Freelance Talents Championship एक मंच है नयी प्रतिभाओं को एक खुले वातावरण में अपनी छुपी प्रतिभा को निखारने का.
इसको 2013 में श्री मोहित शर्मा के द्वारा फेसबुक पर शुरू किया गया है..और अपने पहले प्रयास में ही बहुत सफलता अर्जित कर चुका है!
इस पोस्ट में हम इस कांटेस्ट में अपनी पहली स्टेज पर दी गई एंट्री का विस्तृत विवरण दे रहे हैं...इसमें हमारा सामना श्री कुमार सत्यम जी से था!
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https://www.facebook.com/groups/609222759102507/
Official Blog
freelance-talents-championship.blogspot.in
इसको 2013 में श्री मोहित शर्मा के द्वारा फेसबुक पर शुरू किया गया है..और अपने पहले प्रयास में ही बहुत सफलता अर्जित कर चुका है!
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Round 1 (Match # 29) - Youdhveer Singh vs. Kumar Satyam
*) - भारतीय समाज की मूलभूत संरचना व तत्व
(#29 – Youdhveer Singh)
भारतीय समाज की सबसे बडी विशेषता उसकी
अनेकता में एकता की भावना है. यहाँ विभिन्न प्रकार
वर्गों के लोग निवास करते है. इनमे विभिन्न प्रकार की परंपराएँ प्रचलित है. वैदिक धर्म यहाँ के
अधिकांश भाग का धर्म है. जो विदेशी आये वे इस समाज
में मिलते चले गए. कुछ हद तक उन्होंने अपनी मौलिकता भी बनाये रखी.
>आर्थिक दृष्टिकोण
सोने के चिड़िया कहा जाने वाले भारत
देश में आज समाज का पेट भरने के लिए अनाज भी विदेशो से आयात करना पड़ता है..इससे
बड़ा उदाहरण दूसरा नहीं मिलेगा..यह बताने के लिए कि देश की कृषि आधारित आर्थिक
व्यवस्था किस तरफ जा रही है! दरअसल 20% India तो दिनों दिन चमकता जा रहा है..लेकिन
जो 80% गरीब भारत है..वह देश के हुक्मरानों
द्वारा दिनोदिन बर्बादी के गर्त में जबरदस्ती धकेला जा रहा है! भारत के ऊपर इतना
विदेशी क़र्ज़ है जिसको चुकाने के लिए कई दशक लग जायेंगे.
परेशानी यह है कि मौजूदा जिम्मेदारो
के पास दूरदृष्टि नाम की चीज़ खत्म हो गयी है..जो भी भारत में उल्लेखनीय प्रगति
है..वो व्यक्ति या समूह के अपने पौरुष के बल पर होती है..उसमे सरकारी रूप से
उदासीनता बनी रहती है! जिस दिन यह बदलेगा.शायद सोने की वो
विलुप्त चिड़िया फिर से चहकेगी!
>जातीय व्यवस्था
5000 वर्ष पुराने इस देश को अगर किसी
चीज़ का सबसे ज्यादा लगाव आज तक बना हुआ है तो वो है जातिगत व्यवस्था! इसके अंतर्गत
हर धर्म के अन्दर कई जातियां एवं उपजातियां विद्यमान हैं!
पहले इसके पीछे सामजिक ढाँचे को एक
सांचे में तराशने की कोशिश की भावना थी..मगर यह सामाजिक विद्वेष और असमानता की खाई
को सदा के लिए खुले एक दरवाज़े का काम कर गयी..जिससे एक तबका सुख सुविधाओं के आकाश
पर जा पहुंचा और दूसरा शोषण और अस्पर्श्यता जैसे अभिशापो को लेकर सदियाँ गुजारने
पर मजबूर है!
बहरहाल जैसे-जैसे शिक्षा का फैलना और
समाज को कई महापुरुषों का दिखाया रास्ता प्रसारित होता जा रहा है..उसी अनुपात में
यह व्यवस्था भी चरमरा रही है..और एक दिन ऐसा जरूर आएगा..जब इंसानों के बीच सिर्फ
प्रेम का सम्बन्ध रहेगा...किसी द्वेष की भावना खत्म हो जायेगी!
