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Friday, 17 April 2015

NARAK AAHUTI (2015)





Review-नरक आहुति (2015)
Genre-Adventure
,Action,Melodrama
Main character(s)- नागराज,नागमणि,त्रिसर्पी,गोरखनाथ,शंकर शहंशाह,सिल्विया,नियति,तूतेन तू,बुलडॉग,तक्षक

‪#‎Creative_team‬
Writer- नितिन मिश्रा
Penciller – हेमंत कुमार
Inkers-विनोद कुमार,ईश्वर आर्ट्स
Colorists-शादाब,बसंत पंडा,मोहन प्रभु
Calligraphers-मंदार गंगेले,नीरू

उत्पत्ति श्रृंखला का “नरक नाशक” से शुरू हुआ कारवां “नरक नियति”,”नरक दंश” से होता हुआ “नरक आहुति” पर जाकर थम चुका है (यह लेखक का कहना है)....यानी ख़त्म होने में काफी लम्बा वक़्त इंतज़ार करवाया इस कहानी ने! जब भी आप अंत पर आकर खड़े होते हैं..तो पीछे मुड़कर एक बार अपने प्रिय हीरो के साथ चले सफ़र के बारे में जरूर सोचते हैं! आपके होठो पर मुस्कान तभी उभरती है..जब आप ईमानदारीपूर्वक अपनी यात्रा को अंत दे चुके हो..अगर ऐसा नहीं है..तो संशय उभरता है! एक लेखक के लिए यह एक बड़ी चुनौती है..कि वो अपने पाठको को वो सब दे..जिसकी उम्मीद करी जाती है! समीक्षक के तौर पर किसी भी काम पर टिप्पणी देते समय यह एक बड़ी मुश्किल होती है कि वो टिप्पणी तटस्थ होकर उस काम के पहलुओं को सामने रखे! यह किसी को पता नहीं चल सकता है कि कौन सी चीज़ कब अच्छी लगने लगे और कब खारिज कर दी जाए!
नरक नाशक नागराज एक ऐसे हीरो है जो कि हमारी अपनी पृथ्वी का नहीं है! दूसरे अर्थो में यह हमारे दिलों से जुड़ा हुआ नहीं है, क्यूंकि वो ख़ास जगह हम लोग पहले ही विश्वरक्षक नागराज को दे चुके हैं! थोड़ी सी जगह अगर बचती भी है तो उसपर आतंकहर्ता का हक जमा हुआ है!

ऐसे में राज कॉमिक्स एक तीसरा नागराज यह कहते हुए पेश करती है कि यह आपको वो सब देगा जो पहले वाले 2 नागराज नहीं दे सके! (यह राज कॉमिक्स का मौखिक/लिखित किया हुआ वादा था) हम सब तो बालमन के हैं..हमेशा भरोसा कर लेते हैं! वो भरोसा तब थोडा रंग भी दिखाता है जब अभिशप्त,आदमखोर,इन्फेक्टेड,मृत्युजीवी जैसी डार्क स्टोरीज आती हैं! रोमांच जिंदा होता है! हम इस बहस में नहीं पड़ेंगे कि यह सभी कॉमिक्स कैसी बनी थी..हम यह जरूर कह सकते हैं कि यह सभी उस तरह की अलग तरह की कहानियां थी..जिनका वादा हुआ था! फिर अचानक से घोषणा होती है कि नरकनाशक नागराज जो कि दनादन डोगा और कोबी की विफलता में भी कुछ हद्द तक संभला हुआ है उसकी उत्पत्ति श्रृंखला आएगी! क्यूंकि यह सभी एक Parallel Earth के हीरो हैं..इस वज़ह से जिनसे कोई जुड़ाव महसूस हुए बिना भी एक उम्मीद बनी रही...लेकिन इस उम्मीद पर पहला आघात लगाया “तक्षक” नाम की कॉमिक्स ने..जिसको असल में उस वक़्त पब्लिश किया जाना ही नहीं चाहिए था..क्यूंकि वो पूरी तरह से बिना होमवर्क किये,पाठको को बिना ठोस जानकारियाँ मुहैया कराये सिर्फ छापकर थमा ही गई थी! उस वक़्त कहा गया इसके उत्तर आगे मिलेंगे...आप देख सकते हैं कि 2013 की उस फ्लॉप कॉमिक्स के उत्तर अभी भी 2015 में गायब हैं! फिर भी आपसे कहा जाता है कि धैर्य बनाए रखिये..और ऐसा होता नज़र भी आ रहा है..जब कुछ लोग इसलिए कहानी की तारीफ करते दिखाई देते हैं..क्यूंकि उन्हें कहानी समझ में ही नहीं आती...समझ में इसलिए नहीं आती क्यूंकि कहानी भूल चुके हैं...अब कौन क्या याद रखेगा 2-4 साल तक...पाठको के इस गजनी इफ़ेक्ट का फायदा उठाते हैं रचनाकार!

