Pages

Saturday 31 January 2015

Hunters (2014)

Review-हन्टर्स (2014)
Genre-Drama,Action,Mystery
Main character(s)- ध्रुव,चंडिका/श्वेता,उलूक,जैकब,गिलिगिली!
‪#‎Creative_team‬
Writer, Penciller –अनुपम सिन्हा
Inker-विनोद कुमार
Colorists-बसंत पंडा,मोहन प्रभु
Calligraphers-मंदार  गंगेले,नीरू
 
Ratings :
Story...★★★★★★★
☆☆☆
Art......★★★★★★★★☆☆
Entertainment……★★★★★☆☆☆☆☆

हन्टर्स आपके हाथो में आ चुकी होगी! अनुपम जी की ध्रुव पर पिछली लिखी कुछ कहानियों के बनिस्पत इस सीरीज से सभी को बहुत उम्मीदें हैं! लेकिन जब से राज कॉमिक्स को कहानी 4-5 भागों से कम में खत्म करने का मन ही नहीं होता है.. तब से देखा गया है कि ज्यादातर कॉमिक्स इन्ही उम्मीदों के नीचे दब जाती हैं! आप भाग दर भाग पढ़ते जाइए..और अंत में जाकर सोचिये कि आपके साथ लम्बे समय तक क्या हुआ? फिर उसके कुछ दिनों बाद नयी उम्मीद आपके समक्ष परोस दी जाती है! आप दोबारा सुरूर में आने लायक बन चुके होते हैं!

अनुपम जी जब भी कोई सीरीज लिखते हैं...उसकी पहली कॉमिक्स में क्या हुआ,कैसे हुआ...समझ से बाहर ही लिखा जाता है! “हन्टर्स” ने भी इस परंपरा को आगे बढाया है! जैसा कि होता है किसी भी कहानी की रूपरेखा उसके पहले AD और कवर से बनती है! हन्टर्स के बारे में बताया गया था कि-
1-ध्रुव की माँ की कहानी दिखाई जायेगी!
2-ध्रुव के बालरूप के दर्शन करवाए जायेंगे!
3- कहानी में ब्लैक-कैट होगी! (कवर पर भी बनाई गई है!)
4-कहानी में कम से कम जादूगारी का प्रयोग होगा और कहानी को सजीव और सिंपल रखा जाएगा!

उपरोक्त सभी बातें “फिलहाल” नज़र नहीं आ रही हैं! ऐसा कहा जा सकता है कि जो सोचा था वैसे कहानी नहीं है...यह कुछ अलग ही निकलती है! मसलन-
1-कहानी ध्रुव को उसके परिवार के बीच भावनात्मक पलों और अपने रिश्ते नयी तरह से देखने पर केन्द्रित करती है!
2-अंकल जैकब के अतीत को खंगाला जा रहा है!
3-कहानी में नताशा का होना इस बात की तरफ इशारा करता है कि कहीं आगे रोबो भी कहानी में ना कूद पड़ें! या नताशा एक बार फिर से चंडिका बनकर श्वेता का राज बचाए रखे!
4-हन्टर्स को देखकर एक बात जाहिर होती है कि ध्रुव को पिता की तरह ही अपने ननिहाल की तरफ से भी विदेशी वातावरण मिलने वाला है!

कहानी की शुरुआत होती है ध्रुव की मौत से...पर कॉमिक्स के अंत के पन्नो तक यह मौत कहानी में कहीं नज़र नहीं आती..तो इसको शुरू में दिखाने का कोई मतलब समझ नहीं आता! 2 पन्ने बर्बाद!
फिर विदेश में बैठे हन्टर्स की थोड़ी सी भूमिका बाँधी जाती है...जिसको कुछ रहस्य बनाकर अगले भाग के लिए छोड़ दिया जाता है!
अब एक fight सीन होता है उलूक और चंडिका में...श्वेता घायल और उसका राज़ ध्रुव पर खुलने के पूरे आसार नज़र आने लगे हैं! लेकिन साथ ही कहानी में इतने सारे घुमावदार मोड़ भी आ जाते हैं..जिनको समझना अभी मुश्किल है! नताशा का अचानक से कहानी में आना...इशारा करता है कि वो संदेह के घेरे में है!

