट्रल जेल से ज्यादा मैच करता है! जो शहर के अन्दर है!
हमें उम्मीद है..सभी ठन्डे दिमाग से इन् बातों पर विचार करेंगे!
तथ्य तो कहते हैं..कि अगर नारका जेल का ब्रेकआउट संदिग्ध नज़र आता है..तो आगे की कोई कहानी बनती ही नहीं है! ना “मैक्सिमम सिक्यूरिटी ज़ोन” ब्रेक होती!

3=>रोबो यह तो बताता है...कि उसकी ड्रग्स के प्रभाव से ध्रुव मृत हो गया था...उसका DNA और Tooth Prints मैच कर गए थे..यह तो ऊपरी तौर पर होने वाली जांचें थी...लेकिन अस्पताल वालो ने ध्रुव के उस मृत शरीर का पोस्टमॉर्टेम आखिर क्यूँ नहीं किया? जो कानूनी तौर पर करना जरूरी है! ध्रुव की आकस्मिक मौत की वज़ह तलाशने के प्रश्न से यदि पोस्टमॉर्टेम किया जाता तो डॉक्टर्स को ड्रग्स के अंश मिल सकते थे..और ना भी मिलते..तो ध्रुव पोस्टमॉर्टेम के दौरान होने वाली काट-पीट में वैसे ही मारा जाता!

4=>जहाँ तक हमने कहानी में समझा...रोबो ने ध्रुव की बॉडी में अस्पताल में बदलवाया था! अगर यह कहा जाए...कि जो म्रृत शरीर ध्रुव की जगह रखा गया था.....यदि उसका पोस्टमार्टम किया जाता..तो उसकी रिपोर्ट में 2 बातें सामने आती-
#- उसकी मौत मिसाइल के हमले से नहीं हुई! और चाहे जिस वज़ह से हुई हो
#- उसकी मौत का समय ध्रुव की मौत के समय से नहीं मिलता!

5=>पेज-82 पर ध्रुव कहता है कि उसको गाडी ने टक्कर मारी और उसको अस्पताल में होश आया....लेकिन लेखक ने यह नहीं बताया कि सड़क से लेकर अस्पताल तक के डॉक्टर्स,नर्स,मरीजों तक इस बीच उसको किसी ने पहचाना क्यूँ नहीं? ध्रुव का चेहरा विश्व प्रसिद्ध चीज़ है!और यह तो लेखक के अनुसार राजनगर के आस पास का ही क्षेत्र था?

6=>इसके बाद अस्पताल में...गुंडों से मारपीट के बाद दाढ़ी वाले रूप में पुलिस जब पकडती है..तो पहले लोकल स्टेशन..वहां से कोर्ट...ले जाती है! अगर उसके दिमागी तौर पर अदालत को कुछ शुबहा रहा था...तो अदालत उसको Mental asylum में भेजती ना कि... अति उन्नत नारका जेल में...जहाँ सिर्फ कुख्यात और खतरनाक कैदी रखे जाते हैं!(इसके लिए “खूनी खिलौने” का पेज-7 के दूसरे फ्रेम का कैप्शन पढ़ा जाए...जिसमे “सिर्फ” खतरनाक कैदियों का जिक्र है...ना की हर कैदी का.... और जबकि आम कैदियों के लिए राजनगर में पहले से सेंट्रल जेल मौजूद है!
यदि मान लिया जाए...कि जज साहब को मेमोरी डिसऑर्डर था...जहाँ चाहे भेज दिया...तो भी जेल गए व्यक्ति का पूरा बायोडाटा/केस फाइल बनाई जाती है...जिसमे उसकी मेडिकल जांच....जिसमे चेहरे की सामने...दायें और बायें एंगल से फोटो लेना शामिल है...इसके लिए बाकायदा कैदी की शेविंग करने का प्राविधान मौजूद है!
इस नए डाटा को पहले पुराने डाटा से मैच करा जाता है...कि फलां नया कैदी किसी पुरानी वारदात में वांटेड तो नहीं!
कहानी में मौजूद इतनी अलग जगहों पर बन रही इन् शंकाओं के निवारण पर रौशनी डाली जानी चाहिए थी!