>क्षेत्रीयता
इससे अभिप्राय है..इस विशाल देश में
जितनी विविधिता पाई जाती है..वो किसी भी 2 क्षेत्र विशेष के बीच अंतर पैदा करती
है! मसलन कश्मीर में रहने वाला व्यक्ति किसी दक्षिण भारतीय से भिन्न होता है.
>राजनीतिक प्रभाव
समाज के ऊपर राजनीतिक प्रभाव बहुत
अधिक है..जैसे की हम बता चुके हैं...समाज बहुत सारे अलग समुदाय..क्षेत्रों में
बंटा हुआ है...जिनपर सरकारी रूप से भी अलग अलग महत्व दिया जाता है! सबसे पहले देश
में सबसे बड़ा राजनितिक पर्व “चुनाव” जातिगत आधार पर लड़ा जाता है...यहाँ कर्म से अधिक व्यक्ति विशेष के सामाजिक
प्रभाव पर वोट डाले जाते हैं! अगर चुना हुआ व्यक्ति इस तरह मिलता है जनता को..
उसका काम करने का ढंग भी सिर्फ “अपनों” तक ही सीमित रहता है...जिस वज़ह से देश के सामने समस्याएं आज तक बनी हुयी
हैं.!
>वैवाहिक परंपरा
भारत में विवाह को संस्था का दर्ज़ा
दिया गया है...यह समाज को चलाये रखने की पहली इकाई है..जो घर से शुरू होती है!
पाश्चात्य संस्कृति के उलट यह शरीर से नहीं बल्कि आत्मिक बंधन से बंधी मानी गई है
! भारत में मुख्यतः विवाह परिवार की रजामंदी से होते हैं मगर बदलते वक़्त में प्रेम
विवाह भी प्रचलित हुए हैं...जिनको लेकर समाज की प्रतिक्रिया मिली जुली रही है!
>रहन-सहन और खान पान
भारतीय समाज विविधिता प्रधान है.. हमारे यहां
यह लोक मान्यता बन गयी कि “कोस कोस पर बदले पानी चार कोस पर वाणी”
जितनी बोलियाँ यहाँ हैं,जितने तरह का
खाना यहाँ मिलेगा..कहीं नहीं!..पहनावा और जीवन जीने का तरीका तक विभिन्न्त्ता लिए
हुए होता है! समाज में जब इतनी अलग अलग चीज़ें
व्याप्त हो जाती है..तो वो समाज हर दृष्टि से आगे ही आगे बढ़ता है...क्यूंकि सभी एक
दूसरे से कुछ ना कुछ नया सीखते हैं..जो उन्हें जीवन के किसी भी मोड़ पर काम आता
है..चाहे भाषा हो या कोई जरूरी गुण !
>परिवार संस्था
भारत में संयुक्त परिवार
की परंपरा रही है...जिसमे सभी एक साथ मिल जुलकर रहते हैं..इसका फायदा होता है..कि
अच्छे और बुरे हर तरह के वक़्त में सब मिलकर एक दूसरे के साथ ख़ुशी और गम बांटते
हैं.
मगर जीवनशैली में आये
बदलावों की वज़ह से अब एकल परिवारों का चलन बढ़ गया है...और इससे समाज में कई
विसंगतियां व्याप्त हो गयी हैं..आर्थिक रूप से लोगों पर बोझ बढ़ने के अलावा
संस्कारों में भी गिरावट देखी गई है..जहाँ नौकरीपेशा वर्ग के माता-पिता के पास
अपने बच्चो के लिए समय की कमी होने से नौकरों के द्वारा उनका लालन पालन आम बात हो
गई है...ऐसे में दादा के साथ से मिलने वाली ख़ुशी और नानी की कहानियो का ज्ञान
प्राप्त करने से बच्चे वंचित हैं! अगर इसमें रोक नहीं लगाई गई तो समाज की मूलभूत
संरचना पर नकारात्मक असर पड़ता जाएगा!
>प्रकृति के साथ समाज
जिस समाज में हम लोग रहते
हैं..उसके स्वस्थ रहने में प्रकृति का योगदान कम नहीं आँका जा सकता! यह देश गंगा-यमुना
जैसी नदियों के द्वारा ही फला-फूला है..आज भी लोगों की दिनचर्या में घाटों पर सुबह
स्नान और सूर्य दर्शन करना एक परंपरा का अनमोल हिस्सा है!
