Pages

Tuesday, 1 October 2013

NEGATIVES

Review- “निगेटिव्स”

राज कॉमिक्स ने आखिरकार अपने 26 वर्ष लम्बे सफ़र की 160 पेजों की सबसे लम्बी कॉमिक्स “निगेटिव्स” पाठको के समक्ष प्रस्तुत कर दी है! अपने प्रथम विज्ञापन(जो अंत तक प्रथम ही रहा) के छपने के बाद से ही हर राज कॉमिक्स प्रेमी इसे अपने कलेक्शन की शोभा बनाने के लिए बेसब्री से इंतज़ार करता रहा है! “निगेटिव्स” वैसे तो किसी भी दूसरी मल्टी स्टारर कॉमिक जैसी ही लग सकती है,लेकिन सिर्फ पन्नों की संख्या की वज़ह से इससे आसमान छूती उम्मीदें पैदा हो गई, उम्मीदों का बोझ जरूर राज कॉमिक्स की तरफ भी बढ़ा और वो उम्मीदें कितने लोगों के लिए सफल बनी, कितनो के लिए नहीं..यह प्रश्न प्रासंगिक हो भी सकता है और नहीं भी!
इस कॉमिक्स की समीक्षा लिखना भी बहुत टेढ़ी खीर साबित हो गई...एक अकेली इतनी बड़ी कॉमिक्स जो कि अनुपम जी के हाथ से बनी है, यह अनुभव हमारे लिए भी पहला ही रहा! तो चलिए “निगेटिव्स” पर नज़र डालते हैं कहानी से...

कहानी-

अनुपम जी एक महान लेखक हैं,इसमें कोई शक नहीं है! उन्होंने पाठको को एक से बढ़कर एक कालजयी रचनाओं से मनोरंजन प्रदान किया है! मल्टी स्टारर लिखने में अभी भी इंडस्ट्री में उनसे ज्यादा सक्षम लेखक फिलहाल कोई दूसरा नहीं है! लेकिन कायदे से देखा जाए तो “निगेटिव्स” एक “शुद्ध मल्टी स्टारर” नहीं है! 160 पेजों की इस कॉमिक्स का सार इतना सा है कि इसमें सिर्फ 5 हीरो हैं (नागराज,ध्रुव,डोगा,तिरंगा,परमाणु) 2 मुख्य सहायक लड़कियां (चंडिका,लोरी) इक्का-दुक्का सहायक पात्र और CF के कुछ कैडेट्स! जमीन के नीचे एक तलक्षेत्र और अंतरिक्ष में 5 सैटेलाइट्स! यही सब आपस में गुथम गुत्था होकर पेज भरते रहे! अगर हम कहें कि 4 लाइन की कहानी में पेज दर पेज एक्शन डालते हुए एक महा कॉमिक्स बन गयी है..यही इस कॉमिक्स की मोटाई का राज़ है...तो गलत नहीं रहेगा! इस कॉमिक्स को जितने पृष्ठ और हाइप मिली, इसके अन्दर उतना करिश्मा नहीं मिल पाया! इसकी वज़ह तलाशने के लिए शुरुआत पात्रो के रोल्स से करना सही होगा!

तिरंगा-
सबसे पहले तिरंगा का नाम चौंका गया होगा,लेकिन यह “सुखद” आश्चर्य रहा है कि “निगेटिव्स” की कहानी के हर बिंदु पर तिरंगा की छाप जरूर बनी है! लेकिन कहानी में एक बेहतर रोल मिलने के बाद भी कवर पर उसका नाम लिखा होने और प्रथम पन्ने पर जगह मिलने की गुंजाइश बनती थी! शुरुआत में लोरी के साथ टक्कर हो या डोगा के साथ कहानी के अंतिम क्षणों में प्रभावशाली ढंग से स्कीम को पूरा करना,तिरंगा के गुम हो चुके किरदार को इस कॉमिक्स से काफी फायदा मिलेगा!

नागराज-
राज कॉमिक्स के सबसे शक्तिशाली हीरो नागराज “निगेटिव्स” में बहुत अलग तरह से प्रस्तुत हुए हैं! इनकी एंट्री कहानी के 61वे पन्ने पर एक दमदार संवाद के साथ होती है! लेकिन जल्द ही यह कहानी में जगह-जगह खलनायक बने नज़र आने लगते हैं! इनकी अपार शक्तियां अब कहानी के ऊपर प्रभाव डालने लगी हैं.क्यूंकि खलनायक और इनके बीच किसी सीधी जंग होने पर कोई रोमांच नहीं बनता !अब यह बात हर पढने वाले को पहले से पता है कि असीमित शक्तियों वाले शरीर के अन्दर से कोई ना कोई नया अजूबा प्रकट होकर नागराज को जिता देगा! इसलिए सिर्फ इंतज़ार रहता है कि महानगर के नए नागराज का उबाऊ और Unrealistic एक्शन जल्दी पूरा हो जिससे नागराज अपनी पीठ खुद ठोक सके! और कहानी का ट्रैक बदले!
नागराज के इस नए रूप की वज़ह से अब खलनायको के पास करने को कुछ बचा नहीं है! वो आते हैं और बुरी तरह से पिटने के अलावा कुछ कर नहीं सकते...यह एक बड़ा कारण बनता जा रहा है कि सालो पहले बने खलनायकों की तुलना में आज बनाये जा रहे नए खलनायक उतने पोपुलर नहीं हो पाते! क्यूंकि जितनी मेहनत से वो कुछ नया सोचते हैं..उन्हें हराने में उतनी मेहनत नागराज को नहीं लग रही क्यूंकि वो उन्हें आसानी से हरा देता है!कॉमिक दर कॉमिक यही होता आ रहा है! उदाहरण के लिए अंधमान जैसा ताकतवर पात्र जब नागराज पर हावी हो चुका था, तभी नागराज ने सबको आश्चर्य में डालते हुए यामिनी को अंपने शरीर में जज्ब कर लिया!
यामिनी जो सिर्फ काली ऊर्जा भरी एक इंसान थी,आज तक नागराज सिर्फ इच्छाधारी सर्पो को ही अपने शरीर में स्थान दे पाने की शक्ति रखता था..पर अब इंसान भी इस फेहरिस्त में जुड़ चुके हैं! हम मानते हैं कि यह बात छोटी सी लग रही है..लेकिन इसका दूरगामी प्रभाव यह पड़ेगा कि नागराज के पास अब हमेशा एक तरीका रहेगा कि “इच्छाधारी सर्पो के अलावा” भी वो किसी भी दूसरे शक्तिशाली इंसान के साथ जुड़ सकता है..और अपनी शक्ति बढ़ा सकता है! फलस्वरूप उसके जीतने के लिए एक और शक्ति दे दी गयी है!
जब खलनायक को मौका ही नहीं मिलेगा कुछ हासिल करने के लिए तो हर कहानी में उसकी उपस्थिति का महत्व नगण्य बन जाएगा!
एक समय था कि राज कॉमिक्स द्वारा इसी चीज़ को कम करने के लिए नागराज के पास से उसकी इच्छाधारी शक्ति को तिलांजलि दे दी गयी थी! जो उसकी अपनी असली शक्ति थी! आज नागराज एक दुर्घटना में मिली शक्तियों के सहारे लगभग ईश्वर बन चुका है! बहरहाल अब यह शक्तियां कब तक रहेंगी,यह सोचने का वक़्त आ गया है और उन्हें हटाने या कमी लाने का भी!