7=>मेयर कानून व्यवस्था से जुड़े फैसले जरूर ले रहा था..लेकिन राजन मेहरा "कमिश्नर ऑफ़ पुलिस!" क्या करते रहे? वे एक बार मैडम सांवरिया के खिलाफ खड़े हुए थे.. लेकिन कहानी में कमांडो फ़ोर्स को बंद करने....कुख्यात अपराधियों से भरी कमांडर फ़ोर्स के गठन से लेकर इंस्पेक्टर स्टील को सस्पेंड करने तक के आदेश मेयर के कहने पर दे रहे थे! और इसके तहत पुलिस विभाग में कोई भी दूसरा अफसर उनके विरोध में नहीं खड़ा होता है.....यह कैसे संभव है? * स्टील का सस्पेंशन कभी भी मेयर नहीं करा सकता...स्टील गवर्नमेंट ड्यूटी के नीचे आता है....भले ही उसका कार्यक्षेत्र राजनगर को...फिर भी मेयर को यह अधिकार नहीं है...क्यूंकि स्टील स्पेशल फ़ोर्स में आएगा!
क्या कमांडर फ़ोर्स में शामिल हो रहे लोगों की जांच उनके दायरे में नहीं आती थी?...जो शहर की सुरक्षा से जुडी संवेदनशील बात थी!
यह बात हमने ब्रेकआउट के समय ही जान ली थी..कि राजनगर की इस कहानी में प्रशासन का पक्ष सबसे कमजोर है! चीज़ें हुई तो बताई जा रही हैं..लेकिन सही जगह से नहीं हुयी हैं! यह सिर्फ मानने और ना मानने वाली बात है! कि या तो मेयर ही सबसे शक्तिशाली है! या फिर राजन मेहरा एक नाकारा/देशद्रोही आदमी है! दोनों ही सूरत में कहानी की Accuracy गड़बड़ा जाती है!

8=> ब्रेकआउट (पेज-21) पर एम्सटरडैम में एक न्यूज़ चैनल(WNT) पर खबर आती है...कि राजनगर में जेल ब्रेकआउट हो गई!
CNN,BBC जैसे चैनल्स ऐसी खबरें कई दिन चलाते हैं! लेकिन वर्ल्ड फेमस सुपर हीरो "सुपर कमांडो ध्रुव" के मरने की खबर एम्सटरडैम में फिनिक्स जैसी इंटरनेशनल मूवमेंट्स करने वाली सिक्यूरिटी एजेंसी को क्यूँ नहीं मिली...वो आसानी से किसी अखबार या इन्टरनेट पर भी यह खबर जान सकते थे....जिससे वो कॉमेट के बारे में कुछ तो पता करते? कॉमेट अगर अपनी फोटो इन्टरनेट पर डालकर सर्च पर Enter कर देता...तो सुपर कमांडो ध्रुव के हज़ार पन्ने खुल जाते! आज के टेक्नोलॉजी वाले युग में यह पक्ष नज़रंदाज़ कर दिया गया!

9=>बिना पहचान के किसी भी व्यक्ति को किसी दूसरे देश की नागरिकता नहीं मिल सकती है..और किसी अति विशिष्ट सुरक्षा एजेंसी का सदस्य तो बिलकुल नहीं बनाया जा सकता!अगर उस व्यक्ति की पहचान ना कन्फर्म हो पाई हो..तो उसे संदिग्ध मान कर दुनिया के हर एम्बेसी से संपर्क किया जाता है..और अगर फिर भी पहचान ना मिल पाए..तो उसे जेल में रखा जाता है!अगर लेखक के अनुसार फीनिक्स ने कॉमेट का लाई डिटेक्टर टेस्ट किया था...जिसमे कुछ नहीं मिला...तो भी फीनिक्स को पता था..कि जासूसों को लाई डिटेक्टर टेस्ट को भी धोखा देने की ट्रेनिंग मिलती है...फीनिक्स के अनुसार कॉमेट की सीखने की क्षमता बाकी लोगों से कई अधिक तेज़ थी...कि वो सालो की स्किल्स कुछ महीने में ही सीख गया..इससे तो उसकी संदिघतता और बढ़ जानी चाहिए! फीनिक्स किसी नए अनजान शख्स पर इतना जोखिम भरा दांव खेल नहीं सकती थी!

10 => रोबो ने यह बताया था कि उसने मेयर के परिवार को बंधक बनाया हुआ है...अंत में कहानी में यह नहीं पता चला कि परिवार को छुड़ाया गया....या अभी भी वो रोबो के ही कब्ज़े में है?

