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Saturday 20 July 2013

BREAKOUT



कथावस्तु-4/5
कला क्षेत्र-4/5


स्तब्द्धता!
“सिटी विदाऊट ए हीरो सीरीज़” के इस दूसरे भाग को पढने के बाद पाठको को पता चलेगा कि मानवीय मस्तिष्क को किस तरह से एक साथ दुख,खुशी,पागलपन,उत्साह,कुटिल हंसी यानी हर तरह के भावों से एक साथ गुजारा जा सकता है!

हम यह नहीं कहना चाहते कि यह सीरीज आज तक आई ध्रुव की सैकड़ो कहानियों से बेहतर साबित हो रही है..वैसे अभी कहानी आधी ही पूरी हुयी है...इसलिए यह कहना जल्दबाजी ही होगी...लेकिन यह जरूर है...कि किसी ने भी ध्रुव की ऐसी कहानी पहले नहीं पढ़ी है!...मुख्यतः हम सभी भारतीय... एक ऐसे हीरो कि कल्पना में डूबे रहते हैं...जो बुराई पर एकतरफा जीत दर्ज करके खुद को बाकी लोगों से अलग साबित कर देता है! मगर तब क्या हो..जब यह "अलग इंसान" खुद बाकी साधारण लोगों की कतार में खड़ा नज़र आने लगे? यहाँ यही हो रहा है...एक जद्दोजेहद चल रही है...खुद को खुद ही साबित करने की!

“कोड नेम कॉमेट” पढने के बाद हर सुधी पाठक बेतकल्लुफ होकर निश्चिन्त हो सकता था ...ऐसा माहौल बनाया लेखक ने ,पर वो सब एक दूर की सोच पर आधारित चीज़ें थी...हमें कहना चाहिए एक खूबसूरत साज़िश का हिस्सा थी! यह सीरीज़ पाठको की परीक्षा लेती हुई प्रतीत होती जा रही है! राज कॉमिक्स के इतने सालो के इतिहास में कोई कहानी इतना ज्यादा सोचने पर मजबूर नहीं करती..जितना अब तक के करीब 150 पन्नो में हो चुका है!

“कोड नेम कॉमेट” पढ चुके पाठको के लिए यह कहानी वहां से शुरू होती है, जब अक्षिता नामक कैडेट के घायल होने के बाद ध्रुव अस्पताल से निकला है! कहानी यहाँ से गोता मारती है, एक बार फिर भूतकाल में हुए एक छोटे से किस्से में जो फिर आगे के 74 पन्नो में नज़र नहीं आएगा! यहाँ एक बार फिर कहानी एम्स्टरडैम में नज़र आती है..जहाँ रिचा-कॉमेट का आमना-सामना प्रकरण ख़त्म होता है!
यह हिस्से इस भाग में मुख्य नहीं हैं...मुख्य बात है-नारका जेल का ब्रेक होना...जिसपर कहानी का टाइटल दिया गया है! जेल में सेंध लगने का पूरा प्रकरण,पूरी दुनिया के टीवी कवरेज के साथ विस्तारपूर्वक लेखक ने दिखाया है...वो मुख्य आकर्षण है! 1000 से ऊपर खूंखार कैदियों के साए में एक लावारिस हालत में लग रहे शहर की कहानी झुरझुरी दौड़ाने के लिए काफी है! पेज-22 पर एक पोस्टर दिखता है-“दिलवाला दुल्हनिया वापस दे जाएगा”! हमें इसको देखकर हँसते हुए अंदाज़ा हो गया कि ध्रुव के बिना राजनगर की हालत क्या है! यहाँ कुछ भी सीधा नहीं चल रहा है..सबकुछ उल्टा-पुल्टा है!

इसके बाद है हिंसा..हिंसा..हिंसा! आम भाषा में एक्शन, वो भी नॉन स्टॉप..उज्जड सडको पर घूमते कैदियों को रोकने के लिए नताशा..फिर चंडिका फिर..CF के 3 टॉप कैडेट्स...थोड़ी थोड़ी देर पर आकर हाथ साफ करना चालु कर देते हैं..जो अंत तक कहानी के अल्प विराम लेने तक चलता रहता है!