शून्य क्लू पर चलती कहानी में “गिलिगिली” के आने से थोडा मज़ा आता है..लेकिन फिर वही बात आ जाती है कि उसका किरदार realistic नहीं रहा! अब अगर वो बंद पड़ी कंप्यूटर की स्क्रीन में घुसकर... निकलता समुद्र में एक शिप पर है..तो समझा जा सकता है कि ध्रुव के बालरूप की कहानी में कम से कम जादूगरी हो ऐसा सोचकर पढने वाले को कैसे महसूस होगा! लेखक अगर उसकी इस ईश्वरीय कारनामे वाली प्लानिंग के बारे में विस्तार से आगे बताएँगे तो बहुत बेहतर लगेगा! क्यूंकि गिलिगिली ने ध्रुव के रूप में 100% परफेक्शन के साथ जो परफॉरमेंस किया...उसको भुलाने के लिए भांग के कितने लड्डू खाने की जरूरत पड़ेगी... बताया नहीं जा सकता!

पाठको को समीक्षा में क्या बताया जाए इसपर भ्रम की स्तिथियां है...कहानी अभी शुरू ही हुई है..इसलिए यह कहाँ तक जायेगी...क्या मिलेगा..कितना हज़म करने लायक है..कितना नहीं है...अभी इसपर अँधेरे में तीर चलाना बेकार है! कहानी सिर्फ यह बता पाई हैं कि चंडिका का राज़ अब लेखक चाहें भी तो भी खुलने से नहीं बचा सकते! क्यूंकि इसके लिए उन्हें ध्रुव को सरासर बेवकूफ दिखाना पड़ेगा,जो असम्भव बात है! इसी कहानी में ध्रुव के काम करने का ढंग संदेहास्पद लगना शुरू हो चुका है...कि जो हीरो बेस्ट डिटेक्टिव कहा जाता है..आखिर कुछ बातों पर कैसे अपनी नज़रें हमेशा फेर लेता है...चाहे श्वेता का राज़ हो..रिचा का राज़ हो..या नताशा के अपने बाप के काले धंधो में कितनी involvement है.....इसपर ध्यान देना हो! सिर्फ आशा रखी जा सकती है कि ध्रुव की डिटेक्टिव एप्रोच हर किरदार के लिए एक बराबर रहे!
इस भाग में ध्रुव के ननिहाल की ओर से कोई क्लू नहीं दिखा..और ना ही कोई यह सोच सकता है कि कहानी ध्रुव के बचपन की तरफ मोड़ दी जायेगी! अगर यह लेखक के द्वारा जानबूझकर किया गया है तो उन्हें advertisements के साथ तालमेल बनाये रखना चाहिए था! जहाँ जैकब अंकल को इतना महत्व नहीं दिया गया..वहीँ अब लग रहा है कि उनके बिना कहानी बनेगी ही नहीं! दूसरी ओर ज्यादा सस्पेंस बनाने की कोशिश में कई जगह पर कहानी Predictable सी लगने लगती है....जैसे ध्रुव के परिवार का उसपर इतना अभूतपूर्व अविश्वास करना,घर छोड़ देना..जो साफ़ स्पष्ट है कि ध्रुव के सोचे समझे मास्टरप्लान का हिस्सा है!
ध्रुव का श्वेता को लेकर भावनात्मक पहलु हर फैन के लिए अनजाना नहीं है...ऐसा हम सभी “गुप्त” कॉमिक्स में पहले भी पढ़/देख चुके हैं! यह संवेदना के पन्ने लगभग रिपीट टेलीकास्ट जैसे थे! कहानी अगर यूक्रेन में आगे जाती है तो बहुत बढ़िया लगेगा! क्यूंकि ध्रुव की विदेशी यात्रा पर बनी हर कहानी हिट रही हैं...उम्मीद करनी चाहिए यूक्रेन का महत्व कहानी में कम नहीं होगा!