परमाणु-
पेज-97 परमाणु की एंट्री कराता है! शुरू में तेवर ऐसे थे कि यह अकेले दम पर सारी बाजियां पलटकर रख देंगे..पाठक को उत्सुकता बनती है कि शायद परमाणु कुछ जलवा बिखेरने वाला है...लेकिन जल्द ही यह तिरंगा से पिटे,फिर ध्रुव और चंडिका से पिटे, जब भी कुछ करने के लिए बाकी हीरोज के पीछे से आगे निकले जैसे (पेज-124) हाथ मलते रहे! पॉवर लाइन तोड़ डाली(पेज-130) जो काम ना आई, और अंत में किसी तरह मरते मरते बचे(कैसे बचे यह दिखाया नहीं गया)! अब हास्यस्पद बात यह कि पेज-155 पर लोरी सबको बताती है कि पेज-152 पर बुरी तरह घायल,शरीर से धुंआ निकलते परमाणु का इलाज़ वेदाचार्य कर रहे हैं, यह वो वेदाचार्य थे,जो पेज-151 पर खुद अपना इलाज़ करने के हालत में नहीं रहे थे! लेकिन सिर्फ 3-4 मिनट बाद ही कॉमिक के अंतिम पन्ने पर परमाणु एक दम तंदुरुस्त उड़ता नज़र आ जाता है! कहानी में इन कमियों पर ध्यान दिया जाना चाहिए,जो चीज़ों को विरोधाभासी बनाती हैं!

डोगा-
डोगा की एंट्री कहानी के पेज-35 पर होती हैं! सुखद बात लगती है कि डोगा ने अन्य हीरोज़ की तुलना में शांत और एकाग्रचित रहते हुए अपने फ़र्ज़ को यथासंभव निभाया है! डोगा के बारे में पाठको की राय रहती है कि वो बोलता ज्यादा है और दिमाग से कम काम लेता है! परन्तु जहाँ अन्य हीरो स्थिति के मुताबिक खुद को ढाल नहीं पा रहे थे,वहीँ डोगा ने हर बार सही वक़्त पर सही निर्णय लेकर वाह वाही लूटी है! हमें कहते जरा शंका नहीं है,कि रोल चाहे बड़ा हो या छोटा,उसका सही इस्तेमाल इस पूरी कॉमिक्स में सिर्फ डोगा का ही हुआ है,बाकी सभी के रोल में कुछ ना कुछ झोल रह गए!

सुपर कमांडो ध्रुव-
अनुपम जी की कहानी में ध्रुव 70 पेजों तक नज़र ना आये,यह पहली बार हुआ है! क्यूंकि ध्रुव तब आता है,जब नागराज,डोगा,तिरंगा “निगेटिव्स” के हाथो कठपुतली बन चुके थे! लेकिन जैसे ही ध्रुव कहानी में आता है,अंधियारी कहानी में रौशनी आ जाती है तथा सुपर हीरोज के जीतने की संभावनाएं वापस जिंदा हो जाती हैं! कहानी का अंतिम हथोडा ध्रुव के हाथो से ही चलवाया गया है!(यह अलग बात है कि उस हथोड़े के लोहे में जंग लगे होने की संभावना भी रख दी गई)
ध्रुव के किरदार की महत्ता क्या है,यह इस कॉमिक्स को पढ़कर हर कोई जान लेगा,कि कोई भी मल्टी कॉमिक उसके बिना क्यूँ नहीं लिखी जा सकती!

लोरी-
लोरी की वज़ह से ही कहानी शुरू होती है!तिरंगा से शुरू में एक फाइट सीक्वेंस के बाद उसका रोल थोडा ही है..जो मार्ग दर्शक की तरह बीच बीच में आता रहता है!

