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Thursday 20 November 2014

Kill Dill (2014) Review

Kill Dill (2014) Review
Genre- Romance/ Crime Thriller
Cast- Ranveer Singh,Ali Zafar,Parineeti Chopra & Govinda
My Ratings - ★★★★★★☆☆☆☆
Plot- कहानी 2 अनाथ लडको की है- देव (रनवीर) और  टुट्टू (अली) जिन्हें एक गैंगस्टर भैयाजी (गोविंदा) ने पाला है! अब यह दोनों उसके हेड शूटर्स हैं..यानी सुपारी किलर्स! एक दिन देव को मिलती है दिशा(परिणीती) जिसके प्यार में वो भैयाजी को छोड़ने का मन बना लेता है! भैयाजी नहीं मानते और कहते हैं..या तो मेरे साथ दारु ले  या भगवान् के साथ गंगाजल! देव अधर में लटक जाता है! तब टुट्टू देव से कहता है कि वो दिशा के साथ भी अपनी ज़िन्दगी जीता रहे..और भैयाजी के साथ भी रहने का नाटक करता चले! देव एक बीमा एजेंट की नौकरी करते हुए सब सही रखने में लगा है! लेकिन कब तक?
भैयाजी को एक दिन पता चल जाता है..वो देव को वापस लाने के चक्कर में कुछ ऐसी गलती कर देते हैं..कि अंत में खुद ही अपने दुश्मनों के हाथो टपका दिए जाते हैं!
देव के रास्ते का काँटा जब हट चुका है..तो टुट्टू भी बीमा एजेंट बनकर सच्चाई के रास्ते पर चल पड़ते हैं!
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कहानी में नया कुछ नहीं है! एक गैंगस्टर जिसने 2 बच्चे पाले...बड़े होकर वो उसके दायें-बायें हाथ बनते हैं..फिर उनको प्यार होता है..जिससे उन्हें अच्छाई का कीड़ा काट लेता है! यह कहानियां तो अमिताभ बच्चन के जमाने से हर दूसरी अंडरवर्ल्ड मूवी में होती है! यहाँ भी वही है!
कहानी पर पहला आधा भाग बहुत धीमा और उबाऊ है! वज़ह- यह हज़ारो फिल्मो में देखा जा चुका है! कॉमेडी के लिए यह फिल्म नहीं बनाई गई है..जैसा लग रहा था!
कहानी में थोडा मज़ा दूसरे भाग से आता है..जब देव नौकरी की तलाश में निकलता है!
फिल्म में देखने लायक सिर्फ देव और टुट्टू की दोस्ती है! और इनके किरदारों को समझने में मिलने वाली प्रेरणा है!
देव मासूम है..पर काम का पक्का है..क़त्ल करते हुए एकदम ठंडा रहता है!..पर उसके दिल में गरीबो के लिए प्यार है! जब उसको मौका मिलता है कि बुराई छोड़ सके तो वो पूरी कोशिश करता है! उसकी वज़ह से ही टुट्टू भी सही रास्ते पर आ जाता है! रनवीर हमेशा की तरह इस बार भी नेचुरल एक्ट करने में सफल रहे! खासकर उनका क्लीन शेव लुक काफी हटकर नज़र आता है!
टुट्टू थोडा कठोर है...पर 2 की जोड़ी में हमेशा एक बंदा ऐसा ही मिलता है! अली ज़फर ने उम्दा काम किया है! असल में जब अली के पास ना कोई हीरोइन ना कोई Solo गाने थे..वो तब भी कहानी में अपनी छाप छोड़ जाते है!
परिणीती का कहानी में ख़ास हिस्सा नहीं है..जगह भरने तक सीमित किरदार में वो अपने पुराने चुलबुल रूप में ही इसमें नज़र आएँगी!
गोविंदा... सच कहा जाए तो उन्हें अपराधी के रूप में देखना वो भी अंत में मारे जाने वाले अपराधी की तरह तो शिकारी जैसी फिल्म में पहले भी अच्छे नहीं लगते थे..आज भी नहीं लगते! फिर या तो पूरी तरह से उन्हें गंभीर किरदार में रखा जाए..अब वो हंस भी रहे हैं..नाच भी रहे हैं..गाने भी गाते हैं..लेकिन प्यार के सख्त खिलाफ हैं...अब बताइए...देव और टुट्टू द्वारा उनका काम भी ईमानदारीपूर्वक हो रहा है..फिर भी इन्हें बैठे हुए चुलबाजी मचती है कि आखिर देव को प्यार हुआ कैसे?
भैयाजी के रूप में गोविंदा को देखना उतना सुखद हमें नहीं लगा...वज़ह यह कि यशराज वालो ने कुछ साल पहले टशन फिल्म में अनिल कपूर को बिलकुल ऐसा ही रोल पकडाया था! उनकी लुटिया डूब गयी थी! जबकि वो एक्शन हीरो रहे हैं! यहाँ तो अपने चीची भैया थे..जिनकी इमेज हंसाने वाली रही है..ना कि खून खराबा करने की!अब अगर कोई कहे कि वो करियर के इस मोड़ पर कुछ हटके करने के चक्कर में ऐसे रोल कर रहे हैं तो भगवान् जानता है..उन्हें बेस्ट विलेन का अवार्ड मिलने से रहा!
फिल्म में उनका रोल मुश्किल से 20-22 मिनट का होगा! बेचारे अंत में मरने से पहले एक्शन तक नहीं कर सके!
डायरेक्टर फिल्म को शुरू में काट छांटकर करके कुछ छोटा रखते...और गोविंदा का रोल बढ़ाकर  अंत में उन्हें भी सही रास्ते पर ले आने का ट्रैक डालते तो शायद कहानी कुछ अच्छी लगती! कहानी का अंत कुछ ऐसा लगता है जैसे भैयाजी की लाश पर देव और टुट्टू अपनी ज़िन्दगी सुधारते हैं! क्यूंकि भैयाजी जब मरने वाले होते हैं तो उन्हें देव और टुट्टू की सहायता भी नसीब नहीं होती! जबकि मुसीबत उन्ही दोनों की वज़ह से आई थी!
संगीत में अपने Title Track KKK किल दिल के अलावा सभी अजीबोगरीब Lyrics वाले चलताऊ गाने हैं!
खैर फिल्म जैसी है आपके सामने है! हमारे विचार में इसको 1 time watch की संज्ञा दी जा सकती है!

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