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Wednesday 1 October 2014

SARV SANGRAM




Review : ‪#‎सर्व_संग्राम‬ (2014)
Genre : Action-Adventure,Sci-Fi,Mytho
लेखक : नितिन मिश्रा
आर्टवर्क : सुशांत पंडा
इंकिंग: विनोद कुमार
रंग: प्रदीप सहरावत,अभिषेक सिंह
शब्दांकन: मंदार गंगेले
मुख्य पात्र : परमाणु,प्रचंडा,तिलिस्मदेव और शक्ति,अडिग एवं युगम!

Ratings :
Story : 3.5/5
Art : 3.5/5

सर्वनायक श्रृंखला का प्रस्तुत तृतीय खंड अपने पहले आये खंडो की तुलना में सर्वथा अधिक रोचक भी दिखाई दे रहा है और गहरा भी! सर्वदमन के अंत तक आप जान चुके थे..कि युगम द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में परमाणु और प्रचंडा बराबरी पर थे! इस भाग में उनके इस द्वन्द का फैसला तो होता ही है तथापि कहानी में अभूतपूर्व घटनाचक्र भी दृष्टिगोचर हुए हैं! आइये जानते हैं कि इस किताब में क्या गूड बातें छिपी हुयी हैं!

‪#‎प्रस्तावना‬:अनश्वरेश्वर
यह शुरुआती 9 पन्नों में है...जो बिलकुल ही अलग कालखंडो में दर्शाई कुछ जटिल घटनाओं की सिर्फ सूचना मात्र तक सीमित हिस्से हैं!
द्वापरयुग में घूमता इतिहास ,वर्तमान में गगन,विनाशदूत और ग्रहणों,और 5099 का बूढा ध्रुविष्य अपनी बेटी के साथ चंडकाल से लड़ते नजर आते हैं! कोई डिटेल लेखक नहीं देते इसलिए ये पन्ने कोई ख़ास टिप्पणी योग्य नहीं है!

‪#‎प्रथम_अध्याय‬ : आत्मशत्रु (काल रण)
कहानी पढने का सबसे मुख्य कारण है यह जानना कि परमाणु और प्रचंडा के बीच आखिर जीत किसकी होती है! यहाँ पर देखना दिलचस्प था कि आखिर लेखक किस तरह से इन दोनों को बराबर रख पाते हैं! और इस बारे में हम लेखक को पूरे अंक देते हैं कि वो सभी को संतुष्ट करने में सफल रहे हैं! परमाणु और प्रचंडा अपने आखिरी पड़ाव में जिस तरह से जूझे और सिर्फ 19-20 के अंतर से इस द्वन्द का विजेता सामने आया! यह सिर्फ लड़ाई ना होकर जिस तरह से पुराने घटनाक्रमों के साथ जुडी परिस्थितियां सामने रखते हुए सब कुछ दिखाया जा रहा है, इसको देखते हुए इस पूरे भाग का लेखन प्रशंषा के योग्य है! लेकिन प्रचंडा के अतीत का हिस्सा अभी भी पूरी तरह से खुला नहीं है! हमें इंतज़ार रहेगा कि लेखक उसको पूरी तरह से सामने लायें!

‪#‎तिलिस्मदेव‬ : शक्ति बड़ी अनजानी है...सपना है, सच है, कहानी है...देखो ये पगली...बिल्कुल ना बदली..यह तो वही दीवानी(महक ) है!
‪#‎शक्ति‬- अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..80-90 पूरे सौ
सौ जन्मों का प्रण जो लूँ...तिलिस्मदेव हो उड़न छु

तिलिस्मदेव और शक्ति के मध्य हुआ द्वन्द अपितु काफी छोटा था..लेकिन सम्पूर्ण कहा जा सकता है! हमें एक आशंका पहले थी कि जिन पाठको को पूर्व काल के नायको के बारे में जानकारी नहीं है..कहीं उनको कहानी समझने में दिक्कत आ सकती है..लेकिन लेखक ने जिस तरह से पुरानी घटनाओं को दोबारा से स्मरण करते हुए यह प्रतियोगिता दिखाई है..वो अद्भुत सोच का परिणाम है! कौन सोच सकता था कि लेखक चंदा के जीवन के स्याह हिस्से को युगों पुराने तिलिस्मदेव के अतीत से जोड़ देंगे! लेकिन यह करके लेखक ने अपनी उच्च कल्पनाशीलता का परिचय दिया है! हमने यह भाग बहुत पसंद किया है! तिलिस्मदेव और शक्ति के बीच की लड़ाई पर हमारी टिप्पणी यही है कि ये पाठको को कुछ हद तक एक तरफ़ा लग सकती है! जहाँ एक पक्ष ने अपना पूरा पराक्रम दिखाया ही नहीं..और मुकाबला बेमेल सा नज़र आने लगा! पर जिस "पेनल्टी" की बात युगम इसके अंत में करता है..वो शायद आगे प्रतियोगिता का भाग्य बदल दे!
अब अगला द्वन्द है शुक्राल और तिरंगा के बीच !