चंडिका-
चंडिका को कहानी में एक लम्बा रोल मिला है! ध्रुव के साथ लगे रहकर मदद करती रही! कहानी में कुछ हलके फुल्के मजाकिया संवाद उसके हिस्से आये हैं!
परन्तु चंडिका को हर बार कहानी में जोड़ने के लिए वही घिसा पिटा तरीका कि सैटेलाइट्स को बनाने में श्वेता का भी हाथ था! एक हमला और श्वेता वापस राजनगर जाने वाले विमान में! क्यूंकि अब यही लगने लगा है कि राजनगर में जब भी कुछ होगा चंडिका ऐसे ही जोड़ दी जायेगी!
तीसरी बार यह आईडिया इस्तेमाल हुआ है! राज नगर में अब ऐसा लगता है कोई और साइड करैक्टर इस लायक बचा ही नहीं या इस लायक ही नहीं रहा कि उसको कॉमिक्स में जगह दी जा सके! कृपया इस तरीके को आगे की कहानियों में जबरदस्ती बार-बार उपयोग ना किया जाए, क्यूंकि आगे किसी कहानी में अगर चौथी बार यही चीज़ नज़र आई..फिर तो समझा जा सकता है,कि यह अनजाने में नहीं हो रहा! हमारा सुझाव सिर्फ इतना है,कि भूले-बिसरे किरदारों के लिए भी कुछ सोचा जाता रहे और लेखक दूसरे आप्शन पर भी विचार करें!

“निगेटिव्स”-
निगेटिव्स की प्रजाति इतनी लम्बी कहानी में कहीं पर भी अपनी एक वृहद छाप नहीं छोड़ सकी! जिस तरह की भयंकरता,आक्रमण की शक्ति,यामिनी में पृथ्वी जीतने की इच्छाशक्ति दिखनी चाहिए थी,वो नदारद थी! सबकुछ इस तरह चल रहा था जैसे अंत क्या होगा सबको पहले से पता है! वहीँ इतनी सारी कॉमिक्स में साथ आ चुके ब्रह्माण्ड रक्षक होने का दावा करते सुपर हीरोज के बीच भी सामंजस्य और स्थिति को लेकर गंभीरता भापने की समझ नज़र नहीं आयीं! जिससे कहानी की छवि पर नकारात्मक असर पड़ता रहा!

# कहानी के अंतर्विरोध #
कई जगह कहानी में स्थिति और हीरोज के काम करने के तरीके देखकर ताज्जुब होता है कि क्या सच में यह हीरो इससे पहले हज़ारो लड़ाइयाँ लड़ चुके हैं..फिर भी ऐसी बातें हो रही है? इसका उदाहरण देना भी जरूरी है-
1-यामिनी नागराज को बताती है कि पृथ्वी के अन्दर से इसका हर भाग आपस में जुडा हुआ है! (पेज-89)वो यह भी बताती है कि निगेटिव्स सांस नहीं लेते हैं! और तलक्षेत्र में नाम मात्र की आक्सीजन है! इसके बाद भी नागराज (पेज-128) पर बोलता नज़र आ रहा है कि एक मिनट से कम समय में वो पूरे तलक्षेत्र को विष फुंकार से भरकर सबको खत्म कर देगा! और इसका डेमो उसने कुछ समय दिखाया भी,लेकिन इतनी फुंकार को फूंकने के लिए वो हवा कहाँ से ला रहा था?यह अनुत्तरित सवाल छोड़ दिया गया!

2-तिरंगा को “वकील भारत” के रूप में गुजरात सरकार, दिल्ली की सरकार से परामर्श करके कांडा के समुद्री इलाके के पास के शहर में पकडे गए एक गार्ड को कानूनी सहायता देने के लिए भेजती है!(क्यूंकि यह सब दिल्ली में नहीं हो सकता,क्यूंकि गार्ड भागकर गुजरात से दिल्ली तक का सफ़र तय करने से रहा)!
यह सबकुछ सिर्फ कुछ घंटे में दोनों सरकारें तय करती हैं, कि देश के नामी गिरामी वकीलों की जगह ”भारत” जैसे एक नए वकील को इस अति गोपनीय काम के लिए चुना जाता है! उम्मीद है “भारत” विमान से ही गुजरात आया होगा! इन् सभी कामो को पूरा होने में कुछ वक़्त लगता है..जो सिर्फ कुछ घंटे का तो नहीं हो सकता! बहरहाल कहानी में यही दिखाया गया है, कि यह सब कुछ घंटे में ही हुआ है...क्यूंकि “वकील भारत” लोरी के लाये कानूनी ऑर्डर्स को यही बोलकर खारिज कर देता है,कि ऐसे ऑर्डर्स इतने कम समय में मिलना नामुमकिन है! इन दोनों विरोधाभासी बातों में निष्कर्ष यह बनता है कि जो चीज़ लोरी के लिए नामुमकिन थी वो भारत के लिए 100 % मुमकिन थी!
एक और हास्यास्पद चीज़ कि जो गार्ड अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मामले की सुरक्षा में तैनात है,पुलिस 2 दिन उसका नाम तक नहीं जान पाई,जबकि शिप लगभग तुरंत वापस पोर्ट पर आ गया था! इसके लिए शिप पर पूछताछ और खुद तफ्तीश करने से ज्यादा उपयुक्त पुलिस को बाहर से एक नए वकील की सेवा लेना लगा!
3-पेज-15 पर तिरंगा के ऊपर लोरी खंड-किरणों का वार करती है! तिरंगा ने अपने न्याय स्तम्भ से तंत्र वार को सोखा और वापस लोरी पर कर डाला! इसकी वज़ह बताई गयी,कि “यह 100 करोड़ भारतवासियों के विश्वास की शक्ति थी!”
हम भी मानते हैं,विश्वास की शक्ति में बहुत ताकत होती है लेकिन वो तब होती है,जब 100 करोड़ लोग उसी समय किसी चीज़ के लिए प्रार्थना कर रहे हो! ना तो ऐसा कहीं हुआ,ना होगा! यहाँ तिरंगा लोरी से भिड़ा हुआ है यह 100 करोड़ लोग जानते ही कहाँ हैं कि वो दुआ करके शक्ति दे दें?? अब इस देश में 100 करोड़ लोग तिरंगा के नाम की माला सुबह शाम कब से जपने लगे हैं,कि तिरंगा को पहले से पता था कि वो लोरी को हरा सकता है?? और अगर यह शक्ति इतनी आसानी से तिरंगा जैसे आम आदमी के पास है,जो तंत्र वार को सोख कर वापस पलटा रही है,तो पाठको को ध्यान रखना चाहिए कि न्याय स्तम्भ उस भेड़िया-मुख कमर पट्टिका के बराबर काम करता है,जो एक ईश्वरीय वरदान है!
हर जगह यही दिखाया जाता है कि विज्ञान, तंत्र की शक्ति को नहीं मानता है! परन्तु अगर तिरंगा जैसे आम नागरिक ने किसी खास विज्ञान के द्वारा अपने न्याय दण्ड को ईश्वरीय वरदान के समकक्ष बना लिया है,तो यह अभूतपूर्व चीज़ है! जो अब इस प्रसंग में दिखा देने के बाद राज कॉमिक्स को किसी नए विशेषांक में पाठको के सामने प्रस्तुत करनी की पड़ेगी!
लोरी को तिरंगा से भागना तो था ही,लेकिन इसके लिए लेखक ने एक हास्यास्पद स्थिती पैदा कर दी! ऐसी बातों से ख़ास तौर पर तिरंगा जैसे रियल हीरो के सन्दर्भ में बचा जाना चाहिए,जो अति-शक्तियां नहीं रखता है! क्यूंकि अगर तिरंगा जैसा आम पात्र भी तंत्र शक्तियों को इतनी आसानी से ठेंगा दिखाता नज़र आता रहेगा,तो शक्तिशाली पात्र तो शायद तंत्र को हँसते हँसते झेल लिया करेंगे!