संवाद- भावपूर्ण और दिल को छू लेने की कोशिशो से परिपूर्ण डायलॉग्स पढने को मिलते हैं! ध्रुव कई जगह उद्देलित होकर कड़े शब्द भी बोलता दिखा है! नताशा का मुहंफट अंदाज़ यहाँ भी जारी है! गिलिगिली अपने संवादों से जहाँ थोडा गुदगुदाता है....वहीँ अंतिम पृष्ठो में ध्रुव भी कुछ हद्द तक शुरू के भारी माहौल को हल्का करने में सफल होता है!

एक लाइन में इस कॉमिक्स की कहानी को बताना हो तो
“हन्टर्स को पाठको को दुःख के पलों में डुबाकर कहानी से भावनात्मक लगाव बनाने लिए सस्पेंस की कई परतें जोड़कर बनाया गया है!”

आर्टवर्क- मुबारक हो....नैनो के बाद फिर से पुराना ध्रुव मिल गया है...पुराने आर्ट के स्वाद पर इससे ज्यादा बेहतर टिप्पणी नहीं मिलेगी! अनुपम-विनोद जी की जोड़ी है! सबको पता है कैसा काम मिलता है! लेकिन कुल मिलाकर 10 साल पहले यह जोड़ी जो प्रभाव देती थी..अब उसमे काफी परिवर्तन आ गया है! आर्टवर्क 41 पेज तक जानदार लगता है..पर 42 से गिरावट आने लगती है...ध्रुव के बदलते आर्ट को देखकर आप लोग यह बदलाव महसूस कर सकते हैं! लेकिन फिर भी बहुत ज्यादा खराब नहीं है....एक Acceptable quality मेन्टेन रखी गई है!
रिचा को देखकर जरूर आश्चर्य हुआ...क्यूंकि वो पहचान में ही नहीं आई...अनुपम जी जब उसको बनाते हैं..तो उसके बाल curly रखते हैं...आप ब्लैक कैट के रूप में अंतर देख सकते हैं...पर इस बार उन्होंने बाल सीधे रख दिए! एक पल को लगा कि वो नताशा है! उसके बाल फिर से curly बनाइये!

रंगसंयोजन 60-65% तक की quality का है...बहुत ज्यादा इफेक्ट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया है...सिंपल कलर scheme में पूरी कॉमिक्स बनाई गई है! ग्लॉसी पेजेज की quality बहुत अच्छी है...जिसपर आर्ट उभर कर आया है!

शब्दांकन में एक बार फिर से Negatives कॉमिक्स वाली छाप नज़र आती है! उलूक के डायलॉग्स पर यह आप देख पायेंगे!

टिप्पणी- हन्टर्स मनोरंजन के लिहाज़ से बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं कर पाती है और खूनी खानदान सीरीज से इसकी तुलना करना अभी जल्दबाजी है! इसमें भागदौड़ तो ज्यादा है..लेकिन हाथ में कुछ नहीं आता! ध्रुव या तो दिमागी तौर पर बहुत चालाक दिखाया गया है या फिर बिल्कुल कमजोर! दूसरे सभी किरदार सिर्फ अपनी उपस्तिथि दर्ज कराकर चले जाते हैं! कौन क्या कर चुका और आगे क्या करेगा...यह जानने के लिए अब अगले भाग का इंतज़ार करिए! हम सिर्फ यही कह सकते हैं कि इसको सिर्फ बालचरित का 20-25% शुरुआती हिस्सा मानकर देखा जाए तो कॉमिक्स स्वीकार्य योग्य है!!

No comments:

Post a Comment