खैर,इस बीच जब उत्पत्ति श्रृंखला बीच में शुरू कर दी गई..तो पहली उम्मीद यही थी..कि जिस तरह यह नागराज हमारी पृथ्वी का नहीं है...उसी तरह से इसकी उत्पत्ति भी हमारे अपने नागराज जैसी नहीं होगी! यहाँ पर भी कुछ पाठक कहेंगे..कि यह सोच सरासर गलत है (इन्हें भंगार जमा करने की आदत जो पड़ी है)...लेकिन इन्हें हमारी सोच गलत क्यूँ लगती है जब हम आपके लिए ही हमेशा कहते हैं कि कोई भी कहानी पुरानी जैसी नहीं बल्कि नई लिखी जानी चाहिए?....हम जब मूल्य चुका रहे हैं..तो original चीज़ के लिए चुका रहे हैं...Photocopy के लिए 3 गुणा मूल्य क्यूँ? चलिए आपकी ही बात पर चला जाए....कि यहाँ भी यह माना जा सकता था..कि कुछ बातें एक समान ले ली जाएँ..पर कुछ की जगह अगर सबकुछ आप एक समान ही ले लेंगे..तो आपकी कल्पनशीलता की इस कमी ने पाठको से ताउम्र चलने वाला धोखा किया है!

दिखाया गया है कि नागमणि के साथ नागराज का बचपन गुजरा...चलिए उसमे आपका कोई जोर नहीं है...वो आपकी मजबूरी थी..कि नागराज को किसी ना किसी के पास पाला जाना ही था!..लेकिन उसके बाद जब आपने नागराज की नीलामी भी करवा दी..वहीँ से आपकी मौलिक सोच पर प्रश्नचिन्ह लग गए (क्या यह जरूरी था कि इसके बिना आपकी origin चलती ही नहीं)...यहाँ पर हम जिसको विश्वरक्षक की कहानी से जुड़ा महसूस कर रहे थे..उसमे एक के बाद एक बुलडॉग,सिल्विया,शंकर शहंशाह और गन मास्टर हुड को जोड़कर आपने आतंकहर्ता नागराज की सीरीज को भी ला जोड़ा! शिकांगी,गोरखनाथ, जैसे आतंकहर्ता के महत्वपूर्ण किरदारों का दोहराव से भरा हुआ तीसरा दोहन आप तब कर रहे हैं..जबकि आपकी ही लिखी एक दूसरी श्रृंखला क्षतिपूर्ति में भी यह दिख रहे हैं! LIBERTY का उपयोग करना अच्छी बात होती है..पर इसको प्रयोगशाला बना देना एक दूसरी चीज़ है! यदि राज कॉमिक्स में अनुपम जी और दूसरे लेखको का 25 साल पुराना काम नहीं होता...तो आज एक नए नागराज को रचने तक की मौलिक सोच गायब है? दूसरे आसान शब्दों में अगर पुराना काम नहीं किया गया होता तो आज नरक नाशक भी नहीं होता! यदि आपके पास एक नयी origin स्टोरी फिलहाल नहीं थी..तो बेहतर नहीं होता कि आप नरक नाशक की Simple New एक्शन कहानियां कुछ साल निकालते...origin पर भविष्य में पूरा समय लेकर कुछ नवीन लिखते? किसी ने भी कॉपी/पेस्ट origin सीरीज अभी निकालनी होगी..ऐसा कोई दबाव नहीं डाला था!

कहानी-
नरक दंश से चलकर कहानी आगे बढती है...नागराज के सिल्विया के साथ एक अपराध को अंजाम देकर..वहां से निकलने के बाद बाबा गोरखनाथ से अपना दिमाग ठीक करवाकर...नागमणि से अपने रिश्ते ख़त्म करके एक नयी यात्रा की तरफ चल पड़ने तक! यहाँ पर बाल्यकाल पूरा हो चुका है..और नागराज का यौवनकाल नागग्रन्थ में जारी रहेगा!
भूगोल का उपयोग करके लेखक इतना तो बता देते हैं कि “युवक नागराज” काशी आया है..लेकिन वो यह नहीं बताते कि “बाल नागराज” जिसमे कूदा वो सुप्तावस्था में मौजूद ज्वालामुखी भारत के कौन से हिस्से में पड़ता है? लेखक के अनुसार नागराज महानगर में रहता है..जो पश्चिमी तट पर है! गोरखनाथ के रहने की दिशा हिमालय हुई ..इसलिए ज्वालामुखी भी इसी तरफ कहीं होगा! यदि नागराज देव कालजयी के आशीर्वाद से उत्पन्न हुआ बालक कहा जा रहा है तो यह सबकुछ पूर्व निर्धारित है...ऐसे में कॉमिक्स में मंदिर में उनकी मूर्ती के होने की कोई ख़ास वज़ह क्यूँ नहीं बताई गई? देव कालजयी की मूर्ती हिमालय की कंदराओ में क्यूँ रखी हुई है..जबकि उसको होना चाहिए था...समुद्र की तरफ किसी गुप्त जगह जहाँ से उसको तक्षकनगर से जोड़ा गया है..सिवाय इसके कि माफिया की उसपर नज़र थी! यहाँ पर लेखक द्वारा जो विश्वरक्षक की खजाना और आतंकहर्ता की पहली कॉमिक्स को जोड़कर बिना ओर छोर वाली एक तीसरी ही कहानी रच डाली गई है उससे यह कहानी दोबारा अधूरी और confusion देने वाली बनकर ही रह गई!

