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Monday, 31 August 2015

CARAVAN (2015)




Review- कारवां (2015) Rating-TEEN
Caution- Containing Minor Spoilers..Read at your own Risk
88 Pages/320 Panels (Avg. 4 Panels per page).
Genre- Vampire-Horror,
Action,Comedy
Main character(s)- जय सिंह राठोड,आसिफ,भैरों सिंह,दुर्गा,भैरवी!

इस कहानी के बारे में बात करनी हो तो हमें पहले यह पूछना पड़ेगा कि आपकी उम्र क्या है? क्या आप पुरुष हैं या महिलाएं भी इस लेख को पढ़ रही हैं? बच्चे तो अगर 15 साल की उम्र पार कर चुके हैं तो कदाचित उन्हें इस श्रेणी में रखा जा सकता है कि कारवां के बारे में उनसे बात करी जा सके!
कारवां पर अब तक अनगिनत लोगों ने अपनी राय ज़ाहिर करी है तो किसी नए लेख में नया पढने की बात अब मुश्किल से मिलती है! कोई क्या नया बताएगा! सभी ने इसको English में भी पसंद किया था! जिसके बाद बढती डिमांड ने इसको हिंदी में भी पब्लिश करवा दिया है! बजाय इस बात को देखे कि यह भारत में सबसे अग्रणी कॉमिक्स कम्पनीज की ना होकर एक बिलकुल नए पब्लिकेशन द्वारा बनाई गई रचना है!
आपके अन्दर पहली चीज़ होती है वफादारी और भरोसा! वफादारी उस कंपनी की तरफ जिसको आप सालों से पढ़ते आ रहे हैं...कि वो कुछ भी निकाले आप लेते जरूर हैं! भरोसा आता है कि जो आपने सालों तक पढ़ा है...वैसा ही आगे भी मिलता रहे!
याली ड्रीम क्रिएशन के पास यह दोनों ही चीज़ें कारवां निकालने के लिए नहीं थी! यहाँ तक की उसके पास पाठक तक नहीं थे जिनसे वो जुड़ सके! उसके पास सिर्फ एक चीज़ रही वो थी “उम्मीद” कि वो कुछ ऐसा निकालें जो पाठको का जायका बदलकर उनका मनोरंजन कर सके और नए रास्ते खुलें!
भारत में कॉमिक मेकिंग करते हुए आम तौर पर सबसे पहले किसी सुपर हीरो को बनाया जाता था! पुराने समय में फैंटम से लेकर बाद में कई कंपनियां इसी परिपाटी पर चलते हुए आज भी काम करती जा रही हैं! एक तौर पर अगर आपके पीछे सुपर हीरो base बनाया हुआ है तभी आप General storylines पर बड़ा दांव खेलने की हालात में होते हैं! क्यूंकि अगर देखा जाए तो आज भी Horror Genre भारतीय कॉमिक्स के लिए एक दोयम दर्जे का विषय बना हुआ है! पता नहीं प्रकाशको का उदासीन रवैया रहा हो या उनका कोई पूर्वालोकन कि हॉरर का विषय उन्हें कभी इस लायक लगा ही नहीं कि रेगुलर किया जा सके! कभी मन हुआ तो एक आध भूत-प्रेत की कॉमिक्स निकाल कर इतिश्री कर ली गई! ना चलने का ठीकरा पाठको के सिर पर फोड़ा जाता है कि मांग नहीं होती! अब कोई बताये कि क्या पाठको के अलग अलग बने वर्गों के हिसाब से बाज़ार में किताबें नहीं मिलती हैं! पढने वाले हर जगह हैं..आप अपनी नज़रें दूर तक देखने के लिए इस्तेमाल करिए..आपको दिख जायेंगे!
हॉरर विषय पर पहले कई कॉमिक्स बनने का दावा किया गया है! लेकिन हमें लगता है कि “Pure Horror” की कॉमिक्स में बहुत कमी रही है! अगर THS और Dark Tales की कहानियां बनाकर/पढ़कर कोई समझे कि उसने Horror Genre को पूरी तरह से explore कर दिया है..तो यह सिवाय बेवकूफी के और कुछ नहीं है! Horror सिर्फ Main Genre होती है...लेकिन उसके अन्दर बहुत सारी Sub-Genres होती हैं!
जैसे-Zombie,Slasher,Supernatural,Zom-Com,Vampire,Cannibalism,Gothic,Monster,Teen etc etc...यहाँ तक की romantic Horror भी एक अलग केटेगरी में आती हैं! अब हमें समझ नहीं आता कि कोई यह दावा कैसे कर सकता है कि पहले जो आया वो इससे बेहतर था या नहीं भी था! क्यूंकि ऐसा दावा करने से पहले सोचना चाहिए कि आप किसकी तुलना किसके साथ करना चाहते हैं! अगर Action की तुलना Action कॉमिक्स से करी जाए तो समझ आता है...लेकिन Action की तुलना कोई अगर Comedy से करे..फिर कहे कि यार सारी कॉमिक्स में सिर्फ हंसनेवाले वाले थे..एक्शन था नहीं इसलिए बकवास लगी.. ऐसे आधे ज्ञान का कचरा पूरी बेवकूफी से ज्यादा घातक होता है!