4-विज्ञान में एक टर्म आता है “Adaptation” या अनुकूलन
लेखक ने तलक्षेत्र की जनसँख्या को इसी टर्म से परिभाषित किया है, कि अनुकूलन के फलस्वरूप सदियों के लम्बे सफ़र को तय करके निगेटिव्स की प्रजाति अस्तित्व में आई थी! इसमें जन्मजात निगेटिव्स भी हैं,जैसे यामिनी जो वहां के राजा की बेटी थी! यानी निगेटिव्स का बनना वंशानुगत लक्षणों पर भी आधारित चीज़ है! अनुकूलन कहता है कि एक बार कोई प्रजाति अपने मूल विकास में बदलाव के दौर से गुजर कर बदल गई,तो अपनी मूल अवस्था में दोबारा एक दम से नहीं आ सकती! यह आसानी से समझने वाली चीज़ है कि जो बदलाव सदियों में आये वो कुछ मिनट में U-Turn नहीं ले सकते!
लेकिन अचानक से कहानी के अंत में निगेटिव्स को एक बैक्टीरिया का किया धरा बताकर उसको एंटीबायोटिक्स के द्वारा कुछ मिनट में ठीक करवा देना लेखक की कलम के अलावा कहीं से मुमकिन नहीं है!
इसके पीछे भी कई कारण हैं...
@एंटीबायोटिक्स किसी भी बैक्टीरिया पर तभी असर कर पाते हैं,जब उन्हें ख़ास उन्ही बैक्टीरिया का खात्मा करने के लिए बनाया जाता है! जो एंटीबायोटिक्स यहाँ प्रयुक्त हुए थे..वो ख़ास सैटेलाइट्स के अन्दर के बैक्टीरिया को मारने के लिए ही बने थे! उनसे दुनिया के किसी और बैक्टीरिया को ख़त्म करने के उम्मीद नहीं करी जा सकती! यहाँ जो बैक्टीरिया निगेटिव्स को बना रहे हैं,उसके बारे में पृथ्वी के वैज्ञानिकों को जानकारी ही नहीं है,तो वो उनके लिए कोई एंटीबायोटिक्स बनाना तो क्या सोच भी नहीं सकते थे,कि यह माना जा सके कि चमत्कार हो गया था!
@ बैक्टीरिया के अन्दर म्युटेशन की क्षमता बहुत अच्छी होती है...अगर बैक्टीरिया म्युटेशन में पारंगत है..यानी अनूकूलन के सिद्धांत बहुत अच्छी तरह से पालन करता है..जैसा कि तलक्षेत्र में हो रहा था..तो उस परिस्थति में म्युटेशन सहायता करता है बैक्टीरिया को खुद को बचाए रखने में!
एंटीबायोटिक्स की क्रियाविधि ऐसी होती है,कि किसी ख़ास बैक्टीरिया के खिलाफ सिर्फ उसके कल्चर से निकालकर बनाया गया एंटीबायोटिक्स ही उसको ख़त्म करने में सक्षम होता है..इसके अलावा बैक्टीरिया एक बार सामना होने के बाद किसी ख़ास एंटीबायोटिक्स के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं! इसलिए कोई एक ही तरह का एंटीबायोटिक्स हर तरह की बीमारी में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता!
एक और गौर करने वाली बात है कि एंटीबायोटिक्स को भी बैक्टीरिया पर अपना प्रभाव दिखाने के लिए समय की जरूरत होती है,कोई एंटीबायोटिक्स कुछ मिनट्स में इतना जबरदस्त प्रभाव नहीं डाल सकता है,कि अनुकूलन के द्वारा बदले शरीर को वापस ठीक कर दे! और एक बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैले तलक्षेत्र से बैक्टीरिया साफ़ कर दें!
(लेकिन यह सबकुछ लेखक के द्वारा मुमकिन किया गया है! यह पढने वालो के ऊपर है कि जो निगेटिव्स की उत्पत्ति और उनके अंत का तरीका कॉमिक्स में दिखाया गया है,वो उससे सहमत हो सकते हैं या नहीं!)
कहानी में जब तक अनूकूलन था.. निगेटिव्स और तलक्षेत्र की कहानी सही जा रही थी..लेकिन कहानी के अंत में बैक्टीरिया के इस्तेमाल ने सुपर हीरोज को तो जितवा दिया..मगर कहानी के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को कमजोर कर दिया!
इस कॉमिक्स की सभी खूबी यह हैं-
1-पाठको को 160 पेज पहली बार एक सिंगल कॉमिक्स में मिलना!
2-पाठको को आर्टवर्क में सालों बाद अनुपम जी के साथ विनोद कुमार की का जबरदस्त काम मिलना!
3-कॉमिक्स में ग्लॉसी पेपर के साथ उम्दा कलरिंग!
4-(सिर्फ एक्शन पसंद करने वाले पाठको के लिए) जो पाठक कहानी के उतार चढ़ाव,मनोरंजन वगैरह पक्षों से ज्यादा एक्शन को महत्त्व देते हैं,उनके लिए यह कॉमिक्स एक हॉट केक की तरह है!
इस कॉमिक्स की कमियां यह हैं-
1-करीब 160 पेज होने के बाद भी कहानी में एक्शन पक्ष को इतना ज्यादा महत्त्व दे देने के कारण ,कहानी का मनोरंजन पक्ष बर्बाद हो जाना!
2-कहानी में पात्रो को दिखने के तरीके में संवाद वाले पक्ष में गंभीरता की कमी होना,जिससे किरदारों का कहानी के लिए कम...अपितु खुद लिए काम करते दिखना दृष्टि गोचर होने लगता है!
3-बिलकुल नए खलनायक होने और एक रहस्यमयी जगह का माहौल होने के बावजूद भी उनका जरा भी उपयोग कहानी में ना होना अपितु सिर्फ खानापूर्ति लायक ही जगह दिया जाना!
4-कहानी में घटी हुई कुछ घटनाओं में कमियां छोड़ दिया जाना!

