Review-नरक आहुति (2015)
Genre-Adventure
Main character(s)- नागराज,नागमणि,त
#Creative_team
Writer- नितिन मिश्रा
Penciller – हेमंत कुमार
Inkers-विनोद कुमार,ईश्वर आर्ट्स
Colorists-शादाब
Calligraphers-म
उत्पत्ति श्रृंखला का “नरक नाशक” से शुरू हुआ कारवां “नरक नियति”,”नरक दंश” से होता हुआ “नरक आहुति” पर जाकर थम चुका है (यह लेखक का कहना है)....यानी ख़त्म होने में काफी लम्बा वक़्त इंतज़ार करवाया इस कहानी ने! जब भी आप अंत पर आकर खड़े होते हैं..तो पीछे मुड़कर एक बार अपने प्रिय हीरो के साथ चले सफ़र के बारे में जरूर सोचते हैं! आपके होठो पर मुस्कान तभी उभरती है..जब आप ईमानदारीपूर्वक अपनी यात्रा को अंत दे चुके हो..अगर ऐसा नहीं है..तो संशय उभरता है! एक लेखक के लिए यह एक बड़ी चुनौती है..कि वो अपने पाठको को वो सब दे..जिसकी उम्मीद करी जाती है! समीक्षक के तौर पर किसी भी काम पर टिप्पणी देते समय यह एक बड़ी मुश्किल होती है कि वो टिप्पणी तटस्थ होकर उस काम के पहलुओं को सामने रखे! यह किसी को पता नहीं चल सकता है कि कौन सी चीज़ कब अच्छी लगने लगे और कब खारिज कर दी जाए!
नरक नाशक नागराज एक ऐसे हीरो है जो कि हमारी अपनी पृथ्वी का नहीं है! दूसरे अर्थो में यह हमारे दिलों से जुड़ा हुआ नहीं है, क्यूंकि वो ख़ास जगह हम लोग पहले ही विश्वरक्षक नागराज को दे चुके हैं! थोड़ी सी जगह अगर बचती भी है तो उसपर आतंकहर्ता का हक जमा हुआ है!
ऐसे में राज कॉमिक्स एक तीसरा नागराज यह कहते हुए पेश करती है कि यह आपको वो सब देगा जो पहले वाले 2 नागराज नहीं दे सके! (यह राज कॉमिक्स का मौखिक/
खैर,इस बीच जब उत्पत्ति श्रृंखला बीच में शुरू कर दी गई..तो पहली उम्मीद यही थी..कि जिस तरह यह नागराज हमारी पृथ्वी का नहीं है...उसी तरह से इसकी उत्पत्ति भी हमारे अपने नागराज जैसी नहीं होगी! यहाँ पर भी कुछ पाठक कहेंगे..कि यह सोच सरासर गलत है (इन्हें भंगार जमा करने की आदत जो पड़ी है)...लेकिन इन्हें हमारी सोच गलत क्यूँ लगती है जब हम आपके लिए ही हमेशा कहते हैं कि कोई भी कहानी पुरानी जैसी नहीं बल्कि नई लिखी जानी चाहिए?....हम जब मूल्य चुका रहे हैं..तो original चीज़ के लिए चुका रहे हैं...Photocopy
दिखाया गया है कि नागमणि के साथ नागराज का बचपन गुजरा...चलिए उसमे आपका कोई जोर नहीं है...वो आपकी मजबूरी थी..कि नागराज को किसी ना किसी के पास पाला जाना ही था!..लेकिन उसके बाद जब आपने नागराज की नीलामी भी करवा दी..वहीँ से आपकी मौलिक सोच पर प्रश्नचिन्ह लग गए (क्या यह जरूरी था कि इसके बिना आपकी origin चलती ही नहीं)...यहाँ पर हम जिसको विश्वरक्षक की कहानी से जुड़ा महसूस कर रहे थे..उसमे एक के बाद एक बुलडॉग,सिल्विया
कहानी-
नरक दंश से चलकर कहानी आगे बढती है...नागराज के सिल्विया के साथ एक अपराध को अंजाम देकर..वहां से निकलने के बाद बाबा गोरखनाथ से अपना दिमाग ठीक करवाकर...नागमणि
