Alert : Containing Spoilers
निर्देशक-
राहुल ढोलकिया
निर्माता- रितेश सिधवानी,फरहान अख्तर, गौरी खान
लेखक- राहुल ढोलकिया,आशीष वाशी, नीरज शुक्ल, हरित मेहता
कलाकार- शाहरुख़ खान, माहिर खान, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी,नरेन्द्र झा
संगीत- राम संपत
निर्माता- रितेश सिधवानी,फरहान अख्तर, गौरी खान
लेखक- राहुल ढोलकिया,आशीष वाशी, नीरज शुक्ल, हरित मेहता
कलाकार- शाहरुख़ खान, माहिर खान, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी,नरेन्द्र झा
संगीत- राम संपत
Cinematography- के यू मोहनन
एडिटर- दीपा भाटिया
रिलीज़ 25 January 2017
Running time- 142 minutes
Country- India
Language- Hindi
एडिटर- दीपा भाटिया
रिलीज़ 25 January 2017
Running time- 142 minutes
Country- India
Language- Hindi
शाहरुख़ का पिछला साल कुछ ख़ास अच्छा नहीं रहा था, शायद इस वज़ह से इस साल की
शुरुआत में ही उन्होंने अपने रूटीन फिल्म स्टाइल से अलग कुछ दिखाने की सोची है!
रईस इसी सोच का परिणाम है!
Cinematography- काफी बढ़िया है! फिल्म के अन्दर एक्शन, रोमांस के सीन ज्यादा तो नहीं हैं..लेकिन जितने भी कैप्चर हुए हैं, ठीक ठाक हैं! मुख्य माहौल है शराब के कारोबार को दिखाया जाना, उसमे किस तरह से संगठनों को कम से कम समय में ज्यादा बड़े लेवल पर कैप्चर किया जाए उसमे मोहनन कामयाब रहे हैं!
दीपा भाटिया की एडिटिंग अच्छी है!
उन्होंने फिल्म को करीब 2 घंटे में पूरी तरह से खुलकर दिखाया है, जिसमे हर सीन
सिर्फ उतना है जितनी उसकी जरूरत है! फिल्म तेज़ है और लगभग बीचो बीच ही शाहरुख़ के
किरदार को स्थापित कर दिया जाता है! जिससे आगे उसको उभारने का पर्याप्त समय मिल
जाता है!
Songs- फिल्म के गाने औसत दर्जे के हैं! लैला-लैला जो सनी लियॉन पर फिल्माया गया है वो सिर्फ अकेला आकर्षण है!
Acting- शाहरुख़ खान और नवाजुद्दीन एक्टिंग के
मामले में सबसे टॉप के कलाकारों में हैं! दोनों ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया
है!
माहिरा खान जरूर फिल्म का कमजोर पहलु रही है! माहिरा खान को फिल्म में गलत कास्ट किया गया है! इसकी वज़ह उनका कम उम्र होने के साथ इस रोल के लिए जो mature अनुभवी एक्टिंग चाहिए थी, उसमे फिट ना होना है! रईस बने हुए शाहरुख़ के साथ उनके रोमाटिक सीन भी वैसे उभर नहीं पाते...जिसके लिए शाहरुख़ जाने जाते हैं!
माहिरा खान जरूर फिल्म का कमजोर पहलु रही है! माहिरा खान को फिल्म में गलत कास्ट किया गया है! इसकी वज़ह उनका कम उम्र होने के साथ इस रोल के लिए जो mature अनुभवी एक्टिंग चाहिए थी, उसमे फिट ना होना है! रईस बने हुए शाहरुख़ के साथ उनके रोमाटिक सीन भी वैसे उभर नहीं पाते...जिसके लिए शाहरुख़ जाने जाते हैं!
फिल्म में बाकी सभी कलाकार ज्यादा बड़ा फुटेज नहीं रखते हैं! सबका काम ठीक ठाक
रोल निभाने तक ही रहा है!
