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Thursday 15 October 2015

DOGA NYAAY

Review- डोगा न्याय (2015)
Containing Spoilers (जिनको रिव्यु देखना नहीं पसंद हैं..वो कृपया अपना समय इसको पढ़कर नष्ट ना करें!)
24 Pages/98 Panels (Approx. 4 Panels per page).
Genre-Action
Main character(s)- डोगा,लोमड़ी,निर्मूलक,इंस्पेक्टर तेजा!

Short Synopsis -

डोगा बेकाबू  के पिछले भाग से यह 23 पेज का दूसरा भाग आगे बढ़ता है! यहाँ 3 मुख्य बातें हैं-
A- पुलिस पार्टी के हाथों डोगा का बचना!
B- निर्मूलक के हाथो डोगा का पिटना!
C- लोमड़ी के हाथों निर्मूलक का पिटना!

सिर्फ 23 पेज की कॉमिक्स के बारे में सबसे बेसिक बात यह होती है कि 23 पेज की कहानी में मज़ा तभी आएगा जब आपको पढने के लिए नई-नई चीज़ें मिलें! आइये देखते हैं डोगा न्याय में क्या मिल रहा है!

1-कवर से शुरू करिए...डोगा छत पर कुलांचे मारता लोमड़ी के पीछे लगा हुआ है! अन्दर की कॉमिक्स में झाँका तो कहीं ऐसा कोई पेज नहीं है! एक अच्छी लेखक जोड़ी की यही पहचान है..कि जो बाहर दिखाओ..अन्दर बिल्कुल मत दिखाओ! शायद इससे कॉमिक्स बिकने में मुश्किल आती है!

2- अच्छी लेखक जोड़ी की दूसरी पहचान यह है कि जब आपके पास 24 पेज 40 रुपये में देने की डील हो..तो सबसे पहले First  पेज पर कथासार लिखो! क्यूंकि यहाँ सारे पाठक Long Term Memory Loss के मरीज़ हैं जिन्हें पिछले 45 पेज की कहानी याद दिलानी पड़ेगी!

3-कहानी पेज-2 से शुरू करो...जिसमे दो पुलिस वाले बैठे हो! मुझे डोगा चाहिए-जिंदा या मुर्दा...जिनके पीछे से ऊपर वालो और नीचे से TV  वालो ने फलाना-ढिमका किया हुआ हो! 18734 वी बार डोगा की कहानी में यह सीन दिखाया गया है! फिर भी पूछो तो कहा जाएगा “बिल्कुल नया-नया लिखा गया क्रांतिकारी सीन है जी!” 23 में  से  2 बहुमुल्य पन्ने और खराब!

4-डोगा एक गुंडे को टोर्चर करके जानकारी निकाल रहा है! सीन तो यह भी नया नहीं है...पर सवाल छोड़ जाता है कि निर्मूलक या युसुफ (जिसने भी इस गुंडे को मरवाया) उसको कैसे पता था कि पूरे अंडरवर्ल्ड में डोगा सवाल पूछने इसके पास ही आएगा? (डोगा की भागदौड़ को एडिटिंग खा गई)

5-आज तक यह समझ नहीं आया कि “सो जा डोगा” में मिली जबरदस्त चुम्मी के बाद आनंदमयी डोगा जब लोमड़ी को दिल से मारना नहीं चाहता तो आखिर हर बार उसपर गोली चलाकर क्या दिखाने की कोशिश होती है? काली मिर्च चाचा का अचूक निशानेबाज़ शिष्य है डोगा...और पेज- 7 पर 4 फुट दूरी पर  पीठ किये भाग रही लोमड़ी पर डोगा का निशाना नहीं लग रहा! लेखक जोड़ी, यह बताएं कि डोगा की अजीम शख्सियत की मिटटी पलीत करना कब बंद करेंगे?

