कॉमिक रिव्यूः अलादीन
पात्र: सुपर कमांडो ध्रुव,श्वेता,रा
जन मेहरा,मुख्य खलनायक
राइटर-आर्टिस्ट- अनुपम सिन्हा
लम्बाई : 44 पन्ने
आर्टवर्क-
यह अकेली ऐसी चीज़ है...जिसको आँख मूंदकर पसंद किया जा सकता है! उम्दा
"अलादीन" ध्रुव के जुनूनी पाठक को कुछ ऐसा नहीं देती जिसपर आनंदित हुआ जा सके!...यह बात अलग है कि पाठक अनुपम जी का ध्रुव चाहते हैं... उनकी मुराद पूरी करती है ....पढ़ लीजिये..और नैनो का इंतज़ार करिए!
पात्र: सुपर कमांडो ध्रुव,श्वेता,रा
राइटर-आर्टिस्ट-
लम्बाई : 44 पन्ने
कहानी:2/5
आर्टवर्क-4.5/5
वक़्त वक़्त की बात है...."अलादीन" नाम तो पुराने समय का है...मगर कहानी स्मार्टफोन इस्तेमाल करते आज के युग के खलनायक के बारे में है! यह खलनायक वीडियो गेम्स का धुरंधर खिलाड़ी है! ऐसे खिलाडी के सामने हमारा ध्रुव बच्चा ही होना चाहिए..क्यूंकि ध्रुव को गेम्स में हाथ आजमाते शायद ही किसी ने देखा हो! मगर ध्रुव के पास एक काबिल बहन है...श्वेता! इतना बड़ा ट्रम्प कार्ड हाथ में होने की वज़ह से उसने हमेशा बहुत सी लड़ाइयाँ आसानी से जीती हैं...और अलादीन भी इससे कुछ अलग नहीं है!
अब कहानी क्या है...इसमें दिमाग लगाने लायक कुछ मिलता नहीं....पहली बात तो आपको गेम्स का शौक होना जरूरी है..तभी इतने टेक्निकल नामो को हज़म कर सकेंगे...वरना आपका हाल भी कॉमिक्स में दिखाए गए पुलिस इंस्पेक्टर से अलग नहीं होगा!
असल में कहानी में जो रहस्य बनाने की कोशिश होती है...वो बहुत बचकाना है....कहानी की शुरुआत में ही आप सोच लेंगे कि असली खलनायक कौन है? अब आगे क्या पढना चाहते हैं? कहानी इसमें कहीं मिलेगी ही नहीं!
है तो सिर्फ ऐसा एक्शन जिसपर वही विश्वास करेगा जो कोरा अंधविश्वासी हो!
ध्रुव की ज़िन्दगी में इस कहानी का कोई महत्व नहीं दिखता है....यह उसके 2 दिनी भाग दौड़ वाले एक रद्दी केस से ज्यादा कुछ नहीं है! जिसको याद रखना भी मुश्किल है...यकीन ना हो तो खुद से पूछिए कि आप कितने दफा बार बार इसको पढना चाहते हैं.... पहली बात तो यह समझ से बाहर की बात है...कि क्यूँ ध्रुव को दोबारा से "मुझे सब पहले से पता है" टाइप बनाने की कोशिश इसमें हुई है....आप अपनी हंसी रोक नहीं सकेंगे जब पेज-36 पर खलनायक आराम की मुद्रा में जश्न मनाता दिखता है...और अगले ही पन्ने में ध्रुव बड़े आराम से पैदल चलकर आते ही उसके चेहरे का मास्क उतार देता है! अगर 100 से ऊपर केस सोल्व करने के बाद भी अब इतनी ही आसानी से सब कराया जाना है...तो इसमें रोमांचक कुछ भी नहीं है! इसके अलावा गौर करियेगा...आप महसूस कर सकते हैं..कि यहाँ पर कहानी को जबरदस्त एडिटिंग से गुजारा गया है...और एकदम से क्लाइमेक्स डाल दिया गया!...आप एक ऐसी कहानी से उम्मीद क्या करेंगे जो मनोरंजन के पक्ष में विफल साबित होती है!
कहानी के अंत पर दोबारा गौर करिएगा.....ध्रु व
अपने स्टार ट्रांसमीटर में लोडेड एंटी-वायरस को मेन कण्ट्रोल सेण्टर के
ऊपर मौजूद एक सुराख से अन्दर डाल देता है....एक धमाका और विलेन हार गया!
इस दुनिया में ऐसी कौन सी तकनीक ईजाद कर ली गयी है...जो एक प्रोग्रामिंग सॉफ्टवेयर को हार्डवेयर में सिर्फ फेंक देने से इतना सटीक रेस्पोंस दे रही है? की पूरा हार्डवेयर नेटवर्क बर्बाद हो गया!