कथा-3/5
चित्रांकन-5/5

पेंसिल-
यह कॉमिक्स अनुपम सिन्हा जी ने पेंसिल करी है और उनके काम के बारे में हर कॉमिक्स प्रेमी बचपन से जानता है कि वो हमेशा अपना 100% देते हैं!
इस पूरी कॉमिक्स के 90% से भी ज्यादा पन्नों में सिर्फ एक्शन सीन हैं! एक्शन के मास्टर अनुपम जी हमेशा से रहे हैं,यहाँ भी उन्होंने हर एंगल से एक्शन को उकेरा है! डोगा के एक्शन सीन सबसे ज्यादा अच्छे बने हैं,जब वो ट्रेन वाले सीक्वेंस में आता है! उसके अलावा ध्रुव और डोगा की भिडंत के सीन्स दमदार हैं!
परछाइयों को किरदारों के साथ चिपके हुए चलते दिखाने में जो रोमांच का अनुभव आना चाहिए..वो पैदा करने में अनुपम जी सफल रहे हैं!

इंकिंग-विनोद कुमार
किसी भी पाठक की अनुपम जी के पेंसिल पर विनोद जी की इंकिंग देखने से बड़ी तमन्ना नहीं हो सकती है,जो इस कॉमिक्स में पूरी होती है! इस जोड़ी ने एक दशक से भी लम्बे समय तक सैकड़ो बेहतरीन कॉमिक्स पाठको को दी हैं! सिर्फ विनोद जी का नाम होने की वज़ह से इस कॉमिक्स का मूल्य देते समय किसी को भी कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं होगी!

इस कॉमिक्स में जलजला के वक़्त जैसा आर्ट मिला है! वही पुराना ध्रुव जो हर कॉमिक प्रेमी अपने बचपन से देखता आ रहा है! वही साफ़ सुथरे चेहरे, जो पहचान थे कभी राज कॉमिक्स के स्वर्णिम काल की!
आज के वक़्त में आर्टवर्क प्रयोगधर्मी ज्यादा हो गया है! हर नया आर्टिस्ट अपने तरह से चीजों को बनाने और उन्हें सही साबित करने की होड़ में जुटा है! जिससे चेहरा सही नहीं बनता,वो उसको किसी अँधेरे कोने में खड़ा करके काला कर देता है! निगेटिव्स खुद में एक ब्लैक आर्टवर्क स्टोरी है! अगर अनुपम-विनोद जी चाहते तो इसको भी जबरदस्ती आजकल के आर्टिस्ट्स जैसा काली लीपा पोती करके पेश कर देते! आखिर क्या जरूरत थी, उन्हें इतनी ज्यादा मेहनत करके हम पाठको को देने की?
इसका उत्तर यह है कि अनुपम-विनोद जी अपने काम से बहुत प्यार करते हैं! यह उनकी आत्मा है और अनुभव हमेशा आगे रहता है! नयी पीढ़ी के आर्टिस्टस को इस कॉमिक्स को देखकर समझना चाहिये कि पाठको को क्या चाहिए और क्या नहीं!

रंग संयोजन-
कलरिंग इफेक्ट्स “अभिषेक सिंह” के द्वारा किये गए हैं! इतनी बड़ी कॉमिक्स का अपने करियर की शुरुआत में ही मिलना एक बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है! उन्होंने भी इस बात को समझते हुए सराहनीय काम किया है!
लोरी-तिरंगा,डोगा की ट्रेन साइड नेगेटिव्स से भिडंत में अच्छे इफेक्ट्स हैं!
इस कॉमिक्स की कलरिंग से 10 साल पहले की कलरिंग वाला एहसास होता है! यहाँ हल्के इफेक्ट्स के साथ हार्ड कलर्स हैं! ग्लॉसी पेज होने से भी इफेक्ट्स का पूरा मज़ा मिल रहा है! सिर्फ अंधमान की ड्रेस को ज्यादा हाईलाइट टोन में होना चाहिए था,आखिर वो एक मुख्य और नया पात्र था! बहरहाल ओवरआल काम बढ़िया है!

