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Saturday, 31 January 2015

Hunters (2014)

Review-हन्टर्स (2014)
Genre-Drama,Action,Mystery
Main character(s)- ध्रुव,चंडिका/श्वेता,उलूक,जैकब,गिलिगिली!
‪#‎Creative_team‬
Writer, Penciller –अनुपम सिन्हा
Inker-विनोद कुमार
Colorists-बसंत पंडा,मोहन प्रभु
Calligraphers-मंदार  गंगेले,नीरू
 
Ratings :
Story...★★★★★★★
☆☆☆
Art......★★★★★★★★☆☆
Entertainment……★★★★★☆☆☆☆☆

हन्टर्स आपके हाथो में आ चुकी होगी! अनुपम जी की ध्रुव पर पिछली लिखी कुछ कहानियों के बनिस्पत इस सीरीज से सभी को बहुत उम्मीदें हैं! लेकिन जब से राज कॉमिक्स को कहानी 4-5 भागों से कम में खत्म करने का मन ही नहीं होता है.. तब से देखा गया है कि ज्यादातर कॉमिक्स इन्ही उम्मीदों के नीचे दब जाती हैं! आप भाग दर भाग पढ़ते जाइए..और अंत में जाकर सोचिये कि आपके साथ लम्बे समय तक क्या हुआ? फिर उसके कुछ दिनों बाद नयी उम्मीद आपके समक्ष परोस दी जाती है! आप दोबारा सुरूर में आने लायक बन चुके होते हैं!

अनुपम जी जब भी कोई सीरीज लिखते हैं...उसकी पहली कॉमिक्स में क्या हुआ,कैसे हुआ...समझ से बाहर ही लिखा जाता है! “हन्टर्स” ने भी इस परंपरा को आगे बढाया है! जैसा कि होता है किसी भी कहानी की रूपरेखा उसके पहले AD और कवर से बनती है! हन्टर्स के बारे में बताया गया था कि-
1-ध्रुव की माँ की कहानी दिखाई जायेगी!
2-ध्रुव के बालरूप के दर्शन करवाए जायेंगे!
3- कहानी में ब्लैक-कैट होगी! (कवर पर भी बनाई गई है!)
4-कहानी में कम से कम जादूगारी का प्रयोग होगा और कहानी को सजीव और सिंपल रखा जाएगा!

उपरोक्त सभी बातें “फिलहाल” नज़र नहीं आ रही हैं! ऐसा कहा जा सकता है कि जो सोचा था वैसे कहानी नहीं है...यह कुछ अलग ही निकलती है! मसलन-
1-कहानी ध्रुव को उसके परिवार के बीच भावनात्मक पलों और अपने रिश्ते नयी तरह से देखने पर केन्द्रित करती है!
2-अंकल जैकब के अतीत को खंगाला जा रहा है!
3-कहानी में नताशा का होना इस बात की तरफ इशारा करता है कि कहीं आगे रोबो भी कहानी में ना कूद पड़ें! या नताशा एक बार फिर से चंडिका बनकर श्वेता का राज बचाए रखे!
4-हन्टर्स को देखकर एक बात जाहिर होती है कि ध्रुव को पिता की तरह ही अपने ननिहाल की तरफ से भी विदेशी वातावरण मिलने वाला है!

कहानी की शुरुआत होती है ध्रुव की मौत से...पर कॉमिक्स के अंत के पन्नो तक यह मौत कहानी में कहीं नज़र नहीं आती..तो इसको शुरू में दिखाने का कोई मतलब समझ नहीं आता! 2 पन्ने बर्बाद!
फिर विदेश में बैठे हन्टर्स की थोड़ी सी भूमिका बाँधी जाती है...जिसको कुछ रहस्य बनाकर अगले भाग के लिए छोड़ दिया जाता है!
अब एक fight सीन होता है उलूक और चंडिका में...श्वेता घायल और उसका राज़ ध्रुव पर खुलने के पूरे आसार नज़र आने लगे हैं! लेकिन साथ ही कहानी में इतने सारे घुमावदार मोड़ भी आ जाते हैं..जिनको समझना अभी मुश्किल है! नताशा का अचानक से कहानी में आना...इशारा करता है कि वो संदेह के घेरे में है!

शून्य क्लू पर चलती कहानी में “गिलिगिली” के आने से थोडा मज़ा आता है..लेकिन फिर वही बात आ जाती है कि उसका किरदार realistic नहीं रहा! अब अगर वो बंद पड़ी कंप्यूटर की स्क्रीन में घुसकर... निकलता समुद्र में एक शिप पर है..तो समझा जा सकता है कि ध्रुव के बालरूप की कहानी में कम से कम जादूगरी हो ऐसा सोचकर पढने वाले को कैसे महसूस होगा! लेखक अगर उसकी इस ईश्वरीय कारनामे वाली प्लानिंग के बारे में विस्तार से आगे बताएँगे तो बहुत बेहतर लगेगा! क्यूंकि गिलिगिली ने ध्रुव के रूप में 100% परफेक्शन के साथ जो परफॉरमेंस किया...उसको भुलाने के लिए भांग के कितने लड्डू खाने की जरूरत पड़ेगी... बताया नहीं जा सकता!

पाठको को समीक्षा में क्या बताया जाए इसपर भ्रम की स्तिथियां है...कहानी अभी शुरू ही हुई है..इसलिए यह कहाँ तक जायेगी...क्या मिलेगा..कितना हज़म करने लायक है..कितना नहीं है...अभी इसपर अँधेरे में तीर चलाना बेकार है! कहानी सिर्फ यह बता पाई हैं कि चंडिका का राज़ अब लेखक चाहें भी तो भी खुलने से नहीं बचा सकते! क्यूंकि इसके लिए उन्हें ध्रुव को सरासर बेवकूफ दिखाना पड़ेगा,जो असम्भव बात है! इसी कहानी में ध्रुव के काम करने का ढंग संदेहास्पद लगना शुरू हो चुका है...कि जो हीरो बेस्ट डिटेक्टिव कहा जाता है..आखिर कुछ बातों पर कैसे अपनी नज़रें हमेशा फेर लेता है...चाहे श्वेता का राज़ हो..रिचा का राज़ हो..या नताशा के अपने बाप के काले धंधो में कितनी involvement है.....इसपर ध्यान देना हो! सिर्फ आशा रखी जा सकती है कि ध्रुव की डिटेक्टिव एप्रोच हर किरदार के लिए एक बराबर रहे!
इस भाग में ध्रुव के ननिहाल की ओर से कोई क्लू नहीं दिखा..और ना ही कोई यह सोच सकता है कि कहानी ध्रुव के बचपन की तरफ मोड़ दी जायेगी! अगर यह लेखक के द्वारा जानबूझकर किया गया है तो उन्हें advertisements के साथ तालमेल बनाये रखना चाहिए था! जहाँ जैकब अंकल को इतना महत्व नहीं दिया गया..वहीँ अब लग रहा है कि उनके बिना कहानी बनेगी ही नहीं! दूसरी ओर ज्यादा सस्पेंस बनाने की कोशिश में कई जगह पर कहानी Predictable सी लगने लगती है....जैसे ध्रुव के परिवार का उसपर इतना अभूतपूर्व अविश्वास करना,घर छोड़ देना..जो साफ़ स्पष्ट है कि ध्रुव के सोचे समझे मास्टरप्लान का हिस्सा है!
ध्रुव का श्वेता को लेकर भावनात्मक पहलु हर फैन के लिए अनजाना नहीं है...ऐसा हम सभी “गुप्त” कॉमिक्स में पहले भी पढ़/देख चुके हैं! यह संवेदना के पन्ने लगभग रिपीट टेलीकास्ट जैसे थे! कहानी अगर यूक्रेन में आगे जाती है तो बहुत बढ़िया लगेगा! क्यूंकि ध्रुव की विदेशी यात्रा पर बनी हर कहानी हिट रही हैं...उम्मीद करनी चाहिए यूक्रेन का महत्व कहानी में कम नहीं होगा!

