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Wednesday 26 August 2015

KSHATIPOORTI



Review- क्षतिपूर्ति (2015)
Containing Spoilers (जिनको रिव्यु देखना नहीं पसंद हैं..वो कृपया अपना समय इसको पढ़कर नष्ट ना करें!)
90 Pages/303  Panels (Avg.  3 ½ Panels per page).
Genre-Journey-Drama,Action
Main character(s)- मसाया,नागदंत,थोडांगा,विसर्पी,शांगो!

Short Synopsis -

लेखक द्वारा क्षतिपूर्ति की शुरुआत करी गई है पिछले साल 16 दिसंबर 2014 को पाकिस्तान के पेशावर में हुए असल आतंकवादी हमले से ली हुई प्रेरणा से! इस प्रेरणा के फलस्वरूप नागू को नागराज के रूप में दिखाया जाता है! यहाँ पर नागू के साथ लेखक द्वारा बड़ा ही भयानक मजाक कर दिया जाता है! जिसमे उसकी महाशक्तियों की प्रतीक मणि को एक अदना सा आतंकी हाथ से उखाड़ लेता है! लेखक द्वारा इस घनघोर बेईज्ज़ती से सदमे में आये नागू की जान जाते जाते बचती है! थोड़े मेलोड्रामा के बाद सब मान जाते हैं कि वीरगति में नागराज को मारना गलत था! अब आतंकवाद  के खिलाफ जंग के झंडाबरदार होंगे नागराज के शरीर में रहने वाले भांति-भांति के सांप!

Chapter 00 : The Quest begins (अर्थात खोज की शुरुआत)
एक किशोर किसी अनजान आवाज़ के दिशा-निर्देशों से एक यात्रा पर चल पड़ा है..पहला पड़ाव कोलकाता से शुरू होता है!

Chapter 01 : The Celebration
जापान में मिस किलर,नागमणि और एक नए विलेन सुप्रीम हेड को दिखाया जाता है! नागराज की मौत का जश्न मनाये जाने की खबर आती है! पेज 20 तक यह पता चल जाता है कि दुनिया भर में आतंकी संगठन दोबारा सिर उठा रहे हैं...और इन्हें रोकने की मुहीम बड़े देशों द्वारा करी जा रही है!
आगे की कहानी में....मसाया बग़दाद में नागदंत से द्वन्द जीत कर तंजानिया में थोडांगा के पास पहुँच चुका है! वही अमेरिका में एक आतंकी हमले को दिखाकर कहानी अल्पविराम ले चुकी है!

किरदारों पर नज़र-

मसाया- एक 15 साल का किशोर जिसका चेहरा नागराज के समान है...कान में कुंडल हैं..गले में नागनाथ-नागानंद भी हैं....शर्ट-पैंट पहने हुए कोलकाता डॉक्स से पानी के यात्री जहाज़ पर चढ़ता है! कहानी में इसको मसाया नाम दिया गया है! पूरी कहानी में यही छाया हुआ है!

नागदंत- नए रूप में वापसी हुई है..नागदंत की! यहाँ पर उसको फिर आया नागदंतकॉमिक्स के बाद पहली बार दिखाया जा रहा है! उसके पास कई नई शक्तियां भी आ गई हैं! जिसके कारण अब वो पहले से ज्यादा खतरनाक बन चुका है!

थोडांगा- इसका रोल थोडा हंसी मजाक वाला दिखाया गया है..जो धरती पर डेढ शताब्दी का मेहमान रह गया है! जानवार मारते और उनका भक्षण करने के सीन हंसी ले आते हैं! बाकी आगे के भाग में दिखाया जाएगा!

नागू,सौडांगी और शीतनागकुमार के रोल शुरुआत में छोटे से हैं...बाकी कुछ नए-पुराने चेहरे नज़र आते हैं जो कभी नागराज की पुरानी कहानियों से लिए गए हैं! उनका रोल भी आये-गए वाला है! उम्मीद है आगे शायद बढ़ोतरी हो जाए!

कॉमिक्स के मजबूत पक्ष-

वीरगति से जुड़े होने के कारण हमें उम्मीद थी कि कहानी शायद वहीँ से शुरू हो..जहाँ रुकी थी...यानी नागराज की जलती हुई चिता...पर कहानी उस घटना से कई महीने आगे बढ़कर शुरू हुई है! ऐसे में मुख्य सस्पेंस सीरीज के अंत तक रहने वाला है!