‪#‎शुक्राल‬: मैं खिलाडी तू अनाड़ी
‪#‎तिरंगा‬ : तू कबाड़ी मैं जुगाड़ी

एक बड़ा पाठक वर्ग मानकर चल रहा है कि यह एक बेमेल मुकाबला होने वाला है जिसमे तिरंगा के जीतने के चांस सिर्फ 10 % हैं! हम भी इस सोच से अलग नहीं हैं! और वैसे भी जिस तरह से शुरू के इन 2 द्वंदों का परिणाम आया है..यह भविष्यवाणी बहुत आसान है कि अगला विजेता कौन होने वाला है! परन्तु लेखक इसको किस तरह से पूरी तरह औचित्यपूर्वक दर्शाते हैं..आगे यह देखना दिलचस्प रहेगा!

तो अब तक आपने जान लिया है कि कहानी के मुख्य बिंदु क्या थे...इनके अलावा कुछ अन्य छोटे हिस्से भी चल रहे हैं...जिसमे एक में नया किरदार "नरकपुत्र रक्ष" जुड़ने वाला है! इसको लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता है..क्यूंकि यह एक ऐसा किरदार लग रहा है..जो आत्मघाती भी हो सकता है!

भीमकाय अडिग के बाद यह दूसरा किरदार इस श्रृंखला की खोज कहा जा सकता है! फिलहाल इसकी सिर्फ एक झलक देखने को मिलती है!
असुरलोक में शम्भुक और शुक्राचार्य कुछ नया गुल खिलाने में चक्कर में हैं..लेकिन महामानव के हिस्से को अभी भी अबूझ पहेली बनाकर रखा गया है!

‪#‎सुपर_कमांडो_ध्रुव‬ : कहानी में ध्रुव अभी तक सारी बागडोर खुद संभाले हुए है...और उसकी सूझबूझ से ही पश्चात काल आगे है...वो अपने सह प्रति द्वंदी शुक्राल और संचालक युगम के हर पैंतरे को विफल करता जा रहा है! लेकिन यह देखना और दिलचस्प होगा कि शुक्राल के सामने तिरंगा को उतारने का उसका निर्णय इस बार किस करवट बैठता है...जिससे ध्रुव अपने आपको किसी भी आक्षेप से बचा सके!

‪#‎समयकाल_की_अनभिज्ञता‬ : सर्वनायक में एक चीज़ जिस पर पाठक अभी ध्यान नहीं दे रहे हैं वो है समयकालो की जानकारी की कमी!
यह प्रश्न अभी उत्तर नहीं खोज पाया है कि आखिर तीनो युगों में चल रहा यह सबकुछ एक साथ ही क्यूँ घटित हो रहा है?