यहाँ पर नागराज ज्वालामुखी के अन्दर जाता है..लेकिन उसको बांबी के मुहाने पर ही “तक्षक” मिल जाता है! जिस “बांबी कॉमिक्स” से तक्षक को लिया गया है उसमें तक्षक ..पृथ्वी के केंद्र की तरफ इतनी नीचे छुपकर रहता था...कि वहां जाते हुए नागराज के शरीर में भारीपन से हिलने तक की ताकत नहीं बची थी...यहाँ वो तक्षक (जिसको लड़ना भी नहीं है)
1-पहरेदार बना हुआ क्यूँ सबसे ऊपर आ गया?
2-नागराज और त्रिसर्पी के शरीर बांबी से नीचे जाते हुए भारीपन से क्यूँ नहीं गुजरे?
3-जिस तक्षक को तोड़ने के लिए भी जवान नागराज को एड़ी चोटी का पसीना बहाना पड़ा था..उसको जोड़ने के लिए 14 साल का नागराज आराम से सिर्फ हाथ हिलाकर एक कर देता है.. हमेशा ही किसी भी तांत्रिक/तिलिस्मी चीज़ तोडना ज्यादा आसान होता है पर जोड़ना मुश्किल...शरीर को कागज़ की तरह फाडिये और फिर जोडिये..किसमे ज्यादा ऊर्जा लगेगी? यहाँ जो परा-विज्ञान दिखा दिया गया उसपर किसी को अचरज भी नहीं हुआ? (उल्टा तक्षक बांकेलाल सीरीज की तरह बोल देता है..कि किसी ज़माने में शाप मिला था..कि देव कालजयी के आशीर्वाद से उत्पन्न बालक मेरा कल्याण करेगा) कमाल का आईडिया बनाया है..हर सीरीज में इसको ही थमा दिया जाता है!

नागराज-नगीना की काशी यात्रा लगभग खजाना की मंदिर खोजो यात्रा से मिलता जुलता रूपांतरण है..जिसमे उसपर विषपुरुष वार कर रहे हैं! यहाँ भी पुराना माल? दोनों का इस वक़्त एक साथ होना पुरानी खजाना सीरीज की ही याद दिलाता है..जिसमे अंत में नगीना नागराज को धोखा दे देगी (कोई भी सट्टा लगा सकता है इस बात पर)! तो एक बार फिर से कहाँ है वो “मौलिकता” जिसपर किसी भी सेमिनार में लेखक सबसे ज्यादा जोर देकर विचार कहते हैं!? कोई फिल्म देखिये....सवाल किया जाता है अरे यार इतने पैसे डाले..और फिल्म में वही घिसा-पिटा plot....अब हम क्यूँ ना कहें कि अपने प्रिय हीरो को लम्बा इंतज़ार करने के बाद पढने बैठे..तो मिला क्या..वही सब जो बचपन में पढ़ा था?
पिरामिडो की रानी,तूतन खामन का पूरा प्रसंग जो तक्षक से शुरू हुआ था...वो भी अब तक अधूरा है....इसके बाद नरक दंश में जो “पंचनाग” दिखाए थे...वो भी इस कॉमिक्स में गायब हैं! जब उनका इस कहानी में इस्तेमाल था ही नहीं तो क्यूँ पहले से दिखाए? उनको आगे ही दिखाया जाता..पर जबरदस्ती ठूसना था?

अब आप किसी कहानी को पहली बार पढ़ते हैं तब वो आपका मनोरंजन करती है लेकिन जब वही कहानी दूसरी बार आपके सामने आती है तो उससे आप सिर्फ अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं...उत्साहित नहीं हो सकते! यह एक ऐसी ही श्रृंखला है!
कहानी का 70% हिस्सा विश्वरक्षक और आतंकहर्ता नागराज से उठाकर कुछ हल्की फेरबदल के साथ 30% नए प्रसंगों में मिलाकर पेश किया गया है! मोटे तौर पर यह पूरी कहानी ही रिपीट शो है! नरक नाशक का बाल्यकाल बिल्कुल बेअसर और बासी निकलता है! नरक नाशक की अच्छी खासी चलती सीरीज में इतनी जल्दी इस उद्देश्यहीन कहानी को लिखने के पीछे क्या वज़ह रही होगी..यह लेखक को पता होगी..पर इसको पढने के लिए पाठको के पास ऐसी कोई वज़ह नहीं है..जिसको बताकर उनका उत्साह जगाया जा सके! उल्टा इस पूरी सीरीज को पढने के बाद पुरानी कहानियों का महत्व भी क्षीण हो जाता है..क्यूंकि जिन कहानियों को तथाकथित मास्टरपीस की संज्ञा दी जाती थी..अब वो सभी भी आजकल की इन नई कहानियों के नीचे दबाकर बदमज़ा कर दी गई हैं! आप कभी सोचते थे...कि नागराज की पहली कॉमिक्स क्या जोरदार थी...या गन मास्टर हुड वाली,या खजाना या त्रिफना..या आगे जाकर वुल्फा...अब क्या कहेंगे..कि वो सब बेकार थी..यह नई वाली ज्यादा अच्छी हैं! squint emoticon