1- इस कॉमिक्स में शुरू के 12 पन्ने अच्छे हैं.. जिनमे लेखक ने कुछ रुलाने लायक संवाद लिखे हैं! नागराज की आतंक हर्ता सीरीज में एक साथ इतने बच्चे मारे जाना पहले कभी नहीं हुआ..इसलिए यह एक नया और अलग अनुभव था! जो दिमाग को सन्न कर गया! यह बात भी बिल्कुल ठीक है कि वहां पर लेखक झकझोर कर रख देते हैं!
2- बीच में नागदंत और मसाया का एक्शन पैक्ड द्वन्द बढ़िया है!
3- कालदूत के आने से पहले विसर्पी और नागराज के बीच के पन्ने अच्छे हैं!
4- थोडांगा गुदगुदाता हुआ बढ़िया लगा!
5- आर्टवर्क का front work ठीक ठाक है! एक्शन दृश्य अच्छे बने हैं! चेहरे विभिन्नताओं के साथ भाव प्रदर्शन भी कर रहे हैं! 

कॉमिक्स के कमजोर पक्ष-

1-    पेज-21 पर बताया जाता है कि जिस जहाज़ पर मसाया चढ़ा है..वो अरब सागर में है! PRESENT TIME ही चल रहा है! यानी जिस वक़्त मसाया चढ़ा उसके कुछ समय बाद का ही सीन है! यहीं से कहानी की मटकाती,इठलाती चाल पर लेखक पहली चुटकी काट लेते हैं...जहाज़ चला था कोलकाता से...और कोलकाता भारत के पूर्वी हिस्से पर है... इस प्रकार कोलकाता से चलने वाला किसी  भी जहाज़ को बंगाल की खाड़ी से लेकर हिन्द महासागर को पार करने के लिए पूरे तमिलनाडु  तक का चक्कर काटना पड़ेगा...जो की उल्टा और लम्बा पड़ता है! इसलिए अगर किसी को West Asia की तरफ जाना होगा..तो वो पानी का जहाज़ मुंबई,गोवा,केरल या गुजरात से पकड़ेगा! यानी कि मसाया के दिमाग में आती आवाज़ उसको अरब सागर की तरफ जाने को कहेगी तो वो भारत के पूर्वी हिस्से से नहीं बल्कि पश्चिमी हिस्से से जहाज़ पकड़ेगा! यह एक बहुत बड़ी गलती है! जब हमने इसको देखा तो सोच में पड़ गए कि लेखक ने आखिर कोलकाता को जहाज़ की शुरुआत के लिए क्यूँ चुना... इसकी वज़ह थी पेज 13-14 पर दिखाए गए दृश्य..कोलकाता वामपंथ विचारधारा का गढ़ है....लेकिन कहानी में कोलकाता में अतिवादियों द्वारा seculars(गंगा-जमुनी सभ्यता) की नरम सोच पर कुछ आपत्तिजनक संवाद दिखाए गए हैं (पाकिस्तान और गाजा पट्टी)! ऐसे संवाद वो गुजरात या महाराष्ट्र में कहानी को रखकर नहीं दिखा सकते थे! क्यूंकि वहां पर जो विचारधारा चलती है...उसका लेखक की सोच के साथ जुड़ाव नहीं हो पाता! ऐसे में उन्होंने कोलकाता वासियों पर निशाना लगाया है! वैसे वहां पर मसाया ने जो कुछ कहा...हमें काफी अच्छा लगा..लेकिन आपने इस सफ़र की शुरुआत के लिए कोलकाता का गलत चुनाव किया है...कुल-मिलाकर लेखक व्यक्तिगत सोच को कहानी पर हावी कर गए! खैर मुख्य बात यह है कि इसकी वज़ह से कहानी का जो भूगोल बदल गया है....उसकी क्षतिपूर्ति अब संभव नहीं हो सकती!

