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Wednesday, 1 October 2014

DRAGON KING

Review : ‪#‎ड्रैगन_किंग‬
Genre : Action-Adventure,Sci-Fi
लेखक/आर्टवर्क : अनुपम सिन्हा
इंकिंग: विनोद कुमार
रंग: बसंत पंडा
शब्दांकन: नीरू,मंदार गंगेले
मुख्य पात्र : नागराज,सौडांगी,महात्मा कालदूत और सुआरा!

Ratings :
Story : 4/5
Art : 4.5/5

‪#‎विश्वरक्षक‬­_नागराज ...ड्रैगन किंग कॉमिक्स से यही नया नाम आपके चहेते महानगर में रहने वाले नागराज को मिला है!
"विश्वरक्षक" यह नाम किसी सुपर हीरो को मिलने का एक ही मतलब निकलता है कि वो किसी एक नगर या देश का ना होकर पूरी पृथ्वी का नायक है..अपितु नागराज का काम करने की सीमा ब्रह्माण्ड से भी परे मिल जायेगी! लेकिन फिलहाल "ड्रैगन किंग" में वो विश्व रक्षा का अपना धर्म ही निभाता नज़र आता है!

"ड्रैगन किंग" इस कॉमिक का यह नाम क्यूँ पड़ा इसके बारे में लेखक ही ज्यादा बेहतर बता सकते हैं..लेकिन "डायनासोर किंग" अगर होता तो कथावस्तु के ज्यादा करीब हो सकता था! जैसे कि कुछ पाठको ने यह सवाल उठाया भी है! ड्रैगन और डायनासोर में एक ही बड़ा अंतर माना जाता है कि ड्रैगन किवदंतियों पर आधारित काल्पनिक जीव होते हैं..जो शायद ही कभी सचमुच जीवित थे..लेकिन डायनासोर का अस्तित्व करोडो वर्ष पुराना था! यानी यह सच में एक प्रजाति थी! खैर हम भी सोच लेते हैं नाम में क्या रखा है..ड्रैगन किंग रख दिया गया तो अब यही रहेगा!
जैसा कि आजकल आ रही ज्यादातर कहानियों के साथ होता है..यह कहानी भी एक बार में शायद ही किसी को पूरी तरह से समझ आएगी...इसलिए 2-3 बार पढना जरूरी था!

‪#‎नागराज‬ के कंधो पर पूरी तरह से कहानी का भार था..वो भी अपनी पुरानी शैली में ही इसमें नज़र आया...फिर भी अपनी नयी और पुरानी दोनों शक्तियों का इस्तेमाल करके भी उसको अंत में काफी जूझना पड़ा! अगर वो दिमाग का इस्तेमाल ना करता तो सिर्फ शक्तियों के बल पर जीतना मुश्किल था! वैसे यह लग रहा है कि उसकी नयी वाली शक्तियों में कमी होने जा रही है..लेखक का यह कदम स्वागतयोग्य है!

ड्रैगन_किंग : सालों बाद किसी नए करैक्टर के बारे में बहुत दुःख हुआ! यहाँ हम लेखक से थोड़े निराश हुए कि उन्होंने इस करैक्टर को मौत दे दी! नागराज कि पूरी सीरीज में ऐसे अनगिनत गधे भरे पड़े हैं..जिन्हें देखने की कोई इच्छा नहीं होती है..लेकिन वो आज भी जीवित हैं...वहीँ जिस प्राणी ने नागराज को यह युद्ध जीतने में मदद करी और शक्ति और सामर्थ्य में महात्मा कालदूत तक को टक्कर देने का दमखम रखता था..वो मार दिया गया! हम सिर्फ यही कह सकते हैं कि ड्रैगन किंग को वापस किसी कहानी में जीवित किया जाए!

‪#‎सुआरा‬ : वैसे वो यह देव नहीं थे..पर नागराज बार बार यही संबोधन कर रहा था..नागराज की नज़र से देखा जाए तो संरक्षक के तौर पर हर व्यक्ति उसके लिए देवता ही है! सुआरा और उसके बीच जो रक्त सम्बन्ध बताया गया है..वो एक नयी चीज़ जुडी है...अब तक नागराज को मानव और सरीसर्प के बीच की कड़ी माना जाता था..मगर अब उसमे Biorobots के DNA भी हैं..यानी उसकी powers में और इजाफा हुआ है!

