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Sunday, 19 May 2013

VEERGATI





कहानी-5/5
आर्टवर्क-4.5/5


आर्डर ऑफ़ बेबल,न्यू वर्ल्ड आर्डर और वर्ल्ड वार पूरी करने के बाद आतंकहर्ता नागराजकी जर्मनी यात्रा का अंतिम पड़ाव वीरगतिआपके समक्ष प्रस्तुत है!
वर्ल्ड वारकी कहानी तक आप सभी जान चुके है, कि विश्व युद्ध अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुका है और अब आतंकवाद को अपनी भीषण प्रतिक्रिया दिखाने के लिए नागराज सिर पर कफ़न बांधकर निकल चुका है! इस विकराल परिस्थितियों में उसके साथ कुछ जोशीले साथी भी कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं!

हमारा मत है कि अब तक किसी भी राज कॉमिक्स सुपर हीरो की कॉमिक्स में ऐसे मौके विरले ही देखने को मिले हैं,जबकि वो अपने दुश्मनों के साथ-साथ अपने संगी-साथियों के अलावा खुद अपने आप से भी इस बात से अनभिज्ञ है..कि वो जो कुछ भी करने वाला है...उसकी अंतिम परिणीती क्या रहेगी? इसका तात्पर्य यह है कि एक महान व्यक्तित्व जब निजी संबंधो और रिश्तो से बहुत ऊपर उठ जाता है...तभी विश्व रक्षक और विश्व प्रिय बन पाता है!

विश्व युद्ध कि जो विभीषिका पूरे संसार पर कहर बनकर टूट चुकी है...उसको अकेले थामने का ज़िम्मा लिए आतंक हर्तानिकलता है-यू एस ए,सऊदी अरब दुबई,रूस,फ्रांस,इटली,मिस्र होते हुए बेबीलोन की धरती पर! इस लम्बे सफ़र में बिना थके और बिना रुके चलता और लड़ता हुआ नागराज कितना भीषण शारीरिक और मानसिक दबाव एवं पीड़ा झेल रहा है..यह आसानी से दिख जाता है!
इस खूनी सफ़र के अंत पर नागराज का सामना है उन्ही से जो उसके अपने प्रिय हैं...यानी इच्छाधारी नाग जाति!
बुरी तरह से टूट चुके और व्यथित नागराज को इस विपरीत परिस्थिति में जब लेखक उसकी माँ ललिता देवी के आँचल की छाँव देते हैं (पेज-52-56) तो यह चार भावपूर्ण पृष्ठ पूरी कॉमिक्स पर भारी साबित हो जाते हैं!

खलनायको की पराजय के प्रसंग आप विशेषांक में पढ़ लीजियेगा!

लेखक ने जिस तरह से कहानी के संवाद लिखे हैं...कहानी के अलग-अलग प्रथक हिस्सों को आपस में एडजस्ट किया है...और पाठको को दुःख के सागर में डुबो दिया है वो अभूतपूर्व है!
(पेज-72-73) विशेष रूप से रेखांकित किये जा सकते हैं...जहाँ मरता हुआ नागराज सौडांगी की गोद में अपनी अंतिम उखड़ती साँसों से विसर्पी को अपने प्रेम के अधूरे शब्द ही दे  पाता है ! नितिन मिश्रा जी ने हर प्रशंसक को भाव विभोर कर दिया !
खैर यह विशेषांक एक्शन और इमोशनल Mixup है! ऊपर आपको पता चल चुका है कि यह कहानी रुलाने में कामयाब रही है..लेकिन हम पाठको को इस बात कि भी 100 % तसल्ली दे रहे हैं..कि यह कहानी जर्मनी में पनपे आतंक के पेड़ को उखाड़ने के अपने मूल कथानक पर भी पूरी तरह खरी उतरी है! वर्ल्ड वार के पूरे होने तक जो कई सवाल अनसुलझे थे..वे सभी वीरगतिमें अच्छी तरह से सुलझ चुके हैं..अब क्यूंकि कहानी पूरी हो चुकी है..तो पाठक टैली करके कहानी में जो समझ नहीं आया..उसको जान सकते हैं...जो इस तरह हैं...