2-    कोलकाता से किसी भी साधारण पानी के जहाज़ को अरब सागर के बीच में अगर जाना भी हो...तो उसमे 7 दिन लगते हैं...और 2500 किलोमीटर से भी लम्बी दूरी तय करनी होती है! लेकिन इस तथ्य की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए...कहानी में 7 दिनों वाली बात को गायब करके यह दिखाया गया है कि इधर जहाज़ चला और उधर अरब सागर में जा पहुंचा! ना तो मसाया ने 7 दिन तक कपड़े बदले..ना उस जहाज़ पर कोई हलचल-चहल पहल दिखाई गई...ना वो जहाज़ किसी बीच के पोर्ट पर रुका! यह वही बात हो गई जैसे इधर टाइटैनिक की यात्रा शुरू हो..और 5 मिनट बाद उससे iceberg टकरा जाए! फिर बीच में लियोनार्डो और केट विंसलेट के रोमांस की क्या जरूरत?? लेखक  को यहाँ पर मौका मिला था कि वो कुछ अपने पास से नया लिखकर इन 7 दिनों को यादगार बना देते..लेकिन वो इतनी जल्दबाजी में हैं कि पानी के जहाज़ को राकेट की स्पीड से तैरते हुए दिखा चुके हैं! ऐसी भी क्या जल्दी सर...वैसे भी कौन सा आपको छोटी कहानियां लिखने की आदत है!

3-    पेज 24 पर एक संवाद आता है कि खूबसूरत औरतों और बच्चो को गुलाम बना लो...लेकिन आर्टवर्क में उस जगह पर ना कोई औरत थी और ना बच्चा! उसके आगे के सभी पन्नो में भी कहीं कुछ मौजूद नहीं था... बैकग्राउंड में यह तक नहीं लग रहा था कि वो सब शिप के ऊपर लड़ रहे हैं...यानी कि कहानी और आर्ट का तालमेल गड़बड़ा गया! अगर महिलाएं और बच्चे ऊपर मौजूद ही नहीं थे..तो कोई ऐसा कहेगा क्यूँ? अरे आप भीड़-भाड दिखाते...बच्चे और औरतें भागते हुए नज़र आयें...पर हेमंत जी तो इस बार कसम खाकर काम कर रहे हैं कि जितना हो सकेगा पीछे खड़े लोगों को बनायेंगे ही नहीं!

4-    पेज 30 पर कुछ बच्चे दिखाए जाते हैं जो कि खुद को यजीदी समुदाय का बताते हैं! अब यहाँ पर लेखक कृपया यह बताएं कि जो दस्यु जहाज़ नार्दांग अरब सागर में लेकर घूम रहा था ...उसपर यजीदी समुदाय के बच्चे कौन से राहत शिविरों से उन्होंने बैठा दिए थे??....जहाज़ कोलकाता से चला था...उसपर भारतीय बच्चे थे....जिनका अपहरण करके दस्यु जहाज़ पर बंदी बनाया गया...लेकिन यजीदी समुदाय इराक और सीरिया में अल्पसंख्यक है..वहीँ उनको बर्बाद किया जा रहा है! क्या आपका कहना यह है कि नार्दांग ने बच्चो को इराक के ही आस-पास के कैंपो के राहत शिविरों से उठाया था..फिर उनको कई देशो में घुमाने के बाद वापस इराक में बेचने ले जा रहा था? आप अगर यजीदी समुदाय के बच्चे ना भी लिखते तो क्या कहानी में कुछ फर्क आ जाता...लेकिन आपने लिखा और उसमे तथ्यों को भुला दिया!

