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Monday 30 December 2013

MAXIMUM SECURITY

Review-"मैक्सिमम सिक्योरिटी"

"सिटी विदाउट ए हीरो सीरीज़" का तीसरा भाग “मैक्सिमम सिक्योरिटी” प्रस्तुत है!
इस सीरीज़ की कहानी अभी तक लगभग 225-230 पन्नो(160 रुपए) की हो चुकी है! अभी 96 पन्ने बाकी हैं,जो अंतिम भाग(जैसा की घोषित है) तक 320 पन्नो के आसपास तक पहुँच जायेंगे!
इसलिए अब समय आ गया है कि आपको गौर करना शुरू कर देना चाहिए कि इतनी मोटी लिखी गयी कहानी में आपको कदम दर कदम क्या-क्या मिलता जा रहा है! ऐसे कौन-कौन से महत्वपूर्ण बिंदु रहे हैं जो प्रस्तुत हो चुके हैं! BO की कहानी में मिल रही जटिलताओं को जानने की उत्सुकता को तोड़ने में नाकाम साबित होने के बाद आइये जाने इसमें क्या नई चीज़ें जुडी हैं!

1-“कोड नेम कॉमेट” में आपने पढ़ा था की ध्रुव गुमशुदा या मर चुका है..इसके अलावा उसका एक हमशक्ल मौजूद है!
2-“ब्रेकआउट” में आपने जाना कि राजनगर की नारका जेल टूट गयी..और पूरा शहर अस्त-व्यस्त हालातों में पहुँच गया!

तो अब आपको इस तीसरे भाग में मिलेगा... “मैक्सिमम सिक्यूरिटी जोन” नाम की पहली बार सुनी गयी एक अति-उन्नत जेल का बनना भी..और तोड़ दिया जाना भी!
“मैक्सिमम सिक्योरिटी” में कहानी एक ही जगह पर ठिठकी हुई नज़र आती है...इसमें सबसे बड़ा पेंच यही ठहराव है..जो कहानी की गति को बाधित करता है..अगर इस बात को भुला दिया जाए कि जेल के बनाये और तोड़े जाने की जानकारी के अलावा यह भाग टुकडो में ही सही कुछ आगे बढाया जाता तो शायद बेहतर लगता!
गौर करिए कि लेखक इतना लम्बा लिखने के बाद भी अभी तक कहानी की गहरी परतो के नीचे नहीं गए हैं..कि पाठक मौका हासिल कर सकें..खुद से कहने का कि “उन्हें कहानी में कुछ कुछ समझ आ रहा है!” तीसरा भाग भी खत्म हो गया है..लेकिन कोई भी ऐसा जवाब आपको नहीं मिला जिसके लिए आप पिछले तीन भागों से तड़प रहे हैं..लेखक का पूरा मन बन चुका है कि वो आपको अंतिम भाग तक लटकाए रखेंगे! खैर यह तो थी लेखक के नज़रिए की बात! लेकिन कहानी अब उस अवस्था तक जा पहुंची है...जहाँ दिमाग यही कह रहा है..कि इसका अंत जल्द सामने आये...ताकि एक नई कहानी शुरू हो सके!
अभी तक चल रही हौच-पौच,अनगिनत खुले धागों वाली कहानी को पढ़कर आपको लग रहा हो कि आपको ध्रुव मिल गया...तो रुकिए..अभी बहुत संदेहजनक परिस्थितयां बाकी हैं! इसलिए कहानी पर बात करने का यह ना सही वक़्त है..और ना इतनी जानकारियां मुहैया हुई हैं!
कहानी की अंतिम टिप्पणी अब अंतिम भाग पर छोड़ते हुए..आगे बढ़ते हैं..किरदारों पर-

*कॉमेट- आखिरकार कॉमेट राजनगर में प्रवेश करके चंडिका और CF कैडेट्स से मिल चुका है! यहाँ पर एक बड़ा पेंच मिलता है!
उसने अपना एक मासूम चेहरा,कुछ भावनात्मक संवादों,थोड़े एक्शन,कभी सनकी,कभी विचलित...मतलब बहुत कम समय में कई शेड्स दिखा दिए हैं! कभी वो आपको जरूरत से अधिक क्रुद्ध नज़र आता है...तो कभी बच्चे जैसे शांत! आप विश्वास नहीं कर सकते कि ध्रुव जैसे दिखते होने के बाद भी क्यूँ अकेले सिर्फ नताशा को ही यह लगा कि यह असली है! दाल काली है..और काली दाल काले दिलवालों की है! खैर..यह रोमांच का विषय बन गया है की कॉमेट की अंतिम मंजिल क्या दिखाई जायेगी!