‪#‎महात्मा_कालदूत‬ : हमने जगह-जगह इस कॉमिक्स के प्रमोशन में सुना था कि इस बार कालदूत नए रूप में आयेंगे और अपने माथे पर लगे धब्बो को धो डालेंगे..मगर जैसे कि उम्मीद थी..बदलाव कुछ नहीं आया...पहले भी पिटते थे..इसमें भी पिट गए!
पहली बात तो यह अब कहानियों में मूक दर्शक से अधिक कुछ लगते नहीं..जितनी इज्ज़त कॉमिक्स के अन्दर इनको दी जाती है..पाठको की दुनिया में यह उतने ही ज्यादा कुख्यात हैं...वैसे इस कहानी में योध्धा कालदूत के रूप में इन्होने काफी अच्छे से खुद के सामर्थ्य का प्रदर्शन किया है..लेकिन ढलती उम्र और बुढ़ापे ने अब इनके हर fighting report card पर Looser का ही ठप्पा हर बार लगाने का निर्णय कर लिया लगता है! अब तो बस यही कहा जा सकता है कि यह बार-बार लड़ाई में उतरकर बेईज्ज़ती झेलने से बेहतर एकांत में अपनी गुफा में बैठे रहे और नागराज को अपनी प्रलय वाली वो अधूरी कहानी सुना दें..जिसका इंतज़ार पाठको को भी बरसो से है!लेखक ने पेज 72 पर इन्ही एक विस्फोट से उड़ा दिया..लेकिन आखिर में पेज 94 पर यह वापस आ गए! जबकि सौरारी कह रहे थे..कि अपने टुकड़े जोड़ने में इन्हें कई घंटे लग जायेंगे! संवाद कुछ और कहते हैं और कहानी में कुछ और दिखाया जाता है! यह अच्छी बात है कि जोशीले संवाद सुनकर पाठको को भी जोश आ जाता है..लेकिन इस जोश को कहानी में भी दर्शाया जाना चाहिए!

‪#‎सौडांगी‬ को जहाँ कहानी में थोडा बेहतर रोल मिला है..वहीँ ‪#‎विसर्पी‬,‪#‎पंचनागो‬ ने निराश किया है! असल में यह उन लोगों में से ही हैं..जो अपने गुरु महात्मा कालदूत के नक्शेकदम पर चलते हैं...अकड़ आसमानी और कसर ज़मीनी!

***Warning : (Mega Spoilers ahead)
आगे वही लोग समीक्षा पढ़ें जिन्होंने कॉमिक्स का लुत्फ़ उठा लिया है! वरना यह हिस्सा SKIP करने "मनोरंजनात्मक पक्ष" से आगे बढें !.
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कहानी शुरू होती है..महानगर में स्थित पुरानी पर्वत कंदराओ में पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा एक जीव "सुआरा" के जाग जाने से! जैसा कि 90% ऐसे हालत में जागा हुआ प्राणी करता है..महानगर को तोडना शुरू...वही नागराज की heroic entry भी हो जाती है! "सुआरा" को यह तो याद था कि सौरारी कभी पृथ्वी पर नहीं आ सकते..लेकिन वो नागराज को बार-बार "संधक" बोलकर महानगर को तोड़ता रहा! अब आप लोग कहेंगे संधक क्या था! "संधक" वो biorobots थे जिन्हें सौरारियों ने बनाया था! जैसे अंत में आया कापालिक!
सुआरा को नागराज से उलझने कि इतनी जल्दी थी कि उसने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि "नागराज संधक नहीं बल्कि मानव है!" (उसकी सूंघने/महसूस करने की शक्ति फिर किस काम की थी)
कहानी के अंत में बताया गया है कि करोडो साल पहले चाँद के टकराने से पूर्व ड्रैगन सिटी के बारे में सुआरा पहले से जानता था...इसलिए उसको जागने के बाद मिश्र के पिरामिडो में जाना चाहिए था..ना कि वहीँ पर तोड़ फोड़ शुरू करनी चाहिए थी!
एक और अनसुलझा प्रश्न मिलता है कि पेज 80 पर लेखक के द्वारा यह बताया गया है कि जब सौरारी छोटे चाँद को पृथ्वी से टकरा रहे थे..तब सुआरा पृथ्वी के चारो तरह अदृश्य कवच का कण्ट्रोल सेंटर स्थापित कर रहा था..वहीँ "ड्रैगन किंग"चाँद को उड़ाने में मशगूल थे! अब यहाँ पर यह तो बताया ही नहीं गया कि पृथ्वी पर अदृश्य कवच का कण्ट्रोल सेंटर और उसका कोड नाम की 2 चीज़ें बनाई गई हैं..यह बात उस बेहद गह्मागेह्मी के माहौल में सौरारियों को कहाँ से और किससे पता चली थी? जबकि वो खुद छोटे चाँद से बड़े चाँद पर भागने में लगे थे! क्यूंकि या तो यह बात सिर्फ ड्रैगन किंग जानता था या सुआरा और दोनों ही सौरारियों के दुश्मन थे! इतने लम्बे वक़्त में सौरारी जिस चीज़ को खोजने में लगे थे..उसका पता उनको चला कैसे था?
वैसे यह कहानी और भी हास्यास्पद लगती है कि जो सौरारी 65 करोड़ वर्षो तक किसी चमत्कार के होने की आस में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे...वो भी तब जब उनके द्वारा बनाये गए अनगिनत biorobots पृथ्वी पर मौजूद थे..मान लिया जाए कि अगर किसी तरह से उन्होंने यह अंदाज़ा लगा लिया था कि अद्रश्य कवच का कोई कण्ट्रोल सेंटर पृथ्वी पर मौजूद है तो करोडो साल का इंतज़ार करने से ज्यादा बेहतर रास्ता उस सेंटर की खोज करवाना था! क्यूंकि तब तो कोई आधुनिक मानव नाम की चीज़ भी पृथ्वी पर मौजूद नहीं थी..जो उनको रोक सकती.... ऐसा उन्होंने क्यूँ नहीं किया इसपर प्रकाश डाला जाना चाहिए था!