5-    आगे पढने से पहले दोस्तों आपके हाथो में विश्व मानचित्र होना चाहिए! अब उसमे उस हिस्से को देखिये जहाँ भारत के अरब सागर से लेकर इराक को दिखाया गया है! लेखक पेज 31 पैनल 4 और 32 के Panel 1 में दिखाते हैं कि नार्दांग का पानी का जहाज़ बग़दाद बन्दरगाहमें उतर चुका है! उससे बच्चे उतारे गए और नार्दांग के रथ में जोत दिए गए! पहली बात यह कि बग़दाद में कोई समुद्र ही नहीं है...तो बंदरगाह कहाँ से आएगा?? आपकी जानकारी के लिए ....बग़दाद tigris नदी के किनारे पर बसा हुआ शहर है!
वैसे पूरा इराक एक ऐसा देश है...जो चारो तरफ से ज़मीन से घिरा हुआ है...उसका 99% हिस्सा जमीन है..और सिर्फ 1% हिस्सा समुद्र से लगा हुआ है और वहां से भी पानी के ऐसे कार्गो जहाज़ बग़दाद तक नहीं जाते! बग़दाद इराक के बीच में है....जो मुख्यतः रेतीला इलाका है...tigris नदी वहां जरूर बहती है...लेकिन उसके 1000 मिलीमीटर लम्बे बहाव में पानी के जहाज़ नहीं चलते..क्यूंकि इतनी बड़ी नदी की चौड़ाई और गहराई ऐसी नहीं होती कि हर जगह समान हो! हमें आश्चर्य है लेखक बग़दाद को समुद्र किनारे का शहर बताकर उसमें पानी के जहाज़ चला रहे हैं? हमें एक बार लगा कि शायद एक बार गलती से वो नदी की जगह mistake कर गए हो...मगर पेज 48 में उन्होंने दिखा दिया कि नागदंत विस्फोट से उड़ता हुआ...समुद्रमें जा गिरा..लेखक साहब किंचित ही आप महान हो...RC की शान हो.... कि आपने बग़दाद में समुद्र खोदकर दिखा दिया! वो भी छोटा सा नहीं.....पानी के जहाज़ चलने लायक समुद्र!
लेखक को इससे पहले कई कहानियों में विज्ञान,इतिहास का मखौल उड़ाते देखा गया था...इस बार उन्होंने विषय बदल लिया और भूगोल के साथ 2 बार चमत्कार कर डाला! आप अपने नन्हे पाठको को क्या यही ज्ञान देंगे? जो बच्चे इस कॉमिक्स को पढेंगे वो अपने स्कूल में यही बताएँगे कि इराक में ऐसा-ऐसा होता है...उन्हें उनके अध्यापक जो पिटाई लगायेंगे....उसका दोष आपके सिर पर है! एक वक़्त था जब कॉमिक्स से बच्चे मनोरंजन के साथ ज्ञान भी पाते थे...आज के समय में मनोरंजन तो वैसे भी लुप्त होता जा रहा है..और ज्ञान लेने लायक कॉमिक्स बची नहीं..हाँ अगर पाठकों को अपना और अपनी संतानों का ज्ञान बिगाड़ना हो तो ऐसे chapters जरूर पढ़ें!

6-    पेज 45 पर देव कालजयी का जिक्र हुआ है...जहाँ तक हमारी जानकारी है...नागराज की आतंकहर्ता सीरीज में अब तक नागराज का origin नहीं दिखाया गया है...ऐसे में देव कालजयी क्यूंकि विश्वरक्षक और नरक नाशक दोनों ही सीरीज में नागराज के आराध्य बनाये जा चुके हैं तो आप उन्हें इसमें भी आराध्य दिखाएँगे?? हमें एक बात समझ नहीं आती कि आप इस आयामों के चक्कर में देवताओं के साथ क्यूँ मजाक कर रहे हैं...देवता भी क्या हर आयाम में अलग-अलग हो जाते हैं? कल को आप दिखायेंगे कि हर आयाम में भगवान् भी अलग-अलग हैं...A,B,C,D तरह के भगवान्! इस चीज़ को रोकिये! आपको इंसानों को 10 आयामों में अलग-अलग दिखाना है..तो जरूर दिखायें! ईश्वरीय बातों के साथ गैर जरूरी छेड़छाड़ बंद करें! देव कालजयी वाली चीज़ अनुपम जी ने विश्व रक्षक नागराज के लिए बनाई थी..आप विसर्पी की शादी के बाद से कहानी दिखा रहे हैं..तो नया origin लिखिए...एक ओरिजिन आपने NNN में वैसे भी Copy/Paste किया हुआ है! उसी को दोबारा उठाकर मत रखिये!

बग़दाद वाला पूरा चैप्टर क्यूंकि खजूर के पेड़ के पत्तो की तरह चिरा हुआ है...इसलिए आगे बढ़ते हैं-

Chapter 2 Wild Instinct
7-    इस भाग में Nitro force नामक टीम को दिखाया जाता है जो आतंकी कैंपो में घुसपैठ करके उसको बर्बाद कर रहे हैं! ठीक ठाक है यह! एक्शन और कुछ उच्च कोटि की डायलॉग्स का मिश्रण इसमें दिखता है! वैसे संजय गुप्ता जी ने एक बार कहा था कि वो कोशिश करेंगे कि आतंक हर्ता नागराज की सीरीज में कम से कम जादू-टोना,तांत्रिक,मान्त्रिक, उल जलूल सुपर पावर्स वाले नौटंकी विलेन ना आयें...पर शायद उनकी इच्छा पर लेखक चलना नहीं चाहते! बगदादी नाम का आम इंसान भागता हुआ जाने कौन से लोक में पहुँच जाता है..जहाँ एक पेड़ का ठूंठ दिखाया जाता है..जिसके ऊपर कोई हरे बालों वाला Paradox नाम का parasite बैठा हुआ है...फूंक मारी...आदमी पगलेट नागमानव बन जाता है! बाल नोचने  का मन कर रहा है..शायद नागमणि से ज्यादा बड़ा वैज्ञानिक यही paradox है!