यह वो हाई टेक मेट्रो सिटी राजनगर कहीं से भी नज़र नहीं आती, जहाँ सुपर कॉप इंस्पेक्टर स्टील रहा करता था/है...ध्रुव के मरने के बाद जिस शहर की हर गली सुरक्षा के मामले में 4 गुना चाक-चौबंद होनी चाहिए थी..वहां प्रशासनिक अमला पूरी तरह विफल हो गया! वैसे हमें जेल के टूटने के बाद बाहर कहानी के अंत तक कहीं भी पुलिस और दूसरी सरकारी/गैर सरकारी सुरक्षा एजेंसियों के नाम की कोई चिड़िया कहीं दिखी ही नहीं! कहानी के शुरू में पेज-4 पर एक पुलिस हेलीकाप्टर साधारण परिस्थिति में तो उड़ता दिख रहा था...मगर काम के समय नहीं! प्रशासन की भूमिका संदिग्ध नज़र आती है..शायद राजनगर में भी कांग्रेस की सरकार बन गई है!...ध्रुव से ज्यादा तो यहाँ एक अच्छी सरकार की जरूरत पहले है!

हाँ तो हम शुरू में बात कर रहे थे स्तब्द्धता की,जो इस कहानी से बन रही है..या लेखक द्वारा पाठको के मनोरंजन के लिए बनाई जा रही है,यह कहना ज्यादा सटीक है! “कोड नेम कॉमेट” जहाँ कुछ और दिखा रही थी..वहीँ ब्रेकआउट कुछ और ही दिखाती है! पढने वाले सिर्फ अपने बाल नोंच सकते हैं कि क्या सही है और क्या गलत! बालों से याद आया कॉमेट के बाल बहुत छोटे हैं..मगर एक आदमी कहानी में ऐसा भी है जिसके बाल-दाढ़ी सब 1 फीट के घनघोर घने-घने हैं और ध्रुव का जनाज़ा उठ चुका है! अभी तक सारी दुनिया को 2 ध्रुव दिख रहे थे..यहाँ अभी तक हमें 3 नज़र आने लगे हैं...आगे शायद 4 या 5 दिखने लगें....हमें पता है यह लाइन्स ऐसी लगती है कि हमने चढ़ा रखी है..मगर इसके ज़िम्मेदार सिर्फ लेखक है.....तो प्यारे पाठकगण चद्दर तानिये ,सो जाइए ,यह बहुत गहरा किस्सा है,आखिरी भाग के आखिरी पन्ने से पहले किसी को कुछ पता चलने वाला हो, ऐसा लगता नहीं है!

रोल्स की बात करी जाए तो ध्रुव के बारे में ना पूछिए...जब पता ही नहीं चल रहा की लेखक की कलम से निकली स्याही कहाँ तक गई है! कॉमेट-मिशा के साथ बाकी हमारी फेवरेट रिचा/ब्लैककैट के हिस्से में बहुत छोटी भूमिका आई है...दिल डूबा-डूबा सा हो गया! “नताशा प्रेमी” खुशियाँ मानते हुए अनार और फुलझड़ियाँ छुड़ा सकते हैं..कि उनकी कमांडर ने पूरी कॉमिक्स में भारी-भरकम उपस्थिति दर्ज कराई है! सुंदर चंडिका ढिशुम-ढिशुम और राजनगर के बदले हुए हुलिए का हाल-चाल पता करती रही! CF से पीटर-करीम-रेनू दिखे हैं.... “कोड नेम कॉमेट” के मास्टर M ने अपनी छुपी काली सूरत यहाँ भी जारी रखी है...इन सभी जाने अनजाने चेहरों के अलावा सिर्फ एक नए रोल एंट्री की हुई है! उम्म नहीं 2..नहीं शायद 1..पता नहीं...बहुत उलझी कहानी है..आप पढ़कर जान लीजिये!