भूगोल का उपयोग करके लेखक इतना तो बता देते हैं कि “युवक नागराज” काशी आया है..लेकिन वो यह नहीं बताते कि “बाल नागराज” जिसमे कूदा वो सुप्तावस्था में मौजूद ज्वालामुखी भारत के कौन से हिस्से में पड़ता है? लेखक के अनुसार नागराज महानगर में रहता है..जो पश्चिमी तट पर है! गोरखनाथ के रहने की दिशा हिमालय हुई ..इसलिए ज्वालामुखी भी इसी तरफ कहीं होगा! यदि नागराज देव कालजयी के आशीर्वाद से उत्पन्न हुआ बालक कहा जा रहा है तो यह सबकुछ पूर्व निर्धारित है...ऐसे में कॉमिक्स में मंदिर में उनकी मूर्ती के होने की कोई ख़ास वज़ह क्यूँ नहीं बताई गई? देव कालजयी की मूर्ती हिमालय की कंदराओ में क्यूँ रखी हुई है..जबकि उसको होना चाहिए था...समुद्र की तरफ किसी गुप्त जगह जहाँ से उसको तक्षकनगर से जोड़ा गया है..सिवाय इसके कि माफिया की उसपर नज़र थी! यहाँ पर लेखक द्वारा जो विश्वरक्षक की खजाना और आतंकहर्ता की पहली कॉमिक्स को जोड़कर बिना ओर छोर वाली एक तीसरी ही कहानी रच डाली गई है उससे यह कहानी दोबारा अधूरी और confusion देने वाली बनकर ही रह गई!
यहाँ पर नागराज ज्वालामुखी के अन्दर जाता है..लेकिन उसको बांबी के मुहाने पर ही “तक्षक” मिल जाता है! जिस “बांबी कॉमिक्स” से तक्षक को लिया गया है उसमें तक्षक ..पृथ्वी के केंद्र की तरफ इतनी नीचे छुपकर रहता था...कि वहां जाते हुए नागराज के शरीर में भारीपन से हिलने तक की ताकत नहीं बची थी...यहाँ वो तक्षक (जिसको लड़ना भी नहीं है)
1-पहरेदार बना हुआ क्यूँ सबसे ऊपर आ गया?
2-नागराज और त्रिसर्पी के शरीर बांबी से नीचे जाते हुए भारीपन से क्यूँ नहीं गुजरे?
3-जिस तक्षक को तोड़ने के लिए भी जवान नागराज को एड़ी चोटी का पसीना बहाना पड़ा था..उसको जोड़ने के लिए 14 साल का नागराज आराम से सिर्फ हाथ हिलाकर एक कर देता है.. हमेशा ही किसी भी तांत्रिक/
नागराज-नगीना की काशी यात्रा लगभग खजाना की मंदिर खोजो यात्रा से मिलता जुलता रूपांतरण है..जिसमे उसपर विषपुरुष वार कर रहे हैं! यहाँ भी पुराना माल? दोनों का इस वक़्त एक साथ होना पुरानी खजाना सीरीज की ही याद दिलाता है..जिसमे अंत में नगीना नागराज को धोखा दे देगी (कोई भी सट्टा लगा सकता है इस बात पर)! तो एक बार फिर से कहाँ है वो “मौलिकता” जिसपर किसी भी सेमिनार में लेखक सबसे ज्यादा जोर देकर विचार कहते हैं!? कोई फिल्म देखिये....सवाल किया जाता है अरे यार इतने पैसे डाले..और फिल्म में वही घिसा-पिटा plot....अब हम क्यूँ ना कहें कि अपने प्रिय हीरो को लम्बा इंतज़ार करने के बाद पढने बैठे..तो मिला क्या..वही सब जो बचपन में पढ़ा था?
पिरामिडो की रानी,तूतन खामन का पूरा प्रसंग जो तक्षक से शुरू हुआ था...वो भी अब तक अधूरा है....इसके बाद नरक दंश में जो “पंचनाग” दिखाए थे...वो भी इस कॉमिक्स में गायब हैं! जब उनका इस कहानी में इस्तेमाल था ही नहीं तो क्यूँ पहले से दिखाए? उनको आगे ही दिखाया जाता..पर जबरदस्ती ठूसना था?
