Review-"तकबक"
बांकेलाल का यह हास्य विशेषांक तरुण कुमार वाही –अनुराग कुमार सिंह द्वारा लिखा गया है!
कहानी का सार कुछ यूं है-
सभी भक्त अपने ईष्ट से हमेशा कुछ ना कुछ मांगते ही रहते हैं..भक्त अगर बांकेलाल जैसा हो तो भगवान् भी हमेशा चौकन्ने रहते हैं! इस बार कहानी में पंगा यह डाला गया है,कि शिवजी सामने से आकर बांकेलाल को विक्रम सिंह को मारने की युक्ति बता रहे हैं! इसलिए बांकेलाल अति प्रसन्न है! यानी इस बार बांकेलाल की जीत के अवसर पूरे हैं! कहानी में खलनायक है तकबक “नाम” का एक इच्छाधारी सर्प! यानी यहीं वो चाबी है जो विक्रम की मौत के दरवाज़े का ताला खोलेगी!
# क्या तकबक विक्रम को मार सका?
# शिवजी ने आखिर बांकेलाल को ऐसी योजना क्यूँ बताई?क्या उन्हें आखिर बांकेलाल पर दया आ ही गयी या फिर छुपा है कोई रहस्य?
# क्या इस बार बांकेलाल को शिवजी का आशीर्वाद मनोवांछित फल दे पाया?
इन सवालों के जवाब आपको कहानी में मिलेंगे!
कहानी शुरू होते ही रफ़्तार से भागती है! पेज-3 पर ही बांकेलाल अपनी योजना शुरू कर देता है जो आखिर तक तकबक-विक्रम का आमना-सामना होने तक बनती रहती है! यानी चाल दर चाल! कुछ चीज़ें जो हमेशा की तरह हर कहानी जैसी इसमें भी डाली गयी है..वो हैं...मरखप का बांके की जासूसी करना,महल में फैला भ्रष्टाचार,मंत्रियो की करतूतें,रानी स्वर्णलता की बे-सिर पैर बातें और विक्रम का बांके पर हमेशा की तरह अटूट विश्वास!
क्यूंकि कहानी सिर्फ तकबक के विक्रम को मारने वाले पहलु पर ही घूमती है,इसलिए इसमें दूसरा कोई अतिरिक्त छोर कहानी के साथ नहीं जुडा मिलता है! कहानी के एक तरफ से आरम्भ होकर बिना कहीं भटके दूसरी तरफ अंत आ जाता है!
किरदारों की बात करी जाए तो बांकेलाल और विक्रम सिंह ने खुद को दोहराया ही है,दोनों के सभी संवाद और सीन हमेशा से चलती आ रही कहानियों जैसे ही हैं..कई बार पाठक खुद ही जान जाते हैं कि दोनों का अगला रिएक्शन क्या होगा!
भगवान् शिव और तकबक के सभी सीन जानदार बने हैं..और कहानी का अकेला आकर्षण हैं!
हास्य के मामले में कहानी साधारण रही है! इसमें चुटीले संवादों और मसालों की कमी दिखी! लेखको को हास्य पर और ज्यादा ध्यान देना चाहिए! 40 के मूल्य में कहानी अगर हंसा ना सके तो सब व्यर्थ लगता है! बांकेलाल की कहानी से सबसे ज्यादा उम्मीद यही रहती है कि वो पढने वालो को कुछ अच्छे मनोरंजक पल दे जाए!
कथा-3/5
चित्रांकन-4/5
सुशांत पंडा जी द्वारा बनाया गया चित्रांकन है जो अच्छा बन पड़ा है! भगवान् शिव और तकबक पर किये गए प्रयास अच्छे हैं..बाकी सभी हमेशा जैसे ही है!
पेज-6 का प्रथम फ्रेम कमाल का लगता है,जब बांकेलाल मरखप की उंचाई तक आने की चेष्टा कर रहा है! इसके अलावा भूमिगत महल के अन्दर के दृश्य भी रेखांकित करने लायक हैं!
इंकिंग “फ्रेंको” की और रंग संयोजन बसंत पंडा जी का है!
टिप्पणी- तकबक अति उल्लेखित होने लायक नहीं बन पाई है...लेकिन एक औसत विशेषांक कहा जा सकता है! इसका सिर्फ बांकेलाल के षड्यंत्रकारी जीवन में एक पन्ना और जोड़ने तक का ही महत्व है!
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