संवाद- भावपूर्ण और दिल को छू लेने की कोशिशो से परिपूर्ण डायलॉग्स पढने को मिलते हैं! ध्रुव कई जगह उद्देलित होकर कड़े शब्द भी बोलता दिखा है! नताशा का मुहंफट अंदाज़ यहाँ भी जारी है! गिलिगिली अपने संवादों से जहाँ थोडा गुदगुदाता है....वहीँ अंतिम पृष्ठो में ध्रुव भी कुछ हद्द तक शुरू के भारी माहौल को हल्का करने में सफल होता है!

एक लाइन में इस कॉमिक्स की कहानी को बताना हो तो
“हन्टर्स को पाठको को दुःख के पलों में डुबाकर कहानी से भावनात्मक लगाव बनाने लिए सस्पेंस की कई परतें जोड़कर बनाया गया है!”

आर्टवर्क- मुबारक हो....नैनो के बाद फिर से पुराना ध्रुव मिल गया है...पुराने आर्ट के स्वाद पर इससे ज्यादा बेहतर टिप्पणी नहीं मिलेगी! अनुपम-विनोद जी की जोड़ी है! सबको पता है कैसा काम मिलता है! लेकिन कुल मिलाकर 10 साल पहले यह जोड़ी जो प्रभाव देती थी..अब उसमे काफी परिवर्तन आ गया है! आर्टवर्क 41 पेज तक जानदार लगता है..पर 42 से गिरावट आने लगती है...ध्रुव के बदलते आर्ट को देखकर आप लोग यह बदलाव महसूस कर सकते हैं! लेकिन फिर भी बहुत ज्यादा खराब नहीं है....एक Acceptable quality मेन्टेन रखी गई है!
रिचा को देखकर जरूर आश्चर्य हुआ...क्यूंकि वो पहचान में ही नहीं आई...अनुपम जी जब उसको बनाते हैं..तो उसके बाल curly रखते हैं...आप ब्लैक कैट के रूप में अंतर देख सकते हैं...पर इस बार उन्होंने बाल सीधे रख दिए! एक पल को लगा कि वो नताशा है! उसके बाल फिर से curly बनाइये!

रंगसंयोजन 60-65% तक की quality का है...बहुत ज्यादा इफेक्ट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया है...सिंपल कलर scheme में पूरी कॉमिक्स बनाई गई है! ग्लॉसी पेजेज की quality बहुत अच्छी है...जिसपर आर्ट उभर कर आया है!

शब्दांकन में एक बार फिर से Negatives कॉमिक्स वाली छाप नज़र आती है! उलूक के डायलॉग्स पर यह आप देख पायेंगे!

टिप्पणी- हन्टर्स मनोरंजन के लिहाज़ से बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं कर पाती है और खूनी खानदान सीरीज से इसकी तुलना करना अभी जल्दबाजी है! इसमें भागदौड़ तो ज्यादा है..लेकिन हाथ में कुछ नहीं आता! ध्रुव या तो दिमागी तौर पर बहुत चालाक दिखाया गया है या फिर बिल्कुल कमजोर! दूसरे सभी किरदार सिर्फ अपनी उपस्तिथि दर्ज कराकर चले जाते हैं! कौन क्या कर चुका और आगे क्या करेगा...यह जानने के लिए अब अगले भाग का इंतज़ार करिए! हम सिर्फ यही कह सकते हैं कि इसको सिर्फ बालचरित का 20-25% शुरुआती हिस्सा मानकर देखा जाए तो कॉमिक्स स्वीकार्य योग्य है!!

SARVSANHAAR (2014)


Review-सर्वसंहार (2014)
Genre-Sci-Fi-Action,Mythology,Comedy
Main character(s)- तिरंगा,शुक्राल,गगन,विनाशदूत,महामानव,युगम,ध्रुविष्य
‪#‎Creative_team‬
Writer-नितिन मिश्रा
Penciller-सुशांत पंडा
Inker-विनोद कुमार
Colorists-शादाब सिद्दीकी,बसंत पंडा
Calligraphers-मंदार गंगेले,नीरू

Ratings :
Story...★★★★★★★☆☆☆

Art......★★★★★★★☆☆☆
Entertainment……★★★★★★☆☆☆☆

कॉमिक्स पढ़कर उठने के बाद एक बात दिमाग में सबसे पहले आई कि राज कॉमिक्स ने सर्वनायक की शुरुआत ना जाने कौन मुहूर्त में करी थी..कि शुरू से ही इसमें सिर्फ विघ्न ही पड़ते जा रहे हैं! पहले के 2 भाग में कहानी के साथ आर्टवर्क भी दर्द दे रहा था..किसी तरह आर्टवर्क में सुधार आ रहा है तो कहानी मंल मौजूद Sub-stories दगाबाजी कर रही है! पिछले भाग में बड़ी मुश्किल से हालात संभले लग रहे थे...लेकिन ज्यादातर पाठकों ने इस भाग की कड़ी आलोचना करी है! उसमे कितनी सच्चाई है और कितने विरोधाभास हैं...चलिए देखते हैं-

>प्रस्तावना : आकाशगंगाओं के खलीफा (1-14)
यह भाग पिछले खंड में चाँद पर हो रही लड़ाई को आगे बढाता है! इसमें Action ज्यादा है! अगर आप गगन,विनाशदूत और ग्रहणों के फैन हैं..तो यह आपके लिए ही लिखा गया है! फिलहाल यह Sub-story अल्पविराम पर पहुँच गयी है! इस भाग में सबसे अच्छी चीज़ लगती है, लेखक के द्वारा पृष्ठ-10 पर लिखी गई बातें कि दिखाई जा रही यह सभी Sub-stories अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और आगे जाकर सर्वनायक प्रतियोगिताओं का अभिन्न हिस्सा बनेंगी! अर्थात् जो पाठक यह कहते और सोचते हैं कि यह सभी कहानियां बेकार है या इन्हें पढना फिजूल है..उन्हें अपनी सोच पर दोबारा विचार करना चाहिए!

>प्रथम अध्याय : काल्किन का आगमन (15-40)
यह अध्याय तिरंगा और शुक्राल के बीच एक प्रतियोगिता को दिखाता है...जिसमे दोनों को कलयुग के अंत में जाकर भगवान् विष्णु के जन्म लेते दशम अवतार “कल्कि” की खोज करके उसको दुश्मनों से बचाना है! यहाँ पर आसानी से पता चलता है कि इन प्रतियोगितों का उद्देश्य साफ़ सुथरा और बिगड़ रहे ब्रह्माण्डीय कारको को सही करने का है! जिन पाठको की यह सोच हैं कि उन्हें WWE की कुश्ती देखनी थी...जो बिना उद्देश्य सिर्फ हार-जीत तय करे...उनके लिए ही यह कहानी खराब हो सकती है! जिन पाठको को उद्देश्यपूर्ण द्वन्द पसंद हैं..वो इस भाग का आनंद ले सकते हैं!
रही बात इस भाग के प्रसिद्ध हॉलीवुड फिल्म The Matrix से प्रेरित होने की..तो यह बात सही है कि इसका BASIC IDEA वहीँ से प्रेरित है! जो सिर्फ इतना है कि मानवो को असली दुनिया की जगह पर एक आभासीय दुनिया दिखाना..जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध करके गुलाम बना लिया जाता है! लेकिन यह समानता सिर्फ बाहरी आवरण तक सीमित है....बालक ”कल्कि” की खोज,उसको पाने और वहां से निकलने का पूरा प्रकरण नया है!...सिर्फ कुछ पन्नो में निपटा दिया जाने से इसका मुख्य कहानी पर कोई प्रभाव नहीं होता है! इतनी सी समानता कोई बड़ा अपराध नहीं है! यहाँ लेखक का सरल सा उद्देश्य उस आईडिया का एक नवीन इस्तेमाल करके दिखाना है!