युगम जो कर रहा है वो एक अलग मसला हो सकता है..लेकिन
1- इतिहास का अचानक से एकाएक भूतकाल में पहुँच जाना!
2- महामानव जिस समय काल में है उसका उल्लेख ना होना!
3- हरुओं के बारे वो जानकारी जो कभी वर्तमान के किसी नायक को नहीं रही..उसके बारे में गगन और विनाशदूत को पहले से पता होना!
4- हरूओ की सृष्टि देव और असुर से अलग है! वो उन नियमो को नहीं मानती..जो यह दोनों मानती हैं! कोहराम में आया हरु भी सिर्फ एक उर्जा का रूप था..जिसने मानव का शरीर धारण किया था! वो चाहता तो किसी दूसरे पदार्थ से अपना शरीर बना लेता! खैर महामानव के सामने जो हरु दर्शाए गए हैं..वो भी मानव रूप में हैं! या तो यह एक गलती है...या फिर वो मानव कौन थे जिनके शरीर पर हरूओ का कब्ज़ा है..यह लेखक को बताना चाहिए!
5- पेज 66 पर जो महाखलनायको का जमावड़ा लगा हुआ है..उसका समय काल भी नहीं लिखा गया है! त्रिफना सीरीज के बाद हो रही यह घटना वर्तमान में हुई घटना से पहले कब की है यह बताने के साथ साथ यह भी बताया जाना जरूरी था..कि शाकूरा,सपेरा,मिस किलर,वामन,चुम्बा,ध्वनिराज आदि असंख्य विलेन जो या तो कहीं कैद थे..या अपने ग्रहों पर चले गए थे! एक साथ कैसे कहानी में टपका दिए जा रहे हैं!आखिर हम इन सभी घटनाओं को किस तरह से आपस में जोड़े कि वो पहले आई कहानियों से मेल खा सकें?
6 - अंत में महारावण कहता है कि वो वर्तमान पर कब्ज़ा करने आया है! लेकिन यह निर्णय और जानकारी उसको कैसे हो सकती है कि वर्तमान आखिर है क्या? क्यूंकि महारावण के लिए वर्तमान वो है जिसमे उसने जन्म लिया था..यानी की द्वापर युग! अगर वो कालदूत के समय में अब लड़ने आया है तो यह उसके लिए भविष्य है ना की वर्तमान!
7- एक और अच्छा सवाल है..कि यह मान लिया कि महक का प्रेम युगों युगों से चला आ रहा है और कभी सफलता नहीं पा सका...यह भी सही है कि तिलिस्मदेव अमर हैं...तो अगर लेखक का कथन यह है कि चंदा ही महक का पुनर्जनम् है..तो इसका मतलब यही हुआ कि तिलिस्मदेव भी वर्तमान में जरूर कहीं ना कहीं जीवित होंगे! लेखक ने वर्तमान में मौजूद तिलिस्मदेव को क्यूँ उजागर नहीं किया है!

युगांधर से लेकर अब तक की कहानी में सिर्फ सवाल ही सवाल हैं...और उत्तर देने में कोई प्रोग्रेस नहीं हुई है! इसको हम आलोचना तो नहीं कहेंगे..लेकिन सर्वनायक प्रतियोगिता के अतिरिक्त दूसरी तरफ की सभी कहानियों में जो कुछ भी दिखाया जा रहा है या जाता रहेगा...वो उलझाऊ होने के साथ-साथ मूल कहानी से जुड़ा प्रतीत होने के बाद भी जुड़ा नहीं लग रहा है!
हम एक छोटा सा सवाल और करते हैं..कि सर्वनायक प्रतियोगिता में युगम ने सिर्फ कुछ ख़ास नायको को क्यूँ चुना और बाकी को क्यूँ नहीं चुना?
आईपीएल की तर्ज़ पर खेलकूद प्रतियोगिता जो चल रही है वो हमें भी पता है कहानी का मुख्य केंद्र नहीं है...जिस दिन यह प्रतियोगिता ख़त्म हो जायेगी..उसी दिन दूसरी घटनाओं में जो अबूझ पहेलियाँ हैं..वो सतह पर आकर नए प्रश्न खड़े कर देंगी!
खैर सवाल तो हर भाग में 10 नए बन रहे हैं! अगर लेखक कहानी में साथ ही साथ छोटी छोटी बातों में कुछ के उत्तर भी देते जाएं..तो कहानी ज्यादा मजबूत लगने लगेगी!

एक और तार्किक प्रश्न ने जन्म लिया हमारे दिमाग ने...कि अब तो यह कहानी युगांधर से अब तक 4th पार्ट में आ चुकी है...लेकिन क्या किसी ने ध्यान दिया कि हमारे सभी जोशीले सुपर हीरोज़ ने अब तक इतनी लड़ाइयाँ और कसरत कर ली है...लेकिन युगम ने किसी को पानी तक नहीं पूछा...मतलब कम से कम खाने को ही कुछ दे देता...बेचारे भूखे पेट ही लगातार लडे जा रहे हैं.....इस विषय को ख़त्म करने के लिए एक "सर्व लंगर " का भी आयोजन लेखक को करना चाहिए!