इस बात से इनकार नहीं करा जा सकता है कि जो कहानियां नरक नाशक के लिए अब लिखी जा रहे हैं..वो ना सिर्फ खतरनाक रूप से पूर्वनिर्धारित और Predictable हैं...वहीँ असल नागराज के universe को बहुत ज्यादा कमजोर करती जा रही हैं! इसका सबसे ज्यादा निराशाजनक पहलु एक के बाद एक लगातार अनुपम सिन्हा जी की लिखी कहानियों को दूहने से जुड़ा है..जिनकी एक समय मिसाल दी जाती थी! एक तरफ पाठक आशा लगाए बैठे हैं कि अनुपम जी जो प्रसंग सालों पहले अधूरे छोड़ गए थे..उनको आगे बढाया जाएगा...दूसरी तरफ लेखक उनपर काम करने के बजाय सिर्फ कॉपी/पेस्ट पर मेहनत कर रहे हैं! पाठको से हमें समझदारी की उम्मीद रही थी..मगर हुआ उल्टा ही है! नरक नाशक नागराज की श्रृंखला में “त्रिफना मूर्ती” जोड़ दी गई है! अगर आपको नरकनाशक universe में त्रिफना दिखानी थी..तो फिर विश्वरक्षक में त्रिफना के बारे में कुछ दिखाया जाएगा... अब यह सोचना ही बेकार है...जब आपको 3 parallel सीरीज के बीच हर बार घालमेल करते रहना है..तो इससे सिर्फ बदमज़ा confusion ही निकल सकती हैं! इधर नए नए पाठक खुद अपने आपको धोखा देने में लगे हैं...तो लेखको को दोष देने से क्या होगा... आपको विश्वरक्षक नागराज की कहानी के हिस्सों को नरक नाशक में दिखाया जा रहा है..और आप जय हिन्द करके सलाम ठोकने लगते हैं....ऐसे पाठको को यह पता होना चाहिए कि उसमे त्रिफना के साथ कालदूत,नागपाशा,गुरुदेव लगभग सभी किरदार भी तो विश्वरक्षक के ही जुड़ेंगे...तो कहाँ बची नरक नाशक की वो ORIGINALITY???
यह निराशाजनक है!

अगली कहानी नाग ग्रन्थ की है..जिसमे तूतेन तू को ले जाकर वुल्फानो तक का कबाड़ा होता दिखेगा! नरकनाशक तो बिना ब्रेक की गाडी में ड्राइव कर ही रहा है...उसमे कोबी-भेड़िया की सीरीज भी दूसरी सीट पर बैठेगी...मतलब वुल्फा,सुर्वया...भाटिकी....और जला हुआ भेड़िया वंश भी अपने साथ होते हुए इस चमत्कार से रोयेगा...अब कॉमिक्स में मनोरंजन की बची खुची मंजिल सिर्फ पुराना उठाओ..नया छापो दिखाई दे रही है!

ऐसा महसूस होता है कि ऐसी तथाकथिक parallel series की कहानी सिर्फ खुद के पढने के लिए लिखी जा रही हैं..जब कुछ नवीन बचा नहीं होता है तभी इस तरह की कहानियों की बाढ़ आती है! किसी के कहने से शायद ही फर्क पड़े..ऐसे ही कॉपी/पेस्ट निकालते रहिये....जो दूसरी बची खुची पुरानी कहानियां हैं उनको भी अपनी इस नई तरह की मौलिकता में शामिल कर लें! यहाँ अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे पाठक मौजूद हैं..जो classic कहानियों से हुई छेड़छाड़ देखना पसंद करते हैं! (हम उस भीड़ का हिस्सा नहीं हैं)

अगर नरक आहुति में कुछ ख़ास और नया कहने लायक है तो वो सिर्फ अंत के 25 पन्ने हैं...जिनमे नागराज का नागमणि से रिश्ता टूटना और नियति की मृत्यु से उसके जीवन को नई दिशा मिलना दिखाया गया है! इन पन्नो में भावनाओं को प्रधानता दी गई है...जो पढने में अच्छी लगती है...लेकिन यह अच्छाई इतनी देर से आती है कि उसको पढने में पुराने बासी माल का ढेर छुप नहीं सकता! इसमें भी नियति के मरने का दृश्य बॉलीवुडिया है..जहाँ हीरो को गोली लगने से बचाने के लिए हमेशा कोई अपना सीना लेकर बीच में आ जाता है! नागराज की इस छोटी सी लव स्टोरी को लेखक ने 4 बड़े भाग लिखने के बाद भी पनपने का पूरा मौका दिए बिना ही खत्म कर दिया! जो रिश्ता मजबूत हो ही ना सका..उसके टूटने पर दिल से आह निकलने का सवाल ही नहीं हो सकता! यह अलग बात है कि नागराज को दहाड़े मारते दिखाकर लेखक ने उसके लिए सांत्वना बटोरने की भरपूर वीरगति वाली कोशिश जारी रखी! यह पाठको पर है कि वो इसको किस तरह से देखते हैं...... या आँसुओ में बह जाएँ या टिके रहे!

नागदंत कहानी में जुड चुका है..जिसकी ख़ास बात है कि देखने में वो 12 फिट का ऐसा लम्बा चौड़ा जवान है..जिसके चेहरे पर नाक भी अभी ठीक से विकसित नहीं हो पाई वहीँ मूंछो का नामो-निशान गायब है!
यहाँ से आगे जाकर खजाना सीरीज शुरू हो जायेगी...इंतज़ार करिए!

