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Wednesday 12 November 2014

MAHAMELA




Review : महामेला (2014)
Genre : Not Found
लेखक : तरुण कुमार वाही,विशाल राव मैसूर
आर्टवर्क : सुशांत पंडा
इंकिंग: दीपक कुमार
रंग: बसंत पंडा
शब्दांकन: मंदार गंगेले
मुख्य पात्र : बांकेलाल,विक्रम सिंह और विभिन्न नए  किरदार

बांकेलाल के प्यारे पाठको..समीक्षा पढने से पहले सभी एक बार कहिये.... हीहीही
महामेला की कहानी का सार कुछ यह है कि एक डाकू "झमेलासिंह" को मेलों से नफरत है...उसकी लूटपाट से विशालगढ़ त्रस्त है..बांकेलाल हमेशा की तरह उसको पकड़ने रवाना किया जाता है! उसको पकड़ने में नाकाम होने के बाद बांके को मिलता है उस डाकू का एक हमशक्ल! हीहीही... अब आगे कहानी बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी!

‪#‎हास्य_पक्ष: यह एक बिना स्क्रिप्ट की  बोरियत से भरपूर ऐसी कहानी है...जिसमे हास्य नाम की कोई चिड़िया दूरबीन लेकर खोजने से भी नहीं मिलेगी! बांकेलाल में अब शायद राज कॉमिक्स के पास कुछ नया करने को बचा नहीं है इसलिए वही ऋषि,डाकू,हमशक्ल,देवता डालकर सिर्फ सेट में बांकेलाल को पेश करने का काम किया जा रहा है! वैसे जिनको यह मुफ्त में मिल गयी थी...वो खुद को सौभाग्यशाली समझें..और जिनको पैसे देकर लेनी पड़ी..वो हीहीही का उल्टा करें!(नहीं समझे... बुहूहुहू)
राज कॉमिक्स से हम अब यह कहना छोड़ रहे हैं कि क्या और कैसी कहानियां लिखिए!(क्यूंकि यह करते करते सालों बीत गए पर हाथ में ऐसा मेला रुपी पका हुआ केला ही आता है...महीनो के इंतज़ार के बाद सेट में एक तो सिर्फ 2 कॉमिक्स और उसमे में एक ऐसी)

‪#‎आर्टवर्क‬ -
सुशांत जी का आर्ट है...और लगभग औसत दर्जे का है! वैसे भी सर्वनायक पर उनके जाने के बाद बांकेलाल से ज्यादा की उम्मीद नहीं है! इस बार तो कहानी में क्षमा भी नहीं थी...जिसको देखकर क्षमा दी जा सके!
बाकी सभी विभाग काम चलाऊ हैं! मतलब काम पूरा हुआ है!आपके पैसे का पूरा उपयोग है..कॉमिक्स रंगीन है(ब्लैक & वाइट नहीं है)..bubbles में डायलॉग्स भी हैं(हाँ भाई.पढने के लिए ही लिखे गए हैं)
पाठको.. हमने तो इस मेले की सैर कर ली..और हमें ज्यादा मिर्च मसाला पसंद नहीं था(जिसकी वज़ह इसके पहले पन्ने पर है) हमने सिर्फ फलों का आनंद लिया(मतलब आर्ट के चुनिंदा पन्नो का)...आप जरूर इस मेले में सावधानी से कदम रखते हुए ही आगे बढिए.....फिसलने का डर है!

Ratings :
Story.....★★☆☆☆☆☆☆☆☆
Art........★★★★★☆☆☆☆☆

#Rajcomics,#Bankelal

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