>द्वितीय अध्याय : डार्केस्ट ऑवर (41-56)
पिछले खंड में पाठको की शिकायत थी कि उन्हें गर्भ ग्रह में होने वाली बातों,घटनाओं और परेशानियों की जानकारी चाहिए...लीजिये यह अध्याय हाज़िर है! आनंद लें यह देखकर कि नीचे गर्भ ग्रह में किस तरह से सुपरविलेन हंगामा करने की तैयारिओं में जुटे हैं और कैसे उनको रोकने की मुहीम जारी है! चीता के साथ कई सुपर हीरोइनों व नक्षत्र को एक ज़िम्मेदार रूप और पद पर देखना सुखद लगता है! इस अध्याय में 50% Action और 50% Conversation से कुछ जटिलताओं पर से पर्दा उठाया गया है! जिनमे शामिल है- WAR की संस्थापना,उसके क्रियान्वयन में लिप्त सुरक्षा समितियां, WAR को ध्वस्त करने में लगे खलनायकों की फ़ौज का आगमन और अंत में विदूषक को कहानी में जुड़ता देखकर मज़ा आ जाता है! आगे उसकी नक्षत्र से मुठभेड़ का इंतज़ार रहेगा!
यह तो सकारात्मक पक्ष थे....नकारात्मक चीज़ यह है कि गर्भ गृह की हर तरह की सुरक्षा सिर्फ भारतीय किरदार कैसे कर रहे हैं?...वर्ल्ड लेवल की जिस सुरक्षा परिषद् को दिखाया गया है उसमें भी राजन मेहरा और इतिहास जैसे छोटे शहरो के दोयम दर्जे के पुलिस वाले भरे हुए हैं और वो भी जाने किसने उन्हें सारे अधिकार दे दिए हैं ! जब सुपरपावर अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशो के पास ज्यादा उच्च तकनीक मौजूद हैं तो अरबों की आबादी की रक्षा करने वाले सभी लोग अकेले भारत से ही क्यूँ लड़ाए जा रहे हैं!...मसलन आप बताते हैं कि हथियार बनाने का ज़िम्मा अनीस रजा के हाथ में है...क्या बाकी दुनिया में कोई दूसरा वैज्ञानिक या मिलिट्री वाला इस लायक नहीं था? आप सबकी टीम बनाकर भी दिखा सकते थे! दूसरी चीज़ कि Sector Aus-054 जैसे विदेशी लोगों वाले इलाके में भी चीता जैसा आदमी,जो अब पुलिस में भी नहीं है और दूसरी छोटी-मोटी क्राइम फाइटर हीरोइने कैसे इतनी ज़िम्मेदारी से भेज दी गई? इन सभी के साथ कैसे संपर्क किये गए..कैसे किसको राज़ी किया गया...आखिर इतनी सी बात को भी गुप्त रखकर लेखक क्या रहस्य बनाये रखना चाह्रते हैं? यह भगवान् ही जाने!
अरबों की जनसंख्या वाले भारत और चीन की सुरक्षा की जगह ऑस्ट्रेलिया के सेक्टर्स की सुरक्षा कर रहे मुच्चछड चीता को देखकर लगता है कि यह चीता भी कुछ ना कुछ जरूर पीता है! वो चीज़ दूध है या डीज़ल.... यह लेखक को पता होगा...पर 5-6 हीरोईंस के साथ कुलांचे मारते हुए बुढ़ाते चीता को देखकर अच्छे-अच्छे जवान सुपर हीरोज जलभुन का राख हो जायेंगे!

>तृतीय अध्याय : देवगुरु कृता (57-67)
इसमें तिरंगा और शुक्राल के मध्य “कल्कि” के लिए योग्य गुरु का चुनाव करने की एक प्रतिस्पर्धा दिखाई गई है! छोटा और ठीक ठाक भाग है...कहानी में अश्वथामा और त्रिशंकु जुड गए हैं!

>चतुर्थ अध्याय : शत्रु संधि,भाग एक (68-75)
महामानव के हाथो हरुओं की हार और गलालागीचा की वापसी दिखाने तक सीमित यह छोटा सा भाग है!

>चतुर्थ अध्याय : शत्रु संधि,भाग दो (76-81)
सुदूर भविष्य में ध्रुव वंश और देव वंश के बीच किसी अनजानी कहानी की साक्षात दिखती दुश्मनी पर है...इसमें ज्यादा दिमाग मत लगाइए..आगे के खंडो में ही पता चलेगा कि क्या मामला है!

>पंचम अध्याय : मिथ्याकार (82-90)
कवर पर जो नागराज के वेश में भोकाल और भोकाल के वेश में नागराज हैं...अंत में इसी अध्याय में दिखाए गए हैं....यहाँ फिर से तिरंगा और शुक्राल के मध्य प्रतिस्पर्धा हो रही है..जो जीता वही सिकंदर बनेगा....लेकिन अगले भाग में!

>परिशिष्ट अध्याय : जंगल का देवता (91-94)
4 पन्नो में वही पुरानी असम के जंगल में चल रही उठापटक को याद दिलाया गया है! जो आधे लोग भुला भी चुके थे..इसमें सिर्फ इतनी सी progress और हुई है कि भेडाक्ष और जुड गया है! यह भी अगले खंडो में सुलझेगा!

संवाद - पिछले भागो की तुलना में डायलॉग्स काफी सरल और हल्के शब्दों से लिखे गए हैं! उनमे गैरजरूरी मुश्किल शब्दों को शामिल करने की कोशिश नहीं हुई है! सभी Sub-Stories आसानी से समझने लायक है!

आर्टवर्क-
हमने पहले भी कहा था कि लोगों को संसाधनों पर गौर रखते हुए चीज़ें सोचनी चाहिए! RC ने इस सीरीज के आर्ट को पहले विश्वस्तरीय आर्टिस्ट्स को दिया था..लेकिन काम संतोषजनक नहीं मिल पाया! हेमंत जी NNN और अनुपम जी अपने दूसरे प्रोजेक्ट्स पर व्यस्त हैं! सुशांत जी के द्वारा पहले Multistarer एक्शन कॉमिक्स बहुत कम बनवाई गई हैं! ऐसे में उनका सर्वनायक पर पर अब तक किया गया काम प्रशंसनीय है! सर्वनायक के लिए सुशांत पंडा जी का चुनाव पाठकों की मांग पर उनके द्वारा बनाई गई “अंगारे” के शानदार काम के बाद किया गया था! पिछले भाग “सर्व संग्राम” की तरह इस भाग में भी उनका काम अच्छा है! कम से कम विनोद कुमार जी की इंकिंग के होने के बाद आर्ट में एक साफ़ सुथरा प्रयास दिखता है! आपको अनावश्यक रूप से काले किये गए चेहरे नहीं दिखेंगे! विनोद जी की इसी वज़ह से प्रशंसा होती है..कि उनके नाम के साथ जुड़ा भरोसा वो हमेशा बरकरार रखते हैं!
लेकिन जो लोग सुशांत जी के काम की हमेशा सिर्फ आलोचना ही करते रहते हैं.... उन्हें बताना चाहिए कि वर्तमान में दूसरे Option क्या हो सकते हैं? क्या बार-बार जबरदस्ती penciller बदलना सीरीज के लिए सही होगा? हमें ऐसा कोई कदम सही नहीं लगता है!
इस सीरीज का रंग संयोजन पहली बार इतना उम्दा नज़र आ रहा है और इसमें हाथ है शादाब जी का! उनकी वापसी से आर्ट में उल्लखेनीय प्रगति हुई है! इस सीरीज को जिस तरह की Hard Coloring की जरूरत थी..वो इस भाग में नज़र आती है! पेज 10,15,25,36,56,60,68,75,82 के फुल पेज आर्ट्स पर किये गए इफेक्ट्स शानदार हैं! और किसी को आर्ट चाहे जैसा लगा हो...व्यक्तिगत रूप से हम संतुष्ट हैं! यह 100% ना सही पर 75% देखने योग्य है!
सर्वनायक में कई दूसरे आर्टिस्ट्स के द्वारा भी पन्ने बनवाये गए हैं....इसलिए यह एक संयुक्त और सम्पूर्ण आर्टवर्क देती हुयी श्रृंखला है! राज कॉमिक्स को इसको ऐसे ही आगे बढ़ाना चाहिए, वरन सुधार की गुंजाइश अभी भी मौजूद है!