अब आप किसी कहानी को पहली बार पढ़ते हैं तब वो आपका मनोरंजन करती है लेकिन जब वही कहानी दूसरी बार आपके सामने आती है तो उससे आप सिर्फ अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं...उत्साहित नहीं हो सकते! यह एक ऐसी ही श्रृंखला है!
कहानी का 70% हिस्सा विश्वरक्षक और आतंकहर्ता नागराज से उठाकर कुछ हल्की फेरबदल के साथ 30% नए प्रसंगों में मिलाकर पेश किया गया है! मोटे तौर पर यह पूरी कहानी ही रिपीट शो है! नरक नाशक का बाल्यकाल बिल्कुल बेअसर और बासी निकलता है! नरक नाशक की अच्छी खासी चलती सीरीज में इतनी जल्दी इस उद्देश्यहीन कहानी को लिखने के पीछे क्या वज़ह रही होगी..यह लेखक को पता होगी..पर इसको पढने के लिए पाठको के पास ऐसी कोई वज़ह नहीं है..जिसको बताकर उनका उत्साह जगाया जा सके! उल्टा इस पूरी सीरीज को पढने के बाद पुरानी कहानियों का महत्व भी क्षीण हो जाता है..क्यूंकि जिन कहानियों को तथाकथित मास्टरपीस की संज्ञा दी जाती थी..अब वो सभी भी आजकल की इन नई कहानियों के नीचे दबाकर बदमज़ा कर दी गई हैं! आप कभी सोचते थे...कि नागराज की पहली कॉमिक्स क्या जोरदार थी...या गन मास्टर हुड वाली,या खजाना या त्रिफना..या आगे जाकर वुल्फा...अब क्या कहेंगे..कि वो सब बेकार थी..यह नई वाली ज्यादा अच्छी हैं!
इस बात से इनकार नहीं करा जा सकता है कि जो कहानियां नरक नाशक के लिए अब लिखी जा रहे हैं..वो ना सिर्फ खतरनाक रूप से पूर्वनिर्धारित और Predictable हैं...वहीँ असल नागराज के universe को बहुत ज्यादा कमजोर करती जा रही हैं! इसका सबसे ज्यादा निराशाजनक पहलु एक के बाद एक लगातार अनुपम सिन्हा जी की लिखी कहानियों को दूहने से जुड़ा है..जिनकी एक समय मिसाल दी जाती थी! एक तरफ पाठक आशा लगाए बैठे हैं कि अनुपम जी जो प्रसंग सालों पहले अधूरे छोड़ गए थे..उनको आगे बढाया जाएगा...दूसरी तरफ लेखक उनपर काम करने के बजाय सिर्फ कॉपी/
यह निराशाजनक है!
अगली कहानी नाग ग्रन्थ की है..जिसमे तूतेन तू को ले जाकर वुल्फानो तक का कबाड़ा होता दिखेगा! नरकनाशक तो बिना ब्रेक की गाडी में ड्राइव कर ही रहा है...उसमे कोबी-भेड़िया की सीरीज भी दूसरी सीट पर बैठेगी...मतलब वुल्फा,सुर्वया.