अगर यहाँ कंप्यूटर वायरस का इस्तेमाल करना है..तो उसका इस्तेमाल विषाणु की तरह क्यूँ करा गया? जो तुरंत बीमारी को दूर कर देता है!
अनुपम जी की कहानियां मनोरंजन देने के मामले में लगातार मुहं की खाती जा रही हैं....कहानियों एक मात्र उद्देश्य सिर्फ एक्शन परोसना रह गया है जबकि ध्रुव अपने कथानक के बल पर पॉपुलर बना है!
आर्टवर्क-4.5/5
वक़्त वक़्त की बात है...."अलादीन" नाम तो पुराने समय का है...मगर कहानी स्मार्टफोन इस्तेमाल करते आज के युग के खलनायक के बारे में है! यह खलनायक वीडियो गेम्स का धुरंधर खिलाड़ी है! ऐसे खिलाडी के सामने हमारा ध्रुव बच्चा ही होना चाहिए..क्यूंकि ध्रुव को गेम्स में हाथ आजमाते शायद ही किसी ने देखा हो! मगर ध्रुव के पास एक काबिल बहन है...श्वेता! इतना बड़ा ट्रम्प कार्ड हाथ में होने की वज़ह से उसने हमेशा बहुत सी लड़ाइयाँ आसानी से जीती हैं...और अलादीन भी इससे कुछ अलग नहीं है!
अब कहानी क्या है...इसमें दिमाग लगाने लायक कुछ मिलता नहीं....पहली बात तो आपको गेम्स का शौक होना जरूरी है..तभी इतने टेक्निकल नामो को हज़म कर सकेंगे...वरना आपका हाल भी कॉमिक्स में दिखाए गए पुलिस इंस्पेक्टर से अलग नहीं होगा!
असल में कहानी में जो रहस्य बनाने की कोशिश होती है...वो बहुत बचकाना है....कहानी की शुरुआत में ही आप सोच लेंगे कि असली खलनायक कौन है? अब आगे क्या पढना चाहते हैं? कहानी इसमें कहीं मिलेगी ही नहीं!
है तो सिर्फ ऐसा एक्शन जिसपर वही विश्वास करेगा जो कोरा अंधविश्वासी हो!
ध्रुव की ज़िन्दगी में इस कहानी का कोई महत्व नहीं दिखता है....यह उसके 2 दिनी भाग दौड़ वाले एक रद्दी केस से ज्यादा कुछ नहीं है! जिसको याद रखना भी मुश्किल है...यकीन ना हो तो खुद से पूछिए कि आप कितने दफा बार बार इसको पढना चाहते हैं.... पहली बात तो यह समझ से बाहर की बात है...कि क्यूँ ध्रुव को दोबारा से "मुझे सब पहले से पता है" टाइप बनाने की कोशिश इसमें हुई है....आप अपनी हंसी रोक नहीं सकेंगे जब पेज-36 पर खलनायक आराम की मुद्रा में जश्न मनाता दिखता है...और अगले ही पन्ने में ध्रुव बड़े आराम से पैदल चलकर आते ही उसके चेहरे का मास्क उतार देता है! अगर 100 से ऊपर केस सोल्व करने के बाद भी अब इतनी ही आसानी से सब कराया जाना है...तो इसमें रोमांचक कुछ भी नहीं है! इसके अलावा गौर करियेगा...आप महसूस कर सकते हैं..कि यहाँ पर कहानी को जबरदस्त एडिटिंग से गुजारा गया है...और एकदम से क्लाइमेक्स डाल दिया गया!...आप एक ऐसी कहानी से उम्मीद क्या करेंगे जो मनोरंजन के पक्ष में विफल साबित होती है!
कहानी के अंत पर दोबारा गौर करिएगा.....ध्रु
इस दुनिया में ऐसी कौन सी तकनीक ईजाद कर ली गयी है...जो एक प्रोग्रामिंग सॉफ्टवेयर को हार्डवेयर में सिर्फ फेंक देने से इतना सटीक रेस्पोंस दे रही है? की पूरा हार्डवेयर नेटवर्क बर्बाद हो गया!
अगर यहाँ कंप्यूटर वायरस का इस्तेमाल करना है..तो उसका इस्तेमाल विषाणु की तरह क्यूँ करा गया? जो तुरंत बीमारी को दूर कर देता है!
अनुपम जी की कहानियां मनोरंजन देने के मामले में लगातार मुहं की खाती जा रही हैं....कहानियों
आर्टवर्क-
यह अकेली ऐसी चीज़ है...जिसको आँख मूंदकर पसंद किया जा सकता है! उम्दा
"अलादीन" ध्रुव के जुनूनी पाठक को कुछ ऐसा नहीं देती जिसपर आनंदित हुआ जा सके!...यह बात अलग है कि पाठक अनुपम जी का ध्रुव चाहते हैं... उनकी मुराद पूरी करती है ....पढ़ लीजिये..और नैनो का इंतज़ार करिए!
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