कारवां “Pure Horror” नहीं है...भारत के ज्यादातर लोग हॉरर मतलब भूत-भूतनी से लगाते हैं...कोई साया,मंत्र-तंत्र या शैतानी शक्ल वाला भीमकाय आदमी! इसलिए यह ऐसी कॉमिक्स नहीं है..जिसको पहले बताया जाये...फिर सोचा जाए कि ऐसा सोचा था पर निकला कुछ और..जिससे धोखा हो गया!
इसलिए हम यही कहेंगे कि दूसरो के कहने पर ना जाएँ...खुद पढ़ें और निर्णय लें कि इसको हॉरर कहें या जो आपको महसूस होता है वो!
कारवां एक सम्पूर्ण कहानी है...जो सुन्दरता के साथ लिखी गई और फिर उससे अधिक सुन्दरता के साथ इसको चित्रित करा गया! हर पन्ना आपको विस्मित कर देता है और आगे की उत्सुकता बढती जाती है!
यहाँ कोई सुपर हीरो नहीं है..अपितु यह पूरी कहानी ही एक सुपर हीरो जैसी है जिसका हर किरदार सहायक पात्र जैसा नज़र आता है! जिस तरह से किसी शर्ट में लगे बटन...एक भी टूट जाए तो पूरी शर्ट को पहनकर घर से नहीं निकला जा सकता यहाँ भी अगर एक भी किरदार की बात ना करी जाए तो सबकुछ अधूरा लगेगा!