कुछ मित्रो को कहानी में कुछ कमियां लगी..लेकिन हमारे हिसाब से वो कमियां नहीं हैं..उन्हें थोडा सा समझने की जरूरत है!
1- सौडांगी को जो कहानी में उड़ता हुआ दिखाया गया है..उसके पीछे उसका तंत्र-मंत्र का ज्ञाता होना ज़िम्मेदार है..पहले नागराज के साथ उसको उड़ने की जरूरत नहीं महसूस हुई इसलिए उसने कभी उड़ने की शक्ति का प्रयोग नहीं किया..क्यूंकि उड़ने में उसकी तंत्र शक्ति जल्दी क्षरण भी होती है!
2- पेज 12 पर जो "मौत" नाम का सौरारी था वो कोई जीवित व्यक्ति ना होकर सिर्फ एक परछाई थी! यह कुछ वैसी ही चीज़ थी जैसे आपने राजनगर की तबाही कॉमिक्स में IMAGE नाम से देखी हुई है! इसलिए सौरारी कभी भी अपने असली शरीर के साथ पृथ्वी पर नहीं आ सकते थे!
3-पेज-14 पर नागराज अपने शरीर से इच्छाधारी रूप को बाहर नहीं निकालता है..बल्कि वो पहले फ्रेम में सिर्फ कन्वर्ट हो रहा है...और 3 सेकंड के बाद वापस सामान्य हो जाता है! अगर उसकी शक्तियां बढ़ी हैं तो यह भी माना जा सकता है कि पहले के 3 पल अब बढ़कर 5-10 सेकंड भी हो सकते हैं..इसलिए आर्टवर्क से धोखा ना खाइए!
4- एक सवाल और पूछा गया था...कि जब ड्रैगन किंग नागराज को सारी कहानी flashback मे सुनाता है तब वो ये बताता है की जब सौरारियों को ये पता लग जाता है कि ड्रैगन किंग ये समझ गया है ये सौरारी ही हैं जो उसकी प्रजाति को खत्म कर रहे हैं तब सौरारी सभी बायो-रोबोट्स को निष्क्रिय कर देते हैं लेकिन तब सुआरा निष्क्रिय क्यों नहीं होता???
जवाब- ड्रैगन किंग को जब सौरारियों के biorobots कि जानकारी मिलती है तो आनन्-फानन में सौरारी पूरी पृथ्वी पर मौजूद हर biorobot को सुषुप्तावस्था में भेज देते हैं...लेकिन क्यूंकि सुआरा उन सभी का नायक था...और सौरारी इस बात से अनजान थे कि सुआरा पाला बदल चुका है..उन्होंने उसको जानबूझकर निष्क्रीय नहीं किया यह सोचकर कि वो उनकी योजना के क्रियान्वयन में काम आएगा! (पेज-80 को पढ़ें)
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‪#‎मनोरंजनात्मक_पक्ष‬ :
कहानी में जो 2-3 तार्किक कमियां मौजूद हैं...अगर उनपर ध्यान ना दिया जाए...यानी कि जैसा कई पाठको का कहना होता है कि कॉमिक्स हमेशा ही बिना दिमाग के पढ़ी जानी चाहिए तो कहानी बहुत जबरदस्त ही है!
ड्रैगन किंग की कहानी बहुत तेज़ गति में चलती है...इसमें सिर्फ एक जगह पर थोड़ी ढीलापन मिलता है वो है मिश्र के पिरामिडो वाला सीक्वेंस! लेकिन ड्रैगन किंग के नज़र आते ही वापस कहानी रफ़्तार पकड़ लेती है!
इसमें "राजनगर की तबाही" कॉमिक्स की तरह ही कई चीज़ें बनाई गई हैं...Image का आना...पृथ्वी के बाहर चाँद के पास परग्रहियों का जमावड़ा जो धरती पर कब्ज़ा करना चाहते हैं! फिर भी यह उस कॉमिक्स का आधा मनोरंजन मात्र ही दे पाती है!
अगर आपको कहानी से ज्यादा मतलब ना होकर सिर्फ एक्शन देखना पसंद है तो कॉमिक्स के रूप में यह बेहतरीन है...नॉन स्टॉप लड़ाई हर पन्ने में मौजूद है! अंत में नागद्वीप पर हुआ हमला और बेहतर बनाया जा सकता था! फिर एक एक से कहानी का अंत हो जाना और सौरारियों को पांसा पलटने का मौका ना मिलना खलता है! ड्रैगन किंग का अंत भी अनुपम जी की हर पूर्ववर्ती आई कॉमिक्स की तरह ही sudden end जैसा है!