हमने कॉमिक्स को पढना कम से कम उम्मीद से शुरू किया था..पर अंत तक आते आते यह उतनी खराब नहीं लगी जितनी इसके बारे में बातें कहीजा रही थी! असल में गलती पाठको की भी नहीं है...आज तक पाठक सिर्फ अनुपम सिन्हा जी के बनाये Multistarer से ही परिचित थे..जिनमे सभी हीरो एक साथ होते थे..और कहानी एक ही बार में निपट जाती थी...पहली बार उन्हें ऐसी सीरीज पढने को मिल रही है..जिसमे किरदार सिर्फ आते और जाते दिख रहे हैं...कहानी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ रही!
देखा जाए तो यह बात सही भी है..कि अब तक पांच मोटे खंड पढने के बाद भी सबकुछ वहीँ का वहीँ दिख रहा है! और परेशानी की बात यही है कि आगे भी इसमें कोई बदलाव होने की संभावना लगभग शून्य है...अरे भाई अभी तो सर्वनायक प्रतियोगिताओं में सिर्फ 3 द्वन्द हो पाए हैं...4-5 द्वन्द बाकी हैं! तो कहानी तो वहीँ रहनी है..युगम के कालरण में सीमित!
कहानी जिस दिशा में बढती जा रही है..हम भी काफी सोचने के बाद कोई आशा की किरण नहीं दे सकते हैं कि आगे सुधार होगा..क्यूंकि कहानी की संरचना ही “ढाक के तीन पात” वाली है!
हाँ बस एक बात कहेंगे कि “सर्वनायक विस्तार” का इंतज़ार करिए! उसके आने के बाद कम से कम इस रुकी हुई कहानी में गायब दिख रहा मनोरंजन जरूर जुड़ेगा!
सर्वनायक का असल में मज़ा लेना चाहते है तो आप कहानी के पूर्वानुमान लगाकर मत पढ़िए! ज्यादातर पाठक यह सोचकर कहानी पढ़ रहे हैं कि उनके पसंदीदा किरदार हर खंड में नज़र आयें...या उनकी कहानी को जल्दी से ख़त्म कर उन्हें साइडबार कर दिया जाए! जैसे एंथोनी के ना दिखने पर रोष व्याप्त है...मगर हमें नहीं लगता है कि यह एक सही रास्ता होगा कि हर हीरो के दिखाए जा रहे प्रकरण को तुरंत के तुरंत निपटा दिया जाए! ऐसी जल्दबाजी अंत में सीरीज के लिए ही हानिकारक होगी!
लेकिन अगर ऐसा हो रहा है कि पाठको को कहानी से शिकायत है तो उनपर ध्यान दिया जाना चाहिए! आखिर कॉमिक्स पाठको के लिए ही लिखी जाती है...उन्ही को पसंद नहीं आएगी तो कॉमिक्स का फायदा आखिर क्या होगा? लेकिन पाठको की बात सुनी जाए इसके लिए कुछ चीज़ें पाठको को भी करनी चाहिए! जिनमे सबसे पहली बात है कि अपनी व्यक्तिगत कटुता और पूर्वाग्रहों को सस्ती आलोचना का जरिया ना बनाएं! कॉमिक्स किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं लिखी जाती है..इसलिए उसपर टिप्पणी भी सभी के बारे में ध्यान रखकर करी जानी चाहिए!
जो हो रहा है उसको देखकर लगता है कि पाठको का एक वर्ग नहीं चाहता है कि सर्वनायक सीरीज किसी भी हालत में सफलता पाए...इसके लिए झूठी अफवाहें और दुष्प्रचार का सहारा लेकर छोटी से छोटी बातों को भी बढ़ा चढ़ाकर प्रदर्शित किया जा रहा है जैसे वो अपराध हो!
आर्टवर्क में जब हमने कॉमिक्स उठाई और सुप्रीमा के आर्ट पर नज़र डाली तो देखकर अचम्भा हुआ कि कैसे 2 पैनल की आर्ट को सामने रखकर पूरी कॉमिक्स के आर्ट पर बिना वज़ह ऊँगली उठाई गई!
राज कॉमिक्स से हमें कहना है कि बहुतेरे पाठक कॉमिक्स खरीदने की जगह पायरेसी के द्वारा पढ़ते हैं और फिर हर बात पर हल्ला मचाते हैं....ऐसे फैन सिर्फ नकारात्मकता से भरे हैं और उन पर ध्यान देना ही नहीं चाहिए!
वैसे कॉमिक्स की प्राथमिक समीक्षा यही पर समाप्त होती है! पर हम कुछ बातों का जवाब देने से खुद को रोक नहीं पाए....आगे मन हो तो पढ़ें... ना हो तो ना पढ़ें!
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कहानी पर करी गई कुछ आपतियों पर विस्तृत तथ्य प्रस्तुत हैं...अगर उनपर ईमानदारीपूर्वक विचार करेंगे तो ऊपर की समीक्षा पढने के बाद भी कहानी को लेकर बची खुची छाई धुंध से जरूर पार पा लेंगे!

1- कहानी की शुरुआत में चाँद पर हो रही गगन-विनाशदूत के साथ ग्रहणों की 40 घंटे की मुठभेड़ पर सवाल उठाये गए हैं..कि इतनी लम्बी लड़ाई possible नहीं है! हमारा सवाल है कि क्यूँ Possible नहीं है?
Sci-Fi पढ़ रहे राज कॉमिक्स के पाठक अगर Lunar Calendar and Standard Time (LST) के बारे में नहीं जानते हैं तो इसमें गलती कहानी के लेखक की नहीं है! LST के अनुसार चाँद पर समय पृथ्वी के समय से भिन्न होता है! पृथ्वी पर 12-12 "घंटे" में दिन और रात बंटे होते हैं,वहीँ चाँद पर 15-15 "दिनों" के बराबर एक दिन/रात होता है! 15 दिनों में घंटे हुए 15 X 12 = 180 घंटे का एक दिन और 180 की ही एक रात!
आपके 12 घंटे = चाँद के 180 घंटे!
आपका 1 घंटा- चाँद के 15 घंटे!
चाँद के 45 घंटे हुए आपके 3 घंटे!
यानी 40 घंटे की लड़ाई का मतलब 3 घंटे से भी कम का समय! गगन-विनाशदूत के साथ ग्रहणों की इतनी देर की लड़ाई तो आराम से possible है!