चित्रांकन- हेमंत जी यहाँ पर शुरूआती कॉमिक्स की तरह प्रभाव पूरी कॉमिक्स में एक समान नहीं रख पाए..शुरूआती साधारण पन्नो के बाद लगता है की आर्टवर्क ढलान पर है..लेकिन 45 पन्नो के बाद विनोद कुमार जी की इंकिंग से मामला संभलता है! 2 अलग अलग इंकर होने की वज़ह से आर्टवर्क में एक रूपता नहीं दिख पाती है! चित्रकार ने वैसे पूरी मेहनत से एक्शन सीन्स बनाए हैं..जिसमे लड़ाई वाले दृश्यों में ख़ास एंगल्स से बहुत प्रभावी ढंग से उभार आया है! अंतिम पन्नो पर नागराज के द्वारा सर्पबांध वाले दृश्य सचमुच जानदार बने हैं! सबसे ख़ास बात यहाँ भावपरक चेहरे बनाने में हेमंत जी ने सुधार किया है...नागमणि के चेहरे पर कुटिलता बहुत सही तरह से नज़र आती है..वहीँ नागराज के भी अलग-अलग भावप्रवण रूप देखने को मिलते हैं! नियति छोटे रोल में भी असरकारी ढंग से चित्रित करी गई है! बाबा गोरखनाथ के चेहरे पर दिखाई पड़ता तेज़ सच में मानसिक शान्ति देता लगता है! अगर कहा जाए कि कहानी से ज्यादा आर्टवर्क इस कॉमिक्स को प्रासंगिक बना गया..तो गलत नहीं होगा!

कलरिंग- शादाब,बसंत,मोहन प्रभु के द्वारा करी गई रंग सज्जा साधारण रही है...इसमें बहुत ज्यादा इफेक्ट्स नज़र नहीं आते...लगभग प्लेन वर्क है..जो कुछ हद्द तक इसको classic stories जैसा फील देता है! इसके उलट शब्दांकन में प्रयुक्त हुए कई नवीन आईडिया से कॉमिक्स वापस नए वक़्त में आ जाती है!

ओवरआल इस पूरी श्रृंखला के डायलॉग्स बहुत मेहनत से लिखे गए हैं! असल में सिर्फ संवाद ही इकलौता ऐसा विभाग है..जिसमे लेखक कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखते...बड़े बड़े दिमाग घुमा देने वाले संवाद...पढ़कर लगता है..जैसे वापस ज़िन्दगी घूमकर 20 साल पहले पहुँच गई! जिसमे सभी सीन पुराने देखे हुए हैं- और पढ़े जा रहे संवाद नए!...इसके लिए हम आधी तारीफ कर सकते हैं! लेकिन आधा खालीपन हमेशा बना रहेगा!

जो नए बच्चे राज कॉमिक्स से जुड़े हैं..वो यह सीरीज जरूर पढ़िए....क्यूंकि आपको असली-नकली के बीच फर्क महसूस नहीं होगा...और जो 25 साल से पढ़ रहे हैं..वो अपने विचार व्यक्तिकेंद्रित होकर ना करें..बल्कि NNN को सही दिशा दिखायें... क्यूंकि उसकी कश्ती डूबने से पहले हिचकोले खानी शुरू हो चुकी है!

Ratings :
Story...★★★★★☆☆☆☆☆
Art......★★★★★★★☆☆☆
Entertainment……★★★☆☆☆☆☆☆☆

PO PO POLA (2015)




Review-पो पो पोला (2015)
Genre-Adventure
,Comedy
Main character(s)- बांकेलाल,विक्रम सिंह,मरखप,स्वर्णलता,मोहक,घड़ियाल!

‪#‎Creative_team‬
Writer- Penciller - सुशांत पंडा
Inker-फ्रेंको
Colorist- बसंत पंडा
Calligrapher-नीरू

पो पो पोला...नाम सुनकर आपके दिमाग में जरूर कोई खम्बा कौंध गया होगा...जी हाँ आप सही हैं...यहाँ बात खम्बो की ही हो रही है...जिसपर टिकाई गई है..एक कमसिन काया...वो काया किसकी है..यह तो आप कॉमिक्स में जानियेगा! कॉमिक्स कैसी रही..यहाँ जानिये!

कहानी में इस बार जो कुछ होता है वो वास्तविकता में ना होकर सपनो के अन्दर हुआ है! यहाँ चीज़ वही दशको पुरानी है कि बांकेलाल फिर एक बार कोशिश करता है कि राजा को मारा जा सके...लेकिन वो खुद नहीं जानता है कि इस बार कहानी की डोर उसके हाथ में नहीं है! शुरुआत राजदरबार में चल रही रोजाना की कार्यवाही से होती है...जिसमे हमेशा की तरह एक ऋषि पंगा कर देता है..जिसको सुलझाने की ज़िम्मेदारी बांके के ऊपर आ जाती है! इसमें बांके हमेशा जो कुचक्र अपने फायदे के लिए करता आया है..वही यहाँ भी जारी है! इसलिए आगे की कहानी आप लोगों के लिए भी predictable है! जिसके दौरान एक तरफ यह कॉमिक्स कई जगह हंसाती है..तो कई जगह कमजोर भी लगती है!
कुछ ख़ास पन्ने जरूर अच्छे बने हैं...जैसे सालों के बाद एक बार फिर से बांके ने रानी स्वर्णलता पर डोरे डाले हैं! यह चीज़ बीच के कई साल तक गुम नज़र आ रही थी...मगर इसमें होते देखकर वापस मज़ा आता है..जब मोहक सिंह अपनी माँ को बचाने के जतन करता है!
पेज-15 पर मरखप की क्षमा के हाथो हुई धुलाई भी गुदगुदाती है...घड़ियाल द्वारा छिछोरी हरकतों में भी हंसी आती है....फिर जब मरखप और घड़ियाल मिलकर छिछोरे संवाद साथ में बोलते हैं..तो भी ठहाके लगाए जा सकते हैं! क्षमा की जलन, विक्रम सिंह का नशे में किया गया ज़ोरदार नृत्य और मरखप की बीवी की 99 टांगो वाला प्रसंग इस कॉमिक्स के कुछ आकर्षक पहलु हैं!
लेकिन एक बात जो महसूस हुई वो यह कि इन गुदगुदाने वाले पन्नो के बीच में जो कहानी बुनी गई थी...उसमे पुरानापन ही बना रहा..ना तो उसको पढने में दिलचस्पी जागती है..ना उससे कुछ नया निकलता है! अगर यह कहा जाए कि इस कहानी में हास्य अलग और कहानी अलग लगती है..तो गलत ना होगा!