1-      नागराज को जर्मनी बुलाने के लिए शिकाता गा नई के अंत में जो विडियो फुटेज दिखाया गया था..वो न्यू वर्ल्ड आर्डर ने क्यूँ दिखाया?
उत्तर- वीरगति- (पेज-39)
2-      1945 में नागांधर की मौत का नागराज के आर्डर का मसीहा होने से क्या ताल्लुक है?
उत्तर- वीरगति- (पेज-26) और (पेज-59)
3-      न्यू वर्ल्ड आर्डर के अंतिम पेज पर नागराज और लेइत्फ़ेन्दे के बीच क्या बातें हुई?
उत्तर- वीरगति- (पेज-30-40)
4-      पेड्रो की भूमिका का खुलासा किया जाए?
उत्तर- वीरगति- (पेज-33)
5-      लोला के पीछे न्यू वर्ल्ड आर्डर क्यूँ पड़ा है?..लोला आर्डर ऑफ़ बेबल ग्रुप से किस प्रकार जुडी है?..उसके हाथ के बर्थ मार्क की क्या कहानी है? और अब वो कहाँ गायब है?
उत्तर- वीरगति- (पेज-68-70)
6-      1945 में सूथसेयेर के पास 2 बच्चे थे...जिनमे एक लार्ड मोर्बिअस बना...हंटर के पास वाला बच्चा कहाँ गया?
उत्तर- वीरगति- (पेज-69)
7-      परम पिता ने जिस निमरोद को बिजली से भस्म कर दिया..वो किस प्रकार आज भी जीवित है?
उत्तर- वीरगति- (पेज-34-35)
8-      OOB में पेज-56 पर बेहोश नागराज को लोला के घर कौन ले गया था?
उत्तर- वीरगति- (पेज-33)
9-      OOB में सबसे पहले हंटर को नागराज को मारने का आदेश किसने दिया था?
उत्तर- वीरगति- (पेज-34)
10-    OOB में पेज-34 पर नागराज को मिले मोबाइल में क्या था?
उत्तर- वीरगति- (पेज-33)
वीरगति ने हमें पूरे अंक देने पर मजबूर किया है..क्यूंकि यह उम्मीद से कहीं ज्यादा बेहतरीन साबित हुई! जितने प्रश्न प्रस्तावित  थे..उससे कहीं ज्यादा उत्तर लेखक से दिए हैं!  


हेमंत कुमार जी अब पूरी तरह से नागराज पर महारत ले चुके हैं..जिसका सुबूत वीरगति में भी मिलता है...एक अच्छे पेंसिलर की यही खूबी होती है..कि वो हर परिस्थिति को बराबर तरह से संभाल सकता हो...हेमंत जी ने जहाँ विश्व युद्ध के शानदार दृश्यों को बनाया है...वही नागराज के अंतिम सफ़र के सभी side characters के साथ emotional चेहरों के हाव भाव पर भी 100% उम्दा काम किया है...ललिता देवी वाले चित्र तो यादगार हैं...इस सीरीज कि सफलता में हेमंत जी का बराबर का योगदान है!
इंकिंग के स्तर से आश्वस्त रहा जा सकता है कि ईश्वर जी बहुत मेहनती आर्टिस्ट हैं...उनका काम प्रशंसनीय है!
राज कॉमिक्स का धन्यवाद कि एक बात फिर से कलर इफेक्ट्स की वापसी कॉमिक्स में हुई है...वीरगति में बहुत परा शक्तियों और युद्ध के दृश्य हैं...उनको प्रभावशाली बनाने में शादाब जी की मेहनत का भी हाथ रहा है!
मंदार गंगेले जी ने शब्दांकन में हर मुख्य पात्र के अनुसार अलग बदलाव किये हैं...जहाँ डायलॉग्स की इंटेंसिटी के हिसाब से Bubbles में भी changes हैं...निमरोद के लिए काले bubbles का उपयोग करना एक अच्छा step था!

सीरीज और समीक्षा दोनों पूरी हुई! यह कॉमिक्स एक बार फिर साबित करती है..कि अंत भला तो सब भला !
आर्डर ऑफ़ बेबल सीरीज पिछले कुछ सालों में आई सबसे बेहतरीन सीरीज साबित हुई! नितिन मिश्रा जी बधाई के पात्र हैं!
इस पूरी सीरीज को खरीदकर जरूर पढ़ें!