इस भाग में कहानी को दुगुना कसा गया है...कोई सूत्र पढने वालो को ना मिले..इसकी पूरी कोशिश लेखक ने करी है...सस्पेंस के सारे सिरे अभी भी बना रखे गए हैं...इसलिए पढने वाले के हाथ खाली ही रह जाते हैं! पर थोड़ी मेहनत करके पाठको को दिल की ठंडक मिले इसके लिए कुछ ना कुछ जरूर हाथ लगेगा...हमें भरोसा है!

हेमंत कुमार जी की पेंसिल और विनोद कुमार/ईश्वर आर्ट्स की इंकिंग से सजा काम इस भाग में है! हेमंत जी के काम के बारे में ज्यादा कुछ नया उल्लेख करने लायक अब बचा नहीं है! वो राज कॉमिक्स के अग्रणी आर्टिस्ट्स में से एक हैं! सुपर कमांडो ध्रुव की कई कॉमिक्स पहले भी बना चुके हैं...और निसंदेह ब्रेकआउट में भी उनका काम उम्दा रहा है! कहने वाले कहेंगे जरूर, कि ध्रुव का चेहरा,उसके बाल,उसकी खाल,उसका शरीर,उसकी मुस्कान, उसका गुस्सा, मतलब जहाँ नज़र पड़ी, वही खराब बता देते हैं...वज़ह पूछने पर वही घिसी पिटी बात कि “अनुपम जी का ध्रुव चाहिए”!
इस लाइन के आगे लोगों की नज़र में किसी दूसरे आर्टिस्ट द्वारा करी गई जी तोड़ मेहनत का कोई मूल्य नहीं होता है...एक बार ठन्डे दिमाग से सोचकर देखिये..खैर यह चीज़ लोग धीरे-धीरे ही समझेंगे जरूर एक दिन!

"ब्रेकआउट" में जेल ब्रेक के सीन बहुत शानदार हैं! रिचा/ब्लैक कैट दोनों ही सुंदर बनी हैं! महिला ऊप्स "सॉरी" सुंदरियाँ(एक गुंडे को महिला शब्द का उपयोग बहुत भारी पड़ा था) प्रधान आर्टवर्क वो भी एक्शन के जबरदस्त तडके के साथ देखकर दिल खुश हो जाता है! चंडिका के एक्शन सीन अच्छे हैं...प्रीव्यू में सभी ने रोबो-ध्रुव वाले सीन देखे थे..जो बहुत जबरदस्त बने थे ...उनके आगे भी एक्शन के बहुत अच्छे सीन हैं! कवर पर रोबो के विशालकाय शरीर को देखकर पाठक भ्रमित ना हो..वो कहानी का हिस्सा हैं..एक्शन के अलावा ज्यादातर आर्टवर्क आपसी बातचीत का है...जिसमे फोकस चेहरों पर दिया गया है! इन्कर्स ने यहाँ साफ़ सुथरा काम किया है...कोई गैर जरूरी अँधेरा या मार्क्स नहीं हैं!

रंग सज्जा में शादाब सिद्दीकी जी के अलावा नए colorist अभिषेक सिंह का पहला कॉमिक्स है! इफेक्ट्स ठीक ठाक हैं...इस दिशा में कोई विशेष उल्लेखनीय पेज हमें नहीं मिला...व्यक्तिगत रूप से हमें हार्ड कलरिंग पसंद आती है...जैसी इस सेट की एक दूसरी कॉमिक्स “रात का भक्षक” में हुयी है...इसमें हमें कलर इफेक्ट्स हल्के महसूस हुए! खैर, अभिषेक जी को राज कॉमिक्स से जुड़ने की बधाई!

शब्दांकन भी मंदार गंगेले जी का है!

इस भाग को लेकर आखिरी चीज़ कि...लेखक ने अब तक के 2 भागों में बहुत ज्यादा मेहनत करी है! जब यह दिखता है,तो बहुत ख़ुशी भी होती है,साथ-साथ उम्मीदें और दोगुनी बढ़ जाती हैं! कहानी इस वक़्त अपने चरम के पहले पायदान पर आकर खुली हुई है! अगले 2 भाग “शायद” ध्रुव की सबसे बेहतरीन कहानी पाठकों को दे सकते हैं! सकारात्मक रहते हुए अगले भाग का इंतज़ार है!

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