11=>MS में कलेक्टर एडिशन के 4 अतिरिक्त पेज.... 2 वज़ह से जरूरी थे-
#- उन पेजों से ही पता चलता है..कि नागराज को ध्रुव से यह जानकारी मिली थी..कि मैक्सिमम सिक्यूरिटी जोन नाम की एक जगह भी मौजूद है..और जिसकी वज़ह से लास्ट स्टैंड में बाकी हीरोज प्रकट होते हैं!
#- उन् पेज़ों से ही पता चलता है कि सस्पेंड हुए कबाड़ खाने में पड़े इंस्पेक्टर स्टील को बाकी हीरोज कैद से आज़ाद करवाते हैं!
साधारण पाठको को हुई इस असुविधा को देखते हुए राज कॉमिक्स कहानी के अतिरिक्त पेज सभी को उपलब्ध करवाया करे! क्यूंकि जो किसी एक के लिए बेकार है वो दूसरे के काम का हो सकता है!

12=>स्वर्ण नगरी वाले अति उन्नत विज्ञान से लैस होकर भी उस एलियन को कई महीने अपने पास रखे रहे...उसपर रिसर्च भी करते रहे...लेकिन उसका राज़ पता नहीं लगा सके....वहीँ रोबो उस एलियन से पहली बार मिला और उसकी शाक्तियाँ भी खींच ली?
क्या रोबो की जानकारी का खजाना स्वर्ण नगरी से अधिक है?

=>एक्शन दृश्य में नयी ट्रिक्स और जीत-हार के लिए नए पैंतरे आजमायें जाएँ...यह बात ब्रेकआउट पढ़ते हुए भी महसूस हुयी थी...जब ध्रुव रोबो से लड़ते हुए पुराने दांव आजमा रहा था...यही चीज़ LS में ध्रुव और Aquo के बीच लड़ाई में रहा! इस दिशा में अधिक मेहनत की जरूरत दिखती है!

=>Aquo जैसा अहम् पात्र...जिसके ऊपर पूरी प्लानिंग की सफलता निर्भर थी..और कहानी के कई हिस्सों में उसने मौजूदगी दर्ज करी...उसके बनने की कहानी के बारे में 1 पन्ना खर्च किया जाना चाहिए था! सभी ने Aquo को एन्जॉय भरपूर किया लेकिन वो कैसे बना?...उसकी शक्तियों का स्त्रोत?..यानी वो क्या चीज़ था?...कुछ पता नहीं चला! अंत में रोबो ने उसको अपने पास से प्रकट करके उसकी विशाल अहमियत पर मुहर लगा दी!

About Writer-
मंदार गंगेले जी की लेखन क्षमता बहुत बेहतरीन है...उन्होंने जिस तरह से कदम दर कदम कहानी को उसके अन्दर हुयी घटनाओं को ताश की तरह फेंटा और जगह जगह पर फिट करके दिमाग घुमा दिए..यह दर्शाता है कि शुरू से कहानी पर उनकी पकड़ बनी हुयी थी!
उनके अनुसार कहानी वर्तमान से भविष्य में नहीं बल्कि भूतकाल से वर्तमान में चलाई गयी है...यानी कि ध्रुव पर लगातार प्रयोग किये जाते रहे...जैसे-
@वो मरा सिर्फ एक बार...लेकिन दिखाया गया कि डॉक्टर वायरस ने भी मारा था.
@वो सफलता से भागा एक बार लेकिन दिखाया गया...कि असफल प्रयास कई बार किये थे!
@सपना ध्रुव देखता था..लेकिन जागता कॉमेट था!
डबल रोल के इस चक्कर से ज्यादा चक्कर लेखक के दिमाग द्वारा पाठको को दिए गए हैं!
दूसरी चीज़ उन्होंने Side characters को भी अहम् रोल देने में कोई कंजूसी नहीं दिखाई..कहानी में ध्रुव के 2 किरदार होते हुए भी...कोई यह नहीं कह सकता कि उनका पूरा फोकस इन्ही पर था...चंडिका,नताशा,ऋचा,धनंजय वगैरह सभी याद किये जाने लायक काम कर गए है!
कहानी के संवाद आम बातचीत में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के साथ ही..वज़नदार भी थे!
^^यह उनके मजबूत पक्ष थे!