शब्दांकन-
कॉमिक्स में 2 कैलिग्राफर हैं-नीरू और मंदार गंगेले जी! कौन सी जगह किनका काम है यह तो बता पाना संभव नहीं है! संवादों में यह कहानी काफी लम्बी है! सबको बोलने के लिए काफी कुछ मिला है! एक्शन और संवाद साथ साथ चलते ही रहते हैं!
कॉमिक्स में “नेगेटिव्स” के द्वारा कहे गए संवादों को काले bubbles में दिखाया गया है,जो टेढ़े मेढ़े और सुंदर दिखते हैं! इन bubbles की बाहरी पर्त पर भी अलग रंगों के इफ़ेक्ट स्ट्रोक्स देखने को मिलते हैं,जो पहले किसी कॉमिक्स में नहीं दिखा है!
अनुपम जी के लेखन पर यही टिप्पणी है कि वो कॉमिक्स में अभी भी सबसे अच्छे आइडियाज लाते हैं,लेकिन अब कहीं ना कहीं,उन आइडियाज का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पा रहा है! पहले आई नागराज है ना,आदम,काल कराल अपने विज्ञापन में जिस तरह का रोमांच बना चुकी थी..कॉमिक्स में वो बात नहीं बन पाई, “नेगेटिव्स” भी इस चीज़ से कुछ अलग नहीं है! “नागराज के बाद” वाली सीरीज के उपरान्त सिर्फ एक "हेड्रोन सीरीज" ऐसी थी जिसमे मज़ा आया था! उन्हें मनोरंजन वाले पक्ष के साथ किरदारों का चुनाव और उनको सही तरह से rotataion के अंतर्गत लाते रहना चाहिए!

अंत में यही कहना है कि निगेटिव्स को हर कॉमिक प्रेमी के कलेक्शन की शोभा जरूर बनना चाहिए! सालो पहले पढने को मिल चुकी कई मल्टी स्टारर के समकक्ष ना होने के कारण कहानी अति साधारण जरूर लगती है,जिसमे मनोरंजन के तत्वों की सतत कमी है,लेकिन ग्लॉसी पेपर पर अनुपम जी-विनोद कुमार जी के सजीव चित्रांकन की वज़ह से इसको देखने में आँखें सुकून का अनुभव करती हैं!
अंधमान,यामिनी और तलक्षेत्र को आगे दोबारा एक नए भयानक अंदाज़ और गंभीर कहानी में देखने की इच्छा जरूर रहेगी!

YUGANDHAR

Review- “युगांधर”

“सर्वनायक” श्रृंखला का “आधार खंड” “युगांधर” आपके समक्ष प्रस्तुत है! एक कालजयी रचना की यात्रा के प्रथम पड़ाव को पढना अपने आप में जरूरी भी होता है और रोमांचक भी! आगे के चाहे कितने ही खंड क्यूँ न पढने को मिलें,लेकिन प्रथम और अंतिम खंडो का महत्त्व अलग ही होता है!
नाम से जाहिर है कि यह युगों की सीमाएं लांघ कर लिखी गई कहानी है! युग साल की तरह नहीं होते हैं,जो पृथ्वी के सूर्य का एक चक्कर, एक बार में लगाने पर पूरा हो जाता है,युग होते हैं,अनंत सालो का एक मिश्रण,जिसमे एक बार में एक सभ्यता,संस्कृति बनतीहै,बिगडती है,बदलती है और याद रखी जाती हैं! इसलिए कहानी को अगर पढना है,तो सोचना भी उसी तरह से होगा,ताकि कहानी में डूबा जा सके!

कथा-
“युगांधर” को लिखा है नितिन मिश्रा और तरुण कुमार वाही जी की कलमों ने! शुरुआत एक अच्छे और सही अंदाज़ में प्रस्तावना पृष्ठों से हुई है,जिसमे इस भाग के 4 पात्रों युगम,योध्धा,भोकाल एवं अडिग का संक्षिप्त परिचय मिलता है! इसके बाद का एक पृष्ठ भूतकाल v भविष्यकाल के महा योध्धाओ को दिखाया गया है!
युगांधर की कथा मुख्यतः दो राह पर चलती है!
प्रथम है-दिति पुत्र योध्धा की कहानी जो स्वर्ग हेतु प्रतियोगिता के आरम्भ पर ठहरी हुई थी! वहीँ से आगे बढती है!
दूसरी-महाबली भोकाल की,जो अपने असली पिता की खोज में एक दुर्गम यात्रा पर निकला है! यानी पहले पाठको को “धिक्कार” व “अंतर्द्वंद” पढनी बहुत जरूरी है!
इसके बाद कुछ दूसरे महानायकों को थोडा स्थान कहानी में मिला है!

*भोकाल-
शवमित्र को साथ लिए हुए “भोकाल-शक्ति” का असली अधिकारी साबित होने के बाद भोकाल टकरा गया है साक्षात मौत के परकालो से! यहाँ जीतते ही वो युगम के चंगुल में खुद को घिरा पायेगा! परन्तु यह तो होना ही था ,इसलिए यह महत्वपूर्ण नहीं है!
पाठको के लिए महत्वपूर्ण है भोकाल की उत्पत्ति के पीछे का सच उजागर होना,जो उन्हें आश्चर्यचकित और भौचक्का करके रख देगा! जो कई नए रहस्योदघाटन खुद में समेटे हुए है! लेखको के द्वारा भोकाल की उत्पत्ति के घटनाक्रम बदलने के साथ कई नए तथ्य जोड़े गए हैं!पाठको को भोकाल के जीवन से जुडी कई जरूरी जानकारियाँ यह कॉमिक्स देती है!

*योध्धा-
मुख्यतः “युगांधर” में कहानी स्वर्ग हेतु प्रतियोगिता में दैत्यों और देवताओं के अपनी-अपनी तरह से प्रतियोगिता की शर्तें पूरी करके जीतने की लालसा पर केन्द्रित है,जिससे स्वर्ग की स्थापना के योग्य उम्मीदवार का चयन हो सके! यह भाग अपने पिछले भागों (आरम्भ,सूर्यांश,सृष्टि,स्वर्ग पात्र) से जुडा होने के कारण तभी समझ आएगा जब पहले घटित हो चुके घटनाक्रम का पूरा ज्ञान पाठक को हो,वरना नहीं!
स्वर्ग हेतु प्रतियोगिता में भाग ना लेने पाने की मजबूरी के चलते योध्धा को कॉमिक्स में मुश्किल से सिर्फ 7-8 पन्नों की जगह मिली है! युगांधर में उसका होना फिलहाल नगण्य था! कहानी उसके चारो ओर नहीं घूमती! परन्तु पाठको को दैत्य-देवताओं के बीच आँख मिचोली लगातार होते षड़यंत्र पढने में मज़ा आएगा,खासकर “राहू प्रकरण” उन्हें आनंदित करने की क्षमता रखता है!
यहाँ एक चीज़ रेखांकित कर दें कि योध्धा अभी भी युगम के चंगुल से बाहर है!