यहाँ हमने कई जगह छिछोरा शब्द इस्तेमाल किया है...इससे तात्पर्य है कि कोई पुरुष किरदार महिला किरदार के साथ छेड़छाड़ करता हुआ दिखाया जाता है! यह चीज़ कुछ समय पहले तक तो ठीक थी..लेकिन जब इसको कुछ अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल गई तो हमेशा की तरह राज कॉमिक्स ने इसका भी Overuse कर लिया है! क्यूंकि अब हर कॉमिक्स में मरखप के माध्यम से यह दोहराया जा रहा है! ऐसी चीज़ें तभी अच्छी लगती हैं जब कभी कभार हो...या फिर कहानी में “स्तरीय हास्य” के बीच में हल्की फुल्की तरह से दिखाई जाएँ...लेकिन अगर कॉमिक्स में सिर्फ हास्य के नाम पर बकलोली होती रहे...तो यह किरदारों के साथ न्यायसंगत नहीं है! मरखप और क्षमा को लगातार एक ही तरह से दिखाया जा रहा है...इससे दोनों टाइप्ड हो गए हैं! इन दोनों के किरदारों में अब कुछ नया सोचा नहीं जा रहा जो गलत है! लेखक यदि पुरानी कहानियां के दोहराव से बचें...नवीन प्रसंग सोचें..नए किरदार जोड़ते हुए...कहानी का क्षेत्र ज्यादा से ज्यादा विस्तृत बनाएं तो बेहतर बात होगी! बांकेलाल में जो लगातार दोहराव होता जा रहा है..वही एक लाइन की कहानी..और वही दिखे सुने पात्र...आप कब तक बांके को सिर्फ राजा बनने की कोशिशो,मरखप को छिछोरी हरकतों और मोहक सिंह की बांके से जलन और विक्रम के भरोसे पर कहानी लिखते रहेंगे! storyline में बदलाव लाना अब जरूरी हो गया है..वरना बांकेलाल सीरीज में धीरे धीरे पाठको की रूचि कम होती जायेगी!
बेशक लेखक को हास्य के लिए कुछ तारीफ मिल जाए..पर कहानी में कोई ख़ास बात नहीं है! यह एक साधारण सी कॉमिक्स है!

चित्रांकन हमेशा की तरह ही है.. सुशांत जी का ट्रेडमार्क आर्ट जैसा उनकी पहचान बन चुका है! उसपर कुछ ख़ास कहने को नहीं है! कहानी को ठीक से प्रस्तुत करने लायक काम हुआ है! ना ज्यादा उत्साहित करता है और ना ज्यादा निरूत्साहित!

कुल मिलाकर पो-पो-पोला One Time Read जैसी है! बांके सीरीज में याद रखने लायक वैसे भी ज्यादा कुछ नहीं होता है! यह भी पढ़ें और भूल जाएँ!

Ratings :
Story...★★★★☆☆☆☆☆☆
Art......★★★★★★☆☆☆☆
Entertainment……★★★★★☆☆☆☆☆

RAJNAGAR RAKSHAK (2015)




Review- राजनगर रक्षक (2015)
Genre-Action,Sc
i-Fi,Suspense
Main character(s)- इंस्पेक्टर स्टील,ध्रुव,श्वेता,अनीस,मैकेनिक!

‪#‎Creative_team‬
Writer- स्तुति मिश्रा
Penciller / Inker– सुशांत पंडा
Colorists-सदिया,भक्त रंजन,मोहन प्रभु
Calligraphers-मंदार गंगेले,नीरू

इस कॉमिक्स का इंतज़ार करने की 2 ख़ास वज़हें थी..पहली स्तुति जी के रूप में एक नई लेखिका द्वारा ध्रुव को पढना...यानी कुछ अलग मिलने की उम्मीद और दूसरी वज़ह- पहली बार ध्रुव के साथ स्टील की जुगलबंदी का आनंद उठाना! पूरी कहानी पढने के बाद महसूस हुआ कि कुछ न कुछ तो अधूरा रह ही गया!

कहानी-
कहानी की शुरुआत एक छोटी सी भूमिका बांधती है...जिसमे है...द्वीतीय विश्व युद्ध के समय बना एक अनजाना खतरनाक आविष्कार! 2 पन्ने बाद पता चलता है कि कुछ दिन पहले “कोड नेम कॉमेट” में तबाह होकर खड़ा हुआ राजनगर इतनी जल्दी दोबारा से पूरी तरह बर्बाद हो चुका है! फिर नेशनल फारेस्ट में एक लम्बा चौड़ा एक्शन पैक्ड ड्रामा खेला जाता है..जिसमे एक Alien नज़र आता है! (RC के लेखको के पास ध्रुव vs एलियन के अलावा अब कुछ ख़ास बचा हो ऐसा लगता नहीं)..कहानी के अंत में मैकेनिक अपनी झलक दिखाकर जनता को खुश कर देता है..चैप्टर क्लोज!