Years Ago Nagdweep
अगर तुम मिल जाओ...ज़माना छोड़ देंगे हम....नागराज और विसर्पी कुछ प्रेम रस से भरे संवादों से दिल गुदगुदा देते हैं! भूगोल के चमत्कार को झेलने के बाद कहानी में बस आनंद आने ही लगा था कि महात्मा कालदूत की एंट्री हो जाती है..और वो अपने युगों पुराने उबाऊ,घिसेपिटे,पकाऊ संवादों से बना बनाया समां बर्बाद कर डालते हैं!

8-    लेखक जरा आगे किसी महान रचना में यह बताने का कष्ट करेंगे कि उन्होंने जो 2 साल पहले World War कॉमिक्स के पेज 58 पर लिखा था कि कालदूत किसी घोर तपस्या में लीन हो गए हैं...आखिर उस तपस्या से किसी को क्या मिला..या किस लिए वो तपस्या हुई थी???? अब आपने कालदूत को एंट्री करवा दी यानी तपस्या पूरी हो गई...तो तपस्या से मिला फल कौन बताएगा? या सिर्फ वहां ऐसे ही संवाद लिख दिए थे..कि पढने वाले तो गधे हैं...2-3 साल बाद कहाँ याद रख पायेंगे..जो मन चाहे दिखाओ!
इस कॉमिक्स के पेज 70 पर आपने दोबारा दिखाया है कि कालदूत का एक नया वक़्त फिर से आ गया है...राजधर्म निभाने का! एक और नया शिगूफा! जब पाठक कहते हैं कि कालदूत अब हंसी का पात्र बनता जा रहा है तो पात्रो की बर्बादी की असल वज़ह ऐसा बादाम खाने योग्य लेखन ही है! कालदूत को इस तरह बिना मतलब बीच में ठूँसने से अच्छा था कि विसर्पी का सपना जारी रखा जाता!

African Rain Forest- Present Time
9-    पिछले चैप्टर में बग़दाद में यजीदी बच्चो को छोड़ने के बाद मसाया अपनी यात्रा शिप से करना नहीं चाहता...क्यूंकि उसपर भारतीय बच्चे थे.. इसलिए शिप भारत की तरफ भेजकर वो  एक समुद्र में कूदता है और बाहर आता है इस भाग में तंजानिया के घने जंगलों में! क्यूंकि लेखक दिखा चुके हैं कि बग़दाद में समुद्रमौजूद है..इसलिए हम समझ नहीं पाए कि मसाया कौन से समुद्र में कूदा था...वो जो लेखक ने अपनी कल्पनाओ से बनाया है..या वो जो असलियत में मौजूद है! चलिए यहाँ हम मान लेते हैं कि मसाया Persian Gulf में कूदा...तैरना चालू किया...कुवैती समुद्री सरहद के रडार सिस्टम पर लानत मारकर...तैरता रहा...बहरीन,क़तर,दोहा के समुद्रों पर भी आकथू”...शारजाह और दुबई वाले भी उसकी जेब में...ओमान वालों की आँखें भी धृतराष्ट्र की वंशजों में से हैं...तैरना ज़ारी है...ओमान की खाड़ी भी पार कर डाली....तैरे जा रिया है....मस्कट वाले भी अल-हबीबी....भूख मसाया को लगती नहीं...पानी में मछलियाँ बहुत हैं....तैरते हुए ही चबा डाली....तैरना ज़ारी है...अगर वो किसी जहाज़ से जाता तो भी 8 दिन लग जाते...पर तैरने में तो महीनो बाद पहुँच ही गया है! अंततः  वो किसी तरह से हिन्द महासागर के दक्षिण-पश्चिम भाग से होता हुआ तंजानिया के किनारे पर पहुंचा..वहां से फेरी लेकर अन्दर घुस आया! वैसे ऐसे तटों पर Coast Guards और उनके रडार सिस्टम का पूरा इंतज़ाम होता है..जो किसी भी अवैध और अनजान व्यक्ति को रोक सकते हैं..पर क्यूंकि लेखक जरूरी homework करना पसंद नहीं करते..इसलिए हम मान लेते हैं कि एक याददाश्त भूला हुआ लड़का..मीलों समुद्र में तैरकर बिना थके किसी अनजान देश में बिना लड़ाई लड़े भी घुसपैठ कर सकता है! यह सारा अजूबा तब हो रहा है..जब विश्वभर में आतंकियों के सिर उठाने की वज़ह से सभी देश HIGH ALERT पर चल रहे हैं! अब यह नागराज तो है नहीं जिसके पास सभी तरह के Legal Documents मौजूद होंगे..कि सभी जगह से वो बिना किसी परेशानी के बचकर घूमता जा रहा है! पर आप यही दिखाएँगे कि जैसे नागराज collar ऊपर करके हर तरह के देश में आया-जाया करता था..मसाया का भी वही जलवा कायम है!
यहाँ पर एक गज़ब संयोग होता है जब कंटाली और मंटाली को दोबारा दिखाया जाता है! नागराज और बुगाकु कॉमिक्स के कई सारे पुराने पन्ने नए डायलॉग्स और नए आर्टवर्क के साथ दोबारा से पेश कर दिए गए हैं! इसको कहते हैं अपने ही हीरो से inspiration लेना...पाठक कहते थे ना कि अब कहानियों में पुरानी जैसा मज़ा नहीं मिल रहा...लीजिये आपको पुरानी कहानी ही वापस मिल गई! आनंद लें! आगे और मिलेगी!

