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Wednesday, 30 November 2016

Mission Kashmir (2000) Review



Mission Kashmir (2000)
8/10
आ मेरा बच्चा....अल्लाह की राह में काफिरों को ख़त्म कर डाल मेरा बच्चा...जन्नत पायेगा मेरा अल्ताफ
जैकी श्रोफ़ को इस रोल के लिए नेशनल अवार्ड मिलना चाहिए था pacman emoticon
कश्मीर में आतंकवाद के पनपने के बाद बनी कुछ सबसे बेहतरीन फिल्मो में यह फिल्म हमेशा टॉप 5 में जरूर रहेगी! वज़ह है इसका कमर्शियल होकर भी वहां मौजूद आतंकवाद के पीछे जो असल ज़मीनी वज़ह होती हैं...उनको एक साथ दिखाना!
सबसे पहली बात तो यह है कि कोई माने चाहे ना माने लेकिन कश्मीर में आतंकवाद को फैलाने के पीछे असल कारण शुरू से ही हिन्दुओं का विरोध करने की पाकिस्तान की सोच रही है...हिन्दुओं का विरोध कश्मीर में रहने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी शुरू से करते आ रहे हैं! और वहां के आम लोगों में भी ऐसे लोग मौजूद हैं..जो भारत के खिलाफ काम करते हैं! लेकिन वहां ऐसे लोग भी मौजूद हैं...जो खुद इस्लाम से हैं...लेकिन आतंकवाद के खिलाफ होने की वज़ह से अल्लाह के नाम पर उनको मारने में आतंकियों को एक मिनट नहीं लगता है!
तो यहाँ पर यह बात साफ़ है कि धर्म के नाम अपने धर्म वालों को हलाल कर देना भी आतंकियों के लिए जायज़ है!
ऐसे ही ऋतिक रोशन का एक आम परिवार आतंकवादियों को अपने घर में पनाह देता है...जिसका सफाया करते हुए "मुस्लिम" पुलिस अधिकारी संजय दत्त के हाथों ऋतिक का परिवार भी मारा जाता है!
यहाँ पर आकर असली फसाद हमेशा शुरू होता है! असली ज़िन्दगी में भी!
आम कश्मीरी को सिर्फ यह नज़र आता है कि भारतीय आर्मी की वज़ह से वहां निर्दोष मरते हैं...लेकिन उन्हें यह नज़र नहीं आता कि उन्ही के बीच जो लोग इन आतंकियों को पनाह देते हैं....उनको अपने बीच में छुपने की जगह ना देना भी इन्ही कश्मीरियों का पहला फ़र्ज़ है! चलिए मान भी लिया कि सारे कश्मीरी नहीं जानते कि कौन अच्छा और कौन बुरा है...लेकिन जब आतंकियों का जनाज़ा निकलता है..तब तो जानते हैं कि मरने वाला भारत के खिलाफ था...क्यूँ जाते हैं तब उसके जनाज़े में रोने?
कश्मीर में सेना और पुलिस के जवानों की अर्थी पर रोने कितने कश्मीरियो की भीड़ कभी नज़र आती हो..ऐसा दिखा नहीं!
खैर,इधर हमारा सिस्टम भी ऐसे मामलों में बहुत लापरवाही से काम लेता है....मान लिया कि गेहूं के साथ घुन पिस जाता है...बहुत से आतंकी मारने के चक्कर में कुछ निर्दोष भी बलि चढ़ जाते हैं...लेकिन कमी यह है कि उन निर्दोषों को वापस मुख्यधारा में जोड़ने के लिए जितने तेज़ी और जतन से काम किया जाना चाहिए..वो सरकारी स्तर पर भी नहीं होता...ज्यादा से ज्यादा कुछ मुआवजा दे दिया जाता है! लेकिन इससे आम कश्मीरी के परिजनों की मौत के दर्द को उसकी अगली पीढ़ी से कैसे दूर करेंगे? लोग सवाल करें कि उनके परिवार क्यूँ मरे..तो साफ़ जवाब यही होगा कि आर्मी के हाथों क्रॉस-फायर के बीच में मारे गए!
