Jolly LLB 2 (2017)
Rating- 7/10
Comedy
Directed by-Subhash Kapoor
Produced by-Fox Star Studios
Written by Subhash Kapoor
Screenplay by Subhash Kapoor
Starring Akshay Kumar,Annu Kapoor,Huma Qureshi,Saurabh Shukla
Cinematography Kamal Jeet Negi
Edited by Chandrashekhar Prajapati
Production company Fox Star Studios
Release date- 10 February 2017 (India)
Running time 137 minutes
Country India
Language Hindi
Spoilers*- वैसे तो फिल्म की कहानी ऐसी है नहीं, जो किसी को पता ना हो, लेकिन फिर भी चेतावनी!
Plot- कहानी लखनऊ में शुरू होती है! जहाँ के न्यायालय में एक बड़े सफल बुजुर्ग वकील रिजवी साहब हैं! जिनकी सहयोगियों की फ़ौज में एक अदने से असिस्टेंट बने हैं पंडित जगदीश्वर मिश्रा उर्फ़ जॉली (अक्षय कुमार)! इनकी पत्नी के रोल में है पुष्पा पाण्डेय (हुमा कुरैशी), पत्नी-पति का रिश्ता अल्ल्हड़पने से भरा हुआ है, पति रिजवी साहब की नॉन वेज पार्टी से आधी रात में आ रहा है, एक दारु की बोतल खोलकर बैठ जाता है, जनेऊ को कान में लपेटकर दारु की बूंदे अपने ऊपर छिडक लेता है और उसकी सोती हुई पत्नी दारु की खुशबु से जागकर उसका पेग खुद गटक जाती है! कहानी में ऐसा लगता है जैसे प्रेमिका को जबरदस्ती पत्नी का रोल दे दिया गया! पंडित जी रोटी पका रहे हैं, और उसको खिला रहे हैं! मतलब कुछ नए तरह का पति-पत्नी का रिश्ता है!
पंडित जी के सपने बड़े हैं, लेकिन जेब में तंगी रहती है, वो चाहते हैं कि वो भी बड़े वकील बनें, लेकिन इसके लिए सही मौके की तलाश में हैं! खुद का अपना चैम्बर हो, इसलिए वो एक मुस्लिम लड़की का केस रिजवी साहब लड़ेंगे ऐसा धोखा देकर अपने लिए पैसे ऐंठ लेते हैं! मामला कुछ ऐसा गड़बड़ा जाता है कि लड़की सुसाइड कर लेती है और असिस्टेंट साहब की मरी हुई आत्मा जागकर कहती है, कि मिल गया मौक़ा, जा बन जा बड़ा वकील!
लड़की का केस अपने शौहर को न्याय दिलाने का था, जिसको लखनऊ के बड़े पुलिसिये सूर्यवीर सिंह ने फेक एनकाउंटर में मार डाला था!
जॉली अब इस केस को लड़ने की ठान लेता है, सामने हैं सूर्यवीर के वकील माथुर साहब (अन्नू कपूर) और जज का रोल कर रहे हैं वही पुराने दिल्ली से लखनऊ पहुंचे जॉली वाले जस्टिस सुन्दरलाल त्रिपाठी (सौरभ शुक्ला)
फिल्म शुरू होते ही यह बताया जाता है कि पूरी फिल्म काल्पनिक है, इसलिए इसको बनाने और दिखाने का उद्देश्य साफ़ तौर पर लोगों के बीच भारतीय न्याय व्यवस्था की मजबूत छवि बनाना है! अंत में सौरभ शुक्ला का एक छोटा सा भाषण सुनकर फिल्म क्यूँ बनाई गई, वो खुद पता चल जाता है!
यह फिल्म खालिस सेक्युलर प्रजाति के भारतीय लोगों के लिए बनाई गई है! जो हिन्दू-मुस्लिम वगैरह किसी भी धर्म वाले खुद को सेक्युलर नहीं मानते हैं, अंत में उनके लिए यह फिल्म देखने लायक नहीं रहेगी क्यूंकि लखनऊ की गंगा-जमुनी वाली सभ्यता इस फिल्म में कूट कूट कर उड़ेली गई है, जिससे कट्टरता की गर्मी ठंडी होने का डर बन गया है!