2- गगन और विनाशदूत आकाशगंगाओं के खलीफा होने के साथ ही दूसरे खलीफाओ की तुलना में कमजोर है! यह बात खुद विनाशदूत ने दूसरे खलीफाओ को सर्वश्रेठ बताते हुए कही थी (Page-6)! समझने वाली बात यह है कि विभिन्न आकाशगंगाओं का मतलब है, विभिन्न सभ्यताएं और उनमे रहने वाले अनगिनत गूड रहस्य! अगर खलीफा “स्वघोषित” सर्वश्रेठ योध्दा हैं तो इसके पीछे उनकी जानकारियों में कमी है! और यह कमी इसलिए है क्यूंकि उन्हें हर सभ्यता में मौजूद सभी शक्तियों का पता नहीं है! इस बात को तूल देना कि कौन अधिक बड़ा योध्दा है..वाजिब नहीं लगता! यह वही बात हो गई जैसे पृथ्वी पर रहने वाले खुद को ब्रहमांड में सबसे शक्तिशाली घोषित कर दें! लेकिन यह सब बचकाना है! कुछ किरदारों के मुहं से निकली बातों को पूर्ण सत्य की तरह नहीं पढ़ा जाना चाहिए!

3- निगहबानो ने किन परिस्थितियों में खलीफाओं को पृथ्वी की तरफ भेजा है यह अभी दिखाया नहीं गया है..इसलिए इस पर अटकलें लगाना बेकार है! असल में यह पूरा आकाशगंगाओं के खलीफा का concept ही पहली बार नज़र आया है! इसलिए किस आकाशगंगा के बीच कितने प्रकाश वर्ष की दूरी है..यह निर्धारित करना पृथ्वी के नियमो के अनुसार गलत है! हो सकता है कि कुछ आकाशगंगाएं पास हो कुछ दूर...और इनके बीच आवागमन के लिए भी अधिक तेज़ साधन मौजूद हो! ब्रह्माण्ड की हर चीज़ को पृथ्वी के नियमो से जोड़कर नहीं देखा जा सकता! क्यूंकि हमारे वैज्ञानिक भी उतना ही पता कर पाए हैं...जितना उनके telescope की रेंज में आता है! जैसा कि यह सबको पता है कि युगम के द्वारा हर जगह का समय निर्धारित और नियंत्रित रखा जा रहा है...ऐसे में वो किसी को भी एक जगह से दूसरी जगह चुटकी बजाते पहुंचा सकता है....इसलिए इस मुद्दे को आगे के खंडो के लिए छोड़ देना ही श्रेयस्कर है!

4- स्याह समुद्र के अन्दर ऑक्सीजन कितनी थी...यह मापना उस आधार पर गलत है जब आपको पता है कि स्याह समुद्र वर्चुअलाइजेशन वर्ल्ड में बना था! यानी असली नहीं था! लेकिन तिरंगा और शुक्राल के फेफड़ो में ऑक्सीजन का लेवल किस तेज़ी से घटना/बढ़ना चाहिए,यह पृथ्वी पर मौजूद समुद्र के नियमो से नहीं जोड़ा जा सकता..क्यूंकि अगर ऐसा करेंगे तो 10 मिनट से अधिक का समय किसी मनुष्य के पास जीवित रहने हेतु नहीं होगा! जबकि तिरंगा और शुक्राल ने काफी समय तक Combots का मुकाबला किया था! यह बात अभी भी जाने क्यूँ पाठक समझ नहीं पाए कि जो कुछ हो रहा है वो युगम करवा रहा है..सिर्फ उसके माध्यम यह सभी सुपर हीरो बने हुए हैं! वो जहाँ पर चाहे समय को कम ज्यादा करके चीज़ें बदल देता है!
दूसरा कारण यह भी है कि Combots जो कि रक्ष जाति से ही जुड़े हुए थे..उन्हें भी ऑक्सीजन की जरूरत होती...इसलिए स्याह समुद्र में ऑक्सीजन के लिए कोई ना कोई यन्त्र मौजूद रहा होगा..जिसने तिरंगा और शुक्राल को लम्बी सांस लेने में मदद करी! अब वो अगर लड़ाई के दरमियाँ निष्क्रिय हो गया हो..तो हवा की कमी होना स्वाभाविक हो सकता है! लेकिन Sci-fi में हर बारीक चीज़ का विवरण कहानी को बेवज़ह और लम्बा खींच देता है!

5- गर्भ ग्रह में हो रही हलचल अभी सिर्फ शुरूआती दौर में है! अरबों -खरबों की आबादी के साथ कौन सा विलेन किस तरह से अन्दर आया यह बात फिजूल है,वो सभी सुपर विलेन हैं... छिपना और “पकड़ा ना जाना” उनकी एक खूबी में शुमार बात है! महत्वपूर्ण बात सिर्फ इतनी है कि गर्भ ग्रह में उनकी भी मौजूदगी है! ऐसा नहीं है कि हर खंड में हर किरदार को दिखाया ही जाए...पिछले खंड में जहाँ कमांडो फ़ोर्स किसी एक Sector की रक्षा कर रही थी..इस बार "चीता और टीम" किसी दूसरे Sector की! यह चेहरा दिखाओ और भाग जाओ नहीं कहा जायेगा...अगर हर किरदार को Full Length रोल दिया जाने लगेगा तो शायद यह कहानी 100 साल में भी पूरी ना हो!

6- शुक्राल सतयुग का अवश्य है..लेकिन वो एक युग तक सीमित नहीं है...हर युग में पैदा हुआ है और कलियुग के अंत तक भी जिंदा रहेगा! ऐसे में उसको अपने आगे के युगों की जानकारी तो होगी ही...यह बात भी नहीं भूली जानी चाहिए कि वो शुक्र शिष्य है..वही शुक्राचार्य जो कि कलियुग में भी शम्भुक के साथ हैं...शुक्राल के पास ज्ञान की कोई कमी नहीं है! इसलिए उसके गुरु द्रोणाचार्य के बारे में जानकारी होने पर कोई आश्चर्य नहीं किया जा सकता!

7- गुरु द्रोणाचार्य की आत्मा Present में क्यूँ आई..भविष्य में क्यूँ नहीं?
इसका जवाब यह है कि भविष्य में क्या होगा यह किसी ने नहीं देखा है...गुरु द्रोण ने भी नहीं! वो अपनी मानसिक ऊर्जा में वहीँ तक सीमित रह सकते थे..जहाँ तक समय अपनी चाल पर चल रहा है..यानी वर्तमान! अश्वथामा भी वर्तमान में किसी अनजान जगह पर ही है...उसका भविष्य क्या होगा यह निर्धारित करना सही नहीं था...क्यूंकि वो एक पौराणिक पात्र है! यहाँ पर लेखक ने समझ बूझ से सही निर्णय लिया है! आगे वो अश्वथामा को कैसे दिखाते हैं यह आगे की बात है!
दूसरी बात मोक्ष और मोह के बीच सम्बन्ध का है...मोक्ष तो गुरु परशुराम को भी मिल गया..लेकिन वो मोह के बंधन में नहीं पड़े...यह कमजोरी द्रोण में थी और वही दिखाई गई है...कि मोक्ष के बाद भी उनमे मन में मोह के बीज जाग्रत रह गए! यह भी ना समझी जाने वाली कोई बड़ी बात नहीं है!

8- हरु सभ्यता देव सभ्यता से बिलकुल अलग है...वो बडबोले हैं...लेकिन एक बात से इनकार नहीं करा जा सकता है कि वो देव सभ्यता से विपरीत शक्तियों वाले हैं....ऐसे में महामानव से उनका जीत ना पाना कोई बड़ी बात नहीं है...क्यूंकि महामानव भी एक बड़ी शक्ति है जो ज़मीन पर खड़े होकर अन्तरिक्ष की चीजों को हिला सकता है!

9-हजारो साल के बाद में ध्रुव वंश में पानी के अन्दर सांस लेने की शक्ति होना कोई बड़ा अजूबा नहीं है...देव जाति ने यदि ध्रुव के गले में यन्त्र लगाया था...तो उसकी प्रतिकृति बनाकर उसकी आने वाली पीढ़ी भी इस सुविधा को पाने की अधिकारी है! अचरज कैसा?