ऐसे परिवारों और लोगों की अलग विशेष काउंसलिंग करवाया जाना बहुत जरूरी होता है! सच्चाई,देशप्रेम और धर्म से ऊपर उठाकर इन्हें कश्मीर के असल हालातों को जितना जल्दी समझा दिया जाए...आम कश्मीरी को उतना जल्द खराब हालातों में सामान्य बनाया जा सकता है!
कश्मीर में जो हो रहा है...उसमे यह बात कोई झुठला नहीं सकता कि पाकिस्तान और चीन जैसे दूसरे पडोसी देश,वहां मौजूद कश्मीरी दहशतगर्दो के जरिये इस्लाम के नाम पर हिन्दुओं के खिलाफ एक लड़ाई छेड़े हुए हैं....कश्मीरी हिन्दुओं को मस्जिदों से चीख चीखकर घाटी छोड़ने का फरमान जारी करवाया गया...इसको साफ़ तरह से यही कहा जाएगा कि वहां हिन्दू और मुस्लिम का मुद्दा ही शुरू से है! कश्मीर सिर्फ मुस्लिमों का है...ऐसी सोच वहां मौजूद आतंकवाद की असल ढाल है! जिसको जमीनी स्तर पर भी समर्थन मिला हुआ है!
बात राजनीती की...तो कश्मीर में आज भी कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है..जो सच में वहां के हालात को बदलना चाहती हो...ना ही केंद्र में! 370 हटाये बिना,जो कुछ भी नाटक देश भर की कोई भी पार्टी करती है..उसका कोई मतलब नहीं है..सब कुर्सी के लिए जनता को गधा बनाये हुए हैं!
हमारे बीच में भी मौजूद हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही जनता का एक बड़ा हिस्सा राजनीति की धारा में बहकर चलता है...उसके लिए कश्मीर का मतलब सिर्फ जमीन के टुकड़े से है...मुस्लिम सोचता है कि हिन्दू साफ़ हो जाएँ,हिन्दू सोचा है..कि मुस्लिम साफ हो जाएँ! इसलिए जब भी दूसरे धर्म वाले लोग मरते हैं,तो एक धर्म रोता है और दूसरा मिठाई बांटता है! आज किसी एक 5 मरे तो पहला यह दुआ करता है कि असली बार दूसरे से 10 मरें! यही नूराकुश्ती चलती रहेगी!
खैर फिल्म का अंत एक बात साफ़ दिखाता है कि धार्मिक BRAINWASH से एक हद के बाद बचना जरूरी है! जो भी लोग brainwash पर चलकर एक ही विचार और व्यकित की बात पर आँख मूंदकर चलते हैं,उनकी वापसी हमेशा ऋतिक रोशन की तरह ही हो जाए,मुमकिन नहीं है! उसके साथ संजय दत्त जैसे धर्म से ऊपर देश और फ़र्ज़ को देखने वालों का हाथ होना जरूरी है! असलियत में हर कोई इतना लकी नहीं होता!
अंत में सबसे जरूरी बात कि हमारे देश के लोगों को हफ्ते में 2 बार सूर्यवंषम दिखा दिखाकर टॉर्चर करने की जगह अगर 15 साल से मिशन कश्मीर जैसी फिल्में दिखाई जाती तो शायद हिन्दू मुस्लिम,कश्मीर समस्या पर समस्या का उपाय निकालने की कुछ बेहतर तरक्की जनता के दिमाग में तो हो ही जाती! pacman emoticon