लखनऊ एक ऐसा शहर है जहाँ हिन्दू ब्राह्मण और मुस्लिम दो सबसे बड़ी आबादी हैं! इसलिए इस फिल्म में हर किरदार धर्म के चश्मे से देखना मजबूरी बन जायेगी! इसमें होली का एक गीत है, जिसका पूरी शूटिंग का बैकग्राउंड अगर आप गौर से देखेंगे तो इस्लामिक कलाकृतियों से सजी लखनवी इमारतों को दिखाता है! फिल्म में जॉली को गोली लगती है, तो उसकी पत्नी मंदिरों के अलावा दरगाहों वगैरह पर भी मन्नत मांगने जाती नज़र आ रही हैं!
फिल्म में कश्मीर से एक मुस्लिम पुलिस वाले का किरदार है, जो ईमान का पक्का है, तो एक पंडित बने हुए मुस्लिम का रोल है, जो इस्लाम के नाम पर धब्बा है! उसके साथ जॉली का एक रैपिड फायर धार्मिक क्वेश्चन राउंड बहुत जोरदार बनाया गया है!
फिल्म में कानून चलाने वालों का भ्रष्टाचार किस हद तक न्याय पालिका और पुलिस की वज़ह से देश और समाज को खोखला कर रहा है! इसको भी उभारने की हल्की कोशिश हुई है!
रोल-
काफी दिनों बाद कोई फिल्म आई है जो अकेले अक्षय कुमार के ऊपर नहीं टिकी हुई है! यहाँ उनके साथ अन्नू कपूर और सौरभ शुक्ला दोनों ही मजबूती से नज़र आते हैं! अक्की के हिस्से में अगर शुरूआती कुछ सीन और गाने हटा दिए जाएँ तो बाकी दोनों को भी बराबर का रोल मिला है! इसलिए हम कहेंगे कि इस फिल्म में 3 हीरो हैं! हुमा का रोल छोटा है! जैसे पिछली फिल्म में अमृता राव का था!
सहयोगी भूमिकाओं में जो लोग मौजूद हैं, वो अपना अपना काम अच्छे से कर लेते हैं! जो दर्शकों को याद रहेगा!
कॉमेडी- स्तरीय और संवादों की वज़ह से उभारी गई कॉमेडी इस फिल्म में जान डाल देती है! कोर्ट रूम में जो कुछ होता है, वो लगभग कॉमेडी स्टाइल में ही दिखाया गया है! फेक एनकाउंटर केस कितना गंभीर मामला है, पर बहुत हल्की-फुलकी तरह से इसमें न्याय किया गया है! सनी देओल जैसे वकील अपनी फिल्मो में और अक्की जैसे वकील इसमें दोनों एक ही काम कर रहे हैं, सिर्फ प्रेजेंटेशन अलग है! कोर्ट के अन्दर अक्की का अन्नू कपूर को मारा गया तमाचा फ़िल्मी कहानियों में यादगार के तौर पर रखा जा सकता है! :v
फिल्म कैसी है- फिल्म 2 घंटे 16 मिनट की है! शुरू के आधे घंटे में लखनऊ की सैर,यहाँ के ज़मीनी माहौल को फील करवाया जाता है! उसके बाद फिल्म मुख्य कहानी पर आती है! और अंत तक दर्शकों का मनोरंजन कर डालती है! अक्की का रोल आपने खट्टा मीठा में देखा हुआ है, कुछ कुछ उसी तरह से निभाया है, सिवाय कोर्ट रूम ड्रामा के!
कोर्ट रूम के अन्दर जब फिल्म के तीनो हीरो आपस में जुगलबंदी दिखाते हैं, वही फिल्म का आकर्षण है! बाकी केस-न्याय तो दोयम हिस्सा है!
काल्पनिक कहानियों को ज्यादा गंभीर होकर ना देखें, असली ज़िन्दगी में ऐसा बहुत कम होता है, यह फिल्म भी अपवाद है!
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