‪#‎आर्टवर्क‬ -

सर्व संग्राम में पिछले भागो कि तुलना में मन को मोह लेने वाला आर्टवर्क है...सुशांत जी और विनोद कुमार जी ने साथ में एक बेहतरीन काम देकर वापस श्रृंखला को जीवंत कर दिया है!
अपितु फिर भी यहाँ उतार चड़ाव मौजूद हैं...35वे पन्ने के बाद आर्ट में गिरावट देखने को मिलती है..फिर 50 वे पन्ने से 65 तक वापस पटरी पर आती है...लेकिन 66वे से वापस डूब जाती है....73वे से अंत तक आर्ट वैसा नहीं रहता जैसा शुरुआत में था!
खैर बीच-बीच में दूसरे आर्टिस्ट्स द्वारा बनाये गए पन्ने बहुत आकर्षक बने हैं! रंग संयोजन भी ठीक ठाक है!
सिर्फ सुशांत जी थोडा और समय लगाकर पूरी किताब में एक जैसा ही चित्रांकन बनाये रखें !

अंत में कॉमिक्स का मनोरंजनात्मक पक्ष :

‪#‎हास्य_पक्ष‬:
वैसे यह कहानी हास्य बोध के लिए नहीं है..लेकिन लेखक ने अपनी तरफ से बीच बीच में कई जगह हास्य का पुट दिया है..युगम जब पेज 44 पर अपने फिल्मों के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करता है..तो उसपर परमाणु का कटाक्ष ठहाके लगाने को मजबूर कर देता है!
ऐसे ही युगम द्वारा शुक्राल के ऊपर अवधि को लेकर किये कटाक्ष पर शुक्राल का झेंप जाना और आर्टिस्ट द्वारा दोनों के भावो का सुंदर चित्रण मजेदार है!
ऐसे कई दूसरे पल भी कहानी की सुन्दरता बढाते हैं!

#सर्व_संग्राम में आपको सबसे अधिक मज़ा आर्टवर्क देखने में ही आएगा! इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इससे बेहतर नहीं मिल सकेगा...बल्कि यह है कि पहले से आपको बेहतर काम मिला है..इस बात कि ख़ुशी आप महसूस कर सकेंगे!

कहानी के बारे में हमारा यही कहना है कि यह महा श्रृंखला जरूर है..लेकिन अपने मूल से अभी भी अलग है..कोई भी कहानी एक तरफ से शुरू होती है..और एक दूसरी तरफ जाकर खत्म हो जाती है! यह कहानी अब तक ना तो शुरू हुई है और ना जल्दी ख़त्म होने वाली है!
इसमें हो यह रहा है..कि अलग अलग समय में हो रही घटनाओ को एक साथ जोड़कर दिखाया गया है! कहानी वर्तमान में चलती है..और बाकी दोनों काल उसके साथ जुड़ते हैं! यहाँ किसी तरह का कोई नियम मौजूद नहीं है! जैसे चाहे कहानी को चलाया जा रहा है!
पाठको को ख़ुशी यह है कि उन्हें सालो बाद अपने-अपने प्रिय पात्र दोबारा से देखने को मिल रहे हैं! अगर वो एक बार उन पात्रो की आखिरी कहानी और अब दोबारा दिखाई जा रही कहानी के बीच लिंक जोड़ना शुरू करें तो उनके लिए भी हितकर होगा और श्रृंखला के लिए भी!
कहा जाता है कि कहानी को पढने में दिमाग नहीं लगाना चाहिए! बिलकुल सही बात है...कोई भी कॉमिक्स मनोरंजन के लिए पढ़ी जाती है! लेकिन सर्वनायक जैसी कोई भी विस्तृत कहानी को लिखना भी हंसी खेल नहीं है..लेखक ने बहुत मेहनत से इस कहानी को सोचा और लिखा है..उनके प्रयास को पूरा आदर दिया जाना चाहिए! अगर वो आप पाठको के लिए इतना दिमाग लगाकर गूड से गूड तथ्यों पर बारीकी से काम कर सकते हैं..तो उन्ही तथ्यों को आप लोग भी अपने अपने स्तर पर जांचकर संतुष्ट जरूर हों..क्यूंकि यही वक़्त है जब आप चीज़ें बता सकते है,उनपर ध्यान दिला सकते हैं...जो कहानी का अंत आते आते सुलझाई जा सकती हैं. बाकी के प्रश्न-उत्तर तो आगे भी चलते रहेंगे! फिलहाल इस कहानी का लुत्फ़ उठाइये!


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