लेकिन समाज के इस
दृष्टिकोण में बदलाव आया जब..ओद्योगिकीकरण के कारण नदियों को दूषित किया जाने
लगा..जंगलो को अंधाधुन्द काटा गया...वन सम्पदा के साथ साथ जीव सम्पदा पर भी संकट आ
गया है!
आज जरूरत है अपनी इस बची
हुई अनमोल हरियाली को बचाने और उसको बढाने की...इसमें व्यक्ति के अपने कर्मो से
अधिक समाज में इसके लिए जागृति लाना एक बड़ा संबल बन सकती है!
>समाज पर विदेशी प्रभाव
कभी गाँधी जी ने विदेशी कपड़ो की होली जलाई थी...लेकिन आज विदेशी चीजों से
बाज़ार पटा हुआ है..चीन निर्मित सामान हो या अमेरिका से राजनीतिक रूप से करी गयी
परमाणु डील...विदेशी मोह का सटीक उदाहरण देते हैं!
हिंदी भाषा हाशिये पर और अंग्रेजी हर युवा की जुबान पर विराजमान होती जा रही
है..इस तरह समाज में एक अजीब से बेचैनी बनी हुई है खुद को बाकियों से अलग दिखने
की..जिसमे वो अपनी परम्पराओं की तिलांजलि देने से भी नहीं चूक रहा.
विदेशी चीज़ें या बातें हर लिहाज़ से खराब नहीं हैं...लेकिन एक हद तक देशी चीजों
को पहले महत्व दिया जाना चाहिए...और विदेशी चीज़ें स्थापन्न की तरह इस्तेमाल होनी
चाहिए इससे देश की प्रगति को बढ़ावा मिलता है!
>समाज पर सिनेमा का प्रभाव
भारतीय फिल्में
आरंभ से ही एक सीमा तक भारतीय समाज का आईना रही हैं जो समाज की गतिविधियों को रेखांकित
करती आई हैं। चाहे वह स्वतन्त्रता संग्राम हो या विभाजन की त्रासदी या युध्द हों
या फिर चम्बल के डाकुओं का आतंक या अब माफियायुग। दरअसल हमेशा यह कहना कठिन होता
है कि समाज और समय फिल्मों में प्रतिबिम्बित होता है या फिल्मों से समाज प्रभावित
होता है। दोनों ही बातें अपनी-अपनी सीमाओं में सही हैं। कहानियां कितनी भी काल्पनिक
हों कहीं तो वो इसी समाज से जुडी होती हैं। यही फिल्मों में भी अभिव्यक्त होता है।
लेकिन हां बहुत बार ऐसा भी हुआ है कि फिल्मों का असर हमारे युवाओं और बच्चों पर
हुआ है सकारात्मक और नकारात्मक भी। किन्तु ऐसा ही असर साहित्य से भी होता है। क्रान्तिकारी
साहित्य ने स्वतन्त्रता संग्राम में अनेक युवाओं को प्रेरित किया था। मार्क्स के साहित्य
ने भी कई कॉमरेड, नक्सलाईट खडे क़र दिये। अत: हर
माध्यम के अपने प्रभाव होते हैं समाज पर। फिल्मों के भी हुए।
नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार सामने आए कि फिल्म
एक दूजे के लिए का क्लाईमेक्स दृश्य देख कई प्रेमी युगलों ने आत्महत्या कर ली थी। यहां तक कि
इस फिल्मी रोमान्स ने
युवक युवतियों के मन में प्रेम और विवाह के प्रति कई असमंजस डाल दिये हैं कि वे वास्तविक वैवाहिक जीवन में
सामन्जस्य नहीं कर पाते। कुछ अश्लील
किस्म के गीतों ने ईव-टीजींग आम कर दी है सैक्सी-सैक्सी मुझे लोग बोलें, मेरी पैन्ट भी सैक्सी, आती
क्या खण्डाला आदि। इस सैक्सी शब्द को फिल्मों ने इतना आम कर दिया कि पड़ोस की एक
महिला से उसके छोटे से बच्चे ने पूछ लिया कि मम्मी
ये सैक्सी क्या होता है? तो
माँ ने जवाब दिया कि आकर्षक और सुन्दर लगना, और कह भी क्या सकती थी?