1-श्वेता इस वक़्त “अंखियों से लेज़र मारे” Mode पर आ चुकी है..उसकी आँखें और क्या गुल खिलाएगी..यह आगे के भाग में!
2-शरीर से तो पहले ही था पर दिमाग से भी पैदल हो चुके इंस्पेक्टर स्टील की खलनायकी आगे के भाग में दिखेगी!
3-गटर यात्रा से सुगन्धित हो चुका ध्रुव.. दब के मरेगा या जल के..यह देखिये आगे के भाग में!
4-मैकेनिक की वापसी कैसी रही...यह भी आगे के भाग में!
5-एलियन प्रोटोप्लास्ट का क्या रहस्य है...आगे के भाग में!
6-राजनगर उजड़ कर हाइबरनेशन कैसे हो गया...आगे के भाग में!
7-अनीस रजा के बनाए ड्रोन और ह्यूमनॉइड किस प्रकार बदल कर गुनाहगार हो गए...आगे के भाग में!

तो लब्बोलुआब यह रहा कि आपको सबकुछ आगे के भाग में ही मिलेगा! ( बहुत-बहुत बधाई कि 60/- आपने सिर्फ advertisements की ऐसी किताब खरीदने में खर्च कर दिए जिसमे आपको मिलेगी 61 पन्नों की उबासी लाने वाली वाली Alien Invasion+Mass Destruction+Scientific Inventions+भाई-बहन का प्यार+On ड्यूटी सरका हुआ ऑफिसर+ग्लैडिएटर गैंग की जिम्नास्टिक+जंगल में खड्डा+खड्डे में चमगादड़+सदियों से जंगल में अकेले बैठा अंडे देता परग्रही+अनीस की दोस्ती+ और रहस्यमयी स्टील का बिना डायलाग का एक पेज)!

इतने में आपको कॉमिक्स का पूरा आनंद अगर मिल जाता है तो जरूर लें...वैसे घटनाएं अगर एक sequence में चलती रहे तो एक के ख़त्म होने पर तसल्ली लगती है..कि चलो आगे कुछ नया दिखेगा...पर राज कॉमिक्स में अब एक परिपाटी चल पड़ी है...कि 10 अलग घटनाओं को 2-2 पेजेज में juggling करते हुए...कहानी में डाला जाता है..एक पर दिमाग स्थिर नहीं हो पाता...दूसरी और थमा दी जाती है! पता नहीं मनोरंजन के लिए कॉमिक्स पढ़ी जा रही है..या दिमाग की कसरत कराने के लिए!
किन्ही कारणों से चाहे लेखक के कॉलम में स्तुति जी का नाम आपको दिखे...लेकिन संवादों को पढ़कर आसानी से समझ आ जाएगा कि यह सब एक बार फिर नितिन मिश्रा जी की कलम से निकला हुआ है! सरल सी सिचुएशन में भी कठिन और घुमावदार शब्दों का प्रयोग,जिसमे आपकी हिंदी पर पकड़ बनने के साथ ही अच्छी खासी रीजनिंग की प्रैक्टिस भी हो जायेगी! हम उम्मीद यह लगाकर चल रहे थे कि स्तुति जी शायद ऐसी कहानियों को कुछ हलके फुल्के अंदाज़ में पेश करेंगी..पर

पात्र-
ध्रुव के कट्टर फैन्स लिए यह भाग कमतर लगता है...वज़ह कि वो साइड हीरो की तरह दिखता है..जिसको इंस्पेक्टर स्टील की कहानी में व्यवसायिक कारणों से फिट किया गया है! पूरी कहानी में उसकी बस श्वेता से हुई नोंक झोंक ही कुछ आकर्षक लगती है! उसके बाकी पन्ने पुरानी कहानियों जैसे हैं! आपको अगर ध्रुव के एक्शन देखने हैं तो वो भी पुरानी फॉर्म के आस-पास भी नहीं फटक पाया है! बताओ Alien को मधुमक्खियों से हरा रहा है! (alien हिमयुग के अंत से जंगल में रह रहा है..मतलब जब मधुमक्खी बर्फ में दिखती भी नहीं थी...और आज युगों बाद वो मधुमक्खी देखकर ऐसे उछाल मारकर भाग खड़ा होता है..जैसे इससे पहले उनको देखा/सुना ही नहीं) Adaptation से लेकर survival Tactics तक के नियमो को धता बता दिया गया! बहुत तेज़ी से हीरो का एक्शन दिखाने के चक्कर में ऐसा ही होता है!

श्वेता का रोल इसमें अहम् नज़र आ रहा है! फिलहाल चंडिका नज़र नहीं आई है..तो उत्सुकता जाग जाती है कि इसकी क्या वज़ह हो सकती है!