Saturday, 15 October 2016

FREELANCE TALENTS SHORT FILMS REVIEWS

1) - Dushman (Anti Body) short film: https://­www.youtube.com/­watch?v=-m1TCS4-SMs
 
कहानी है शहर में एक 22 साल के कामकाजी लड़के स्वप्निल की...जिसको सिर पर चोट लगने की वज़ह से Alien hand syndrome नाम की तकलीफ हो जाती है...जिसमे उसका एक हाथ उसके काबू से बाहर हो गया है! एडिटिंग- (8/10) कहानी में जो सीन आगे पीछे करके दिखाए गए हैं..वो बढ़िया एडिटिंग थी! इससे कहानी में फ्लो बना रहता है! आगे जानने की उत्सुकता बनी रहती है! बेशक यह 10 मिनट की शोर्ट फिल्म थी..पर इतने में भी काफी अलग अलग सीन दिखा दिये गये है! निर्देशन और कैमरावर्क काफी हद तक बढ़िया लगता है...लगभग सभी सीन सही एंगल से शूट हुए हैं! एक्टिंग- ज्यादातर रोल स्वप्निल का किरदार निभाने वाले तुफैल खान जी का है...जो सह निर्देशन भी कर रहे थे! उनका रोल 2 भाग में है..बीमारी से पहले और बाद में! बाद वाला हिस्सा उनके ऊपर ज्यादा फिट बैठा है..जिसमे वो परेशान और दुखी नज़र आते हैं! लेकिन पहले वाला हिस्सा भी वैसा ही दिखाया गया है..उस एक्टिंग पार्ट में नौकरी मिलने और काम की थोड़ी ख़ुशी और जिन्दादिली अगर ज्यादा दिखाई जाती तो अंत में हुई मौत से दर्शक ज्यादा जुड़ पाते...अभी हमें ऐसा लगा कि स्वप्निल खुद ही अपनी ज़िन्दगी से जाने किसी अनजान वज़ह से परेशान रहा होगा..और बीमारी ने उसको मुक्त कर दिया! उनका सबसे बेहतर सीन डॉक्टर से फ़ोन पर बात करने वाला लगता है..जिसमे वो एनर्जी से भरे हुए हैं (3.30 मिनट)! ओवरआल उनकी एक्टिंग को 6/10 बाकी रोल में डॉक्टर का किरदार ठीक ठाक है...अन्य भी ओके हैं! फिल्म का पहला सीन (पुलिस तहकीकात) काफी कसा हुआ है! सभी एक्टर फ्लो में नज़र आते हैं! फिल्म ओवरआल एक डार्क कॉमेडी जैसी बनी है! फिल्म में थोड़ी सी लम्बाई और रखकर कुछ हद तक स्वप्निल को मरने से बचाव के कुछ अतिरिक्त मौके दिए जा सकते थे! फिलहाल यह एक निरीह सा इंसान है जो बेमौत मारा जाता है! 
 6.5/10
 
 
 यह कहानी उस कहानी से अलग अंत लिए हुए हैं...उसमे लड़का मर जाता है..और इसमें आपने यह चीज़ हटा ली है..कि लड़की के साथ अंत में क्या हुआ होगा! यह वाला अंत ज्यादा अच्छा था बजाय जो बना है!
आपका लड़की को मुख्य किरदार में लेने का आईडिया बिलकुल सही था! ऐसी अजीब बीमारी लड़की पर ज्यादा effective नज़र आती है!
अगर पूरी फिल्म वैसी ही बनती जो इस कहानी का असली फॉर्मेट था..तो बेहतर ही होती! अगले किसी भी प्रोजेक्ट में बजट और कहानी के बीच तालमेल बनाकर ही बनाएं! क्यूंकि इस ग्रुप ने 2 प्रोजेक्ट कर लिए हैं...जिसमे पहले प्रोजेक्ट "बावरी बेरोजगारी" में भी सही कास्टिंग की परेशानी आई थी..और यहाँ भी! इस बड़ी कमी से जल्द निजात पाने की जरूरत है! क्यूंकि हर फिल्म के साथ आगे बेहतर पाने की इच्छा दर्शक रखते हैं! और Theatrix को अगर नाम बनाना है तो कोशिश भी उसी मुताबिक करनी होगी..कि लोग उनको याद रख पाएं!
 
2) - Jholachhap Talent (Mr. Writer) - https://­www.youtube.com/­watch?v=GjtWKkVV-QE

Story by- Mohit Sharma (Trendster,Trendy Baba)
Starring and Directed by Mithilesh Gupta
Camera- Himmat Man Singh & Siddharth Gupta

बहुत बढ़िया वीडियो बनाया है आपकी टीम ने! sound,Camerawork,editing सभी परफेक्ट थे! Mithilesh जी आपका कहानी को कहने का अंदाज़ काफी उम्दा लगा! उसमे गंभीरता और सहजता दोनों ही एक साथ मौजूद थी! video में मौजूद सन्देश बहुत अच्छा भी है और सबसे ज्यादा जरूरी भी! क्यूंकि यह लेखकों के एक बड़े तबके से संबंधित है! आजकल ओरिजिनल काम को करने में जो वक़्त और मेहनत चाहिए होती है वो काफी कम देखने को मिलती है! सभी 2 मिनट की मैगी बनाना चाहते हैं! लेकिन भूल जाते हैं कि कॉपी/पेस्ट काम आपको तुरंत कुछ सफलता दिला सकता है..लेकिन लम्बे वक़्त तक आप उसपर ना तो अपनी आजीविका चला सकते हैं और ना अपने पाठको का भरोसा कायम रख पायेंगे! Suggestion- ऐसे सभी videos की शुरुआत में यह लाइन्स जरूर जोड़ दिया करिए >This is a work of fiction. Names, characters, places and incidents either are products of the author’s imagination or are used fictitiously. Any resemblance to actual events or locales or persons, living or dead, is entirely coincidental. क्यूंकि इस video में जो नाम इस्तेमाल किये गए हैं वो काफी लोगों के लिए जाने पहचाने हो सकते हैं! और बेवज़ह कोई विवाद उठे वो ठीक नहीं! आगे भी ऐसे प्रयास जारी रखें! 