उनका सबसे कमजोर पक्ष होमवर्क की कमी का रहा...अनुपम जी से हमें यह शिकायत बनी रहती है..कि वे सालों पहले जो दिखाते हैं..उससे वर्तमान में अलग चीज़ दिखा देते हैं..पर मंदार जी ने भी कहीं ना कहीं तथ्यों को नज़र अंदाज़ किया है!
दूसरी कमी एक्शन sequences में नज़र आई ...जहाँ ध्रुव के अलावा चंडिका और दूसरे लोग नयी ट्रिक्स निकालते नहीं दिखे..ढिशुम-ढिशुम के बाद जब फाइनल पंच की बारी आई..तो repeated चीज़ें दिखाई जाती रही!
इस कहानी को कुछ हिस्सों में एक्शन सीन कम करके कहानी की स्पीड बनाये रखते हुए उसको Accurate बनाने की ज्यादा कोशिश करी जानी चाहिए थी!

पाठको को कहानी में मनोरंजन के साथ-साथ उसकी ACCURACY पर भी ध्यान देना चाहिए...जिसके ऊपर कहानी की नींव टिकी होती है...और एक सशक्त कहानी मिलती है! “जागो ग्राहक”

लास्ट स्टैंड में हमें काफी चीज़ें संदिग्ध लगी तो कुछ चीज़ें इसको याद करने लायक भी बना गई!
हम CNC,BO,MS को दे चुकी रेटिंग्स में परिवर्तन के पक्ष में नहीं हैं...सीरीज जब तक चलती रहती है..उसको सकारात्मक दृष्टि से ही देखा जाना चाहिए! लेकिन "लास्ट स्टैंड" अपवाद है! भविष्य की तरफ इशारा करे जाने से एक भी सवाल का जवाब मिल नहीं पाया! LS की हमारी रेटिंग 2/5 थी...लेकिन व्यक्तिगत तौर पर ऋचा-ध्रुव के बीच दर्शाए गए रोमांटिक सीन..और नताशा के रोल में बदलाव के लिए(जो हमें बहुत पसंद आया) 0.5 + 0.5 = 3/5

CNC -4/5
BO-4/5
MS-3.8/5
LS-3/5

Overall CWAH series - 4+4+3.8+3=14.8/20
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आर्टवर्क- 4/5

हेमंत कुमार और ईश्वर आर्ट्स ने इस पूरी कहानी को जिस खूबसूरती से उकेरा है..वो सराहनीय है..MS में बैक ग्राउंड्स की कमी को इस बार दूर किये गया है...देखकर बहुत ख़ुशी हुई! लगभग सभी को अच्छा बनाया गया है! कहानी के अंत में जरूर आर्ट में गिरावट आ गई है. (पेज-87) लेकिन उसको नज़र अंदाज़ किया जाना चाहिए!
अभिषेक सिंह के उम्दा रंग सज्जा से लास्ट स्टैंड सजी हुयी है! उन्होंने मेहनत करी है!
शब्दांकन हमेशा की तरह A+

खबरें सुनने में आई कि कुछ पाठक भ्रमित होकर इस सीरीज को Parallel Series मान रहे हैं...यह बिलकुल गलत है..यह रेगुलर सीरीज ही है...और राज कॉमिक्स से भी अनुरोध है कि हमेशा इसको रेगुलर सीरीज ही माना जाए! जहाँ तक ध्रुव की ज़िन्दगी के कालखंड की बात है.तो लेखक के अनुसार यह अनुपम जी की वर्तमान कहानियों से कुछ साल आगे चल रही है...इसके लिए कुछ तथ्य भी पाठक जान ले...कि 2000 में प्रकाशित हुयी कमांडो फ़ोर्स कॉमिक्स में राजनगर की मेयर मैडम सांवरिया थी...और आज कोई नया मेयर है...यानी अवधि को कम से कम 5 साल माना जा सकता हैं!

"सिटी विदाउट ए हीरो सीरीज" से हमें पूर्व निर्धारित तथ्यों से छेड़छाड़ की शिकायत रही.. सच में यह सीरीज "क्रांतिकारी" रही...इसने अब तक आई सारी कॉमिक्स से अलग सबकुछ बदल डाला...विज्ञान,इतिहास,भूगोल,भूत,भविष्य,रिश्ते! यहाँ तक की भावनाएं भी!
इसके अलावा अपने तीसरे भाग मैक्सिमम सिक्यूरिटी में कहानी धीमी हो गयी थी...व आर्ट भी डाउन था! मानव स्वभाव में गलतियाँ होना साधारण बात है..उनसे सीखकर आगे सुधार करा जाना ही श्रेयस्कर होता है!

उम्मीद है...राज कॉमिक्स इससे कुछ अच्छा ग्रहण करके आगे भी कई गुना बेहतर कॉमिक्स देंगे! LS के अंत में आखिर के अगली सीरीज के 4 पन्ने बहुत सुंदर लगे....उसके लिए शुभकामनाएं!