10- अंतिम पन्ने में भेड़िया पुत्र "भेडाक्ष" की झलक दिखी है..वो कौन है? क्या है? किस समय काल का प्राणी है? सच्चा है या झूठा है? अभी कुछ भी बताया नहीं गया है....ऐसे में सिर्फ "भेडाक्ष" नाम से उसको आलोचना का पात्र बना दिया जाना अभी सही नहीं है! "भेडाक्ष" कॉमिक्स में इस नाम का एक बहरूपिया जरूर था....पर इसका मतलब यह नहीं है कि यह "भेडाक्ष" वही है! भेड़िया वंश में आगे बहुत सारे भेड़िया के पोते के पडपोते पैदा होंगे.... अगर उसमे से यह कोई एक है तो बात ख़त्म हो जानी चाहिए...वैसे भी नाम में क्या रखा है..XYZ कुछ भी मान लें...आगे की कहानी में उसके origin पर ध्यान दें!

सर्वनायक के साथ पाठक जुड नहीं पा रहे हैं तो इसमें कमियां दोनों तरफ से हैं!
सबसे पहले कि ना तो एक कॉमिक्स को लिखने में जल्दबाजी करी जाती है..और ना उसके बारे में विचार रखने में जल्दबाजी करी जानी चाहिए! ऐसा कई दफा देखा गया है कि पहले जो विचार दे दिया जाता है..समय के साथ उसमे बदलाव हो जाते हैं! ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि पहले जो जानकारी और तथ्य सही लगते हैं..वो बाद में गलत निकलते हैं!
राज कॉमिक्स अति आत्मविश्वास में इसका प्रचार करती रही हीरो vs हीरो के रूप में! पाठक इसी सोच में डूबे रहे पर कहानी में कई Sub-stories जोड़ दिए जाने से पाठक कहानी के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं! लेखक यहाँ पर एक गलती कर रहे है सस्पेंस को जरूरत से ज्यादा लम्बा खींचकर! यह बात पाठको को डरा रही है कि कहीं आगे जाकर उनके सवालों के जवाब नहीं मिले तो इस सीरीज का कोई औचित्य नहीं बचेगा! इस डर में वो छोटी-छोटी बातों को भी शंका की नज़र से देखते जा रहे हैं...कि फलां कहानी क्यूँ जोड़ दी गई या पहले भाग में जो हीरो दिखाया था इस भाग में क्यूँ गायब है?
लेखक को हमारा सुझाव है कि सबसे पहले तो हर खंड के हर अध्याय में जो कुछ घटित हो रहा है उसका समय, काल और जगह को भी mention करें! गैरजरूरी रहस्य बनाने से कोई लाभ अब तक तो मिला नहीं! दूसरी चीज़ कहानी में जो किरदार जुड जाते हैं..वो कैसे जुड़े?... यह भी विस्तार से उसी समय बता दिया जाए...जैसे एंथोनी और सधम का इरी की गुफा में आना,पहले महामानव फिर हरु और अब इस भाग में गलालागीचा का अचानक से ना जाने कैसे प्रकट होना!
इन बातों पर ध्यान देकर लेखक काफी हद तक सर्वनायक सीरीज के हो रहे विरोध को कम कर सकते हैं! असली चीज़ है ईमानदारीपूर्वक अपना काम करते जाना!
सर्वनायक श्रृंखला अपने पांचवे पड़ाव पर पहुँच चुकी है! सभी ने पढ़ भी ली है और अब वक़्त है..विचारोत्तेजक दृष्टिकोण को अपनाने का! यह सिर्फ पाठको के लिए नहीं राज कॉमिक्स के लिए भी जरूरी है..कि वो इस संभावनाशील कृति के साथ पूरा न्याय करें!