Short Synopsis -

कहानी फ्लैशबैक में शुरू होती है...जहाँ एक रेगिस्तानी इलाका है...जिसकी ग्रामीण पृष्ठभूमि में एक परिवार को दिखाया जाता है! हमें याद नहीं आ रहा है कि राजस्थान को कभी पहले इन रंग बिरंगे चित्रों में कहानी का मूल क्षेत्र मानकर हमें पढ़ा है! शायद बाकी लोगों को यह तजुर्बा रहा हो...कॉमिक्स का संसार बहुत बड़ा है! यहाँ एक मुस्लिम शौहर-बेगम और उनका छोटा सा नटखट लख्तेजिगर है! कहानी में मोड़ आता है जब भैरवी नौटंकी के कदम गाँव में पड़ते हैं! यानी आप सोचिये कि फ्लैशबैक में चलती इस कहानी का भी एक अनजाना फ्लैशबैक और भी मौजूद है! लटके झटके चाहे जेब की ना सुनें लेकिन भैरवी की खनकती हुई मादक आवाज़ के जाल में फंस चुके गाँव वाले उनको अपने यहाँ आमंत्रित कर देते हैं! लेखक यहाँ पर यह दिखाते हैं कि मौत भी आपसे पूछकर आपको अपने आगोश में लेना चाहती है! हमने हज़ारो कातिल देखे सुने..लेकिन ऐसा अंदाज़ पहले कभी महसूस नहीं हुआ! जब आप अपनी गर्दन कटवाने के लिए खुद हँसते हुए आगे आ जाते हैं..आपके ऊपर किसी का वश नहीं है! नाच गाने के बाद जब पूरे गाँव वालो के शरीरों में रक्त का संचार तेज़ हो चुका है...Adrenaline का स्तर अपने चरम को छू रहा है.. तब खून की होली खेली जाती है! एक पूरी पीढ़ी का नाश हो जाना...जीवन के हरे-भरे पेड़ का कुछ ही समय में सूखे ठूंठ में बदल जाना आपको जरूर विचलित कर देगा!
इसके बाद कहानी 15 साल आगे आ जाती है...जो एक बच्चा उस खूनी रात मौत के पंजो में आने से बच गया था.. जवान हो चुका है..और उस रात को लगभग भूलकर नई ज़िन्दगी जी रहा है! कहानी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जब वापस उसका सामना अपने उस अतीत से हो जाता है जिसको उसने भुला दिया है! एक नए अनोखे अंदाज़ में भैरवी नौटंकी की वापसी होती है...और उसके सामने हैं कई नए लोग! क्या होगा इस बार?..क्या भैरवी दोबारा जीत जायेगी?...या खाएगी शिकस्त? आगे आप अपने हाथो में मौजूद कारवां के पन्नो को पलटते जाइए और खो जाएँ..इस अभूतपूर्व रक्त रंजित सफ़र में!

किरदारों पर नज़र-

कॉमिक्स का एक पात्र आसिफ जो कि मस्तमौला और हंसमुख मिजाज़ के साथ थोड़ी बेशर्मी से भरा है...आप उसको इस तरह से देख सकते हैं कि माँ-बाप को खोने के बाद भी उसने खुद को टूटने से बचाया हुआ था! ऐसा नहीं है कि आपको हमेशा उसी तरह के लोगों से मिलना पड़े जो आपके बनाए हुए खांचे में फिट आते हैं! दुनिया में हर तरह के लोग हैं! वो बचपन में एक खून-खराबे को देख चुका है...इसलिए वो जानता था कि कारवां नाम से एक खूनी टोली पूरे राजस्थान में घूमती रहती है...वो उसके दिमाग से कभी मिट नहीं सकी...इसलिए जब वो दोबारा से कारवां को अपने सामने पाता है तो उसके दिमाग में शुरू में काफी डर आता है...वो जान बचाकर भाग भी रहा है...लेकिन एक लड़की की हिम्मत देखकर उसको भी ताकत मिलती है..और किसी आम आदमी की अपेक्षा वो ज्यादा जल्दी मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार हो जाता है!

आसिफ के उलट इंस्पेक्टर जय सिंह राठौड़ को देखिये....जो वैसे कोई बहुत सत्यवादी और ईमानदारीपूर्वक काम नहीं करता है..लेकिन उसके अन्दर भी एक बहुत अच्छा और सच्चा इंसान मौजूद है! आसिफ की कई बेवकूफियां बर्दाश्त करता है..आपे से बाहर नहीं होता! उसके चरित्र में भी सादगी और सरलता है!

दरोगा भैरों सिंह जो इस कहानी में मिस्टर Grey कहा जा सकता है...कहानी के मध्य में आप उसको लाख गालियाँ देते नज़र आये..अंत में सहानुभूति के साथ सलाम भी करेंगे! ऐसे ही होते हैं हमारे सुरक्षाकर्मी जो घर परिवारों से दूर बीहड़ो में हमारे लिए हर खतरे से जूझते हैं! आम लोग उनके व्यवहार के बारे में हमेशा कमेंट करते हैं..कि फलां अफसर बहुत तुनकमिजाज़ है..सही से बात नहीं करता..वगैरह हज़ारो शिकायतें....लेकिन आप सोचिये कि क्या कोई मुलायम दिल का आदमी खतरों से जूझने के लायक होता है? इसी कहानी में एक मुलायम दिल का आदमी और भी है..गंगादीन...आपको 2 वर्दी वालो में तुलना करने में आसानी हो जाएगी!