Story and
Direction - फिल्म की कहानी वही पुराने ढर्रे पर चलने वाली जरायम पेशा ज़िन्दगी अपनाने
वाले एक व्यक्ति की है, जो बहुत बार देखी जा चुकी हैं! इसमें नयापन सिर्फ यह है
कि भारतीय परिवेश में गुजरात और वहां से एक मुस्लिम किरदार को मुख्य रोल में
दिखाया गया है, जो खालिस इस्लामिक संस्कृति को मानता है! SRK चेहल्लुम और अन्य
धार्मिक कार्यों में काफी करीबी से शामिल दिखाए जाते हैं! काजल लगाए,पठानी सूट पहने,
सलीकेदार दाढ़ी और नज़र का चश्मा!
यह मेकओवर उनको पुरानी रोमांटिक इमेज जो कभी राहुल,राज जैसे नामो से उन्होंने
बनाई थी, उससे बहुत अलग बना देता है!
गुजरात के मुस्लिम बहुल इलाके में रहने वाला रईस और उसके साथ लगभग पूरा समाज
जुड़ा हुआ है!
रईस की कहानी भारत के 80 के दशक के बाद से शुरू होती है! वैसे गुजरात में शुरू
से ही शराबबंदी कागजों पर रही है...लेकिन वहां अवैध शराब के व्यापार पर हमेशा से
ही राजनीतिक मेहरबानियाँ होती रही हैं! सरकारें जब खुद किसी धंदे को बंद करना नहीं
चाहें तो उस धंधे को सही या गलत बताना ही बेकार है!
शाहरुख़ खान ने एक मुस्लिम युवक का महत्वाकांक्षी रोल निभाया है, जिसको अपनी गरीब माँ
से एक ही सीख मिली है कि कोई भी धंधा छोटा नहीं और धंदे से बड़ा कोई धर्म नहीं!
बालमन इस बात को ही ज़िन्दगी का लक्ष्य बना लेता है और शुरू होती है रईस के
शराब व्यापार के अवैध कारोबार में नीचे से शिखर तक पहुँचने की कहानी!
फिल्म माफिया और गुजरात प्रदेश के मुख्यमंत्री तक के रिश्तों के बीच की
गर्माहट को खुले तौर पर स्वीकार करती है! इसमें विपक्ष की क्या भूमिका रहती है, हर
तरह का अवैध कारोबार किस तरह से सरकारी संरक्षण में ही फलते फूलते हैं, सबको करीबी
से दिखाया जाता है!
लेकिन फ़िल्मी कहानी में अगर पूरा तालाब शांत बना रहेगा तो बात आगे कैसे
बढ़ेगी...इसलिए एक ईमानदार लेकिन अबूझ पहेली का पुलिस अफसर जयदीप मजूमदार
(नवाजुद्दीन सिद्दीकी) को फिल्म में दिखाया जाता है! जो इस पूरे शराब व्यापार पर
चोट करने की हसरत तो रखता है लेकिन ना जाने क्यूँ सिर्फ रईस से खार खाए हुए दिखता
है! मजूमदार ना तो कभी सरकार में मौजूद इस धंदे वाले बड़े मगरमच्छों को पकड़ने के
लिए कोई कोशिश करता है, ना ही दूसरे कारोबारियों के खिलाफ ऐसा कुछ ठोस कर पाता है,
जिससे लगे की उसकी ईमानदारी से सिस्टम को कुछ फर्क पड़ता हो!
Conclusion- यह फिल्म उस युवा की कहानी को सामने लाती है जिसका सपना अपने बूते
कुछ करने का होता है! अगर वो पढ़ाई करके नौकरी ना पा सका तो कुछ तो करेगा, और वो
क्या करेगा यह कोई नहीं जानता है! भारी बेरोजगारी से भरे Self Employment के इस दौर में धंदे को धर्म जो
मान ले, उसके बाद कुछ कहने को बचता नहीं!