DARSHAN DO YAMRAJ

कॉमिक समीक्षा - दर्शन दो यमराज

Genre-Comedy-Dr
ama

Plot-शुरुआत होती है बांकेलाल के षड़यंत्र में इस बार यमराज को भी शामिल करने से...जिससे विक्रम सिंह के ऊपर आ जाते हैं...संकट के बादल...शुरू के 42 पन्ने इस संकट के निवारण की जद्दोजहद में गुजर जाते हैं...इस भाग में 3 बार विक्रम मौत से बचते हैं! बांकेलाल मरखप के हाथो अपनी पोल खुलवाते हुए बड़ी मुश्किल से बचता है!
इसके बाद विक्रम सिंह को जाना पड़ता है...वन में अपने ऊपर आये संकट को दूर करने का लम्बा उपाय करने...और राजा बनता है सेनापति मरखप! आगे के 42 पन्ने बांकेलाल के मरखप का जीना हराम करने को समर्पित हैं! जान बची तो लाखो पाए...लौट के बुध्धू घर को आये..की तर्ज़ पर...मरखप को अक्ल आ जाती हैं...और उसके बाद नए राजा के तौर पर दूसरे मंत्री अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं..कौन कौन मंत्री हैं..और उनके साथ बांके क्या क्या गुल खिलाता है....यह तो आप कॉमिक्स पढ़कर जानियेगा!
अंतिम भाग को पढने से पहले आप "कर बुरा हो भला" और "लाश की तलाश" नमक बांके की शुरूआती कॉमिक्स जरूर पढ़ें...क्यूंकि एक भूला भटका खलनायक वापसी करता है...जिसका गेटअप आजके मशहूर विलेन रोबो जैसा है...हीहीही

Story View-विवेक मोहन जी की परिकल्पना यानी कुछ अच्छा मिलेगा..यह तय था...तरुण कुमार वाही-अनुराग कुमार सिंह ने 128 शानदार पन्नो की रचना करी है! हास्य सहयोग में सुशांत जी का भी योगदान सराहनीय है!
इसको एक ड्रामा-जर्नी कहा जा सकता है...तीन कहानियां जो एक दूसरे से अलग हैं...लेकिन एक के बाद एक आती हैं...राज कॉमिक्स ने यह बेहतरीन निर्णय लिया कि इनको एक साथ पब्लिश करवाया...एक मोटी किताब के रूप में! तीनो कहानियां अच्छी लिखी गई हैं...हास्य भी काफी डाला गया है...और विक्रम सिंह के ना होने से कहानी भी दूसरे किरदारों की तरफ चली जाती है...जिससे नयापन मिलता है! मरखप सिंह का किरदार बहुत मजेदार लगता है! और बांकेलाल के बारे में कुछ कहना बेकार है...वो तो एक आंधी की तरह है...जो सामने मिला..उसको ही उड़ा देगा! बाकी लगभग सभी दरबारियों को कहानी में हिस्सेदारी मिली है! राजमार भी एक अहम् विलेन साबित हो सकता है!

आर्टवर्क- बेहतरीन! सुशांत जी द्वारा चित्रित और बसंत जी द्वारा रंग संयोजन हुआ है!
इंकिंग फ्रेंको,आनंद तिर्की
शब्दांकन-नीरू और सुखबीर

हमारा मत है...कि सभी बांके प्रेमियों को यह सुपर विशेषांक जरूर खरीदना चाहिए!

BELMUNDA KA KHAJANA


कॉमिक समीक्षा - बेलमुंडा का खजाना

Genre- Comedy-Action-F
antasy

Plot- पिछले भाग समुद्री लुटेरे में आपने पढ़ा था..कि हम्मा-हम्मा आयाम में पहुंचे नागराज,ध्रुव और फाइटर टोड्स 7 में से 2 पड़ाव पार कर चुके हैं! इस भाग में वे बचे हुए 5 पड़ाव पार करके एक बार फिर दुनिया पर आया संकट दूर करेंगे!