‪#‎आर्टवर्क‬:

हालियाँ विश्वरक्षक नागराज की Negatives के बाद यह दूसरी कॉमिक्स आई है..जिसमे विनोद कुमार जी की इंकिंग है...और यह सभी को पता है कि जिस कॉमिक्स के आर्टवर्क क्रेडिट्स में "अनुपम-विनोद" जुड़ जाए..उसका मुकाबला नहीं हो सकता है! इसलिए आप आँख बंद करके इसके आर्टवर्क को पूरे अंक दे सकते हैं और इसके हर पन्ने का लुत्फ़ उठाइए! रही बात एनाटोमी की बारीकी जांचने की....तो उसके लिए कॉमिक्स नहीं पढनी चाहिए बल्कि किसी आर्ट इंस्टिट्यूट में दाखिला लेना जरूरी है और अपनी कला जांचने की ग्रंथि को संतुष्ट करना चाहिए! एक आम पाठक सिर्फ साफ़ सुथरा आर्टवर्क देखना चाहता है..जिसमे उसको आनंद आये...और हमारा दावा है..ऐसा आनंद इस कॉमिक्स में मिलेगा..बाकी जिन्हें यह आनंद नहीं मिल पाया है..उन्हें आगे भी कभी नहीं मिलेगा ..क्यूंकि आनंद भी व्यक्ति देखकर खुद को उसमे समाता है! और नकारात्मक दिमाग भी कभी सकारात्मक चीज़ें ग्रहण नहीं कर सकता! यह बात सच में महान हास्यास्पद लगती है जब कोई व्यक्ति अनुपम-विनोद जी की भारतीय कॉमिक्स के महानतम आर्टिस्ट्स की कला का अपमान करता है!

हालांकि रंग संयोजन में जरूर ज्यादा बेहतर काम होना चाहिए था...जिस तरह के इफेक्ट्स की उम्मीद थी वैसा नहीं मिला है...Negatives की तुलना में यहाँ बेहद साधारण स्तर के इफेक्ट्स हुए हैं! फिर भी हमें लगता है कि इस वाजिब मूल्य पर जो काम मिला है..वो संतोषजनक है! लेकिन यहाँ भी सुधार की पूरी गुंजाइश मौजूद हैं!

‪#‎शब्दांकन‬: सबसे पहले तो हमें कवर पर इस्तेमाल हुए टाइटल के FONT को देखकर प्रसन्नता हुई! ऐसे ही अलग आइडियाज आगे भी जारी रखें!
कॉमिक्स के अन्दर फुसफुसाकर बोलने के लिए Dotted Bubbles का इस्तेमाल पहली बार इसी सेट में हुआ है! ड्रैगन किंग के लिए भी अलग तरह के Bubbles इस्तेमाल हुए हैं! यह कला भी अब हर नयी कॉमिक्स के साथ नए आईडिया लेकर चल रही है! जो स्वागतयोग्य कदम है!
और अंत में

‪#‎Reviewer_Note‬:

