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Saturday, 15 October 2016

FREELANCE TALENTS SHORT FILMS REVIEWS

1) - Dushman (Anti Body) short film: https://­www.youtube.com/­watch?v=-m1TCS4-SMs
 
कहानी है शहर में एक 22 साल के कामकाजी लड़के स्वप्निल की...जिसको सिर पर चोट लगने की वज़ह से Alien hand syndrome नाम की तकलीफ हो जाती है...जिसमे उसका एक हाथ उसके काबू से बाहर हो गया है! एडिटिंग- (8/10) कहानी में जो सीन आगे पीछे करके दिखाए गए हैं..वो बढ़िया एडिटिंग थी! इससे कहानी में फ्लो बना रहता है! आगे जानने की उत्सुकता बनी रहती है! बेशक यह 10 मिनट की शोर्ट फिल्म थी..पर इतने में भी काफी अलग अलग सीन दिखा दिये गये है! निर्देशन और कैमरावर्क काफी हद तक बढ़िया लगता है...लगभग सभी सीन सही एंगल से शूट हुए हैं! एक्टिंग- ज्यादातर रोल स्वप्निल का किरदार निभाने वाले तुफैल खान जी का है...जो सह निर्देशन भी कर रहे थे! उनका रोल 2 भाग में है..बीमारी से पहले और बाद में! बाद वाला हिस्सा उनके ऊपर ज्यादा फिट बैठा है..जिसमे वो परेशान और दुखी नज़र आते हैं! लेकिन पहले वाला हिस्सा भी वैसा ही दिखाया गया है..उस एक्टिंग पार्ट में नौकरी मिलने और काम की थोड़ी ख़ुशी और जिन्दादिली अगर ज्यादा दिखाई जाती तो अंत में हुई मौत से दर्शक ज्यादा जुड़ पाते...अभी हमें ऐसा लगा कि स्वप्निल खुद ही अपनी ज़िन्दगी से जाने किसी अनजान वज़ह से परेशान रहा होगा..और बीमारी ने उसको मुक्त कर दिया! उनका सबसे बेहतर सीन डॉक्टर से फ़ोन पर बात करने वाला लगता है..जिसमे वो एनर्जी से भरे हुए हैं (3.30 मिनट)! ओवरआल उनकी एक्टिंग को 6/10 बाकी रोल में डॉक्टर का किरदार ठीक ठाक है...अन्य भी ओके हैं! फिल्म का पहला सीन (पुलिस तहकीकात) काफी कसा हुआ है! सभी एक्टर फ्लो में नज़र आते हैं! फिल्म ओवरआल एक डार्क कॉमेडी जैसी बनी है! फिल्म में थोड़ी सी लम्बाई और रखकर कुछ हद तक स्वप्निल को मरने से बचाव के कुछ अतिरिक्त मौके दिए जा सकते थे! फिलहाल यह एक निरीह सा इंसान है जो बेमौत मारा जाता है! 
 6.5/10
 
 
 यह कहानी उस कहानी से अलग अंत लिए हुए हैं...उसमे लड़का मर जाता है..और इसमें आपने यह चीज़ हटा ली है..कि लड़की के साथ अंत में क्या हुआ होगा! यह वाला अंत ज्यादा अच्छा था बजाय जो बना है!
आपका लड़की को मुख्य किरदार में लेने का आईडिया बिलकुल सही था! ऐसी अजीब बीमारी लड़की पर ज्यादा effective नज़र आती है!
अगर पूरी फिल्म वैसी ही बनती जो इस कहानी का असली फॉर्मेट था..तो बेहतर ही होती! अगले किसी भी प्रोजेक्ट में बजट और कहानी के बीच तालमेल बनाकर ही बनाएं! क्यूंकि इस ग्रुप ने 2 प्रोजेक्ट कर लिए हैं...जिसमे पहले प्रोजेक्ट "बावरी बेरोजगारी" में भी सही कास्टिंग की परेशानी आई थी..और यहाँ भी! इस बड़ी कमी से जल्द निजात पाने की जरूरत है! क्यूंकि हर फिल्म के साथ आगे बेहतर पाने की इच्छा दर्शक रखते हैं! और Theatrix को अगर नाम बनाना है तो कोशिश भी उसी मुताबिक करनी होगी..कि लोग उनको याद रख पाएं!
 