6-ये तेजा-तेजा क्या है..ये तेजा-तेजा!
कोई अनजान आदमी मुंबई पुलिस को टिप देगा कि करोडो रुपये ईनामी वाला अपराधी डोगा एक ख़ास जगह पर रात में आएगा...तो आप ही बताइए पुलिस क्या इंतज़ाम करेगी? हम बताते हैं..2002 में एक कॉमिक्स आई थी “निशाने पर डोगा“ उसके अंतिम पेज देखिये कि डोगा के आने वाले इलाके को एक पूरी छावनी में तब्दील कर दिया गया था! प्रस्तुत कॉमिक्स में क्या हुआ है? एक इंस्पेक्टर(6 गोली वाले रिवाल्वर के साथ) और 6 सिपाहियों (303 वालों) की भारी-भरकम टीम लेखक ने डोगा को पकड़ने के लिए बनाई थी! लेखक साहब दुनिया आगे बढती है...आपकी पुलिसिया सोच पीछे जाती हुई लग रही है! देखिये कहीं इतनी पीछे ना पहुँच जाए कि डोगा को पकड़ने पाकिस्तान पुलिस के 1970 के रिटायर्ड ठुल्ले मुंबई आ जाएँ! आपके लेखन और डोगा पकड़ने की सोच को सलाम!

7-तो जैसी की आशा थी कि नकली डोगा वाला आईडिया बेहद बचकाना था... लेखक जोड़ी ने कोई चौंकाने वाला खुलासा किये बगैर वही दिखाया जो पहले से सब जानते थे! यही अच्छे लेखन की पहचान है....fans की सोच से पीछे चलो! जब निर्मूलक को पहली दफा ad में देखा था तो लगा था कि शायद लेखक जोड़ी इस बार एक ऐसा जांबाज़ लड़ाका लेकर आये हैं,जो डोगा पर हर कदम भारी पड़ेगा....लेकिन लोमड़ी जैसी अकुशल लडाकी ने निर्मूलक को इस भाग में जिस आसानी से पेला है...हमारी तो इस विलेन की “मर्दानगी” से जुडी सारी आशाएं ही खत्म हो गई! 2002 के पहले का दौर सुहाना था...जब लड़ने वाले बराबर के होते थे...अब तो डोगा जैसे मर्द के लिए 2 लेखक दिमाग लगाकर भी सिर्फ छक्को की फ़ौज बनाते हैं!

8-हमने डोगा को सैकड़ों कॉमिक्स में पढ़ा है...उसके अन्दर के जूनून को करीब से महसूस किया....और कभी यह नहीं लगा कि बुरी तरह घायल होकर भी वो किसी के द्वारा 2-4 वार खाकर बेहोश हो सकता है ताकि विलेन उसके मास्क को हटा सके ऐसी स्तिथी उत्पन्न होने की सम्भावना बने! डोगा इतना कमजोर नहीं था! पर इस कॉमिक्स में यही हुआ है..वो लापरवाह है...कमजोर है और बहुत ज्यादा बचकाना है! अगर लोमड़ी ना होती (जैसा हमेशा होता है यह कहानी अपवाद है) तो निर्मूलक आसानी से जान जाता कि डोगा का चेहरा किसका है! इसका कोई जवाब लेखक नहीं दे सकते! सिर्फ यह कहने के कि डोगा की कहानियां अब किस्मत के भरोसे चल रही हैं! यह समझ से बाहर है कि डोगा जिस लोमड़ी पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं करता..उसके सामने बेहोश क्यूँ हो गया...क्यूँ नहीं बुलाई उसने अपनी कुत्ता फ़ौज? जो उसके राज़ और सुरक्षा को हमेशा पुख्ता करती है! फिर अचानक से हमें याद आया...कि मियाँ अभी तो लेखक साहब ने हम सबको एक जोरदार बारिश के दर्शन करवाए थे...और जहाँ तक हमारी जानकारी कहती है...पिटे-पिटाए,दिमाग घूमते  हीरो के लिए बारिश हमेशा ही वरदान होती है..जो उसको बेहोशी से बचाकर ज्यादा चौकन्ना बना देती है! मतलब यहाँ डोगा के साथ बारिश ने उल्टा खेल दिखाया है! शायद बरसात के पानी में अफीम मिली थी...वाह हम लेखन की गहराई को मान गए! मर्दों का मर्द निर्मूलक के हाथो 4 वार खाकर बेहोश हो गया और यह बेहोशी भी ऐसी...जो गटर की गंदगी में लोट लगाने और घंटों सूंघी गई बदबूदार सुगंध से भी ना भागी!

डोगा के किरदार की ऐसी विरोधी कॉमिक्स लिखने के लिए लेखको का अभिनन्दन किया जाना चाहिए!