3) - Bawri Berozgari: https://­www.youtube.com/­watch?v=a0pc6Tustrg

 बेरोज़गारी के मुद्दे पर हास्य अंदाज़ में एक अच्छी शार्ट फिल्म बनाई गई है! अपनी Qualification की तुलना में कम अहमियत वाली नौकरी मंजूर ना होना...घर वालो का दबाव...और अपने नौकरीपेशा दोस्तों के बीच पिसता परेशान बेरोज़गार लड़का..यह आज के भारत की एक आम सच्चाई है! फिल्म का दूसरा भाग अविकसित मस्तिष्क से उपजे ऐसे परोपकार पर केन्द्रित है..जिसका कोई फल नहीं निकलेगा...बल्कि सिर्फ कुछ और जिंदगियां बर्बाद कर देगा! उत्साहित मन और सही-गलत के बीच फर्क करना युवाओं के लिए जरूरी है! फिल्म के अंत में दिए गए सन्देश काफी अच्छे और प्रासंगिक थे! खासकर पुणे के अध्यापक के शब्द! इनके बाद जो महिला थी अगर वो भी हिंदी या English में अपनी बात रखती तो फिल्म के लिए ज्यादा बेहतर होता! बेरोज़गारी को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है...इसके पीछे भारत की बढती जनसँख्या एक बड़ी वज़ह है...कहीं ना कहीं पढ़े-लिखे युवाओ की बढती भीड़ और उपलब्ध नौकरियों के अनुपात में एक खाई बनी हुई है! इसकी एक और ख़ास social वज़ह भी है..जिसका हम यहाँ जिक्र नहीं करेंगे...क्यूंकि वो विवाद पैदा करती है! बहरहाल अपनी पसंद की एक नौकरी के लिए युवाओं में कितनी घोर निराशा पनप रही है यह कुछ दिन पहले पुलिस भर्ती में फेल हो जाने पर सिर्फ 21 साल की उम्र में आत्महत्या कर लेने वाली सुनीता नाम की लड़की से पता चलता है! इस फिल्म में दिखाया गया है कि लड़के की माँ थोड़ी कर्कश हैं..लेकिन पिता नहीं...ऐसा असल ज़िन्दगी में भी होता है..जब माता-पिता में से कोई एक जरूर बच्चो के साथ हमेशा खड़ा मिलता है! इसलिए युवाओं से हमारा यही कहना है कि जब तक उम्मीद है...कोशिश करते रहे..अपने परिवार के लिए जिएं! मौके आते रहेंगे! फिल्म के सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया है! सभी को आगे के लिए शुभकामनाएं!