*चंडिका- सवाल-जवाब करने,लड़ाइयों की मध्यस्थ बनने,सबको गाइड करने के काम चंडिका के हिस्से में आये हैं..ध्रुव नहीं है तो चंडिका है..यह बात साबित हो गयी..बाकी लोग सिर्फ नाटक ही करते नज़र आ रहे हैं..कि हाँ हम भी रहते हैं राजनगर में! फिर भी चंडिका का रोल पिछले भाग ब्रेकआउट से आगे नहीं बढ़ता है..जिस सड़क पर पहले थी..MS में भी वहीँ खड़ी दिखती है!

*ब्लैक कैट- MS में ब्लैक कैट के हिस्से में नताशा की जबरदस्त पिटाई के कुछ पन्नो के अलावा और कुछ ख़ास काम नहीं है! ब्लैक कैट प्रेमियों का कलेजा मुहं को आ सकता है,जब नताशा के हाथो शर्तिया मौत को ब्लैक कैट डॉज देती है..पर इस अदा पर ही तो सभी कुर्बान हैं..बिल्ली का रास्ता अभी काफी लम्बा है...लेखक कहानी में जरूर आगे उसको कुछ अहम् काम दें..ऐसी उम्मीद करें!

*नताशा- MS में पढने लायक सबसे मजेदार चीज़ें नताशा मुहैया कराती है..कहानी में वक़्त और हालत की नजाकत को भांपने में बिलकुल फेल,सबका मालिक बनने की कोशिशों जैसा लगता है..इस असंतुलित हालत में चंडिका, ब्लैक कैट,कॉमेट अपने अपने तरीको से उसके ऊपर हावी होकर बाज़ी मार लेते हैं!
नताशा का किरदार लगातार रहस्यमयी बनता जा रहा है..वो जो करती है,कहती है,तथ्यों से नहीं मिलन कर रहा! सकारात्मक होते हुए भी..आपके संदेह की एक सुई उसकी तरफ लटकी रहती है.
पिछले भाग ब्रेकआउट से नताशा का किरदार एक पायदान ऊपर आया है...बड़ा रोल होने के बाद...इतना तय है अंतिम भाग कुछ बड़े रहस्यों से पर्दा उठाने की प्रतीक्षा में है!

*दाढ़ी वाला अजनबी- “ब्रेकआउट” में आपको याद होगा,एक भावशून्य कैदी दिखाया गया था! MS का ज्यादातर हिस्सा उसी इधर-उधर भटकते कैदी पर केन्द्रित है! वो कुछ याद करता है तो कुछ भूल जाता है! लेखक अंतिम पन्नो पर 2 रहस्यों से पर्दा उठाते हैं (वैसे यह रहस्य कुछ नए नहीं थे)!
पहला- मास्टर-M का चेहरा दिखाकर!
दूसरा- दाढ़ी वाले अजनबी को क्लीन शेव बनाकर!
एक पर आप भरोसा कर सकते है..लेकिन दूसरा अभी संदेहमुक्त नहीं है!

*धनंजय- MS में एंट्री करके पहले 2 पन्नो में चट्टान की तरह फौलादी इरादों से लबरेज नज़र आ रहे धनंजय को आगे के पन्नो में मैदान में उतारते ही लेखक की कलम धन्वंतरी महोदय की सेवाएं दे देती है! आपको ठहाके लगाने के लिए MS में यह एक चीज़ मिल ही जाती है! धनंजय को छोटा रोल मिला है...जो पाठको के लिए हँसी और राजनगर वासियों के लिए दुःख का विषय बन गया! उम्मीद करी जाए कि “लास्ट स्टैंड” में धनंजय अपनी खोई प्रतिष्ठा वापस पा ले!

बाकी बचे मिशा, CF कैडेट्स, और अन्य खलनायकों के रोल इस भाग में उल्लेखनीय नहीं हैं!

कहानी-4/5
आर्टवर्क-3.5/5

MS का आर्टवर्क CNC और BO से नीचे नज़र आ रहा है! हेमंत जी एक्शन सीन अच्छे बनाते रहे हैं.....स्थिर खड़े किरदारों की तुलना में..मूवमेंट प्रदर्शित करते हुए किरदार बेहतर लगते है!
अब आप इसको 2 तरह से देखिये...
एक उनके चेहरे को भूलकर,
दूसरा उनके शरीर को याद रखकर!