इस पूरी फिल्म को बनाते हुए निर्देशक ने इस बात का ख़ास ख्याल रखा है कि रईस का
किरदार पूरी तरह से ईमानदार दिखाया जाए, शराब कारोबार को इस तरह से दिखाया गया है
जैसे वो पानी मिला हुआ दूध बेच रहा हो...जिसकी जांच ना हो जाए इसलिए तिकड़म भिड़ाना
पड़ रहा है!
रईस जो कुछ कमाता है, उसका बड़ा हिस्सा अपने आस पास के गरीबो की मदद में लगाता
है, उनके विकास के लिए चुनाव भी लड़ता है, विधायक बनने के बाद एक कॉलोनी भी रहने के
लिए बनाने की कोशिश करता है!
लेकिन इसके बाद पूरी फिल्म अचानक से निर्देशक ऐसे ट्रैक पर डाल देते हैं जिसकी
जरूरत सिर्फ स्क्रिप्ट में लिखे होने की वज़ह से थी, वरना उसका हकीकत से कोई लेना
देना नहीं है!
पुलिस की जीत और तथाकथित अपराधी का एनकाउंटर! यह किस्सा लगभग हर उस फिल्म का
है, जो जरायम की दुनिया पर बनती है!
यहाँ कमी यह है कि एक पुलिस वाला MLA को मार देता है, जबकि असल ज़िन्दगी में
MLA की powers के सामने ऐसा होना मुमकिन नहीं है! यहाँ आश्चर्यजनक रूप से रईस किसी
वकील और कानून की मदद नहीं लेता है! शायद कहानी में शाहरुख़ की मौत का सीन दिखाना
ही था, इसलिए ऐसा करा गया! लेकिन यह वाजिब तरह से नहीं किया जाता! खुद ही मरने के
लिए तैयार हैं, खड़े होते हैं कि आओ गोली मार दो, और चले जाओ!
कुल मिलाकर फिल्म को जबरदस्ती का इमोशनल ड्रामा अंत में बनाया गया! जिससे
दर्शक रईस के लिए और ज्यादा सहानुभूति महसूस कर सकें! लेकिन निर्देशक यह भूल जाते हैं कि यही शाहरुख़ खान अपनी डॉन जैसी फिल्मों में जिंदा रहकर भी आज की अपराध की दुनिया की सच्चाई सामने ले आते हैं! फिल्म का अंत intentional है ना की स्वाभाविक!
Entertainment के लिए भी अगर यह फिल्म देखना चाहते हैं तो फिल्म कुछ हद तक
कामयाब रहती है अगर आप टिपिकल मुम्बैया बॉलीवुड से अलग शाहरुख़ को देखने की इच्छा
रखते हो! पूरी फिल्म अकेले शाहरुख़ के ही कंधे पर है! नवाज़ुद्दीन का रोल बीच बीच
में SRK के तिलिस्मी व्यापार में सिर्फ ब्रेक मारने आता है! लेकिन ठीक ठाक है!
फिल्म क्यूँ देखें-
SRK को रोमांटिक भूमिकाओं से अलग एक नए अवतार में देखने की
इच्छा अगर हो, या गुजरात जो की एक ड्राई स्टेट कहा जाता है,वहां की राजनीति किस
तरह से गांधीजी के नाम को आज भी बदनाम कर रही है,उसपर एक नज़र मारनी हो तो आराम से
एक बार यह फिल्म देखी जा सकती है!
My Ratings- 3/5
फिल्म की कहानी में कमियां ऐसी हैं नहीं जो फिल्म को कोई नुक्सान पहुंचाए!
क्लाइमेक्स जरूर बहुत से लोगों को पचाने में मुश्किल आ सकती है! क्यूंकि फिल्म अंत
में यह दिखाती है कि शाहरुख़ अपराध करके भी हीरो हैं..जबकि नवाज़ ईमानदार होकर भी
विलेन हैं!