10-  कमाल की खोज हुई है...थोडांगा 4 हज़ार साल का है और अब बस 150 साल ज़िन्दगी बची है! लेखक यह बताने का कष्ट करेंगे कि थोडांगा की मौतकॉमिक्स के बाद वो जिंदा कब और कैसे हुआ?? कृपया यहाँ पर विश्वरक्षक या थोडांगा का प्रेत कॉमिक्स में दिखाए जा चुके तर्क ना दें! कुछ तो अपने दिमाग से सोचकर नया लिखिए...अनुपम जी जो दिखा चुके..उसमे से कब तक बचा-खुचा परोसते रहेंगे? दूसरी चीज़ आर्टवर्क की मिस्टेक है कि जो थोडांगा दिखाया गया है..वो पूरी तरह से बिना किसी चीरे के निशान लिए बनाया है...जबकि नागराज के हाथो काटे जाने के बाद अगर वो जुड़ा भी है तो निशान तो मौजूद होता! जैसा पहले हमेशा हर कॉमिक्स में होता था! हेमंत जी द्वारा इस कॉमिक्स में detailing निराशाजनक है!

The Home Coming
11-  यह छोटा सा अंतिम भाग है..जिसमे अमेरिका में एक पत्रकार के दफ्तर पर आतंकी हमला हो जाता है! क्यूंकि यह अमेरिका है..इसलिए 5 मिनट में NYPD वाले मौके पर पहुँच जाते हैं...लेकिन उसी वक़्त तुरंत ही सौडांगी का घटनास्थल पर पहुँच जाना खटकता है! हमले के होने की जानकारी मिलने में और उसके बाद वहां पर आने में और ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए था? आपने तुरंत ही उसको वहां दिखा दिया!