SHUBHASYA SHEEGHRAM




कहानी-3/5
आर्टवर्क-3/5

शुभस्य शीघ्रम..इसका अर्थ है... शुभ काम करने में देर ना करें
प्रथम भाग रावण डोगापढ़ चुके पाठक जानते हैं..कि मुंबई में रावण के उप नाम से कुख्यात  हो चुके डोगा को अब तलाश है उस असली शख्स की..जो अवैध फाइट क्लब्स को संचालित करता है और अभी तक उसकी नजरो में आकर भी बचा हुआ है!
इस पूरी धमा चौकड़ी में धनिया चाचा की जान अस्पताल में ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रही है! पिछली कुछ सीरीज में सूरज के प्रिय जनों पर लगातार हुए हमलो के बाद हुई अस्पताल यात्रा के बाद डोगा को फिर एक बार जुनूनी मौका मिलता है..कि वो खलनायक की सरगर्मी से तलाश करे!
कहानी के आधे पन्ने रावण डोगामें दिखाए जा चुके डोगा के हाथो हुए कत्लेआमो को दुबारा रिपीट/रीप्ले करने में चले गए हैं...यह जोड़ते हुए कि डोगा ने किसको क्यूँ और कैसे मारा!
कहानी साधारण राह पर शुरू होती है..और एक समान गति से चलती जाती है...इसमें परिवर्तन सिर्फ अंत में तब आता है जब सारी मिस्ट्री की हिस्ट्री खुलती है और कहानी तभी समाप्त हो जाती है!
कहानी का मजबूत पक्ष डायलॉग्स हैं..जो चिर परिचित डोगा शैली के हैं..यानी भारी भरकम धमकियाँ देकर हड़काना और रक्तचाप को ऊंचा करने वाले...जिनको लेखको ने बड़ी मेहनत से लिखा है..और जिनके कट्टर डोगा प्रेमियों को पसंद आने की पूरी सम्भावना है!
धनिया चाचा शुरू में ही स्टोरी से आउट हो जाते हैं..और दूसरा मुख्य पात्र रॉकी सिर्फ अंत के 2-3 पेजों में नज़र आता है! इसके बाद रावण डोगाका स्वाद ले चुके पाठक आसानी से जान जायेंगे कि अब बचा कौन जो डोगा के हाथ पिटेगा? फिक्र की जरूरत नहीं..अगर नहीं पता लगा तो यह कहानी आप जैसे सुधी पाठको को ध्यान में रखकर ही लिखी गई है..इसे पढ़कर जरूर जानियेगा!



प्रथम भाग के औसत चित्रांकन की तुलना में शुभस्य शीघ्रम को  धीरज वर्मा जी ने मजबूती दी है....गौर से देखनी वाली बात यहाँ भी है..कि पूरी कॉमिक्स को एक समान नहीं माना जा सकता..आर्टवर्क में जगह जगह पर ऊँच नीच होती जाती  है...एक बड़ी कमी शरीरों के Proportions में दिखती है..जहाँ हाथ-पैर छोटे लगते हैं जबकि बाकी शरीर लम्बा! यह कमी हर उस सीन में है जहाँ डोगा पूरे शरीर में दिखाया गया है!
निसंदेह कॉमिक्स में फाइटिंग के जबरदस्त सीन बनाये गए हैं..लेकिन ना डोगा और ना सूरज का चेहरा अच्छा बना है!..पेंसिल के Dull Strokes कलरिंग इफेक्ट्स के बाद भी उभर कर नज़र आते हैं...यह कॉमिक्स एक और उदाहरण देती है..कि धीरज जी की पेंसिल बिना इंकिंग के हमेशा अधूरी ही रहेगी..कलरिंग उसको सहायता नहीं दे पा रही! भक्त रंजन जी ने इफेक्ट्स शानदार दिए हैं..लेकिन नॉन-इंक कॉमिक्स की कमियां नहीं छुपा सके.
पूरी मेहनत से किये गए आर्टवर्क का नतीजा औसत रहा हैधीरज जी का नाम होने से उम्मीदें बहुत बढ़ जाती हैं...उनका बेस्ट वर्क हर फैन की आँखों में बसा हुआ है! और हमें विश्वास है कि बहुत जल्द वो वापस पुरानी रंगत में लौट आयेंगे!
50 रूपए में बनी 75 पेज की एक चित्रकार द्वारा बनाई गई हिट सिंगल कॉमिक्स 30+40 =70 रुपये और 46+47=93 पेज के 2 औसत भाग से ज्यादा मनोरंजन देने वाली सफल कहानी होती! यहाँ 18 पेज ज्यादा लग जरूर रहे हैं...लेकिन वह आसानी से तब कवर किये जा सकते हैं..जब कहानी के 2 भाग में होने के चलते एक ही दृश्य को 2 बार बनाना ना पड़े..जैसे ऊपर हमने बताया हुआ है..
राज कॉमिक्स से विनम्र निवेदन है कि इस 2 भाग कि सीरीज से यह सन्देश लें कि..ऐसी कहानियां एक ही भाग में पूरी कर दी जाएँ तो ज्यादा मनोरंजक और सफल बनेंगी! कॉमिक्स ऐसी हो...जिसके आर्टवर्क और कहानी पर पैसा खर्च करने के बाद यह अलफ़ाज़ खुद निकल जाए..कि पैसा वसूल करवा दिया कॉमिक्स ने!
लेखको से भी विनती है..कि जब आज के समय में महीनो-सालो के इंतज़ार के बाद एक हीरो की कोई नई  कॉमिक्स मिलती है..तो उसका सफल होना तभी माना जाता है जब वो बार-बार पढने का मन बना दे...अगर सिर्फ एक बार पढ़कर फिर सालो तक उसको दुबारा खोलने का दिल नहीं करे..ऐसे में लेखको का दायित्व है कि वो दोगुने जोश और मेहनत से एक नई शुरुआत करके पाठक का दिल जीतें !

