Review- डोगा बेकाबू (2015)
25 Pages/94 Panels (Approx. 4 Panels per page).
Genre-Drama,Action
Main character(s)- डोगा/सूरज,मोनिका/लोमड़ी,युसूफ खान,निर्मूलक!
Short Synopsis -
डोगा निर्मूलक के पिछले भाग से यह 25 पेज का दूसरा भाग आगे बढ़ता है! यहाँ मुख्य बातें कहानी में सिर्फ 3 हैं-
1- पिया बसंती हो चली लोमड़ी का बेकाबू हो जाना!
2- डोगा का बेकाबू होकर कत्लेमान मचाना!
3- युसूफ और निर्मूलक के बीच डोगा की मौत की डील होना!
इस बार कहानी को पढने में आपको 15 मिनट लगेंगे! वज़ह है कि पिछले भाग की तुलना में कहानी में कुछ अधिक डायलॉग नज़र आते हैं!
कहानी का पहला सिंगल पेज पिछले भाग की कहानी को याद दिलाने में शहीद हो जाता है! वैसे उसपर डोगा का आर्ट बढ़िया है..जो कम से कम इस भाग की कहानी में आगे नज़र नहीं आता! पुलिस ने डोगा को घेर रखा है....यदि यह पेज ना भी होता तो कहानी की सेहत पर फर्क नहीं पड़ता!
बेकाबू लोमड़ी को दिए गए शुरू के 7 पन्ने हमारी नज़र में सिर्फ दिलदीप जी का लोमड़ी पर बनाया गया सुंदर आर्ट देखने के लिए आप पढ़ सकते हैं! उनमे ऐसा कुछ ख़ास नहीं हुआ जो पहले देखा ना गया हो!
कहानी का मुख्य हिस्सा बीच के पेज 8-17 तक का है...जहाँ डोगा की ड्रेस पहने एक शख्सियत दिखाई गई है! क्यूंकि 200 लोग एक साथ मारे जाते हैं इसलिए हमें इस भाग पर टिप्पणी करने की जरूरत नहीं लगती! वहां क्या हुआ है यह समझने के लिए पाठक खुद काबिल हैं!
पेज 18-23 के 5 पन्ने सूरज-मोनिका को समर्पित हैं! लेखकों ने यहाँ पर एक काम बहुत अच्छा किया कि पिछले भाग वाले जन्मदिन वाली Old is Gold वाली बात को जगह देकर कम से कम उसका एक घूमता-फिरता सा जवाब दे दिया! संतुष्टि की जहाँ तक बात है वो तो मोनिका को भी नहीं हुई! लेकिन कम से कम यह बात दब जरूर गई! लेखक इस त्वरित कार्यवाही के लिए बधाई के हकदार हैं!
संवाद- डायलॉग्स सीधे और सरल हैं...डोगा को बोलने का जितना मौका मिलता है वो अपने असली वाले अंदाज़ से अलग नज़र आता है! युसूफ साहब का दिमाग क्यूंकि इस वक़्त एक तरफ ढुलक चुका है इसलिए वो आगे भी जिस अंदाज़ में दिखेंगे..पूर्वानुमान लग जाता है! निर्मूलक साधारण रहा है! बची मोनिका..जो शेरनी की तरह सूरज को रगड़ रही है! पढ़कर मज़ा आता है!
आर्टवर्क-
असल में जब 50 पन्ने आ जाने के बाद भी कहानी कुछ नज़र ना आये तो आपको अपना गम गलत करने के लिए आर्टिस्ट के कंधो का सहारा ही बचता है कि चलो दिमाग ना सही आँखों को ही थोडा सुकून मिल जाए..वही बड़ी बात होगी! तो यहाँ हम दिलदीप जी और विनोद जी की जोड़ी के काम को लेखन से ज्यादा बेहतर आंकते हैं!
पहला पेज उम्दा है...लेकिन जब आप आगे बढ़ेंगे और लोमड़ी के पेजों में छोटे पैनल का काम देखंगे तो वो average लगेगा...इसके उलट बड़े पेनल्स में बहुत अच्छा आर्टवर्क मिलेगा! इस द्विस्तरीय काम की वज़ह हमें नज़र नहीं आती! खैर जब पार्टी वाले पेज शुरू होते हैं..वहां से काम निखर जाता है! डोगा का खिड़की से एंट्री सीन जबरदस्त बनाया गया है! अंत में मोनिका पर तो सूरज के साथ पाठको का भी दिल आ जाए ऐसे पूरी कोशिश आर्टिस्ट की लग रही है! अंत के 2 पन्ने डायलॉग्स के मामले में कंगाल लेकिन आर्टवर्क में मालामाल हैं! आर्टवर्क कुल मिलाकर बढ़िया हुआ है! यहाँ पर हम शादाब जी के रंग संयोजन को भी आर्टवर्क की बेहतरी में जोड़ेंगे...जिन्होंने काफी चमकदार और हार्ड कलर्स का इस्तेमाल किया है! आपको कई पन्नो पर खिड़की से छनकर आती रौशनी पीछे की दीवारों पर देखने को मिलेगी..जो आर्ट में रियलिटी इफ़ेक्ट लाती है!
टिप्पणी-
क्यूंकि आप डोगा निर्मूलक श्रृंखला पढना शुरू कर चुके हैं..इसलिए आपको यह भाग भी लेना पड़ेगा! इसलिए जरूर खरीदें! कहानी अभी भी कुछ ख़ास आगे नहीं बढ़ पाई है...जो आगे कब तक रफ़्तार पकड़ पाएगी..फिलहाल कहना मुमकिन नहीं है! आर्ट काफी अच्छा है! तो अभी आप इस कॉमिक्स का आनंद लीजिये और “डोगा न्याय” की प्रतीक्षा करें!
Ratings :
Story...★★★★☆☆☆☆☆☆
Art......★★★★★★★★☆☆
Entertainment……★★★★★★☆☆☆☆
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