पोपटलाल अर्रर मतलब बांकेलाल का यह नया विशेषांक प्रस्तुत हुआ है नाम है “पोपट में जान”!
साल 2013 बांकेलाल के लिए काफी अच्छा रहा है! हर सेट में उसको जगह मिलती है और कई कहानियां भी बेहतरीन बनी हैं! वहीँ इस साल तो उसका एक महा विशेषांक भी आपको अगले सेट में मिलेगा!
पोपट में जान का कथावस्तु कुछ यूँ है- बांकेलाल को शक होता है कि विक्रम की जान राजमहल के 5 पशुओं के अन्दर बंद है! पशु ख़त्म तो मोटा भी खत्म! आगे की कहानी आप समझ गए होंगे कि बांके ने सभी पशु मार देने हैं! पर हुआ वही-“कर बुरा हो भला!” यानी विक्रम नहीं मरे! अब क्यूँ नहीं मरे,कहाँ चूक हो गई,यह तो बांकेलाल का रेगुलर पाठक वर्ग खुद ही समझदार है!
“पोपट में जान” में नया कुछ नहीं है! वही घिसा हुआ तिकड़मी प्लाट..कहानी भी साधारण रह गई और पूरी तरह से बांकेलाल पर निर्भर भी! सह भूमिकाओं में किसी को तवज्जो नहीं मिली..सभी एक बार चेहरा दिखाकर चलते बने! एक नई किरदार “धाय माँ” लाइ गई जो पकाऊ निकली..शायद दोबारा कभी आगे फिर दिखेगी(बोला तो ऐसा ही गया है)!
इस कहानी की गति कछुवे जैसी है....आप आराम से चाय-पकोड़े खत्म कर लेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब पूरी हो गई!
कहानी का हास्य पक्ष बहुत कमजोर है...एक बार भी दीदा फाड़ हंसी नहीं निकलती! बांकेलाल सीरीज के साथ यही पेंच रहते हैं....हर सेट में कॉमिक्स आती है इसलिए बीच-बीच में ऐसी नाकाम कहानियां भी मिल जाती हैं..खैर अब दर्शन दो यमराज का इंतज़ार करें!
साल 2013 बांकेलाल के लिए काफी अच्छा रहा है! हर सेट में उसको जगह मिलती है और कई कहानियां भी बेहतरीन बनी हैं! वहीँ इस साल तो उसका एक महा विशेषांक भी आपको अगले सेट में मिलेगा!
पोपट में जान का कथावस्तु कुछ यूँ है- बांकेलाल को शक होता है कि विक्रम की जान राजमहल के 5 पशुओं के अन्दर बंद है! पशु ख़त्म तो मोटा भी खत्म! आगे की कहानी आप समझ गए होंगे कि बांके ने सभी पशु मार देने हैं! पर हुआ वही-“कर बुरा हो भला!” यानी विक्रम नहीं मरे! अब क्यूँ नहीं मरे,कहाँ चूक हो गई,यह तो बांकेलाल का रेगुलर पाठक वर्ग खुद ही समझदार है!
“पोपट में जान” में नया कुछ नहीं है! वही घिसा हुआ तिकड़मी प्लाट..कहानी भी साधारण रह गई और पूरी तरह से बांकेलाल पर निर्भर भी! सह भूमिकाओं में किसी को तवज्जो नहीं मिली..सभी एक बार चेहरा दिखाकर चलते बने! एक नई किरदार “धाय माँ” लाइ गई जो पकाऊ निकली..शायद दोबारा कभी आगे फिर दिखेगी(बोला तो ऐसा ही गया है)!
इस कहानी की गति कछुवे जैसी है....आप आराम से चाय-पकोड़े खत्म कर लेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब पूरी हो गई!
कहानी का हास्य पक्ष बहुत कमजोर है...एक बार भी दीदा फाड़ हंसी नहीं निकलती! बांकेलाल सीरीज के साथ यही पेंच रहते हैं....हर सेट में कॉमिक्स आती है इसलिए बीच-बीच में ऐसी नाकाम कहानियां भी मिल जाती हैं..खैर अब दर्शन दो यमराज का इंतज़ार करें!
कहानी-2/5
आर्टवर्क-3/5
सुशांत पांडा जी का है-रेगुलर वाला(ना ऊपर ना नीचे)
इंकिंग-फ्रेंको.
एक और महत्पूर्ण सूचना कि “पोपट में जान” के लिए RC ने इस बार बहुत निम्न कोटि के पीताम्बर रंग के कागज़ का प्रयोग किया है!हमने 50-60 कॉमिक्स के ढेर में से बहुत मेहनत से कुछ थोड़े अच्छे कागज़ वाली कॉमिक्स छांटी! यानी पोपट में जान को पूरी तरह से इसी कागज़ पर प्रिंट करवाया गया है! इस कागज़ की उम्र बहुत कम है..ज्यादा आद्रता वाले इलाको में कॉमिक्स ज्यादा समय तक टिक नहीं पाएगी! RC ऐसे कागज़ का प्रयोग बार-बार ना करे!
कॉमिक्स के मजबूत पक्ष-
*सुशांत जी के चित्र!
कॉमिक्स के कमजोर पक्ष-
*उबाऊ कहानी,हास्य की नगण्यता,ख़राब कागज़ का उपयोग
“पोपट में जान” विशेष उल्लेखनीय नहीं है....अगली कॉमिक्स का इंतज़ार करिए!
No comments:
Post a Comment