Positive Point-

सिर्फ एक- डोगा और निर्मूलक के बीच वाद-विवाद! जो कुछ हद्द तक सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि डोगा की शख्सियत का वजूद अगर होना चाहिए तो किस कारणों से होना चाहिए!

संवाद- पुरानी धूल झाडो और नई में फिट कर दो!...सारे किरदार सिर्फ पुरानी बातें ही रटे हुए तोते की तरह बोले जा रहे हैं...ना पुलिस द्वारा दी गई धमकी में कुछ नया था..ना डोगा के जवाब में...निर्मूलक और डोगा के बीच भी कोई गर्मागर्मी ऐसी नहीं होती जिसको देखकर जोश जागे....लोमड़ी कहती है कि सूरज पर डोगा हावी हो रहा है..लेकिन इस कहानी में बार-बार लोमड़ी पर मोनिका भी हावी होती नज़र आने लगी है!
“अरे,सूरज बेटा..तुम हो क्या...छि-छि हो गई बेटा!” अदरकेया का ऐसा कोई संवाद अंत में लिख देते तो शायद हमें हँसी आ जाती! :P

RC से बस यही कहना है कि डोगा की यह कहानी हर भाग के साथ सिर्फ नीचे और नीचे चली जा रही है और इसको जबरदस्ती खींचा जा रहा है! 72 पेज पढने के बाद भी अब तक समझ नहीं आया कि इसका मुख्य मुद्दा आखिर है क्या? कहानी आपके पास है नहीं..नए संवाद आपको सूझते नहीं...तो आप पार्ट्स निकालकर क्यूँ समय और संसाधन बर्बाद करना चाहते हैं! इस सीरीज की  बची हुई कहानी को एक महाविशेषांक में देकर fans को कृतार्थ करें!

आर्टवर्क-

दिलदीप जी ने चित्रकारी तो अच्छी करी थी..मगर जैसा हर बार होता आया है...राज कॉमिक्स ने इस बार विनोद कुमार जी की सेवाएं ना लेकर ईश्वर आर्ट्स और स्वाति जी को मौका दिया है और आर्टवर्क का जो लेवल  इस कहानी को बचा रहा था..वो भी इस बार शहीद हो गया! पहला पेज अच्छा था! फिर आगे मज़ा नहीं आया! क्यूंकि इस बार डोगा स्वाति जी की हस्तकला के नीचे आकर कराह रहा है! पूरी कॉमिक्स में बरसात हो रही है...और ना जाने क्यूँ यह बरसात हमें याद दिलाती है जब सुरेश डिगवाल और आत्माराम पुंड की जोड़ी...जो एक वक़्त परमाणु और डोगा का ऐसा ही बेमज़ा आर्ट बनाया करती थी! इंकिंग में ईश्वर आर्ट्स भी ख़ास प्रभावित नहीं कर पाते हैं....लेकिन पेज 18 के बाद तो काम का हे-राम ही हो गया है! अदरक चाचा कितने खराब लग रहे हैं!
रंगों और इफेक्ट्स का अचार डालकर कोई फायदा नहीं...इंकिंग ऐसी ही करवानी है तो एक एहसान और करिए...फ्लैट कलर में यह सीरीज निकालिए..और दाम 30 रुपये कर दीजिये!

सीरीज में जाने कब इसमें कुछ नया दिखाया जाएगा और ना जाने कब विनोद जी आयेंगे या नहीं आये तो बचा भी क्या है!

पाठकों से अनुरोध - अगला भाग डोगा उन्मत्त भारी संख्या में खरीदें, RC और रचनाकारों  को मालामाल बनाएं!

Ratings :
Story...★★☆☆☆☆☆☆☆☆
Art......★★★★★☆☆☆☆☆
Pencil.... ★★★★★★★★☆☆
Inking.... ★★★★☆☆☆☆☆☆
Entertainment……★★☆☆☆☆☆☆☆☆

‪#‎Rajcomics‬,‪#‎Doga‬,‪#‎Sudeepmenon‬,‪#‎mandaargangele‬‪,#‎Doganyaay,#dds‬

1 comment:

  1. युद्धवीर भाई, डोगा की कॉमिक्स आठ घंटे, बॉम्बे डाईंग पढ़ी है आपने ???? वो बे मजेदार आर्टवर्क डिगवाल ने ही बनाई थी

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