कहानी की हीरोइन है “दुर्गा”...जो सादगी के साथ रहती है...लेकिन मुसीबत आने पर पूरी तरह से बदल जाती है..और कहानी के कई मर्दों से ज्यादा बहादुरी का प्रदर्शन करती है! उसके बारे में आप पढके जरूर आनंद की अनुभूति करके कहेंगे कि देश की हर बेटी को ऐसा ही बहादुर होना चाहिए!
याली ने एक बार पाठको से पूछा था कि कारवां का हीरो कौन है...हमारे विचार से इस कहानी का हीरो “दुर्गा” है! क्यूंकि हीरो से हमेशा तात्पर्य होता है कि वो स्तम्भ जिसके इर्द गिर्द बाकी लोग काम करते हैं...और दुर्गा वही स्तम्भ है!

इसमें भैरवी नौटंकी के कई खल पात्र दिखाए जाते हैं...जिनका रोल ज्यादा बड़ा नहीं है! मुख्य खलनायिका के बारे में आप कॉमिक्स में ही पढियेगा! उसका Origin आपको BLOOD WAR सीरीज में मिलता है! यहाँ उसका रोल अपना जलवा दिखाने तक सीमित है! इसलिए हम अभी बता देते हैं कि यदि कोई ऐसा सोच रहा हो..कि 80-90 पेज की कारवां में उसको एक Single कहानी के अलावा हर किरदार का Origin..उसके बाप-दद्दो तक की जन्मगाथा एक साथ मिलेगी तो वो गलत है! आगे का इंतज़ार करिए!


आर्टवर्क-
बिकास सत्पथी हिंदी कॉमिक्स प्रेमियों के लिए एक नया नाम है! उनके पुराने कामो से अनभिज्ञ होने के बाद भी आपको इस कॉमिक्स में उनका काम पसंद आएगा! इस कहानी का मुख्य फोकस क्यूंकि भैरवी नौटंकी की लड़कियां हैं..इसलिए उनकी मादक अदाओं और मुक्त देह प्रदर्शन कहानी की मांग के अनुरूप है और इसमें किसी गलत तरह का चित्रांकन नहीं हुआ है! आम नौटंकियाँ और नाच-गाने वाले जिस वेशभूषा को पहनावा रखते हैं, वही दिखाई गई है! आर्टिस्ट द्वारा आर्टवर्क में नृत्यांगनाओं और पिशाचनियों के कुछ चित्र डराते भी है और मादकता भी रखते हैं! आर्टवर्क में यह दर्शाना बहुत कठिन होता है..कि आप 2 अलग तरह के भाव एक साथ उतार सकें...यहाँ पर बिकास जी प्रशंसा के पात्र हैं..कि उन्होंने सभी किरदारों की भाव-भंगिमाएं बहुत सुंदर तरह से उकेरी हैं!
कुछ एक छोटे पैनल जरूर औसत बनाए गए हैं..लेकिन वो आगे पीछे के बढ़िया आर्ट में छुप से जाते हैं!
आर्टवर्क में शुरू से अंत तक हर किरदार एक जैसा ही बनाया गया है! आसिफ,जय,दुर्गा,भैरों जो भी आपको दिखेगा..पूरी कॉमिक्स में समान ही लगेगा...ऐसा नहीं है..एक पन्ने पर कुछ दिखे..दूसरे पर कुछ अलग दिखे!
रंग सज्जा विषय के अनुरूप हुई है! कवर आर्ट जोरदार बनाया गया है...उसपर इफेक्ट्स बहुत अच्छे दिए गए हैं! अन्दर मौजूद कुछ एक्स्ट्रा आर्ट पेज भी बहुत सुंदर हैं! राजस्थान के पेज उभर कर आये हैं..वैसे ही किले के अन्दर और बाहर को चित्रण उस जगह को महसूस करवाने लायक है! बैकग्राउंड वर्क शानदार किया गया है!

