Review-पो पो पोला (2015)
Genre-Adventure
Main character(s)- बांकेलाल,विक्रम
#Creative_team
Writer- Penciller - सुशांत पंडा
Inker-फ्रेंको
Colorist- बसंत पंडा
Calligrapher-नी
पो पो पोला...नाम सुनकर आपके दिमाग में जरूर कोई खम्बा कौंध गया होगा...जी हाँ आप सही हैं...यहाँ बात खम्बो की ही हो रही है...जिसपर टिकाई गई है..एक कमसिन काया...वो काया किसकी है..यह तो आप कॉमिक्स में जानियेगा! कॉमिक्स कैसी रही..यहाँ जानिये!
कहानी में इस बार जो कुछ होता है वो वास्तविकता में ना होकर सपनो के अन्दर हुआ है! यहाँ चीज़ वही दशको पुरानी है कि बांकेलाल फिर एक बार कोशिश करता है कि राजा को मारा जा सके...लेकिन वो खुद नहीं जानता है कि इस बार कहानी की डोर उसके हाथ में नहीं है! शुरुआत राजदरबार में चल रही रोजाना की कार्यवाही से होती है...जिसमे हमेशा की तरह एक ऋषि पंगा कर देता है..जिसको सुलझाने की ज़िम्मेदारी बांके के ऊपर आ जाती है! इसमें बांके हमेशा जो कुचक्र अपने फायदे के लिए करता आया है..वही यहाँ भी जारी है! इसलिए आगे की कहानी आप लोगों के लिए भी predictable है! जिसके दौरान एक तरफ यह कॉमिक्स कई जगह हंसाती है..तो कई जगह कमजोर भी लगती है!
कुछ ख़ास पन्ने जरूर अच्छे बने हैं...जैसे सालों के बाद एक बार फिर से बांके ने रानी स्वर्णलता पर डोरे डाले हैं! यह चीज़ बीच के कई साल तक गुम नज़र आ रही थी...मगर इसमें होते देखकर वापस मज़ा आता है..जब मोहक सिंह अपनी माँ को बचाने के जतन करता है!
पेज-15 पर मरखप की क्षमा के हाथो हुई धुलाई भी गुदगुदाती है...घड़ियाल द्वारा छिछोरी हरकतों में भी हंसी आती है....फिर जब मरखप और घड़ियाल मिलकर छिछोरे संवाद साथ में बोलते हैं..तो भी ठहाके लगाए जा सकते हैं! क्षमा की जलन, विक्रम सिंह का नशे में किया गया ज़ोरदार नृत्य और मरखप की बीवी की 99 टांगो वाला प्रसंग इस कॉमिक्स के कुछ आकर्षक पहलु हैं!
लेकिन एक बात जो महसूस हुई वो यह कि इन गुदगुदाने वाले पन्नो के बीच में जो कहानी बुनी गई थी...उसमे पुरानापन ही बना रहा..ना तो उसको पढने में दिलचस्पी जागती है..ना उससे कुछ नया निकलता है! अगर यह कहा जाए कि इस कहानी में हास्य अलग और कहानी अलग लगती है..तो गलत ना होगा!
यहाँ हमने कई जगह छिछोरा शब्द इस्तेमाल किया है...इससे तात्पर्य है कि कोई पुरुष किरदार महिला किरदार के साथ छेड़छाड़ करता हुआ दिखाया जाता है! यह चीज़ कुछ समय पहले तक तो ठीक थी..लेकिन जब इसको कुछ अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल गई तो हमेशा की तरह राज कॉमिक्स ने इसका भी Overuse कर लिया है! क्यूंकि अब हर कॉमिक्स में मरखप के माध्यम से यह दोहराया जा रहा है! ऐसी चीज़ें तभी अच्छी लगती हैं जब कभी कभार हो...या फिर कहानी में “स्तरीय हास्य” के बीच में हल्की फुल्की तरह से दिखाई जाएँ...लेकिन अगर कॉमिक्स में सिर्फ हास्य के नाम पर बकलोली होती रहे...तो यह किरदारों के साथ न्यायसंगत नहीं है! मरखप और क्षमा को लगातार एक ही तरह से दिखाया जा रहा है...इससे दोनों टाइप्ड हो गए हैं! इन दोनों के किरदारों में अब कुछ नया सोचा नहीं जा रहा जो गलत है! लेखक यदि पुरानी कहानियां के दोहराव से बचें...नवीन प्रसंग सोचें..नए किरदार जोड़ते हुए...कहानी का क्षेत्र ज्यादा से ज्यादा विस्तृत बनाएं तो बेहतर बात होगी! बांकेलाल में जो लगातार दोहराव होता जा रहा है..वही एक लाइन की कहानी..और वही दिखे सुने पात्र...आप कब तक बांके को सिर्फ राजा बनने की कोशिशो,मरखप को छिछोरी हरकतों और मोहक सिंह की बांके से जलन और विक्रम के भरोसे पर कहानी लिखते रहेंगे! storyline में बदलाव लाना अब जरूरी हो गया है..वरना बांकेलाल सीरीज में धीरे धीरे पाठको की रूचि कम होती जायेगी!
बेशक लेखक को हास्य के लिए कुछ तारीफ मिल जाए..पर कहानी में कोई ख़ास बात नहीं है! यह एक साधारण सी कॉमिक्स है!
चित्रांकन हमेशा की तरह ही है.. सुशांत जी का ट्रेडमार्क आर्ट जैसा उनकी पहचान बन चुका है! उसपर कुछ ख़ास कहने को नहीं है! कहानी को ठीक से प्रस्तुत करने लायक काम हुआ है! ना ज्यादा उत्साहित करता है और ना ज्यादा निरूत्साहित!
कुल मिलाकर पो-पो-पोला One Time Read जैसी है! बांके सीरीज में याद रखने लायक वैसे भी ज्यादा कुछ नहीं होता है! यह भी पढ़ें और भूल जाएँ!
Ratings :
Story...★★★★☆☆☆
Art......★★★★★★
Entertainment……
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