स्टील अपनी पुरानी छवि से बाहर नहीं आ पाया है! बस यह जरूर है की उसने 200 किलो का वज़न और बढ़ा लिया है..यह अलग बात है कि लोखंडवाला काम्प्लेक्स अपनी movements की बढाई ऐसे करता है जैसे Matrix को भी पछाड़ देगा (हाँ भाई कई साल खाली बैठेगा तो शरीर और दिमाग पर मोटापा तो चढ़ ही जाना है)!
फिलहाल जैसी कहानी चल रही है..ग्लैडिएटर गैंग से भिडंत जैसी उसकी कई ऐसी आपराधिक गतिविधियाँ रोकने वाले स्टंट्स लोगों ने पढ़े हैं...यहाँ भी लगभग रिपीट टेलीकास्ट जैसा ही एक्शन शो है! यह उन्हें अच्छा लगेगा जो इंस्पेक्टर स्टील की सीरीज को जानते ही नहीं है!

कॉमिक्स का एकमात्र आकर्षक बंदा लगता है प्रोटोप्लास्ट नाम का Alien जो थोडा गुदगुदाता है..और थोडा रहस्य बनाता है! कहानी के अंत में बस वही याद रहता है!

अनीस रजा का रोल फिलहाल तो साधारण है! श्वेता का गुरु (काफी देर लगा दी श्वेता ने गुरु चुनने में..कई साल बाहर पढने के बाद उसको अक्ल आ गई..अपने शहर की प्रतिभा पर विश्वास करने की) ‪#‎Crazy_Girl‬

चित्रांकन- सुशांत जी ने पेंसिल+इंकिंग दोनों करी है..ध्रुव को उन्होंने ठीक ठाक बनाया है...ना ज्यादा अच्छा लगता है..ना ज्यादा खराब! स्टील उम्दा बना है...लेकिन सबसे ख़ास बनाई है श्वेता...जो काफी अलग नज़र आ रही है! पिछली कॉमिक्स कोड नेम कॉमेट में जिस तरह से श्वेता बहनजी लग रही थी..उसकी तुलना में इस कॉमिक्स में वो बहुत सुंदर दिखी है! प्रोटोप्लास्ट भी अभी तक ठीक ठाक बना है! आर्टिस्ट ने नेशनल फारेस्ट का बैकग्राउंड वर्क काफी अच्छा किया है! जिससे पन्ने काफी भरे-भरे लगते हैं!
कवर आर्ट एक दम बेमज़ा और अस्वीकार्य है...श्वेता और ध्रुव बहुत बचकाने बने हैं! अंदर शुरूआती 30-35 पन्ने आकर्षक ढंग से बनाये गए हैं..लेकिन 40-50 तक pages में आर्टवर्क का स्तर गिर जाता है...फिर अंतिम पेजेज में संभल जाता है! यानी उतार-चढ़ाव मौजूद हैं!

सदिया,भक्त रंजन और मोहन प्रभु...तीन लोगों ने कॉमिक के इफेक्ट्स करे हैं....और पूरी कॉमिक्स काफी रंगबिरंगी लगती है! शुरूआती पन्ने जहाँ बर्बादी,आग, धुंए से भरे हैं...वहीँ बीच में जंगल के द्वारा काफी हरियाली नज़र आई है! अंत में लैब्स के नीले रंग से चित्रांकन सुकून देता है!

शब्दांकन- नीरू/मंदार जी द्वारा हुआ है...स्टील, ह्यूमनॉइड के लिए ख़ास मशीनी boxes में संवाद नज़र आये हैं! इसी तरह से प्रोटोप्लास्ट (alien) के लिए भी एक नए तरह का bubble बनाया गया है! कुल मिलाकर दोनों ने कम पेजेज में एक बड़ी कहानी को खूबसूरती से पिरोया है!

डायलॉग्स के मामले में कहानी इस बार थोड़ी हल्की और शान्ति से आगे बढती है (सिर्फ पुरानी कुछ कहानियों की तुलना में)..हमेशा की तरह दिखने वाले बोझिल संवाद थोड़े कम हैं...लेकिन क्यूंकि हमेशा की तरह ही narration गायब है..इसलिए कहानी बहुत तेज़ी से भागती है! कॉमिक्स के एक्शन सीक्वेंस भी चलताऊ किस्म के बनाये गए हैं..जिसमे किसी नवीनता के होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता! ध्रुव की एक्शन ट्रिक्स अब predictable हो गई हैं..वो जैसे ही कुछ सोचता है..पाठक समझ जाते हैं कि वो आगे क्या करने वाला है...इन छोटी कमियों को दूर करना चाहिए!

लेखिका के लिए यह एक बड़ी चुनौती उभरी है कि वो कहानी में पाठक की उत्सुकता को बनाये नहीं रख पाई हैं! बेहतर होता यह कहानी 60 की जगह 90 पन्नो में दी जाती जिससे मैकेनिक को 30 पन्नो की अच्छी खासी फुटेज मिल जाती..जिससे कॉमिक्स का अंत थोडा बेहतर बन जाता!
वैसे ऐसा नहीं है कि यह कहानी बोरियत से भरी है...लेकिन इतना जरूर है कि यह कुछ खासा मनोरंजन भी नहीं देती है! यह कुछ इस तरह से बनाई गई है जैसे आप ना पूरा मज़ा ले पाते हैं..और ना कहानी में कुछ समझ पाते हैं! तो कुछ और महीने इंतज़ार करने के सिवा आपके पास कोई चारा नहीं है! शायद पूरी सीरीज को एक साथ पढने के बाद ही इस कहानी में कुछ आनंद जाग जाए!

Ratings :
Story...★★★★★★☆☆☆☆
Art......★★★★★★★☆☆☆
Entertainment……★★☆☆☆☆☆☆☆☆