अंत में कॉमिक्स से जुड़े कुछ विचार-
हम उन लोगों में से नहीं है जो किसी कॉमिक्स की तारीफ करते हैं तो 100% और अगर बुराई करते हैं तो भी 100% करते हैं! कारवां का हिंदी में आना हमारे लिए भी बहुत ख़ुशी की बात है....हमें यह पसंद भी बहुत आई....और हम भी यही चाहते हैं कि नए-नए पब्लिकेशन खुलते रहे..और सबका मनोरंजन होता रहे....लेकिन मीठे के साथ कुछ खट्टा भी हो जाए तो बैलेंस बन जाता है! आखिर एक रिव्यु का मकसद पाठको के साथ-साथ पब्लिशर को भी रायशुमारी में शामिल करना होता है! वैसे भी दुनिया में ऊपर वाले के सिवा परफेक्ट कुछ भी नहीं होता है! इसलिए हम भी ऐसा नहीं कहेंगे कि इस पूरी कॉमिक्स में सबकुछ बढ़िया है! कुछ बातें जो हमें पढ़ते वक़्त महसूस हुई उन्हें बता रहे हैं!

1- कॉमिक्स में पेज नंबर डाले जाने चाहिए थे! इसको कॉमिक्स की बेहतरी के रूप में लीजिये! अगर किसी पाठक को किसी ख़ास पेज के अन्दर कोई बात पॉइंट आउट करनी हो..तो वो कैसे करेंगे? समझाने में सबका वक़्त खराब होगा! इसलिए आगे अगर कोई कॉमिक्स निकालें तो Page No जरूर डालें! हम आगे जो पेज नंबर बता रहे हैं वो कहानी के पहले पन्ने से शुरू किये हैं! इसलिए आपको गिनने पड़ेंगे कि कौन सा पेज है..या शायद समझने में परेशानी हो! वैसे आपने कहानी लिखी है तो आसानी से समझ जायेंगे कहाँ पर की बात हो रही है!

2- पेज-15 पर एक सरदार जी कहते हैं कि “दारु ऐसे पी रहा है जैसे मछली पानी पीती हो” हमें यह बहुत अटपटा सा संवाद लगा! इसकी वज़ह है यह English का Idiom है “Drink like a fish “ मतलब जरूरत से ज्यादा दारु पीने वाला व्यक्ति! पर ढाबे पर बैठा सरदार कोई बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा आदमी नहीं है! वैसे यह कोई गलती नहीं है..लेकिन अटपटापन महसूस करवाती है! क्यूंकि English को ही जैसे का तैसा हिंदी में उतार दिया गया और इसका मतलब ज्यादातर हिंदी भाषी समझ नहीं सकते..कि सरदारजी का असल तात्पर्य क्या रहा होगा! यहाँ हमारा कहना यह है कि हिंदी रूपांतरण में इसको बदल कर कोई ऐसा शब्द लिखा जाता जो ज्यादा दारु पीने को हिंदी लहजे में दिखाता! जैसे-“बेवड़ापन” “पियक्कड़”!