पेज-68 शुक्राल को समर्पित किया गया है! उसका रोल छोटा सा होने के बावजूद भी रहस्यों की आंधियां छोड़कर चला गया है!

पेज-70-77 तक तिलिस्मदेव,अश्वराज,गोजो,प्रचंडा अपने समय में लड़ते लड़ते युगम के सामने पहुँच चुके हैं!

तो पाठक समझ सकते हैं कि कहानी में कम जगह में ज्यादा से ज्यादा चीज़ें दिखाई गयी हैं!
कहानी यहाँ पर ठहरी सी लगती है..पर यह तूफ़ान से पहले की शान्ति जैसा था! कॉमिक्स का तीसरा हीरो और राज कॉमिक्स में पर्दापर्ण कर रहे श्राहू दानव “कुमार अडिग” एक स्त्री की अस्मिता की रक्षा करते हुए अवतरित होते हैं! अडिग एक तूफ़ान की तरह लगता है,ऐसी एंट्री शायद कम ही हीरो कर पाए हैं!

फिलहाल कहानी रुक चुकी है एक ऐसे मोड़ पर,जो अगले भाग का लम्बा इंतज़ार और ज्यादा कष्टकारी बना देती है!
कहानी में अभी भी बहुत कुछ ऐसा है,जो कि लेखक के द्वारा खोला नहीं गया है, खासकर भोकाल वाली कहानी अभी भी काफी रहस्य खुद में बचाए हुए है!इसलिए आगे के अंको का इंतज़ार सभी को करना ही पड़ेगा! योध्धा वाली कहानी तो शायद अभी काफी लम्बा समय और ले सकती है,और यही कुछ अडिग के लिए लग रहा है!

“युगांधर” के बारे में पाठकों को यह ध्यान देना बहुत जरूरी है,कि यह कॉमिक्स बहुत लम्बे समय और मेहनत के बाद बनी है! पहले यह जहाँ सिर्फ भोकाल प्रकरण तक सीमित थी,जिसमे बाद में “स्वर्ग हेतु” नामक कहानी को जोड़ा गया,फिर समावेश हुआ अडिग का और तब यह सर्वनायक का आधार बनकर आपके हाथो में पहुंची है!

“युगांधर” बाकी मल्टी स्टारर की तरह नार्मल कहानी नहीं है,जिसमे एक ही कहानी में कई हीरो किसी एक लक्ष्य के लिए साथ होते है! बल्कि फिलहाल यहाँ हाल-फिलहाल कोई भी नायक एक दूसरे के बारे में जानता ही नहीं है!
“पाठको को सिर्फ यह ध्यान रखना है, कि कई अलग अलग कालों के अलग घटनाक्रमों को खलनायक के द्वारा एक ही साथ दिखाना इसका मुख्य सूत्र है!”

कथा-4.5/5
चित्रांकन-4/5

ललित सिंह और नितिन मिश्रा जी “युगांधर” के चित्रकार हैं! मुख्यतः काम नितिन जी का है!
प्राचीन,पौराणिक कहानियां होने के कारण नितिन जी को साधारण पेंसिलिंग के बाद भी 2 चीज़ों का फायदा मिल गया है!
पहली चीज़ कॉमिक्स में कलरिस्टों द्वारा दिए गए उम्दा कलरिंग इफेक्ट्स! जिन्होंने आर्ट की कमियां छुपाने में मदद करी!
दूसरी चीज़ कहानी की मांग ही चूँकि बदसूरत चेहरे और भद्दे शरीर वाले दैत्य,दानव थे, इसलिए उनके भावहीन चेहरे और शरीर, जैसे भी बने, कहानी में फिट आ गए! बचे खुचे पहाड़,अंतरिक्ष आदि इफेक्ट्स पर निर्भर होने के कारण ज्यादातर चीज़ें संयोग से सही बैठ गयीं हैं! नितिन जी को आर्टवर्क पर थोडा और ध्यान देना चाहिए! आर्ट में जहाँ भी मूर्ती जैसे भावहीन और पत्थर की तरह शरीर के आकार नज़र आते हैं,वो नितिन जी का काम है! कॉमिक्स के अंत के लगभग सभी पन्ने जिसमे अडिग प्रकरण के अलावा तिलिस्मदेव,अश्वराज,गोजो,प्रचंडा जुड़े हैं वो सभी नितिन जी के हैं! वहीँ भोकाल प्रकरण के शुरूआती पन्ने ललित जी के हैं! बीच में कहानी की जरूरत के अनुसार आर्टवर्क स्विच करता रहता है! इसलिए अंतिम तथ्य यही है की आर्टवर्क एक जैसा नहीं मिलता है!
ललित सिंह भी अपने “गुरु भोकाल” जैसे स्मरणीय काम की छटा दोबारा पाठको को नहीं दे पाए! उनके द्वारा भी सिर्फ संतोषजनक और इफेक्ट्स पर निर्भर आर्टवर्क मिला है! फिर भी दिलीप कदम जी के बाद वो भोकाल के आर्टवर्क के लिए अब भी सबसे बेहतर चुनाव हैं!