यह बात बच्चे के मन में बैठ गई और किसी समारोह के दौरान उसने अपनी
सजी संवरी माँ को सैक्सी कह दिया। आधुनिकता का यह नग्न स्वरूप भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। एक फिल्म आई थी “मोहब्बतें”! इस फिल्म ने यह साबित
कर दिया कि भारत के कॉलेज स्कूल माईक्रो मिनी
स्कर्ट पहन कर बस रोमान्स की सारी हदें पार करते हैं। जैसे जैसे अपराध की पृष्ठ भूमि पर फिल्में बनती रहीं, अपराध जगत में बदलाव आया। असंतुष्ट,बेरोजगार और
अकर्मण्य युवकों को यह पैसा बनाने का शॉर्टकट लगने लगा, और सब स्वयं को यंग एंग्रीमेन
की तर्ज पर सही मानने लगे।
आए दिन सुनने में आता है कि
अमुक डकैती या घटना एकदम फिल्मी अन्दाज
में हुई। हम यहां
यह नहीं कहना चाहते कि
समाज में अपराध के बढते आंकडों के प्रति फिल्में ही जिम्मेवार हैं, लेकिन
हां फिल्मों ने अपराधियों के चरित्रों को जस्टीफाई कर युवकों को
एकबारगी असमंजस में जरूर डाला होगा। वैसे
कुल मिला कर देखा जाए तो भारतीय समाज और सिनेमा दोनों ने काफी तकनीकी तरक्की कर ली है। अब जैसे जैसे फिल्म व्यवसाय बढ रहा है फिल्मों के प्रति दर्शकों की सम्वेदनशीलता घट रही है। आज हमारे युवाओं के पास विश्वभर की फिल्में देखने और
जानकारी के अनेक माध्यम हैं।
>भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति
भारत जैसे बहुविधि समाज में स्त्रियों का अपना विशेष स्थान रहा है. शास्त्रों में लिखा हुआ है कि पत्नी पुरुष का आधा
भाग है. वह एक श्रेष्ट मित्र भी है. यह भी कहा जाता है कि जहाँ नारी कि पूजा होती है वहीँ देवता वास करते है. प्राचीन युग में नारी हर प्रकार से सम्मानित थी. पर आज उसकी स्थिति बिलकुल
भिन्न है.आये दिन होने वाले
महिलाओं पर अपराधी हमले समाज के लिए शर्म का विषय बन जाते हैं. कुछ समय पहले हुआ
निर्भया काण्ड हो..या गुवाहाटी में हुई एक घटना..यह विश्व पटल पर भारत में समाज के
गिरते स्तर को ही रेखांकित करता है!
महिलाओं को समाज में एक
ऐसा खुला और सुरक्षित माहौल दिए जाने की जरूरत है जहाँ वो स्वछंद अपना जीवन जी
सकें!
>इंटरनेट युग का समाज पर प्रभाव
आज एक दम से दुनिया पर इन्टरनेट ने
कब्ज़ा सा जमा लिया है...समाज पर भी इसका बहुत उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है! जहाँ दो
भिन्न देशो के व्यक्ति कम समय में एक दूसरे से मीलों दूर बैठे होकर भी जानकारी
बाँट रहे हैं..वहीँ अब सूचना और प्रोद्योगिकी भी इतनी तेज़ और सटीक हो चुकी है कि
पल पल की खबर आपको मिल जाती है!
पिछले साल हुए भारत में 2 बड़े
आंदोलनों की सफलता में इन्टरनेट का मुख्य योगदान रहा..जिसने लाखो लोगों को
प्रभावित किया...लोगों में राजनीतिक जागृति आई है!
>अपराधीकरण
जिस भारतीय समाज के बारे
में हम इतना उल्लेख कर चुके हैं...उसका एक नकारात्मक चेहरा अपराध का भी है! ऐसा
कहा जाता है की जिस समाज में व्यक्ति की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह हो..वो समाज
तरक्की से दूर ही रहा है! बड़े बड़े अपराध रोकना जरूर सरकारी संस्थाओं के अंतर्गत
आता है...लेकिन घरो में होनी वाली हिंसा,दहेज उत्पीडन,दफ्तरों आदि जगह महिलाओं का
यौन शोषण,बच्चो में बढती जा रही नशीले पदार्थो और हिंसात्मक अपराधी प्रवृतियां एक
स्वस्थ समाज के मुहं पर करार तमाचा साबित होती हैं!
इन बुराइयों से बचाव के लिए शिक्षा और संस्कार पूर्ण जीवनशैली
का पालन ही मूल मंत्र हो सकता है!