अनुपम जी ने एक से बढ़कर एक एक्शन कॉमिक्स बनाई हैं..लेकिन अगर तुलना करें तो ड्रैगन किंग उस ऊँचाई को नहीं छू पाई है..जिसकी आशा थी...लेखक इससे ज्यादा बेहतर और मुश्किल कथावस्तु दे चुके हैं..जैसे "नागराज के बाद" और "हेड्रान सीरीज!" हाँ पढने वालो के लिए इनके अन्दर भी हज़ार कमियां हैं..लेकिन कमियों से ज्यादा अच्छाईयों से यह सभी कॉमिक्स भरी थी!
अनुपम जी को इनसे आगे की हाई लेवल साइंस फिक्शन स्टोरीज लिखनी चाहिए! यहाँ पर भी कई पाठको में मतभेद हो सकता है कि मुश्किल कहानियां क्यूँ लिखी जानी चाहिए?...हमारा तर्क यह है कि एक तरफ नरक नाशक नागराज और आतंक हर्ता नागराज में हम सभी को इस वक़्त बहुत आसान और लगभग पुराने कथानको वाली विषयवस्तु की कहानियां मिल रही हैं....जिन्हें लोग कभी यह नहीं कहते दिखते कि यह तो पुराने जैसा ही है.....पिछले साल भी एक बड़ी चर्चित सीरीज जो सिर्फ अपनी endorcement policy की वज़ह से हिट हुई...नहीं तो कथानक में कमियों की खान थी..उसपर भी कोई चर्चा नहीं करना चाहता..... वहीँ अनुपम जी ही फिलहाल एकमात्र ऐसे लेखक हैं...जो कठिन से कठिन साइंस फिक्शन कहानियों को नई उंचाई दे सकते हैं....पाठक उनसे भी अगर 20 साल पुराने ढर्रे की ही मांग करते रहेंगे तो शायद ही कभी कहानियों में बदलाव आएगा! इसलिए आप पाठक-गण भी थोडा प्रैक्टिकल बनिए..हाई लेवल sci-fi पढने के लिए खुद को तैयार करिए ना की लेखक को ऐसे कथावस्तु लिखने से रोकिये! अभी तक कॉमिक्स को GENRE WISE पढने और लिखने की कोशिश नहीं करी गयी हैं...हमने इसलिए ही अब से समीक्षा को genre के according देने का फैसला किया है..ताकि आप सभी लेखक द्वारा लिखी कहानियां पढने के बाद उनको फिल्मों की तरह व्यवस्थित करके उनकी महत्व को पहचाने और उन्हें ज्यादा करीब से पढना और समझना शुरू करें!
ड्रैगन किंग sci-fi genre में एक संतोषजनक कॉमिक्स है! हम इसको अनुपम जी द्वारा लिखी गई पुरानी कहानियों से एक कदम आगे की रचना तो नहीं कह सकते...लेकिन यह एक नवीन कदम जरूर है!
हमारा काम एक ईमानदार समीक्षा लिखना होता है...वो हमने कर दिया है! पाठको की अपनी पसंद और नापसंद को मापना आसान काम नहीं है...हम सिर्फ कहानी कैसी बनी है ... यह बता सकते हैं...अब वो अलग-अलग लोगों के स्वाद पर खरी उतरी या नहीं यह नहीं कहा जा सकता है!उसी तरह से ड्रैगन किंग से भी निराश लोग यहाँ मौजूद हैं...लेकिन इसके लिए भी कुछ हद तक वही लोग खुद ज़िम्मेदार हैं! अव्वल तो किसी साईट से डाउनलोड करके 1 बार पढ़ी कहानी की अधकचरी जानकारी अपने दिमाग में भरकर यहाँ वहां फैला देना आसान काम लगता जरूर है...पर उससे किसी को हासिल कुछ नहीं होता है! क्यूंकि कहना वही चाहिए जो आप सामने रखकर हजारो लोगों के बीच प्रूफ कर सकें! और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो गलती लेखक की नहीं है!
बाकी कॉमिक्स सुपरहिट घोषित हो ही चुकी है! जिसकी हमें भी प्रसन्नता है! लेकिन आगे और बेहतर कहानियों की आशा आप सभी की तरह हम भी रखते हैं!


SARV SANGRAM




Review : ‪#‎सर्व_संग्राम‬ (2014)
Genre : Action-Adventure,Sci-Fi,Mytho
लेखक : नितिन मिश्रा
आर्टवर्क : सुशांत पंडा
इंकिंग: विनोद कुमार
रंग: प्रदीप सहरावत,अभिषेक सिंह
शब्दांकन: मंदार गंगेले
मुख्य पात्र : परमाणु,प्रचंडा,तिलिस्मदेव और शक्ति,अडिग एवं युगम!

Ratings :
Story : 3.5/5
Art : 3.5/5

सर्वनायक श्रृंखला का प्रस्तुत तृतीय खंड अपने पहले आये खंडो की तुलना में सर्वथा अधिक रोचक भी दिखाई दे रहा है और गहरा भी! सर्वदमन के अंत तक आप जान चुके थे..कि युगम द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में परमाणु और प्रचंडा बराबरी पर थे! इस भाग में उनके इस द्वन्द का फैसला तो होता ही है तथापि कहानी में अभूतपूर्व घटनाचक्र भी दृष्टिगोचर हुए हैं! आइये जानते हैं कि इस किताब में क्या गूड बातें छिपी हुयी हैं!

‪#‎प्रस्तावना‬:अनश्वरेश्वर
यह शुरुआती 9 पन्नों में है...जो बिलकुल ही अलग कालखंडो में दर्शाई कुछ जटिल घटनाओं की सिर्फ सूचना मात्र तक सीमित हिस्से हैं!
द्वापरयुग में घूमता इतिहास ,वर्तमान में गगन,विनाशदूत और ग्रहणों,और 5099 का बूढा ध्रुविष्य अपनी बेटी के साथ चंडकाल से लड़ते नजर आते हैं! कोई डिटेल लेखक नहीं देते इसलिए ये पन्ने कोई ख़ास टिप्पणी योग्य नहीं है!

