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Wednesday, 30 November 2016

Mission Kashmir (2000) Review



Mission Kashmir (2000)
8/10
आ मेरा बच्चा....अल्लाह की राह में काफिरों को ख़त्म कर डाल मेरा बच्चा...जन्नत पायेगा मेरा अल्ताफ
जैकी श्रोफ़ को इस रोल के लिए नेशनल अवार्ड मिलना चाहिए था pacman emoticon
कश्मीर में आतंकवाद के पनपने के बाद बनी कुछ सबसे बेहतरीन फिल्मो में यह फिल्म हमेशा टॉप 5 में जरूर रहेगी! वज़ह है इसका कमर्शियल होकर भी वहां मौजूद आतंकवाद के पीछे जो असल ज़मीनी वज़ह होती हैं...उनको एक साथ दिखाना!
सबसे पहली बात तो यह है कि कोई माने चाहे ना माने लेकिन कश्मीर में आतंकवाद को फैलाने के पीछे असल कारण शुरू से ही हिन्दुओं का विरोध करने की पाकिस्तान की सोच रही है...हिन्दुओं का विरोध कश्मीर में रहने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी शुरू से करते आ रहे हैं! और वहां के आम लोगों में भी ऐसे लोग मौजूद हैं..जो भारत के खिलाफ काम करते हैं! लेकिन वहां ऐसे लोग भी मौजूद हैं...जो खुद इस्लाम से हैं...लेकिन आतंकवाद के खिलाफ होने की वज़ह से अल्लाह के नाम पर उनको मारने में आतंकियों को एक मिनट नहीं लगता है!
तो यहाँ पर यह बात साफ़ है कि धर्म के नाम अपने धर्म वालों को हलाल कर देना भी आतंकियों के लिए जायज़ है!
ऐसे ही ऋतिक रोशन का एक आम परिवार आतंकवादियों को अपने घर में पनाह देता है...जिसका सफाया करते हुए "मुस्लिम" पुलिस अधिकारी संजय दत्त के हाथों ऋतिक का परिवार भी मारा जाता है!
यहाँ पर आकर असली फसाद हमेशा शुरू होता है! असली ज़िन्दगी में भी!
आम कश्मीरी को सिर्फ यह नज़र आता है कि भारतीय आर्मी की वज़ह से वहां निर्दोष मरते हैं...लेकिन उन्हें यह नज़र नहीं आता कि उन्ही के बीच जो लोग इन आतंकियों को पनाह देते हैं....उनको अपने बीच में छुपने की जगह ना देना भी इन्ही कश्मीरियों का पहला फ़र्ज़ है! चलिए मान भी लिया कि सारे कश्मीरी नहीं जानते कि कौन अच्छा और कौन बुरा है...लेकिन जब आतंकियों का जनाज़ा निकलता है..तब तो जानते हैं कि मरने वाला भारत के खिलाफ था...क्यूँ जाते हैं तब उसके जनाज़े में रोने?
कश्मीर में सेना और पुलिस के जवानों की अर्थी पर रोने कितने कश्मीरियो की भीड़ कभी नज़र आती हो..ऐसा दिखा नहीं!
खैर,इधर हमारा सिस्टम भी ऐसे मामलों में बहुत लापरवाही से काम लेता है....मान लिया कि गेहूं के साथ घुन पिस जाता है...बहुत से आतंकी मारने के चक्कर में कुछ निर्दोष भी बलि चढ़ जाते हैं...लेकिन कमी यह है कि उन निर्दोषों को वापस मुख्यधारा में जोड़ने के लिए जितने तेज़ी और जतन से काम किया जाना चाहिए..वो सरकारी स्तर पर भी नहीं होता...ज्यादा से ज्यादा कुछ मुआवजा दे दिया जाता है! लेकिन इससे आम कश्मीरी के परिजनों की मौत के दर्द को उसकी अगली पीढ़ी से कैसे दूर करेंगे? लोग सवाल करें कि उनके परिवार क्यूँ मरे..तो साफ़ जवाब यही होगा कि आर्मी के हाथों क्रॉस-फायर के बीच में मारे गए!
ऐसे परिवारों और लोगों की अलग विशेष काउंसलिंग करवाया जाना बहुत जरूरी होता है! सच्चाई,देशप्रेम और धर्म से ऊपर उठाकर इन्हें कश्मीर के असल हालातों को जितना जल्दी समझा दिया जाए...आम कश्मीरी को उतना जल्द खराब हालातों में सामान्य बनाया जा सकता है!
कश्मीर में जो हो रहा है...उसमे यह बात कोई झुठला नहीं सकता कि पाकिस्तान और चीन जैसे दूसरे पडोसी देश,वहां मौजूद कश्मीरी दहशतगर्दो के जरिये इस्लाम के नाम पर हिन्दुओं के खिलाफ एक लड़ाई छेड़े हुए हैं....कश्मीरी हिन्दुओं को मस्जिदों से चीख चीखकर घाटी छोड़ने का फरमान जारी करवाया गया...इसको साफ़ तरह से यही कहा जाएगा कि वहां हिन्दू और मुस्लिम का मुद्दा ही शुरू से है! कश्मीर सिर्फ मुस्लिमों का है...ऐसी सोच वहां मौजूद आतंकवाद की असल ढाल है! जिसको जमीनी स्तर पर भी समर्थन मिला हुआ है!
बात राजनीती की...तो कश्मीर में आज भी कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है..जो सच में वहां के हालात को बदलना चाहती हो...ना ही केंद्र में! 370 हटाये बिना,जो कुछ भी नाटक देश भर की कोई भी पार्टी करती है..उसका कोई मतलब नहीं है..सब कुर्सी के लिए जनता को गधा बनाये हुए हैं!
हमारे बीच में भी मौजूद हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही जनता का एक बड़ा हिस्सा राजनीति की धारा में बहकर चलता है...उसके लिए कश्मीर का मतलब सिर्फ जमीन के टुकड़े से है...मुस्लिम सोचता है कि हिन्दू साफ़ हो जाएँ,हिन्दू सोचा है..कि मुस्लिम साफ हो जाएँ! इसलिए जब भी दूसरे धर्म वाले लोग मरते हैं,तो एक धर्म रोता है और दूसरा मिठाई बांटता है! आज किसी एक 5 मरे तो पहला यह दुआ करता है कि असली बार दूसरे से 10 मरें! यही नूराकुश्ती चलती रहेगी!
खैर फिल्म का अंत एक बात साफ़ दिखाता है कि धार्मिक BRAINWASH से एक हद के बाद बचना जरूरी है! जो भी लोग brainwash पर चलकर एक ही विचार और व्यकित की बात पर आँख मूंदकर चलते हैं,उनकी वापसी हमेशा ऋतिक रोशन की तरह ही हो जाए,मुमकिन नहीं है! उसके साथ संजय दत्त जैसे धर्म से ऊपर देश और फ़र्ज़ को देखने वालों का हाथ होना जरूरी है! असलियत में हर कोई इतना लकी नहीं होता!
अंत में सबसे जरूरी बात कि हमारे देश के लोगों को हफ्ते में 2 बार सूर्यवंषम दिखा दिखाकर टॉर्चर करने की जगह अगर 15 साल से मिशन कश्मीर जैसी फिल्में दिखाई जाती तो शायद हिन्दू मुस्लिम,कश्मीर समस्या पर समस्या का उपाय निकालने की कुछ बेहतर तरक्की जनता के दिमाग में तो हो ही जाती! pacman emoticon