PREM PARIKSHA





कहानी-4/5
आर्टवर्क4/5


प्रेम यानी इश्क वाला Love,
मोहब्बत, माहिया, प्रीत, खुदा की इबादत,.....हर प्रेमी को अपने प्यार के लिए एक पर्यायवाची शब्द खुद ही मिल जाता है!
ये कहानी है प्रेम की परीक्षाओ की.... पूरे विशालगढ में सिर्फ एक ही ऐसा मुख्य प्रेमी जोड़ा है...जी हाँ...विक्रम सिंह और रानी स्वर्णलता का! और चूंकि अपने बांकेलाल जी आज तक वेल्ले हैं....राज कॉमिक्स को उनके लिए भी कुछ सोचना चाहिए...इस बार अपना बोदीवाला ..पति-पत्नी के बीच फिर से रचता है एक नई चाल..और बांके को साथ लेकर विक्रम सिंह को सामना करने जाना पड़ता है..अपने सच्चे प्रेम को साबित करने खतरनाक परीक्षाओ की कड़ी से..जिसका रास्ता है एक तिलिस्मी गुफा में.. जो है प्रेमिओं की हत्यारी भी...
1-क्या बांके इसबार सफल हो पाया?
2-क्या विक्रम अपने प्रेम को सच्चा साबित कर पाए?
3-इस तिलिस्मी गुफा का क्या रहस्य था ?
इसको जानने के लिए प्रेम की अदभुत परीक्षाओ का हँसते ठहाके लगाते हुए रसा स्वादन करिए इस विशेषांक में !

इस बार 43 पृष्ठ की इस किताब का मुख्य आकर्षण है..संवादों (डायलॉग्स) की बहुतायत होना! ज्यादा संवाद होने की वज़ह से कहानी और हास्य के बीच में एक बैलेंस पूरी तरह कायम रहा है..इससे फायदा यह रहा है..की जहाँ कहानी कि रोचकता बनी रहती है..वहीँ हंसने के भरपूर मौके भी पाठक प्राप्त कर लेते हैं!
संवाद पूरी तरह से भारतीय शैली में लिखे गए है...अंग्रेजी का मिश्रण नहीं हुआ है...जो सराहनीय है!
डायलॉग्स और वस्तुओ,कलाओं के नामो में लेखको ने कोबी-भेड़िया की अमर-प्रेम सीरीजसे कई यादगार नामो का चुनाव किया है!
एक जरूरी बात जो फिर से सही नहीं लगी वो है..पृष्ठ-14 पर बांकेविक्रम के बीच हुआ मोबाइल फ़ोन संवाद! यह चीज़ें छोटी लगती हैं..लेकिन कहानी के यथार्थ के धरातल पर होने में प्रश्नचिन्ह लगा देती हैं! इन त्रुटियों को ठीक करा जाना आवश्यक है!



सुशांत पांडा जी ने फिर से कातिलाना काम दिया है...सुन्दरता से ओत-प्रोत एवं पूरी तरह कहानी के भावार्थो को दर्शाता भाव पूर्ण चित्रण हुआ है! तिलिस्मी गुफा के अन्दर दो देवियों पर उनका विशेष प्रयास रेखांकित करने लायक है! इसमें संदेह नहीं..सुशांत जी के कारण ही बांकेलाल सीरीज अभी भी पुराने रंग रूप में मिलती है!
बसंत जी का रंग संयोजन भी उम्दा है!
राज कॉमिक्स से भी निवेदन है कि अच्छे लेखको की प्रेम पर आधारित कहानियां ज्यादा से ज्यादा निकालें!
अगर आपके दिल में भी किसी ख़ास के लिए प्रेम भावनाओं का सागर हिलोरें लेता है...तो प्रेम परीक्षाआपको जरूर पसंद आएगी!