‪#‎प्रथम_अध्याय‬ : आत्मशत्रु (काल रण)
कहानी पढने का सबसे मुख्य कारण है यह जानना कि परमाणु और प्रचंडा के बीच आखिर जीत किसकी होती है! यहाँ पर देखना दिलचस्प था कि आखिर लेखक किस तरह से इन दोनों को बराबर रख पाते हैं! और इस बारे में हम लेखक को पूरे अंक देते हैं कि वो सभी को संतुष्ट करने में सफल रहे हैं! परमाणु और प्रचंडा अपने आखिरी पड़ाव में जिस तरह से जूझे और सिर्फ 19-20 के अंतर से इस द्वन्द का विजेता सामने आया! यह सिर्फ लड़ाई ना होकर जिस तरह से पुराने घटनाक्रमों के साथ जुडी परिस्थितियां सामने रखते हुए सब कुछ दिखाया जा रहा है, इसको देखते हुए इस पूरे भाग का लेखन प्रशंषा के योग्य है! लेकिन प्रचंडा के अतीत का हिस्सा अभी भी पूरी तरह से खुला नहीं है! हमें इंतज़ार रहेगा कि लेखक उसको पूरी तरह से सामने लायें!

‪#‎तिलिस्मदेव‬ : शक्ति बड़ी अनजानी है...सपना है, सच है, कहानी है...देखो ये पगली...बिल्कुल ना बदली..यह तो वही दीवानी(महक ) है!
‪#‎शक्ति‬- अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..80-90 पूरे सौ
सौ जन्मों का प्रण जो लूँ...तिलिस्मदेव हो उड़न छु

तिलिस्मदेव और शक्ति के मध्य हुआ द्वन्द अपितु काफी छोटा था..लेकिन सम्पूर्ण कहा जा सकता है! हमें एक आशंका पहले थी कि जिन पाठको को पूर्व काल के नायको के बारे में जानकारी नहीं है..कहीं उनको कहानी समझने में दिक्कत आ सकती है..लेकिन लेखक ने जिस तरह से पुरानी घटनाओं को दोबारा से स्मरण करते हुए यह प्रतियोगिता दिखाई है..वो अद्भुत सोच का परिणाम है! कौन सोच सकता था कि लेखक चंदा के जीवन के स्याह हिस्से को युगों पुराने तिलिस्मदेव के अतीत से जोड़ देंगे! लेकिन यह करके लेखक ने अपनी उच्च कल्पनाशीलता का परिचय दिया है! हमने यह भाग बहुत पसंद किया है! तिलिस्मदेव और शक्ति के बीच की लड़ाई पर हमारी टिप्पणी यही है कि ये पाठको को कुछ हद तक एक तरफ़ा लग सकती है! जहाँ एक पक्ष ने अपना पूरा पराक्रम दिखाया ही नहीं..और मुकाबला बेमेल सा नज़र आने लगा! पर जिस "पेनल्टी" की बात युगम इसके अंत में करता है..वो शायद आगे प्रतियोगिता का भाग्य बदल दे!
अब अगला द्वन्द है शुक्राल और तिरंगा के बीच !

‪#‎शुक्राल‬: मैं खिलाडी तू अनाड़ी
‪#‎तिरंगा‬ : तू कबाड़ी मैं जुगाड़ी

एक बड़ा पाठक वर्ग मानकर चल रहा है कि यह एक बेमेल मुकाबला होने वाला है जिसमे तिरंगा के जीतने के चांस सिर्फ 10 % हैं! हम भी इस सोच से अलग नहीं हैं! और वैसे भी जिस तरह से शुरू के इन 2 द्वंदों का परिणाम आया है..यह भविष्यवाणी बहुत आसान है कि अगला विजेता कौन होने वाला है! परन्तु लेखक इसको किस तरह से पूरी तरह औचित्यपूर्वक दर्शाते हैं..आगे यह देखना दिलचस्प रहेगा!

तो अब तक आपने जान लिया है कि कहानी के मुख्य बिंदु क्या थे...इनके अलावा कुछ अन्य छोटे हिस्से भी चल रहे हैं...जिसमे एक में नया किरदार "नरकपुत्र रक्ष" जुड़ने वाला है! इसको लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता है..क्यूंकि यह एक ऐसा किरदार लग रहा है..जो आत्मघाती भी हो सकता है!

भीमकाय अडिग के बाद यह दूसरा किरदार इस श्रृंखला की खोज कहा जा सकता है! फिलहाल इसकी सिर्फ एक झलक देखने को मिलती है!
असुरलोक में शम्भुक और शुक्राचार्य कुछ नया गुल खिलाने में चक्कर में हैं..लेकिन महामानव के हिस्से को अभी भी अबूझ पहेली बनाकर रखा गया है!

‪#‎सुपर_कमांडो_ध्रुव‬ : कहानी में ध्रुव अभी तक सारी बागडोर खुद संभाले हुए है...और उसकी सूझबूझ से ही पश्चात काल आगे है...वो अपने सह प्रति द्वंदी शुक्राल और संचालक युगम के हर पैंतरे को विफल करता जा रहा है! लेकिन यह देखना और दिलचस्प होगा कि शुक्राल के सामने तिरंगा को उतारने का उसका निर्णय इस बार किस करवट बैठता है...जिससे ध्रुव अपने आपको किसी भी आक्षेप से बचा सके!