Friday, 2 January 2015

PK Review

PK (2014)
http://warriorsstrike.blogspot.in/2015/01/pk-review.html
Genre- Religious Comedy Drama
Cast- Aamir Khan,Anushka Sharma,Sushant Singh Rajput,Saurabh Shukla,Boman Irani.
इस फिल्म को देखने से पहले इतना कुछ सुन चुके थे..कि समझ में नहीं आया कि फिल्म की कहानी का मज़ा लिया जाए..या फिल्म पर  विवादों की छाया जो पड़ी हुई है..उसपर नज़र रखें! जिन लोगों को भी पहली दफा PK देखनी हो...हमारी राय है कि खुले दिल और खुली सोच के साथ देखें! अगर ऐसा मुमकिन ना हो तो अच्छा है इस फिल्म को दूर से नमस्कार कर दें!
फिल्म की कहानी दूर ग्रह से पृथ्वी पर आकर फंस गए एक परग्रही PK "आमिर खान"के बारे में है! जिसका एक चाबी रुपी लॉकेट खो गया है! जिसकी वज़ह से वो वापस अपने ग्रह जाने में असमर्थ हो जाता है! उसको पता चलता है कि उसका लॉकेट दिल्ली में रहने वाले एक बहुत बड़े आधुनिक सन्यासी/गुरु/बाबा और फ़िल्मी भाषा में "भगवान् के मेनेजर" सौरभ शुक्ला जी के पास है...जो दुनिया को लॉकेट का परिचय भगवान् शिव के डमरू का टूटा हुआ मनका बताकर कर रहा है! फिर PK कैसे अपना लॉकेट वापस पाता है..यह फिल्म की बची कहानी है! इसमें उसकी मदद एक रिपोर्टर लड़की अनुष्का शर्मा करती है!
तो इतनी से सीधी सपाट कहानी में विवादों की छाया क्यूँ और कैसे पड़ी हुई है और उनमे कितनी सच्चाई और झूठ फैला है..इसपर ध्यान दिलवाना जरूरी है!
इसमें सबसे बड़ा विवाद यह बताया जाता रहा है कि फिल्म हिन्दुओ की धार्मिक आस्थाओं और मान्यताओ पर घाव कर रही है!इस मामले में हमारा भी यही मत है कि यह बात बिलकुल सही है! इसमें कई मान्यताओ पर प्रहार किया गया है!
जैसे- PK कहता है कि उसने अपने दोनों गालो पर ईश्वर की तस्वीर इसलिए लगाईं है क्यूंकि कोई उसको मार ना सके! जैसे भारत के कई इलाको में भगवान् का चित्र दीवार पर लगा दिया जाता है कि कोई वहां पेशाब ना करे! भगवान् की तस्वीर का सीधा सम्बन्ध डर और अपने काम को निकालने की इच्छा से है! भगवान् को लोग पूजते हैं..इसलिए दिमाग में उनका डर भी रहता है कि उनके सामने कोई भी बुरा काम नहीं करना चाहिए! इसलिए अबोध मस्तिष्क वाले PK ने लोगों के इस तस्वीर वाले क्रियाकलाप का जो मतलब निकला..वही फिल्म में बोलता है!
PK ने कुछ जगह कहा कि भगवान् अगर अपने भक्तो की कामना पूरी करना चाहेंगे तो वो उन्हें कई हज़ारो किलोमीटर दूर अपने पास क्यूँ बुलायेंगे..वो तो घर में ही आपकी पुकार सुन सकते हैं! यह एक बहस का मुद्दा हो सकता है कि हिन्दू धर्म में कर्मकांड को क्यूँ इतना अधिक महत्त्व दिया जाता रहा है! जिसमे आस्था से ज्यादा व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है!
हिन्दुओ का कहना है कि फिल्म में सिर्फ उन्हें ही निशाना बनाया गया है! जबकि ऐसा नहीं है...फिल्म के एक दृश्य में PK चर्च में जाकर नारियल फोड़ता और एक मस्जिद में अल्लाह को शराब पिलाने भी निकला है! लेकिन इन बातों को फिल्म के अन्दर देखने पर पता चलता है कि यह फिल्म के किरदार द्वारा कहानी में जिज्ञासावश करी गई चीज़ें हैं...जिनका प्रतिउत्तर भी PK को मिलता है...जिसमे चर्च और मस्जिद से उसको जान बचाकर भागना पड़ता है! ऐसे ही उसको गुरूद्वारे और मंदिरों से भी दुत्कार मिलती है!
कोई भी धर्म कभी भी व्यक्ति को गलत रास्ता नहीं दिखाता है! लेकिन वहीँ व्यक्ति का कर्त्तव्य यह है कि वो धर्म को गलत रास्ते पर ना धकेल दे! लगभग सभी धर्मो में कहीं ना कहीं कुछ ऐसे तत्व अन्दर तक घुसे हुए हैं..जो धर्म को व्यापार बनाकर अपने हितो को साधते हैं! यह कोई बाबा हो सकता है...कोई मौलवी या पादरी भी हो सकता है! किसी भी संभावना से कभी इनकार नहीं किया जा सकता है!
इस चीज़ को सही से समझने के लिए यह देखना जरूरी है कि भारत एक हिन्दू बाहुल्य देश है! और यहाँ की 70 फीसदी से अधिक आबादी हिन्दू धर्म में आस्था रखती है! इसलिए धर्म के नाम पर झूठ का व्यापार भी एक बड़े पैमाने पर चल रहा है..जिससे आम गरीब आदमी को रूबरू कराया जाना जरूरी है! बात यह जरूर सही है कि मुस्लिम,ईसाई धर्मो में जो कमियां हैं तो उन्हें क्यूँ नहीं दिखाया जाता है! इनपर भी जरूर फिल्में बनाई जानी चाहिए! कोई ना कोई निर्देशक अगर आगे इनपर भी फिल्म बनाये तो समाज के लिए अच्छा ही होगा! वैसे इसकी संभावना कम है...क्यूंकि हिन्दुओ में यह भावना घर कर गई है कि पूरी दुनिया में उनका अपना धर्म ही सबसे ज्यादा बुरा है! यह सोच बहुत दुखद है!
वैसे फिल्म में एक बात बहुत अच्छी बताई गई है कि भगवान् 2 तरह के हैं..पहले जिन्होंने हमको बनाया है...और दूसरे जिन्हें हमने बनाया है!
जिस ईश्वर ने इस अखंड ब्रह्माण्ड के एक सुई की नोक जितने बड़े ग्रह पर रहने वाले हम इंसानों को बनाया,बड़ा किया..और हम इंसान... मंदिर,मस्जिद या किसी ज़मीन के टुकड़े के नाम पर उसी अनश्वर भगवान् की रक्षा करने का ढोंग करते हुए सिर्फ नफरत और हिंसा फैलाते हैं! यह वो भगवान् होते हैं...जिन्हें हम बनाते हैं! तो आप ही बताइए कि आपके लिए असली भगवान् कौन है?
ऊपर लिखे यह फिल्म के वो हिस्से हैं..जिनकी वज़ह से इसका समर्थन हो रहा है! अब देखते हैं वो हिस्से जो इसको विरोध लायक बना रहे हैं!
फिल्म में एक मुद्दा है कि फिल्म में लव जेहाद है! क्यूंकि फिल्म की हिन्दू नायिका एक पाकिस्तानी लड़के से प्यार करती है! यहाँ मुद्दा बहस का है कि अलग राष्ट्रों में रहने वाले 2 बालिग़ और सक्षम नागरिक अपने जीवन का फैसला कर सकते हैं या नहीं? प्रेम सामने वाले का धर्म/जाति/पंथ/समाज देखकर किया जाना चाहिए या नहीं? इस मामले पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है! क्यूंकि अगर फिल्म में हीरो पाकिस्तानी ना होकर अगर अमेरिका,इंग्लैंड या ऑस्ट्रेलिया का होता तो शायद किसी को आपत्ति नहीं होती...मगर पाकिस्तान से दिलो में दुश्मनी और नफरत इतनी भरी हुई है..कि कोई कुछ नहीं सुनेगा! दुनिया में शान्ति के लिए  नफरत की नहीं मोहब्बत की ज्यादा जरूरत है!
लेकिन कुछ चीज़ें ऐसी जरूर हैं...जिनको जबरदस्ती दर्शको पर थोपा गया है! अगर सुशांत को इस दुनिया के 200+ देशो में से किसी भी अन्य देश का दिखाया गया होता...या कहीं और क्यूँ भारतीय मुस्लिम युवक बनाया जाता तो कुछ हद तक विवाद से बचा जा सकता था! फिल्म में एक तरफ़ा चीज़ें बहुत ज्यादा हैं...जैसे सुशांत का किरदार positive दिखाया गया...अगर मान लिया जाए कि वो नेगेटिव होता...तब तो हिन्दू लड़की बर्बाद ही हो जाती....फिल्म जैसे माध्यम से चीज़ों को दोनों तरफ से दिखाया जाना चाहिए! लेकिन यह फिल्म हिन्दू लड़कियों को विधर्मी युवको की तरफ आकर्षित कराये जाने की प्रवृति को बढ़ावा देती प्रतीत होती है...जिसकी कड़े शब्दों में निंदा करी जानी चाहिए!
इसके अलावा आमिर खान ने alien के सहारे बहुत सहजता से सभी धर्मो पर फिल्म में ऊँगली उठा दी है..लेकिन पूरी तरह से कहानी को खोला ही नहीं! अब सोचिये कि जिस गोले से Pk आया है..वहां के लोग नंगे रहते हैं! इसका मतलब यह निकला कि वहां का वातावरण एक रूप है...ना गर्मी ना ठण्ड!
तो ऐसी स्थिति में क्या लोगों में सेक्स को लेकर भी वहां कुछ अलग अजूबी सोच रहती होगी.. इसपर क्यूँ नहीं आमिर खान ने कुछ कहा?
