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Sunday 19 May 2013

SHUBHASYA SHEEGHRAM




कहानी-3/5
आर्टवर्क-3/5

शुभस्य शीघ्रम..इसका अर्थ है... शुभ काम करने में देर ना करें
प्रथम भाग रावण डोगापढ़ चुके पाठक जानते हैं..कि मुंबई में रावण के उप नाम से कुख्यात  हो चुके डोगा को अब तलाश है उस असली शख्स की..जो अवैध फाइट क्लब्स को संचालित करता है और अभी तक उसकी नजरो में आकर भी बचा हुआ है!
इस पूरी धमा चौकड़ी में धनिया चाचा की जान अस्पताल में ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रही है! पिछली कुछ सीरीज में सूरज के प्रिय जनों पर लगातार हुए हमलो के बाद हुई अस्पताल यात्रा के बाद डोगा को फिर एक बार जुनूनी मौका मिलता है..कि वो खलनायक की सरगर्मी से तलाश करे!
कहानी के आधे पन्ने रावण डोगामें दिखाए जा चुके डोगा के हाथो हुए कत्लेआमो को दुबारा रिपीट/रीप्ले करने में चले गए हैं...यह जोड़ते हुए कि डोगा ने किसको क्यूँ और कैसे मारा!
कहानी साधारण राह पर शुरू होती है..और एक समान गति से चलती जाती है...इसमें परिवर्तन सिर्फ अंत में तब आता है जब सारी मिस्ट्री की हिस्ट्री खुलती है और कहानी तभी समाप्त हो जाती है!
कहानी का मजबूत पक्ष डायलॉग्स हैं..जो चिर परिचित डोगा शैली के हैं..यानी भारी भरकम धमकियाँ देकर हड़काना और रक्तचाप को ऊंचा करने वाले...जिनको लेखको ने बड़ी मेहनत से लिखा है..और जिनके कट्टर डोगा प्रेमियों को पसंद आने की पूरी सम्भावना है!
धनिया चाचा शुरू में ही स्टोरी से आउट हो जाते हैं..और दूसरा मुख्य पात्र रॉकी सिर्फ अंत के 2-3 पेजों में नज़र आता है! इसके बाद रावण डोगाका स्वाद ले चुके पाठक आसानी से जान जायेंगे कि अब बचा कौन जो डोगा के हाथ पिटेगा? फिक्र की जरूरत नहीं..अगर नहीं पता लगा तो यह कहानी आप जैसे सुधी पाठको को ध्यान में रखकर ही लिखी गई है..इसे पढ़कर जरूर जानियेगा!



प्रथम भाग के औसत चित्रांकन की तुलना में शुभस्य शीघ्रम को  धीरज वर्मा जी ने मजबूती दी है....गौर से देखनी वाली बात यहाँ भी है..कि पूरी कॉमिक्स को एक समान नहीं माना जा सकता..आर्टवर्क में जगह जगह पर ऊँच नीच होती जाती  है...एक बड़ी कमी शरीरों के Proportions में दिखती है..जहाँ हाथ-पैर छोटे लगते हैं जबकि बाकी शरीर लम्बा! यह कमी हर उस सीन में है जहाँ डोगा पूरे शरीर में दिखाया गया है!
निसंदेह कॉमिक्स में फाइटिंग के जबरदस्त सीन बनाये गए हैं..लेकिन ना डोगा और ना सूरज का चेहरा अच्छा बना है!..पेंसिल के Dull Strokes कलरिंग इफेक्ट्स के बाद भी उभर कर नज़र आते हैं...यह कॉमिक्स एक और उदाहरण देती है..कि धीरज जी की पेंसिल बिना इंकिंग के हमेशा अधूरी ही रहेगी..कलरिंग उसको सहायता नहीं दे पा रही! भक्त रंजन जी ने इफेक्ट्स शानदार दिए हैं..लेकिन नॉन-इंक कॉमिक्स की कमियां नहीं छुपा सके.
पूरी मेहनत से किये गए आर्टवर्क का नतीजा औसत रहा हैधीरज जी का नाम होने से उम्मीदें बहुत बढ़ जाती हैं...उनका बेस्ट वर्क हर फैन की आँखों में बसा हुआ है! और हमें विश्वास है कि बहुत जल्द वो वापस पुरानी रंगत में लौट आयेंगे!
50 रूपए में बनी 75 पेज की एक चित्रकार द्वारा बनाई गई हिट सिंगल कॉमिक्स 30+40 =70 रुपये और 46+47=93 पेज के 2 औसत भाग से ज्यादा मनोरंजन देने वाली सफल कहानी होती! यहाँ 18 पेज ज्यादा लग जरूर रहे हैं...लेकिन वह आसानी से तब कवर किये जा सकते हैं..जब कहानी के 2 भाग में होने के चलते एक ही दृश्य को 2 बार बनाना ना पड़े..जैसे ऊपर हमने बताया हुआ है..
राज कॉमिक्स से विनम्र निवेदन है कि इस 2 भाग कि सीरीज से यह सन्देश लें कि..ऐसी कहानियां एक ही भाग में पूरी कर दी जाएँ तो ज्यादा मनोरंजक और सफल बनेंगी! कॉमिक्स ऐसी हो...जिसके आर्टवर्क और कहानी पर पैसा खर्च करने के बाद यह अलफ़ाज़ खुद निकल जाए..कि पैसा वसूल करवा दिया कॉमिक्स ने!
लेखको से भी विनती है..कि जब आज के समय में महीनो-सालो के इंतज़ार के बाद एक हीरो की कोई नई  कॉमिक्स मिलती है..तो उसका सफल होना तभी माना जाता है जब वो बार-बार पढने का मन बना दे...अगर सिर्फ एक बार पढ़कर फिर सालो तक उसको दुबारा खोलने का दिल नहीं करे..ऐसे में लेखको का दायित्व है कि वो दोगुने जोश और मेहनत से एक नई शुरुआत करके पाठक का दिल जीतें !

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