‪#‎समयकाल_की_अनभिज्ञता‬ : सर्वनायक में एक चीज़ जिस पर पाठक अभी ध्यान नहीं दे रहे हैं वो है समयकालो की जानकारी की कमी!
यह प्रश्न अभी उत्तर नहीं खोज पाया है कि आखिर तीनो युगों में चल रहा यह सबकुछ एक साथ ही क्यूँ घटित हो रहा है?

युगम जो कर रहा है वो एक अलग मसला हो सकता है..लेकिन
1- इतिहास का अचानक से एकाएक भूतकाल में पहुँच जाना!
2- महामानव जिस समय काल में है उसका उल्लेख ना होना!
3- हरुओं के बारे वो जानकारी जो कभी वर्तमान के किसी नायक को नहीं रही..उसके बारे में गगन और विनाशदूत को पहले से पता होना!
4- हरूओ की सृष्टि देव और असुर से अलग है! वो उन नियमो को नहीं मानती..जो यह दोनों मानती हैं! कोहराम में आया हरु भी सिर्फ एक उर्जा का रूप था..जिसने मानव का शरीर धारण किया था! वो चाहता तो किसी दूसरे पदार्थ से अपना शरीर बना लेता! खैर महामानव के सामने जो हरु दर्शाए गए हैं..वो भी मानव रूप में हैं! या तो यह एक गलती है...या फिर वो मानव कौन थे जिनके शरीर पर हरूओ का कब्ज़ा है..यह लेखक को बताना चाहिए!
5- पेज 66 पर जो महाखलनायको का जमावड़ा लगा हुआ है..उसका समय काल भी नहीं लिखा गया है! त्रिफना सीरीज के बाद हो रही यह घटना वर्तमान में हुई घटना से पहले कब की है यह बताने के साथ साथ यह भी बताया जाना जरूरी था..कि शाकूरा,सपेरा,मिस किलर,वामन,चुम्बा,ध्वनिराज आदि असंख्य विलेन जो या तो कहीं कैद थे..या अपने ग्रहों पर चले गए थे! एक साथ कैसे कहानी में टपका दिए जा रहे हैं!आखिर हम इन सभी घटनाओं को किस तरह से आपस में जोड़े कि वो पहले आई कहानियों से मेल खा सकें?
6 - अंत में महारावण कहता है कि वो वर्तमान पर कब्ज़ा करने आया है! लेकिन यह निर्णय और जानकारी उसको कैसे हो सकती है कि वर्तमान आखिर है क्या? क्यूंकि महारावण के लिए वर्तमान वो है जिसमे उसने जन्म लिया था..यानी की द्वापर युग! अगर वो कालदूत के समय में अब लड़ने आया है तो यह उसके लिए भविष्य है ना की वर्तमान!
7- एक और अच्छा सवाल है..कि यह मान लिया कि महक का प्रेम युगों युगों से चला आ रहा है और कभी सफलता नहीं पा सका...यह भी सही है कि तिलिस्मदेव अमर हैं...तो अगर लेखक का कथन यह है कि चंदा ही महक का पुनर्जनम् है..तो इसका मतलब यही हुआ कि तिलिस्मदेव भी वर्तमान में जरूर कहीं ना कहीं जीवित होंगे! लेखक ने वर्तमान में मौजूद तिलिस्मदेव को क्यूँ उजागर नहीं किया है!

युगांधर से लेकर अब तक की कहानी में सिर्फ सवाल ही सवाल हैं...और उत्तर देने में कोई प्रोग्रेस नहीं हुई है! इसको हम आलोचना तो नहीं कहेंगे..लेकिन सर्वनायक प्रतियोगिता के अतिरिक्त दूसरी तरफ की सभी कहानियों में जो कुछ भी दिखाया जा रहा है या जाता रहेगा...वो उलझाऊ होने के साथ-साथ मूल कहानी से जुड़ा प्रतीत होने के बाद भी जुड़ा नहीं लग रहा है!
हम एक छोटा सा सवाल और करते हैं..कि सर्वनायक प्रतियोगिता में युगम ने सिर्फ कुछ ख़ास नायको को क्यूँ चुना और बाकी को क्यूँ नहीं चुना?
आईपीएल की तर्ज़ पर खेलकूद प्रतियोगिता जो चल रही है वो हमें भी पता है कहानी का मुख्य केंद्र नहीं है...जिस दिन यह प्रतियोगिता ख़त्म हो जायेगी..उसी दिन दूसरी घटनाओं में जो अबूझ पहेलियाँ हैं..वो सतह पर आकर नए प्रश्न खड़े कर देंगी!
खैर सवाल तो हर भाग में 10 नए बन रहे हैं! अगर लेखक कहानी में साथ ही साथ छोटी छोटी बातों में कुछ के उत्तर भी देते जाएं..तो कहानी ज्यादा मजबूत लगने लगेगी!