कलरिंग इफेक्ट्स-
अपनी कहानी के बाद यह कॉमिक्स अगर याद किये जाने लायक है तो वो है इसके कलरिंग इफेक्ट्स! जो की भक्त रंजन व अभिषेक सिंह के द्वारा किये गए हैं!
प्राचीन,पौराणिक कथाओ के आर्टवर्क को जीवित बना देना आसान काम नहीं है! जिस तरह से दोनों ने हर फ्रेम में मेहनत करी है,वो अभिभूत करने वाली है!
पेज-10,14 के आकाश व अंतरिक्ष देखिये या पेज-67! हर जगह जीवंतता का एहसास नज़र हटने नहीं देता है! यह पाठको को पूरी कॉमिक्स में देखने को मिलेगा!

नीरू जी के शब्दांकन के बिना बात अधूरी रह जायेगी! शब्द ही कहानी को समझाते हैं और जहाँ बात नहीं होती,वहां वातावरण में मौजूद दूसरी आवाज़ें सहायक बनती हैं! यहाँ पर कैलिग्राफर की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है कि कैसे वोह हर दृश्य को पढने वाले को समझा पायेगा! पेज-9,10 इस चीज़ का सटीक उदाहरण दिखाते हैं!
पूरी कहानी बहुत सुंदर तरीकों से शब्दांकित हुई है!

टिप्पणी- “युगांधर” एक उत्कृष्ट कॉमिक्स है! इसमें एक जानदार कहानी है,चित्रांकन साधारण है,लेकिन उसको असाधारण बनाने की ताकत रखने वाले कलरिंग इफेक्ट्स हैं,जिन्हें शब्दांकन का भरपूर सहारा मिला है! यह प्राचीन कथा प्रेमियों के लिए संकलित करने योग्य विशेषांक है! कुल मिलाकर सर्वनायक की शुभ शुरुआत हुई है!

TAKBAK





Review-"तकबक"

बांकेलाल का यह हास्य विशेषांक तरुण कुमार वाही –अनुराग कुमार सिंह द्वारा लिखा गया है!
कहानी का सार कुछ यूं है-
सभी भक्त अपने ईष्ट से हमेशा कुछ ना कुछ मांगते ही रहते हैं..भक्त अगर बांकेलाल जैसा हो तो भगवान् भी हमेशा चौकन्ने रहते हैं! इस बार कहानी में पंगा यह डाला गया है,कि शिवजी सामने से आकर बांकेलाल को विक्रम सिंह को मारने की युक्ति बता रहे हैं! इसलिए बांकेलाल अति प्रसन्न है! यानी इस बार बांकेलाल की जीत के अवसर पूरे हैं! कहानी में खलनायक है तकबक “नाम” का एक इच्छाधारी सर्प! यानी यहीं वो चाबी है जो विक्रम की मौत के दरवाज़े का ताला खोलेगी!
# क्या तकबक विक्रम को मार सका?
# शिवजी ने आखिर बांकेलाल को ऐसी योजना क्यूँ बताई?क्या उन्हें आखिर बांकेलाल पर दया आ ही गयी या फिर छुपा है कोई रहस्य?  

# क्या इस बार बांकेलाल को शिवजी का आशीर्वाद मनोवांछित फल दे पाया?
इन सवालों के जवाब आपको कहानी में मिलेंगे!

कहानी शुरू होते ही रफ़्तार से भागती है! पेज-3 पर ही बांकेलाल अपनी योजना शुरू कर देता है जो आखिर तक तकबक-विक्रम का आमना-सामना होने तक बनती रहती है! यानी चाल दर चाल! कुछ चीज़ें जो हमेशा की तरह हर कहानी जैसी इसमें भी डाली गयी है..वो हैं...मरखप का बांके की जासूसी करना,महल में फैला भ्रष्टाचार,मंत्रियो की करतूतें,रानी स्वर्णलता की बे-सिर पैर बातें और विक्रम का बांके पर हमेशा की तरह अटूट विश्वास!
क्यूंकि कहानी सिर्फ तकबक के विक्रम को मारने वाले पहलु पर ही घूमती है,इसलिए इसमें दूसरा कोई अतिरिक्त छोर कहानी के साथ नहीं जुडा मिलता है! कहानी के एक तरफ से आरम्भ होकर बिना कहीं भटके दूसरी तरफ अंत आ जाता है!
किरदारों की बात करी जाए तो बांकेलाल और विक्रम सिंह ने खुद को दोहराया ही है,दोनों के सभी संवाद और सीन हमेशा से चलती आ रही कहानियों जैसे ही हैं..कई बार पाठक खुद ही जान जाते हैं कि दोनों का अगला रिएक्शन क्या होगा!
भगवान् शिव और तकबक के सभी सीन जानदार बने हैं..और कहानी का अकेला आकर्षण हैं!
हास्य के मामले में कहानी साधारण रही है! इसमें चुटीले संवादों और मसालों की कमी दिखी! लेखको को हास्य पर और ज्यादा ध्यान देना चाहिए! 40 के मूल्य में कहानी अगर हंसा ना सके तो सब व्यर्थ लगता है! बांकेलाल की कहानी से सबसे ज्यादा उम्मीद यही रहती है कि वो पढने वालो को कुछ अच्छे मनोरंजक पल दे जाए!

कथा-3/5
चित्रांकन-4/5

सुशांत पंडा जी द्वारा बनाया गया चित्रांकन है जो अच्छा बन पड़ा है! भगवान् शिव और तकबक पर किये गए प्रयास अच्छे हैं..बाकी सभी हमेशा जैसे ही है!
पेज-6 का प्रथम फ्रेम कमाल का लगता है,जब बांकेलाल मरखप की उंचाई तक आने की चेष्टा कर रहा है! इसके अलावा भूमिगत महल के अन्दर के दृश्य भी रेखांकित करने लायक हैं!
इंकिंग “फ्रेंको” की और रंग संयोजन बसंत पंडा जी का है!
टिप्पणी- तकबक अति उल्लेखित होने लायक नहीं बन पाई है...लेकिन एक औसत विशेषांक कहा जा सकता है! इसका सिर्फ बांकेलाल के षड्यंत्रकारी जीवन में एक पन्ना और जोड़ने तक का ही महत्व है!