3- यह पूरा पॉइंट आपके Calligrapher के लिए है...जिन्होंने पूरी कॉमिक्स में कई जगह छोटी-छोटी गलतियाँ करी हैं...जिससे कहानी पढने की रिदम बार-बार रुक रही थी! यह बात आप लोगों ने कही थी कि आपने हिंदी के लिए 2 ट्रांसलेटर लगाए हैं...पर इसके बाद भी कमियां मौजूद होना बहुत गलत बात है!
@कई बबल्स में संवादों को इस कदर घुसाया गया है कि किन्ही 2 अलग words जिन्हें space के साथ अलग होना चाहिए था..वो भी जुड़े हुए हैं! इसको नज़र अंदाज़ कर दिया जाए लेकिन शब्दों की spelling गलत होना ठीक नही है!
@पेज-15,पैनल-3 पर “थाणे” लिखा गया है..वहां जय सिंह “थाने” बोलेगा!
@पेज-16,पैनल-7 “पर्न” नहीं होता “पोर्न” होता है! tongue emoticon इसी पेज पर आसिफ थूकता है..पर बबल में उसकी आवाज़ नहीं दिखाई गई! पता नहीं चलेगा कि वो क्या रिएक्शन दे रहा है!
@“जायदा” नहीं होता..”ज्यादा” होता है! यह शब्द कई जगह गलत लिखा हुआ है!
@ हर जगह ज के नीचे बिंदी गलत है! ऐसे ही फ के नीचे बिंदी गलत है! गलत फॉण्ट का इस्तेमाल किया गया है!
@ पेज-18 पेनल-1.. जय के संवाद में “उससे” नहीं... “उसे” होगा! पैनल 2 में “कोइ” iphone नहीं “कोई” iphone! पैनल 3 में “नैटवर्क” नहीं नेटवर्क होगा! पैनल 5 में “पुलिस के” नही “पुलिस का”
@ पेज-19 में पैनल-2 जय का संवाद “मेरा दिल में तेरे लिए बर्फ” इसमें “मेरे दिल” होगा!
@ पेज-43 चमकति नही “चमकती”...........आखिरी नही “आखिर”
@पेज-47 पैनल-2.... आवता नही आवत.........”की” नही “कि”.....”एकरे” नही एकरा!
@पेज-48...पैनल-6 “कि” नही की
@ पेज-61...रहि नही रही
@ पेज-62...मिम्ने कौन सा शब्द हुआ?
@पेज-71 पैनल-1 “दीखता” नही दिखता!

वैसे हमें भी पता है कि जो छप चुका वो बदल नहीं सकता..लेकिन आगे ऐसा दोबारा ना हो...इसलिए हमें इतना डिटेल में लिखना पड़ा..वरना आपको यही लगता कि कोई 1-2 स्पेलिंग गलत होंगी..जिनपर ध्यान नहीं देना चाहिए! बबल्स का ऐसा है कि कुछ जगह इतने ज्यादा हो गए कि आर्ट ही दब गया और कुछ जगह इतने कम थे कि पेज खाली चला गया! पहले काम में हुई इन बातों को आगे सुधारिएगा!

4- कॉमिक्स में दरोगा भैरो सिंह एक ऐसा अफसर है..जिसको मुस्लिम्स से नफरत है...जो दिख गया..समझो मरा...पर ऐसा अफसर अपने गले में अजमेर शरीफ की दरगाह का ताबीज़ क्यूँ बांधे घूम रहा था...जबकि वो गोरखपुर जैसी जगह से है..वहां कट्टर हिन्दुत्ववादी मानसिकता चलती है! क्या लेखक यहाँ पर चूक नहीं कर गए..कि उसके गले में ताबीज़ की जगह पर बजरंगबली/देवी का लॉकेट ज्यादा बेहतर लगता? आखिर क्यूँ उसकी सोच को विरोधाभासी बनाया गया है या फिर उसको मुस्लिमो से मोहब्बत होनी चाहिए थी...पेज 51 पर दुर्गा भी यही गलती कर रही है कि वो दुर्गा माँ के लॉकेट को ताबीज़ कहती है! अब हम यह सोच रहे हैं कि अगर हिन्दू आदमी और लड़कियों को उनके धर्म की ही धार्मिक आस्थाओं को आगे बढ़ानेवाली वाली चीज़ें पहनी दिखाई जाती तो क्या कहानी नहीं बनती??? हम किसी धर्म के विरोध में नहीं कह रहे लेकिन अगर किरदार हिन्दू है तो उसको उसी तरह दिखायें और मुस्लिम है तो उसको उसी तरह दिखाएं कि पढने वाले को अपने मजहब से प्रेम हो...वो अपनी धार्मिक निशानियों पर फक्र करे! हमारा सुझाव है कि लेखक किरदार को वही रहने दें जो वो असल में है...उसके अन्दर वो चीज़ें ना जोड़े...जो उसकी ideology से मेल ना खाती हो! यह सबके लिए सकारात्मक होगा..कि हर व्यक्ति अपने धर्म और परंपरा का आदर करे! इसलिए लेखक ज़िम्मेदारी के साथ इन सब बातों को हैंडल करें!