Wednesday, 11 May 2016

Earth 1947 Review – एक दंगे में उलझी हुई खून सने प्रेम की दास्ताँ






Earth 1947 Review – एक दंगे में उलझी हुई खून सने प्रेम की दास्ताँ!
Earth  (1998)
Amir Khan,Rahul Khanna,Nandita Das
Plot- फिल्म की कहानी बंटवारे के बीच के समय में 1947 के लाहौर के एक छोटे से हिस्से को दिखाती है! यहाँ पर एक पारसी परिवार रहता है...किट्टू गिडवानी और आरिफ ज़कारिया का! इनकी एक पोलिओग्रस्त छोटी सी बेटी है! जिसका ध्यान रखने के लिए एक हिन्दू लड़की (नंदिता दास) को रखा है! (आमिर खान) एक आइसक्रीम वाला बने हैं..और (राहुल खन्ना) मालिश वाले! दोनों ही मुस्लिम हैं! इनके अलावा कुछ सिख धर्म के दोस्त भी इनके साथ रहते हैं! मतलब यहाँ पर सभी धर्मो से जुड़े लोग नज़र आते हैं! वैसे तो सभी बहुत प्यार और भाईचारे के साथ रहते हैं...लेकिन जब बंटवारे की बात देश की राजनीती में उठती है तो कई अलग अलग खेमे धर्म के आधार पर बंट रहे हैं! लोगों में बात बात पर तनाव और गर्मागर्मी हो रही है...आपसी विश्वास टूट रहा है! हालात तब ज्यादा खराब हो जाते हैं जब बंटवारे का एलान सरकार कर देती है... हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई अपने अपने घर और कारोबार को छोड़कर भारत से पाकिस्तान और वहां से यहाँ भागने लगते हैं! ऐसे ही एक ट्रेन भारत से लाहौर आती है जिसमे मुस्लिमो की लाशें और महिलाओं के कटे स्तन बोरियों में भरकर भेजे गए हैं! आमिर खान यहाँ पर भटक जाते हैं..क्यूंकि नंदिता दास उनके प्रेम को ठुकराकर राहुल खन्ना से प्रेम करती है..जो की शादी के बाद भारत आकर हिन्दू बनने को तैयार है! मजहबी दंगे बढ़ जाते हैं और लाहौर के मुस्लिम भी हिन्दुओं और सिखों पर हमले शुरू कर देते हैं! इंसानियत को भुलाकर सभी इस बात पर आमादा हैं कि कौन दूसरे से ज्यादा बड़ा जानवर बनकर दिखायेगा! इसमें सभी धर्मो की भीड़ महिलाओं पर अत्यचार के मामले में सबसे आगे है! अंत में राहुल खन्ना को कोई अज्ञात कारण से क़त्ल कर दिया जाता है और आमिर खान भी दंगाई भीड़ में शामिल होकर नंदिता दास को सैकड़ो मुस्लिमो के हवाले करके अपने प्यार को ठुकराए जाने का बदला निकाल लेते हैं!
एक्टिंग के मामले में राहुल खन्ना बुझे बुझे से नज़र आते हैं..उनका रोल भी ज्यादा नहीं है...नंदिता दास का काम ठीक है..आमिर खान ने बढ़िया एक्टिंग करी है...उनका रोल पॉजिटिव और ग्रे होने के बाद एकदम नेगेटिव बन जाता है! शायद धूम-3 से ज्यादा बड़े खलनायक वो earth में हैं! कुलभूषण खरबंदा मीरा नायर की हर फिल्म की तरह यहाँ भी मौजूद हैं! 