12-  Cover आर्ट बहुत आकर्षक है...Normal कॉमिक्स का भी और CE वाला तो अद्भुत है! लेकिन दोनों ही कवर का क्षतिपूर्ति के अन्दर के 90 पेज के साथ जो लिंक दिखना चाहिए था...वैसा उभर नहीं सका है!
पहला कवर जिसमे आपको नागराज किसी cliff के ऊपर खड़ा अपनी चिता से निकलकर नीचे जलते शहर को देख रहा है! अन्दर की कहानी में चिता,cliff यहाँ तक की खुद असली नागराज भी कहीं नज़र नहीं आ रहा! फिर कवर और कहानी के बीच क्या तालमेल बैठाया जाए! इस कहानी का कवर अगर कहानी के अनुरूप होता..जिसमे नागदंत और थोडांगा को पर्याप्त जगह दी जाती..तो शायद ज्यादा विशेष बात लगती!
दूसरा CE वाला कवर जिसमे नागराज और विसर्पी को दिखाया गया है...हमें कॉमिक प्रमोशन के समय लगता था कि कहानी के अन्दर प्रेम और रोमांस के काफी सारे पन्ने मौजूद होंगे...जिनमे विसर्पी का नागराज की मौत के बाद विछोह की ज्वाला में पर्याप्त भावनात्मक चित्रण किया जाएगा..जिससे पढने वाले उद्धेलित हो जायेंगे! मगर कहानी में सिर्फ 3 पन्ने(वो भी स्वप्न बताकर) जो दिखाए गये हैं..वो पाठको की भावनाओं पर पानी फेरने जैसा प्रतीत होता है!
दोनों कवर अन्दर की कहानी का पर्याप्त रूपरेखा प्रस्तुत करने में विफल साबित हुए हैं! 90 पेज में कहानी कुछ और है लेकिन मुख पृष्ठ कुछ और ही दर्शाता है!

आर्टवर्क-

हेमंत कुमार और ईश्वर आर्ट्स द्वारा बनाया गया चित्रांकन आप लोगों ने नरक नाशक सीरीज में देखा हुआ है...यहाँ सबकुछ वैसे का वैसा ही है....आज भी ना तो हेमंत जी को अलग-अलग तरह से लड़के-लड़कियों की शक्लें बदलने में कोई रूचि जागी है...और ना वो उस महारथ को हासिल कर पाएं हैं जहाँ किरदार को उसके कपड़ो से ना पहचानना पड़े! बैकग्राउंड वर्क बहुत बेकार है...या कहें बहुत कम है! अनगिनत पन्नो में बैकग्राउंड के सूनेपन को शादाब जी ने अपने इफेक्ट्स से ढकने की कोशिश करी हैं...खिड़की से आती सूरज की रौशनी..या कोई बहुत बड़ी चमक दिखाना! आखिर सूनी दीवारें कौन सी जगह होती हैं? नागू वाले शुरू के पन्ने गवाह हैं इस कमी के....पहला पेज ही गौर से देखिये एक ही कमरे में पहली दीवार नारंगी है...दूसरी दीवार हरे रंग से पुती है...और तीसरी दीवार पर लाल रंग किया गया है! क्या किसी के घर में एक कमरे की 4 दीवारें अलग-अलग रंगों से पोती जाती हैं?? हमारे यहाँ तो ऐसा नहीं होता...RC वालो के यहाँ होता होगा..तभी ऐसी कलाकारी दिखाई जा रही है! उसी कमरे में आगे के पन्नो में हर पैनल में रंग बदलते जाते हैं...यहाँ तक की एक ही फर्श पर भी कभी हरा, कभी पीला, कभी लाल रंग नज़र आता है! पेज-9 पर तो सभी दीवारें गुलाबी रंग में हो जाती हैं!
पेज 11 देखिये...नागू एक ही जगह खड़ा है..पर हर पैनल में उसके पीछे का रंग बदल जाता है! ऐसी दिमाग खराब कर देने वाली कलाकारी पूरी कॉमिक्स में भरी हुई है!
RC...क्या दिखा रहे हैं आप??? स्कूल का कमरा है कि डिस्कोथेक का स्टेज...हर पल रंग बदल रहे हैं!
शिप के ऊपर मसाया के एक्शन सीन के आगे पीछे के पन्ने देखिये...बग़दाद में लोग लड़ रहे हैं...किक और हाथ पैर चल रहे हैं..लेकिन पीछे कुछ नज़र नहीं आता...ना कोई मकान,ना झाड, ना ताड़! ऐसा कुछ पन्नो में होता तो हम संख्या बताते..लेकिन पूरी की पूरी कॉमिक्स में है..इसलिए आप लोगों को आसानी से नज़र आ जाएगा कि आर्टवर्क में हेमंत जी ने मेहनत करने में कोताही करी है! ना तो बग़दाद उभर कर नज़र आता है...ना सीरिया बॉर्डर! पैराडॉक्स वाले पन्ने देखने से तो लगता है...यह कहानी दूसरे लोक में पहुँच गई है! तंजानिया के जंगल वाले पन्ने अच्छे बने थे..उसमे बैकग्राउंड ठीक चल रहा था..लेकिन पेज 80 देखिये...दूसरे पैनल में मसाया के पीछे कई जंगली खड़े हैं...लेकिन 4th पैनल में उसी मसाया के पीछे बैंगनी रंग की दीवार दिखाई जाती है! मेहनत से भागना यही है!