एक और तार्किक प्रश्न ने जन्म लिया हमारे दिमाग ने...कि अब तो यह कहानी युगांधर से अब तक 4th पार्ट में आ चुकी है...लेकिन क्या किसी ने ध्यान दिया कि हमारे सभी जोशीले सुपर हीरोज़ ने अब तक इतनी लड़ाइयाँ और कसरत कर ली है...लेकिन युगम ने किसी को पानी तक नहीं पूछा...मतलब कम से कम खाने को ही कुछ दे देता...बेचारे भूखे पेट ही लगातार लडे जा रहे हैं.....इस विषय को ख़त्म करने के लिए एक "सर्व लंगर " का भी आयोजन लेखक को करना चाहिए!

‪#‎आर्टवर्क‬ -

सर्व संग्राम में पिछले भागो कि तुलना में मन को मोह लेने वाला आर्टवर्क है...सुशांत जी और विनोद कुमार जी ने साथ में एक बेहतरीन काम देकर वापस श्रृंखला को जीवंत कर दिया है!
अपितु फिर भी यहाँ उतार चड़ाव मौजूद हैं...35वे पन्ने के बाद आर्ट में गिरावट देखने को मिलती है..फिर 50 वे पन्ने से 65 तक वापस पटरी पर आती है...लेकिन 66वे से वापस डूब जाती है....73वे से अंत तक आर्ट वैसा नहीं रहता जैसा शुरुआत में था!
खैर बीच-बीच में दूसरे आर्टिस्ट्स द्वारा बनाये गए पन्ने बहुत आकर्षक बने हैं! रंग संयोजन भी ठीक ठाक है!
सिर्फ सुशांत जी थोडा और समय लगाकर पूरी किताब में एक जैसा ही चित्रांकन बनाये रखें !

अंत में कॉमिक्स का मनोरंजनात्मक पक्ष :

‪#‎हास्य_पक्ष‬:
वैसे यह कहानी हास्य बोध के लिए नहीं है..लेकिन लेखक ने अपनी तरफ से बीच बीच में कई जगह हास्य का पुट दिया है..युगम जब पेज 44 पर अपने फिल्मों के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करता है..तो उसपर परमाणु का कटाक्ष ठहाके लगाने को मजबूर कर देता है!
ऐसे ही युगम द्वारा शुक्राल के ऊपर अवधि को लेकर किये कटाक्ष पर शुक्राल का झेंप जाना और आर्टिस्ट द्वारा दोनों के भावो का सुंदर चित्रण मजेदार है!
ऐसे कई दूसरे पल भी कहानी की सुन्दरता बढाते हैं!

#सर्व_संग्राम में आपको सबसे अधिक मज़ा आर्टवर्क देखने में ही आएगा! इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इससे बेहतर नहीं मिल सकेगा...बल्कि यह है कि पहले से आपको बेहतर काम मिला है..इस बात कि ख़ुशी आप महसूस कर सकेंगे!

कहानी के बारे में हमारा यही कहना है कि यह महा श्रृंखला जरूर है..लेकिन अपने मूल से अभी भी अलग है..कोई भी कहानी एक तरफ से शुरू होती है..और एक दूसरी तरफ जाकर खत्म हो जाती है! यह कहानी अब तक ना तो शुरू हुई है और ना जल्दी ख़त्म होने वाली है!
इसमें हो यह रहा है..कि अलग अलग समय में हो रही घटनाओ को एक साथ जोड़कर दिखाया गया है! कहानी वर्तमान में चलती है..और बाकी दोनों काल उसके साथ जुड़ते हैं! यहाँ किसी तरह का कोई नियम मौजूद नहीं है! जैसे चाहे कहानी को चलाया जा रहा है!
पाठको को ख़ुशी यह है कि उन्हें सालो बाद अपने-अपने प्रिय पात्र दोबारा से देखने को मिल रहे हैं! अगर वो एक बार उन पात्रो की आखिरी कहानी और अब दोबारा दिखाई जा रही कहानी के बीच लिंक जोड़ना शुरू करें तो उनके लिए भी हितकर होगा और श्रृंखला के लिए भी!
कहा जाता है कि कहानी को पढने में दिमाग नहीं लगाना चाहिए! बिलकुल सही बात है...कोई भी कॉमिक्स मनोरंजन के लिए पढ़ी जाती है! लेकिन सर्वनायक जैसी कोई भी विस्तृत कहानी को लिखना भी हंसी खेल नहीं है..लेखक ने बहुत मेहनत से इस कहानी को सोचा और लिखा है..उनके प्रयास को पूरा आदर दिया जाना चाहिए! अगर वो आप पाठको के लिए इतना दिमाग लगाकर गूड से गूड तथ्यों पर बारीकी से काम कर सकते हैं..तो उन्ही तथ्यों को आप लोग भी अपने अपने स्तर पर जांचकर संतुष्ट जरूर हों..क्यूंकि यही वक़्त है जब आप चीज़ें बता सकते है,उनपर ध्यान दिला सकते हैं...जो कहानी का अंत आते आते सुलझाई जा सकती हैं. बाकी के प्रश्न-उत्तर तो आगे भी चलते रहेंगे! फिलहाल इस कहानी का लुत्फ़ उठाइये!