>अमीर-गरीब के बीच फैली खाई
समाज का एक बड़ा तबका आज
भी गरीबी रेखा से नीचे है..जिसके पास रोटी-कपडा-मकान का घोर अभाव है..वहीँ एक छोटा
सा तबका ऐसा भी है..जिसके पास इतना कुछ है..जो वो इस्तेमाल तक नहीं कर पाता ! इस
सामाजिक विषमता के पीछे सबसे बड़ा कारण अशिक्षा का है..दूसरा बढती जनसँख्या...तीसरा
सरकारी उदासीनता! इनके अलावा कई छोटे-बड़े कारक गिनाये जा सकते हैं!
राष्ट्रीय एकता और अखंडता
में समाज का सहयोग होना बहुत जरूरी है! भारतीय समाज बना है कई समुदायों के परस्पर
प्रेम और सहयोग से...जहाँ हर किसी ने इस देश के लिए अपना जीवन लगा दिया है..और
जीवन गंवाया भी है! इस कारण से हमारा समाज ही वो छोटी इकाई है जो एक राष्ट्र का
निर्माण करती है...समाज अगर एकजुट होकर मजबूत बनेगा..तो देश भी मजबूत रहेगा और देश
मजबूत रहेगा तो भारत को विकसित राष्ट्र
बनने से कोई नहीं रोक सकता!
Judge’s Rating – 45/100
Judge’s Comment –The first with all the length formatting was this is like one
of those articles from renowned international magazine only difference was this
is a Hindi article. After reading I’m thoroughly disappointed, textlogged by
dozen issues and author did justice with nothing. Ordinary and at times
directionless article.
*) - Aarakshan
(Samaj ka dusra chehra)
(# 36 - Kumar Satyam)
Bachpan se suntan
aata tha karm ka fal meetha hota hai.Lekin dekhta sirf yahi aaya
hun ki Aarakshan ka fal meetha hota hai. Humara bhartiya samaj joh khud main
anekta main ekta ki baatein karta hai aarakshan ke dwara ekta ko hanekta main badal detahai.
Harjagah aarakshan
ka zehar kaal jayisarp ki tarah faila hai.Nursery se lekar Naukri tak kahin bhi
kaabiliyat pe kuch nahi milta bas aarakshan chahiye.
Main jab 12th
pass kiya tha toh socha IITJEE deke IIT se btech kar lunga lekin mujhe kya pata
tha general category ka hone mere liye abhisaap ho jaega. Mera mitra jinhe mujhe
se kahin jyada kam aaya tha IITJEE main unka admission IIT kharagpur main ho gaya
kintu mera nahi ho paya.Karan tha unka SC/ST hona.
Engineering
pass kiya toh maine Govt jobs ke liye apply hi nnahi kiya kyunki mujhe pata tha
main aarakshit nhi hun toh kya fayda samay barbaad karne se.Ab toh jaise aarakshan
ka dayra badhane ke horr se lag gayi hai.
Har caste le
log bas aarakshan chahate hai, Arre Ammamiya mehant se kuch hasssil karo kabtak
muft ki rotiya chahaiye. Politicians koh itna hi na arakshan pyara hai toh apne
parliament main hin lagayae bas reservation. Maasumon kizindgi se khilwaar band
Karen. Agar aarkshan dena hin hain to ha arthik awastha pea arakshan dijiye
dharma ya jaat paat pe nahi.
Warna kalko
Bharat Karma pradhan desh nahi balki sirf Dharm pradhan desh kehlayega.
JAI HIND JAI
BHARAT
Rating – 20/100
Judge’s
Comment – I second
you on that; Reservation is not benefiting the society the way policy makers thought
it would. A short rant by a person who experienced it. My sympathies are with
you my friend.
Judge - Kshitij Dhyani (Author, Artist and Musician)
Result
- #29 Youdhveer Singh wins the match and moves to round of 32. Kumar
Satyam is now assigned to Freelance Talents Parallel League.
बहुत ही सुन्दर लेख है , दरचल हमे किसी भी सत्य का उद्घाटन करने के लिए ऐसे दार्शनिक तरीके से बिसार करना बहुत आवश्यक है। bhartiya samaj aur andhvishwas in hindi
ReplyDeleteBahut achchhi bate batayi hai
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