2) - Jholachhap Talent (Mr. Writer) - https://­www.youtube.com/­watch?v=GjtWKkVV-QE

Story by- Mohit Sharma (Trendster,Trendy Baba)
Starring and Directed by Mithilesh Gupta
Camera- Himmat Man Singh & Siddharth Gupta

बहुत बढ़िया वीडियो बनाया है आपकी टीम ने! sound,Camerawork,editing सभी परफेक्ट थे! Mithilesh जी आपका कहानी को कहने का अंदाज़ काफी उम्दा लगा! उसमे गंभीरता और सहजता दोनों ही एक साथ मौजूद थी! video में मौजूद सन्देश बहुत अच्छा भी है और सबसे ज्यादा जरूरी भी! क्यूंकि यह लेखकों के एक बड़े तबके से संबंधित है! आजकल ओरिजिनल काम को करने में जो वक़्त और मेहनत चाहिए होती है वो काफी कम देखने को मिलती है! सभी 2 मिनट की मैगी बनाना चाहते हैं! लेकिन भूल जाते हैं कि कॉपी/पेस्ट काम आपको तुरंत कुछ सफलता दिला सकता है..लेकिन लम्बे वक़्त तक आप उसपर ना तो अपनी आजीविका चला सकते हैं और ना अपने पाठको का भरोसा कायम रख पायेंगे! Suggestion- ऐसे सभी videos की शुरुआत में यह लाइन्स जरूर जोड़ दिया करिए >This is a work of fiction. Names, characters, places and incidents either are products of the author’s imagination or are used fictitiously. Any resemblance to actual events or locales or persons, living or dead, is entirely coincidental. क्यूंकि इस video में जो नाम इस्तेमाल किये गए हैं वो काफी लोगों के लिए जाने पहचाने हो सकते हैं! और बेवज़ह कोई विवाद उठे वो ठीक नहीं! आगे भी ऐसे प्रयास जारी रखें! 


3) - Bawri Berozgari: https://­www.youtube.com/­watch?v=a0pc6Tustrg

 बेरोज़गारी के मुद्दे पर हास्य अंदाज़ में एक अच्छी शार्ट फिल्म बनाई गई है! अपनी Qualification की तुलना में कम अहमियत वाली नौकरी मंजूर ना होना...घर वालो का दबाव...और अपने नौकरीपेशा दोस्तों के बीच पिसता परेशान बेरोज़गार लड़का..यह आज के भारत की एक आम सच्चाई है! फिल्म का दूसरा भाग अविकसित मस्तिष्क से उपजे ऐसे परोपकार पर केन्द्रित है..जिसका कोई फल नहीं निकलेगा...बल्कि सिर्फ कुछ और जिंदगियां बर्बाद कर देगा! उत्साहित मन और सही-गलत के बीच फर्क करना युवाओं के लिए जरूरी है! फिल्म के अंत में दिए गए सन्देश काफी अच्छे और प्रासंगिक थे! खासकर पुणे के अध्यापक के शब्द! इनके बाद जो महिला थी अगर वो भी हिंदी या English में अपनी बात रखती तो फिल्म के लिए ज्यादा बेहतर होता! बेरोज़गारी को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है...इसके पीछे भारत की बढती जनसँख्या एक बड़ी वज़ह है...कहीं ना कहीं पढ़े-लिखे युवाओ की बढती भीड़ और उपलब्ध नौकरियों के अनुपात में एक खाई बनी हुई है! इसकी एक और ख़ास social वज़ह भी है..जिसका हम यहाँ जिक्र नहीं करेंगे...क्यूंकि वो विवाद पैदा करती है! बहरहाल अपनी पसंद की एक नौकरी के लिए युवाओं में कितनी घोर निराशा पनप रही है यह कुछ दिन पहले पुलिस भर्ती में फेल हो जाने पर सिर्फ 21 साल की उम्र में आत्महत्या कर लेने वाली सुनीता नाम की लड़की से पता चलता है! इस फिल्म में दिखाया गया है कि लड़के की माँ थोड़ी कर्कश हैं..लेकिन पिता नहीं...ऐसा असल ज़िन्दगी में भी होता है..जब माता-पिता में से कोई एक जरूर बच्चो के साथ हमेशा खड़ा मिलता है! इसलिए युवाओं से हमारा यही कहना है कि जब तक उम्मीद है...कोशिश करते रहे..अपने परिवार के लिए जिएं! मौके आते रहेंगे! फिल्म के सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया है! सभी को आगे के लिए शुभकामनाएं!

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