यह कहने में कतई संकोच नहीं होता है,कि हेमंत जी शरीर अच्छे बना रहे हैं...लेकिन चेहरों में मात खा रहे हैं..खासकर SCD की सीरीज में ऐसा हो रहा है...वो नागराज की NNN या AHN सीरीज ज्यादा बेहतर बनाते हैं बनिस्पत इस सीरीज की तुलना में! चंडिका के चेहरे से बहुत निराशा हुयी...कॉमेट को ध्रुव का हमशक्ल बताया गया है...जो वो दिख ही नहीं रहा.....आप नताशा और मिशा में सिर्फ हेयर-कट्स से difference कर सकते हैं!

मुख्य किरदारों की जगह पर सुंदर दिख रहे हैं...Aquaman,फायरबॉल और अन्य खलनायक जिनके रोल इस भाग में बहुत कम थे...हाँ धनंजय जरूर अच्छा बना है!

कृपया 2 चीज़ों में सुधार लायें...हर किरदार को चाहे अपनी तरह से बनाएं..लेकिन उनके बीच इतनी भिन्नता रखें..कि उन्हें कपड़ो के रंगों से पहचानने की जरूरत ना पड़े!
और बैक ग्राउंड्स को खाली ना रखें..इसका एक बड़ा कारण है...यह कहानी चल रही है राजनगर नाम के मेट्रो में..एक मेट्रो सिटी में आप हर पल हज़ारो वाहनों की आवाजाही देखते हैं..लाखो लोग रोज आते-जाते हैं..लोकल ट्रेन्स वगैरह के अलावा..आम सड़क की हालत बताने की जरूरत नहीं है! ऐसे समय में अगर जेल टूटेगी..भगदड़ मचेगी..कर्फ्यू लगेगा...तो हर आदमी अपनी जान बचाकर भागेगा...पीछे अपनी हर चीज़ को वैसा छोड़कर!
लेकिन MS में ऐसी सडकें और जगहें दिखाई गयी हैं..जहाँ गाडी तो दूर एक नट-बोल्ट तक कहीं पर गिरा नज़र नहीं आ रहा! BG में पेड़ पौधे मैनहोल,पार्किंग्स,बिजली के खम्बे,लोगों का गिरा पड़ा सामान...और नहीं तो तोड़-फोड़ के बाद फैला हुआ मलबा ही दिखा दें! ज्यादा से ज्यादा रियलिटी देने की कोशिश करें!

इफेक्ट्स- इसके बिना MS के आर्टवर्क को पूर्णता नहीं मिल सकती थी..शादाब-अभिषेक जी की जोड़ी ने ठीक-ठाक काम किया है! आप जहाँ ऐसे सीन्स देख रहे हैं..जहाँ पीछे कुछ खास नज़र नहीं आ रहा..वहां इफेक्ट्स ने काफी चीज़ें संभाली हैं! फिर भी हल्के रंगों की अधिकता से कई जगह प्रभावशीलता कम रही! पेज-32 में धनंजय के आने का दृश्य,पेज-40 में aquaman- धनंजय की भिडंत,अनजबी का आग लगी इमारत में घुसना! पूरी कॉमिक्स में नीले-हरे रंग की प्रचुरता रही है...कॉमेट,मिशा,चंडिका,पानी,नताशा,मास्टर-M रेंग मास्टर,पैराशूट का कपडा,प्राकृतिक हरियाली के बाद backgrounds के हरे रंग के इफेक्ट्स!
इस चीज़ में विविधता के साथ सुधार की काफी गुंजाइश है!

शब्दांकन- मंदार जी ने अपनी लिखा कहानी में प्रयोगात्मक शब्दांकन भी काफी दिखाया है..जो काफी खूबसूरत लगता है..संवादों के मुख्य शब्दों को बोल्ड बनाया गया है...backgrounds से आती आवाजें,चीखें, कहानी को सच्चाई के अधिक करीब बना रही है!
लेकिन कवर पर अभी भी वही आदम युग के Fonts से लिखा टाइटल नेम अब बहुत पुरानी चीज़ लगने लगा है... बेहतर कहानियां बेहतर प्रस्तुतीकरण भी मांगती हैं..कवर आकर्षक लगे तो चार चाँद लग जाते हैं!

अंत में “मैक्सिमम सिक्योरिटी” CNC की जारी कहानी के एक और भाग से अधिक नहीं है और अभी काफी लम्बी भी है..इसलिए अटकलें लगाने के अलावा और कुछ नहीं करा जा सकता..भविष्य का पता नहीं..लेकिन वर्तमान में अब तक के तीन भाग ठीक ठाक बने हैं! पूरी कहानी पर अंतिम टिप्पणी अंतिम भाग के आने के बाद..
तब तक आप “मैक्सिमम सिक्योरिटी” पढ़कर अपना मनोरंजन करें!

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