5- चुम्बन प्रसंग-
बड़े दुःख की बात है कि एक छोटे से चुम्बन को चुम्मा चाटी कहकर प्रचारित किया गया! पाठकों को हम बताना चाहेंगे कि हम भी ऐसे प्रचार से बहुत डर गए थे..जाने किरदारों द्वारा चाटने के लिए जीभ का कितना और कहाँ-कहाँ इस्तेमाल कर दिया गया होगा! असल में जबरदस्ती जब भतर्सना करनी हो तो शब्द सही से चुने नहीं जाते! Pathetic!
चलिए चुम्बन के विषय में हमारी सोच है कि वो दिखाया गया..बिल्कुल ठीक किया...लेकिन उसमे कुछ Techinal Flaw नज़र आते हैं! इसलिए कोई यह ना समझे कि हम चुम्बन का पक्ष/विपक्ष ले रहे हैं...हमारा नजरिया बिल्कुल तटस्थ है!
सिर्फ 10 मिनट पहले हुई चाचाजी की मौत के सदमे के बीच में दुर्गा के अन्दर चुम्बन की “पहल” खुद करने लायक भावना नहीं आनी चाहिए थी! चुम्बन भारतीय परिस्थिति में तभी होता है जब या तो लड़की पूरी तरह से शांत मन में अपने प्रेमी को देखे या फिर वो बिल्कुल ही राखी सावंत हो! tongue emoticon और यह दोनों बातें उस सिचुएशन में मौजूद नहीं हैं! (Technical Flaw)

यहाँ सभी ध्यान दीजिये कि हमें “सिर्फ” दुर्गा का खुद आगे बढ़कर “पहल” करना खराब लगा! यहाँ हमें किसी हॉलीवुड,बॉलीवुड फिल्म से लेना देना नहीं है....यहाँ हम UP के गोरखपुर शहर की सम्मानित परिवार से ताल्लुक रखने वाली लड़की के विचारों को देख रहे हैं! अगर आप “पहल” आसिफ से करवाते तो शायद बात समझ आ जाती कि वो पहले से बेशर्म था और दुर्गा की तरफ आकर्षित भी...वो दुर्गा को यह जताना चाहता था कि दुर्गा के चाचा के मरने के बाद वो उसको सहारा देना चाहता है! चुम्बन सीन दिखाना गलत नहीं है..4 बार दिखाइये..लेकिन उसको विरोधाभासी ना बनाएं! आसिफ अपने प्रेम का इजहार करता...जिससे द्रवित होकर दुर्गा भावावेश में चुम्बन ले लेती यह भी एक अच्छा दृश्य बन सकता था! लेकिन आपका दिखाया हुआ कि “यह कोई सपना तो नहीं”...”रुको मैं तुम्हे असलियत का यकीन दिलाती हूँ!” “लो पुच्ची”...उस पल की गंभीर सहजता को मटियामेट कर देता है! इससे अच्छा तो दुर्गा आसिफ की चुटकी काट लेती या जोरदार थप्पड़ जड़ देती उस गधे को..और खुद खिलखिलाकर हंस पड़ती...आसिफ इससे झेंप जाता..और उसका चुम्बन ले लेता! बात वही बन जाती लेकिन देखने वाले को तब आपत्ति नहीं हो पाती!
बहरहाल जो हो गया वो इतिहास बन गया..बशर्ते हम लेखक द्वारा लिखी किसी नयी कहानी में उस दिन का इंतज़ार करेंगे जब दुर्गा जैसी ही कोई उन्मुक्त और स्वछंद मुस्लिम लड़की दिखाई जायेगी...जो खुद आगे बढ़कर चुम्बन द्वारा किसी से प्रेम प्रदर्शित करेगी..वरना हमें यह बात हमेशा खटकेगी कि चीज़ें एकतरफा दिखाई जाती हैं!