फिल्म क्यूंकि आज़ादी के वक़्त हुए असली हालातों को दिखाती है..इसलिए इसमें कोई ज्यादा शक नहीं है कि लगभग ऐसा ही नज़ारा उस वक्त देश का रहा होगा! फिल्म के अनुसार 70 लाख मुस्लिम और 50 लाख हिन्दू-सिख मारे गए थे! यह एक काफी बड़ा आंकड़ा कहा जाएगा!
ऐसी फिल्में कुछ ऐतिहासिक बातें बताती हैं तो कुछ गलतियाँ सुधारने की सीख भी देती हैं! बंटवारा सही था या गलत....इसपर सभी अपनी राय है..लेकिन एक बात को रोक जा सकता था वो था खून-खराबा! अगर सभी धर्म वाले इंसानियत को ऊपर रखकर शान्ति से यहाँ से वहां और वहां से यहाँ रहने आ जाते तो ज्यादा बेहतर बात होती! पर हमारे नेताओं के आगे किसकी चली है...इनका बस चले तो आज भी लोगों को धर्म और जातियों पर लड़वाकर और बंटवारे करवा दें! क्यूंकि सबको प्रधानमंत्री बनना है! वैसे एक चीज़ हमेशा दिखाई जाती है कि दंगे-फसाद के समय जो भीड़ होती है....उसको रोकना शायद ऊपर वाले के हाथ में भी नहीं होता! यह भीड़ सिर्फ एक लक्ष्य पर चलती है..जिसको पूरा करने के अलावा दूसरी कोई बात उसको नज़र नहीं आती! चाहे आप उसके अपने भी हो...भीड़ आपको भी कुचल देगी अगर आप उसका साथ नहीं देते! इसलिए या तो भीड़ का हिस्सा बन जाइए या भीड़ से बिल्कुल नाता तोड़ दीजिये! पाकिस्तान आज एक विफल राष्ट्र इसलिए नज़र आता है क्यूंकि वहां सिर्फ एक धर्म का बोलबाला है..और भारत इसलिए खुशहाल है..क्यूंकि यहाँ बहुत सारे धर्म मौजूद हैं! इसकी वज़ह यह है कि जब कोई एक धर्म ही देश के हर अच्छे-बुरे के लिए दोषी होता है तो उससे जुड़े लोगों के अन्दर एक कुंठा पैदा हो जाती है..अगर वो अपने धर्म से जुड़े ही लोगों को कहीं और ज्यादा खुशहाल हालत में देखता है! पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र के नाम पर बना था..लेकिन वहां के मुस्लिमो की तुलना में भारत के मुस्लिम आज ज्यादा बेहतर हालत में हैं! यह एक अकेला कारण काफी है पाकिस्तान के लिए..भारत से नफरत करने का! वहीँ भारत में क्यूंकि अच्छे-बुरे जो काम हो रहे हैं..उसको अलग-अलग वर्गों के लोगों में बाँट दिया जाता है..इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि जो सफलता देश में है..वो सिर्फ किसी एक की वज़ह से हैं..और जो दुःख नहीं वो किसी दूसरे की वज़ह से! एक भारत जैसे बड़े देश में हर चीज़ सबके लिए मुमकिन नहीं होती! यहाँ हिन्दू ज्यादा हैं इसलिए रहन-सहन और जीवनशैली में लचीलापन मौजूद है....वहीँ मुस्लिमों की वज़ह से हमारे देश को दुनिया भर के दूसरे मुस्लिम देशो के साथ कोई भी अंतर्राष्ट्रीय समझौता और डील करने में ज्यादा आसानी होती है! इसके अलावा हम अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर देश की विविधता में एकता वाली बात का ढोल पीटकर पडोसी मुल्को को आइना भी दिखाते रहते हैं! बुद्ध धर्म क्यूंकि भारत में शुरू हुआ और दक्षिण एशिया से लेकर पूर्वी गोलार्ध में फैला..इसलिए वहां के देशो का हमसे अच्छा सम्बन्ध कायम है! सिख कम्युनिटी भारत के अलावा पश्चिम के देशो में हमारे लिए ऐसे बहुत से रास्ते खोलती है..जो हमारे देश के काम आते हैं! पारसी समाज भी हमारे देश में शान्ति से रह रहा है और ईसाई भी! तो हम कह सकते हैं कि खून खराबे और हज़ारो लड़ाइयों के बाद बर्बादी से शुरू हुए आज़ाद भारत को पाने के बाद एक सफल राष्ट्र बनने की तरफ हमने बहुत अच्छे कदम बढ़ाये थे..और इसमें हर वर्ग और धर्म का बराबर का हाथ है!
खैर मुद्दा यह है कि बंटवारे के वक़्त हुए दंगे कभी आगे भविष्य में ना हो...इसके लिए सबसे जरूरी चीज़ है...की जो भी बस्तियां,कॉलोनियां ,गाँव,शहर,जिले बसाए जाते हैं और जाते रहेंगे...उसमे एक मिलीजुली आबादी को बसाने पर ज्यादा ध्यान और प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है! हिन्दू आबादी अगर अलग रहेगी...मुस्लिम आबादी अलग और सिख अलग..ईसाई अलग..तो कभी ना कभी दंगे जरूर होते हैं...क्यूंकि एक धर्म के लिए दूसरे धर्म वाले को निशाना बनाना ज्यादा आसान हो जाता है..अगर उसको पता चले कि फला कम्युनिटी एक ही जगह रहती है! ऐसे हालातों में किसी के बचने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है..क्यूंकि वो ना तो भाग पाते हैं...ना उनकी मदद के लिए कोई बीच में आ सकता है! जैसा हमने कहा कि भीड़ का सिर्फ एक लक्ष्य होता है....जिसको पूरा करना ही है! क्यूंकि आज का माहौल बहुत बोझिल सा बन गया है! इसलिए अगर हो सके तो आपस के छोटे छोटे मुद्दे बड़े ना बनने देने में ही सभी कम्युनिटीज का भला है!
4/5