हेमंत जी को इन कमियों को सुधारना चाहिए! वैसे अब हर कॉमिक्स के साथ उन्हें कहना कि सुधार करें,सुधार करें, फिजूल लगता है...उन्हें 7-8 साल हो चुके हैं कॉमिक्स बनाते और वो अच्छे से जानते हैं कि पाठक क्या चाहते हैं...लेकिन अगर वो इस जिद में हैं कि जैसा पहले बनाते आये हैं वही आगे भी देंगे तो suggestion देने का कोई मतलब नहीं बनता है! आर्टिस्ट के अन्दर खुद यह भूख होती है कि वो खुद को बेहतर करता जाए...अगर आर्टिस्ट खुद नहीं बेहतर होना चाहेगा तो किसी के कहने से वो बदलाव आ भी नहीं सकता!

निष्कर्ष-

RC अब कुल-मिलाकर क्षतिपूर्ति के हालात आपके सामने मौजूद हैं! यह नागराज की 200वी कॉमिक्स है... 200वी कॉमिक्स को पहले तो सिंगल पार्ट होना चाहिए था! या फिर अनुपम सिन्हा जी द्वारा बनाया जाना चाहिए था...लेकिन आपने जिन लेखक/आर्टिस्ट पर भरोसा दिखाया है..वो इस कॉमिक्स में दरक सा गया है! इतने तथ्यों को नज़र अंदाज़ करा जाना, देश दुनिया में होने वाली घटनाओं को ही कॉमिक्स की शक्ल में उतार देना...जो जगह बची..उसमे पुरानी कहानियों की धूल झाड़कर फिट कर देना...शायद लेखक की नियति बन चुकी है..लेकिन इसका हर्जाना पूरे नागराज पाठकों को उठाना पड़ रहा है! अब आप जानें कि नागराज की असल पहचान वापस लाना ज्यादा महत्वपूर्ण है या लेखकों की बार-बार होने वाली गलतियाँ नज़रंदाज़ करना!
वीरगति के बाद इससे उम्मीदें बढ़ गई थी..200वी कॉमिक्स के टैग ने उन उम्मीदों को और ऊपर पहुंचा दिया था! लेकिन क्षतिपूर्ति एक साधारण से भी निम्न दर्जे की कॉमिक्स साबित हुई है...इतनी कमजोर कहानी में ना कोई नई बात है,जिसपर वाह-वाह करी जा सके और ना आर्टवर्क में कोई प्रयोग देखने को मिलता है जिसके कसीदे पढ़े जाएँ! CE का कवर आकर्षक जरूर है..लेकिन सबके पास मौजूद नहीं होगा!

बाल-बच्चेदार पाठकों को हमारी यही सलाह है कि इस कॉमिक्स को किसी गुप्त जगह छुपा कर रख दें...गलती से किसी नन्हे मुन्ने ने इसको पढ़ लिया तो उसको भूगोल में अंक प्राप्त करने में मुश्किल आ जायेगी! बाकी जो पाठक कहते हैं कि कॉमिक्स दिमाग लगाकर नहीं पढनी चाहिए...वो इसको दिन में 10 बार पढ़िए...ऐसी जुम्बी कॉमिक्स बार-बार नहीं आती!

किसी को भी पूर्व में मिल रहे आनंदित पलों को अगर क्षति पहुंची हो तो यह मात्र संयोगवश हुआ है! नागराज के अगले बाज़ीगर मैं बाज़ीगर...’’मौत का बाज़ीगरविशेषांक जो इस कहानी की अगली कड़ी है का जोरशोर से इंतज़ार करके राज कॉमिक्स को प्रोत्साहित करें! तब तक अगर आपको क्षतिपूर्ति में आनंद मिल सके तो  आज ही राज कॉमिक्स के ऑनलाइन स्टोर से अवश्य प्राप्त करे!

Ratings :
Story...★★★☆☆☆☆☆☆☆
Art......★★★★☆☆☆☆☆☆
Entertainment……★★★☆☆☆☆☆☆☆

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