अलग-अलग विचारों में असमानता हो जाती है! इसलिए इसको सकारात्मक रूप से लेना चाहिए! कारवां एक अच्छा मनोरंजन प्रदान करती है! ख़ास बात यह है कि कहानी एक पार्ट में पूरी हो गई है! आर्टवर्क भी अच्छा है! इसलिए इसको जरूर खरीदें और अपने कलेक्शन की शोभा बनाएं! उम्मीद है याली सभी बातों का ध्यान अपने आगामी हिंदी में प्रकाशित अंको में रखेगी! कारवां को आगामी संस्करणों की सफलता के लिए शुभकामनाएं!

Ratings :
Story...★★★★★★★★☆☆
Art......★★★★★★★★★☆
Entertainment……★★★★★★★★★☆
Calligraphy......★★★★★★☆☆☆☆
Translation......★★★★★★★★☆☆

‪#‎Caarvan‬,‪#‎Shamikdasgupta‬,‪#‎Yalidreamcreations‬,‪#‎Bikassatpathy‬


1 comment:

  1. युधवीर भाई, बहुत डिटेल्ड और ईमानदारी से समीक्षा लिखते हैं आप, इसलिए ईमानदार कमेंट करने की हिमाकत कर रहा हूँ। आपके रिव्यु बहुत पसंद आते हैं, ये भी अच्छा लगा। एक पॉइंट है जिसे व्यक्त करना चाहता हूँ, आपके पूरे रिव्यु इतना मैच्योर और सेंसिबल तरीके से होता है, सिवाय जब बात किसी धार्मिक प्रतीक रिलेटेड हो। बस तब आप बहुत इन्सेक्युर और बचकानी बातें लिखने लगते हैं। ( माफ़ करें, एक अजनबी थोड़ी कटु बातें लिख रहा है, बिना आपको जाने, समझे व्यक्तिगत तौर पे )
    मसलन आपको क्यों compartmentalized characters चाहते हैं, जो केवल हिन्दू हों या मुस्लिम ? भैरों सिंह का किरदार तो मुझे पूरा ऑथेंटिक लगा। कितने ही लोग मिलते हैं जो दिन रात मुसलमानों को गाली देते हैं, लेकिन फिर दरगाहों पे चादर भी चढ़ाते हैं। और ताबीज़ शब्द तो हर धर्म के लोग इस्तेमाल करते हैं, मैंने तो ईसाईयों को भी ताबीज़ शब्द यूज़ करते सुना है, अपने क्रॉस-लॉकेट के लिए। इसमें कौन सा अचम्भा ? और आखिरी बात तो बेहद आपत्तिजनक है, की आपको हर 'उन्मुक्त' हिन्दू लड़की के लिए एक उन्मुक्त मुस्लिम लड़की चाहिए ? ये कैसी घटिया बात हुई ? ये कोई स्कोर रखना है क्या ? तो फिर हर निरपराध मुस्लमान जो जेल में है या किसी भैरों सिंह की वजह से प्रताड़ित है, तो उसके बराबर उतने ही संख्या में हिन्दुओं को जेल में डालने को तैयार होंगे आप ? माफ़ करें अगर ज़्यादा कठोर बात हो गयी, पर पुरे रिव्यु में इतना बढ़िया सलीका और जब धर्म की बात आये तो ऐसा बचकानापन, बड़ा अटपटा लगा, सो कमेंट कर दिया।
    धन्यवाद
    वैसे वो ट्रांसलेशन वाला अच्छा पॉइंट पकड़ा आपने, इंग्लिश इडियम्स जस के तस लिख देना, ये फिल्मों में भी बहुत होता है

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