Story view- 74 पन्नों की यह कॉमिक्स पूरी तरह से एक्शन पैक्ड है...लेखक ने कहानी की गति को तेज़ रफ़्तार से बढाया है...जिसमे 5 पड़ाव पार करने के लिए सभी अपनी पूरी जोर आजमाइश करते नज़र आते हैं!
किरदारों की बात करी जाए...तो कहानी में सबको अपने हिस्से में पर्याप्त जगह मिली है...फाइटर टोड्स पूरी कॉमिक्स में छाए नज़र आते हैं...वहीँ ध्रुव से भी हर सही जगह पर अपनी चतुरता का प्रदर्शन लेखक करवाते दिखे हैं! नागराज ने अपने हिस्से के काम सबके सहयोग से पूरे करे हैं!
लेकिन कहानी में जहाँ भी "बलमा पोपट" को संवाद मिलते हैं...वो कहानी का मुख्य आकर्षण बन जाता है! एक हास्य कहानी में ऐसे किरदार होना बहुत जरूरी हैं...जिनके लिए पढने वाले को उत्सुकता बनी रहे! बलमा पोपट इस सीरीज की खोज कहा जा सकता है!
2 आयामों में चलती इस कहानी में कई प्रश्न खड़े मिलते हैं...लेखक ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करी है...सबके उत्तर यथासंभव देने की...लेकिन कहानी को अंत में 1-2 अतिरिक्त पन्ने मिलने चाहिए थे! क्यूंकि 2 महत्वपूर्ण कथा प्रसंग
* बेलमुंडा का अविजित हम्मा-हम्मा का त्रिशूल चुराना !
* कैटरपिलर का पहली बार में देवों द्वारा हार होने पर पृथ्वी के आयाम में प्रवेश व् अपनी जान बलमा पोपट के अन्दर स्थानांतरित करने वाला प्रसंग दिखाया जाना चाहिए था...क्यूंकि बेलमुंडा और उसकी सेना की जान निर्जीव खजाने में हो सकती है...जो सदा रक्षित बना रहा...लेकिन "बलमा पोपट" एक जीवित प्राणी है....कैटरपिलर को यह आशंका बनी रहनी चाहिए थी..कि बलमा को बेलमुंडा या हम्मा-हम्मा की काली शक्तियों से सदियों तक खतरा था!

नितिन जी के एक्शन और कॉमेडी पर काफी बढ़िया पकड़ है...खासकर ध्रुव ने इस कॉमिक्स में कई जगह बेहतरीन दिमाग लगाया है! द्विअर्थी संवाद आज की सच्चाई हैं...और इनका प्रयोग भी कहानी को कई अच्छे हास्य के पल देता है! फाइटर टोड्स ने जगह जगह अपनी भोली बातों से बलमा के साथ एक अच्छी कॉमेडी पेयरिंग बनाये रखी!

Story-4/5
Artwork-3/5

Artwork View- स्तुति मिश्रा जी ने इस कॉमिक्स का चित्रांकन किया है! वस्तुतः कॉमिक्स अच्छी बनी है...परन्तु "समुद्री लुटेरे" की तुलना में 19 है! नागराज और ध्रुव के शरीर अच्छे नहीं बन पाए हैं...अनुपातिक रूप से कई जगह टेढ़े मेढ़े बने हैं...पेज-12,18-19,26 और बाद में 50वे पेज से अंत तक चित्रों का स्तर नीचे ही जाता रहा है! तुलनात्मक रूप से फाइटर टोड्स का आर्ट ठीक लगता है!
फिर भी कॉमिक्स आँखों को सुकून देती है.
अभिषेक सिंह द्वारा रंग संयोजन किया गया है...जो सामान्य है...उन्हें कुछ और नए आइडिया इस्तेमाल करने चाहिए...जिससे अलग आयामों में होने का एहसास दिखाई दे! इसके अलावा कॉमिक्स ठीक है..रंग खिले-खिले लगते हैं!
शब्दांकन- नीरू और सुखबीर जी द्वारा है.

नितिन मिश्रा जी ने इस बार Narration dialogues का भी इस्तेमाल कहानी में किया है...जो सामान्यतः वो उपयोग नहीं करते हैं....और यकीन मानिए यह बहुत सकारात्मक पक्ष रहा है! इससे कहानी को पढने में अधिक मज़ा आता है और तेज़ी से हो रहे बदलाव समझना ज्यादा आसान हो गया है! वो आगे भी इसको कहानियों में बनाये रखें!

यह कॉमिक्स इस सेट में सबसे अच्छी कॉमिक्स थी...और यादगार फंतासी जर्नी थी...समुद्री लुटेरों और हमारे हीरोज़ के बीच में दमदार टक्कर का मज़ा चुटीले हास्य संवादो के साथ लीजिये!