इसी  हिसाब से Pk ने अपने गोले पर धर्म का स्वरुप किस तरह का है...इस बात को भी फिल्म में कहीं नहीं दिखाया..जिससे माना जा सके कि पृथ्वी वासी ही इस ब्रह्माण्ड में अकेले ऐसे हैं जो धर्म पर अनर्गल विश्वास कर रहे हैं! या यह मान लिया जाए कि pk के गोले पर कोई धर्म अस्तित्व में ही नहीं है!
Pk के हिसाब से भगवान् सिर्फ कोई भौतिक चीज़ थी...क्यूंकि Pk के गोले पर धर्म के कोई चिन्ह नहीं दिखाए गए..इसलिए Pk शुरू से ही एक नास्तिक किरदार है! जब उसने पृथ्वी पर परम शक्ति के हजारो रूप देखे तो उसने धार्मिक मान्यताओं पर भी अपने वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालने शुरू कर दिए! इसमें जैसा कि सभी ने देखा है कि PK को धरती पर सिर्फ यही एक मुद्दा आकर्षक लगा! इससे प्रतीत होता है कि इस फिल्म का उद्देश्य सिर्फ धर्म पर ऊँगली उठाना है...ना की किसी आडम्बर को दूर करने का उपाय देना! क्यूंकि कहानी के अंत में कहीं भी यह नहीं दिखाया गया है कि Pk के अन्दर कोई आस्तिक परिवर्तन आया हो! Pk में परग्रही सबकुछ करने के बाद वापस अपनी दुनिया में भाग जाता है...जैसे कोई आतंकवादी सबकुछ अव्यवस्थित करने के बाद करता है! इस लिए यह फिल्म विवाद में है!
लेकिन इतना सब होने के बाद भी चीज़ें नज़रंदाज़ कर जा सकती थी...अगर फिल्म में सीधे सीधे महादेव शिव शंकर पर निशाना लगाकर उनका उपहास ना उड़ाया जाता! यहाँ पर लोग कह सकते हैं कि वो भगवान् शिव नहीं उनका रूप धरे एक इंसान था! ऐसे लोगों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए जो उस सीन को जायज़ ठहरा रहे हैं!
हमारे देश में हर साल राम लीला का मंचन होता है...जिसमे काम करने वाले कलाकारों के लिए दर्शको में श्रद्धा का भाव जन्म ले लेता है! और यह मान्यता मानी जाती है कि ऐसे किसी भी कथा मंचन में भाग लेने वाले कलाकार के अन्दर स्वयं भगवान् अपना वास करते हैं! जिसके कारण मंचन को देखने वाले भक्तो को ईश्वर का दर्शन होता है! और वातावरण शुद्ध होता है! राजकुमार हिरानी और आमिर खान जाने कैसे यह बात भूल गए कि अरुण गोविल(श्री राम) और नितीश भारद्वाज(श्री कृष्णा) के किरदारों में भक्तो के बीच इतने प्रसिद्ध हुए हैं कि लोग उनका आशीर्वाद तक लेने लगते थे! यह लोगों के बीच श्रध्दा की बात होती है! साफ़ शब्दों में कहा जाए कि ईश्वरीय कथा मंचन करने वाला कलाकार भी आदर का पात्र होता है! जिसका मजाक उडाना गलत है! सेंसर बोर्ड को कम से कम शिवजी के उपहास वाला हिस्सा काटना चाहिए था! क्यूंकि बोर्ड के पास फिल्म को बार-बार देखकर लोगों की राय लेकर चीज़ें सही करने का अधिखार है..इस बड़ी चूक के लिए सेंसर बोर्ड के सभी सदस्यों को निलंबित कर दिया जाना चाहिए!
रोल के मामले में ऐसा है कि आमिर खान पूरी फिल्म में छाए रहे...मगर यह उनका बेस्ट रोल नहीं कहा जा सकता है! और ना उनकी एक्टिंग में कोई अनोखापन दिखा! एलियन के रूप में उन्होंने जिस देसी भाषा में संवाद बोले हैं वो भी पूरी तरह से शुद्ध रूप में नहीं थी...इसलिए कोई ख़ास असर नहीं छोड़ पाई! सोचने पर भी ऐसा कुछ नज़र नहीं आया कि क्या खासियत बताई जाए! सिर्फ आप आमिर के फैन हैं तो ही आपको कुछ अलग दिख जाए..वरना कुछ नहीं!
अनुष्का शर्मा का रोल जरूर उम्मीद से काफी लम्बा रहा..और अपने सपाट अभिनय से वो इस फिल्म में भी बाहर नहीं आ सकीं! असल में अनुष्का एक्टिंग के मामले में आज भी अपनी पहली फिल्म पर ही अटकी हुई हैं! फिर भी शायद उनके करियर को कुछ फायदा हो जाए! लेकिन फिल्म में जिस तरह के सीन विवाद हैं...उसको देखते हुए अनुष्का जैसी ब्राह्मण लड़की को फिल्म नहीं करनी चाहिए थी! लेकिन पैसे के लिए ऐसी हीरोइन सबकुछ बेच सकती है!
ऐसा ही फिल्म के दूसरे उच्च कुलीन एक्टर्स के साथ कहा जाएगा! जिन्होंने अपनी संस्कृति को कुछ पैसो के लिए बेच दिया!
संजय दत्त और सुशांत सिंह राजपूत के रोल छोटे छोटे से थे...संजय जहाँ अपने सीन्स में थोडा गुदगुदा गए..वहीँ सुशांत को एक गाने,एक किस और चंद संवादों के अलावा कुछ करने का मौका नहीं मिला! यही हाल बोमन ईरानी का रहा...जो हमेशा राजकुमार हिरानी की फिल्म में सबसे अच्छे रोल करते हैं..इस बार निराश कर गए! सौरभ शुक्ला के पास करने को कुछ था नहीं!
कुल मिलाकर आमिर खान के सामने दूसरे सभी किरदार धुंधले दिखाई दिए!
तकनीकी रूप से PK राजकुमार हिरानी की पिछली फिल्म 3 इडियट्स से कमतर है..और जिस धर्म के मुद्दे पर बनी है वो भी "ओह माय गॉड" की तुलना में उन्नीस ही साबित हुआ है!
अगर टिकट खिड़की पर इस फिल्म को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिल पा रही है तो उसकी वज़ह यही है कि इस plot को लोग पहले ही देख चुके हैं..इसलिए इसमें ताजगी नहीं दिखाई दी!
आमिर खान की स्टार पॉवर और रोज होते विवादों से ही यह फिल्म चल गई..वरना शायद 100 करोड़ मुश्किल होते!
फिल्म देखते हुए एक बात दिखाई दी...कि इसमें मनोरंजन के पल बहुत कम आये...हिरानी की फिल्मो में जो कॉमेडी सीन होते हैं...वो भी नज़र नहीं आते...कुछ डबल मीनिंग सीन जरूर थे..पर वो फिल्म की असल कहानी से मैच नहीं करते...जगह-जगह पर फिल्म बिखरी हुई लगती है! जहाँ निर्देशक समझा नहीं पाते..कि कहानी धर्म पर केन्द्रित है..या एलियन पर! यह हिरानी के करियर की अब तक की सबसे कमजोर स्क्रिप्ट थी!
हमारा इस फिल्म से तजुर्बा यही रहा है कि कम से कम उम्मीद लेकर देखिये! वैसे भी यह एक भयावह सपने सरीखी है! इसको "ओह माय गॉड" से तुलना मत करिए जबकि यह उस फिल्म के 1% के बराबर भी नहीं है..वो फिल्म एक साहसिक कदम था..जिसमे व्यक्ति और भगवान् के बीच के रिश्ते को सामने रखकर धर्म के सही रूप को दिखाया गया था! उसमे कोई परग्रही नहीं था..इसी दुनिया में रहने वाला एक आम आदमी था!
इस फिल्म का जो विरोध सडको पर हो रहा है...उसमे भी हिन्दू संगठन धर्म की रक्षा कम और राजनीति ही ज्यादा करते नज़र आ रहे हैं! जैसा कि हमेशा होता है...सभी अपने शहरो के सिनेमाघरों में तोड़ फोड़ कर रहे हैं...फिल्म देखने गए लोगों से हिंसक हो रहे हैं...आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को बर्बाद कर रहे हैं....सभ्य समाज में यह विरोध का कोई तरीका नहीं है..सिर्फ पाश्विकता और घटिया चलन है! अरे फिल्म बनाई है राजू हिरानी और आमिर खान ने....हिम्मत है तो जाओ मुंबई और फूंक दो दोनों के घर! मुंबई में बैठी शिव सेना अब क्या कर रही है? या वो मनसे कहाँ है...जिसको लड़ने का जोश रहता है! यह संगठन भी सिर्फ अपनी राजनीति चमका रहे हैं! यही आज के समय में सबसे बड़ा विद्रूप है कि आम लोग फेसबुक/ट्वीटर पर फिल्म के boycott वाले हैश टैग्स पर अपनी धार्मिकता से प्रेम का प्रदर्शन कर रहे हैं....Pk के पक्ष और विपक्ष वाले लोग आपस में एक दूसरे को गालियाँ दे रहे हैं...और अपने बीच नफरत फैला रहे हैं! यह सब कुछ विरोध की सही दिशा के अभाव में हो रहा है!
इन सभी बातों को  सन्दर्भ में लेते हुए भारत सरकार को इस फिल्म के TV पर दिखाए जाने पर हमेशा के लिए प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए! क्यूंकि अपनी लागत से कई गुणा अधिक यह फिल्म कमा चुकी है..इसलिए किसी आर्थिक नुक्सान के होने का कोई अंदेशा नहीं बचता है! और निर्माता/निर्देशक/कलाकारों को लोगों की भावनाएं आहत करने के लिए बिना शर्त माफ़ी मांगनी चाहिए!
My Rating- ★★★★☆☆☆☆☆☆