ऐसा महसूस होता है कि ऐसी तथाकथिक parallel series की कहानी सिर्फ खुद के पढने के लिए लिखी जा रही हैं..जब कुछ नवीन बचा नहीं होता है तभी इस तरह की कहानियों की बाढ़ आती है! किसी के कहने से शायद ही फर्क पड़े..ऐसे ही कॉपी/पेस्ट निकालते रहिये....जो दूसरी बची खुची पुरानी कहानियां हैं उनको भी अपनी इस नई तरह की मौलिकता में शामिल कर लें! यहाँ अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे पाठक मौजूद हैं..जो classic कहानियों से हुई छेड़छाड़ देखना पसंद करते हैं! (हम उस भीड़ का हिस्सा नहीं हैं)
अगर नरक आहुति में कुछ ख़ास और नया कहने लायक है तो वो सिर्फ अंत के 25 पन्ने हैं...जिनमे नागराज का नागमणि से रिश्ता टूटना और नियति की मृत्यु से उसके जीवन को नई दिशा मिलना दिखाया गया है! इन पन्नो में भावनाओं को प्रधानता दी गई है...जो पढने में अच्छी लगती है...लेकिन यह अच्छाई इतनी देर से आती है कि उसको पढने में पुराने बासी माल का ढेर छुप नहीं सकता! इसमें भी नियति के मरने का दृश्य बॉलीवुडिया है..जहाँ हीरो को गोली लगने से बचाने के लिए हमेशा कोई अपना सीना लेकर बीच में आ जाता है! नागराज की इस छोटी सी लव स्टोरी को लेखक ने 4 बड़े भाग लिखने के बाद भी पनपने का पूरा मौका दिए बिना ही खत्म कर दिया! जो रिश्ता मजबूत हो ही ना सका..उसके टूटने पर दिल से आह निकलने का सवाल ही नहीं हो सकता! यह अलग बात है कि नागराज को दहाड़े मारते दिखाकर लेखक ने उसके लिए सांत्वना बटोरने की भरपूर वीरगति वाली कोशिश जारी रखी! यह पाठको पर है कि वो इसको किस तरह से देखते हैं...... या आँसुओ में बह जाएँ या टिके रहे!
नागदंत कहानी में जुड चुका है..जिसकी ख़ास बात है कि देखने में वो 12 फिट का ऐसा लम्बा चौड़ा जवान है..जिसके चेहरे पर नाक भी अभी ठीक से विकसित नहीं हो पाई वहीँ मूंछो का नामो-निशान गायब है!
यहाँ से आगे जाकर खजाना सीरीज शुरू हो जायेगी...इंतज़ार
चित्रांकन- हेमंत जी यहाँ पर शुरूआती कॉमिक्स की तरह प्रभाव पूरी कॉमिक्स में एक समान नहीं रख पाए..शुरूआती साधारण पन्नो के बाद लगता है की आर्टवर्क ढलान पर है..लेकिन 45 पन्नो के बाद विनोद कुमार जी की इंकिंग से मामला संभलता है! 2 अलग अलग इंकर होने की वज़ह से आर्टवर्क में एक रूपता नहीं दिख पाती है! चित्रकार ने वैसे पूरी मेहनत से एक्शन सीन्स बनाए हैं..जिसमे लड़ाई वाले दृश्यों में ख़ास एंगल्स से बहुत प्रभावी ढंग से उभार आया है! अंतिम पन्नो पर नागराज के द्वारा सर्पबांध वाले दृश्य सचमुच जानदार बने हैं! सबसे ख़ास बात यहाँ भावपरक चेहरे बनाने में हेमंत जी ने सुधार किया है...नागमणि के चेहरे पर कुटिलता बहुत सही तरह से नज़र आती है..वहीँ नागराज के भी अलग-अलग भावप्रवण रूप देखने को मिलते हैं! नियति छोटे रोल में भी असरकारी ढंग से चित्रित करी गई है! बाबा गोरखनाथ के चेहरे पर दिखाई पड़ता तेज़ सच में मानसिक शान्ति देता लगता है! अगर कहा जाए कि कहानी से ज्यादा आर्टवर्क इस कॉमिक्स को प्रासंगिक बना गया..तो गलत नहीं होगा!
कलरिंग- शादाब,बसंत,मोहन
ओवरआल इस पूरी श्रृंखला के डायलॉग्स बहुत मेहनत से लिखे गए हैं! असल में सिर्फ संवाद ही इकलौता ऐसा विभाग है..जिसमे लेखक कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखते...बड़े बड़े दिमाग घुमा देने वाले संवाद...पढ़कर लगता है..जैसे वापस ज़िन्दगी घूमकर 20 साल पहले पहुँच गई! जिसमे सभी सीन पुराने देखे हुए हैं- और पढ़े जा रहे संवाद नए!...इसके लिए हम आधी तारीफ कर सकते हैं! लेकिन आधा खालीपन हमेशा बना रहेगा!
जो नए बच्चे राज कॉमिक्स से जुड़े हैं..वो यह सीरीज जरूर पढ़िए....क्यूंकि
Ratings :
Story...★★★★★☆☆
Art......★★★★★★
Entertainment……