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Thursday 25 April 2013

CODE NAME COMET


Overall rating 
 
4.0
story 
 
4.0
artwork 
 
4.0




अनुपम सिन्हा जी की अनुपस्थिति में सुपर कमांडो ध्रुव की एक ऐसी 4 भाग लम्बी कहानी...कॉमिक्स को बनाने से लेकर पाठको के हाथो में देने तक लगने वाली ऊर्जा अपने आप दिखने लगती है !यह भारतीय कॉमिक्स जगत का वो काम है,जिसमे लाख सावधानी रखने के बाद भी हाथ नहीं जलेंगे..इसकी कोई गारंटी नहीं है!..लेखक मंदार गंगेले इस काम में कहाँ तक सफल हो पायेंगे यह अभी बहुत दूर का प्रश्न है..इसलिए जल्दबाजी ना करते हुए इस प्रथम भाग पर प्रकाश डाला जाए!
आजकल सोशल साइट्स की वर्चुअल दुनिया में विज्ञापन देने का जमाना है...कॉमिक्स के आने से काफी समय पहले से previews मिल जाते हैं..और कहानी को लेकर बहुत सारे कयास और पूर्वानुमान भी लगाये जाते हैं..इतना सब होने के बाद कॉमिक्स आने पर छिपाने लायक बहुत कम चीज़ें बचती हैं..जिनमे पाठक यह देख सकता है कि जो सोचा था,देखा था..क्या वैसे ही हुआ या कुछ नया मिल गया !

“कोड नेम कॉमेट” में फिलहाल ऐसा कुछ नज़र नहीं आएगा जिसपर सोचते हुए किसी के दिमाग पर बहुत जोर पड़े! कहानी ऊपर-ऊपर से बहुत सरल और आसानी से किसी निश्चल बच्चे की तरह भागती दिखाई देती है! अगर पहले की आई कहानियों से "कोड नेम कॉमेट" का अंतर खोजा जाए..तो कई धागों के बहुत सारे खुले सिरों को “कोड नेम कॉमेट” में जगह जगह पर लटकाया गया है..यानी पढ़ते हुए और आगे बढ़ते हुए पाठक उस सिरे को पकड़कर आगे चलना शुरू करेगा तो अभी 3 और भाग तक इंतज़ार में समय बिताना कहानी की डिमांड भी है और मजबूरी भी !

बहरहाल “कोड नेम कॉमेट” की शुरुआत वर्तमान से होती है...जो पहले फ्लैशबैक,फिर वर्तमान,फिर फ्लैशबैक और आखिर में फिर से वर्तमान पर आकर स्थिर हो जाती है ! यह चीज़ पाठको के लिए बहुत गौर करने और समझने वाली है...10-15 साल पहले लिखी कहानियां और आज लिखी जा रही कहानियों में यह एक मूलभूत फर्क नज़र आता है..कि आजकल कहानी को बीच में वर्तमान से कहीं किसी हिस्से से शुरू करा जाता है..और उसके बाद कहानी को बार बार आगे-पीछे फेंटा जाता है, जैसे ताश की गड्डी..कभी राजा ऊपर तो कभी जोकर..ऐसे में लेखक की शैली के अनुसार पाठक को अपना मन बदलना आना बहुत बड़ी जरूरत बन चुकी है ! लेखक ने सीन्स को लिखने और सही जगह पर उनका इस्तेमाल करने में मेहनत करी है....डायलॉग्स को भी सिंपल भाषा में रखने की पूरी कोशिश करी है..जिससे कहानी को पढने-समझने में ज्यादा दिमाग घुमाना ना पड़े...हाल प्रकांतर में जैसा कई दूसरी कॉमिक्स में कई बार देखा जा चुका है...कि कहानी को 2 -3 पढना पड़ता है...यह बात “कोड नेम कॉमेट” में नहीं है!

राज कॉमिक्स द्वारा फेसबुक पर लगाये गए 6 -7 प्रीव्यू पेजेस जिनमे ध्रुव मारा गया था..कॉमिक्स में आखिरकार झूठे ही साबित होते हैं...जिसका साफ़ मतलब निकलता है..ध्रुव मरा/गायब तो जरूर हुआ है..लेकिन किसी नयी घटना की वज़ह से! इस नयी घटना के पीछे कौन सा दिमाग काम कर रहा था?
क्या डॉक्टर वायरस? (नहीं..एक ही व्यक्ति 2 बार कैसे)..तो फिर क्या ग्रैंड मास्टर रोबो (जो सबके हिसाब से मरा हुआ ,लेकिन कहानी में जिंदा है)..या फिर नताशा?(जो रहस्यमय ढंग से काफी कुछ छुपाती लगती है)..या मीशा?(जो नहीं चाहती ध्रुव वापस अपनी दुनिया में लौटे)..या कोई नया चेहरा जो छुपा रुस्तम बना हुआ है?
इस सबके बीच “कॉमेट” को अपने परिजनों के सपने दिख रहे हैं...यानी वही ध्रुव है.?(नहीं-नहीं..क्यूंकि अगर ऐसा होता है तो -दुनिया के इतने मशहूर चेहरे,ब्रह्माण्ड रक्षक के अपराध विनाशक की वास्तविक पहचान छुपाना इतना आसान काम है..यानी “नीदर लैंड” से लेकर भारतीय सत्ता प्रतिष्ठानों पर घनघोर प्रश्नचिन्ह लग चुका है !
चलिए इन सवालों को भविष्य पर छोड़ देते हैं ! “कोड नेम कॉमेट” में सबके रोल्स पर आते हैं!

“सुपर कमांडो ध्रुव “–ध्रुव ही कॉमेट है..यह बात किसी से नहीं छुपी है..अगर लेखक का मन कुछ चमत्कार करने की ना सोचे तो! ध्रुव कॉमिक्स में एक नए रूप में सामने है..जिसमे उसकी मशहूर हेयर स्टाइल से लेकर चाल-ढाल,रहन-सहन,वेशभूषा सब कुछ बदल चुका है !
एक सिरे से चलती रही ध्रुव की सीरीज में इस तरह बीच में हो रहे यह experiments तारीफ के काबिल हैं...एक हीरो जिसकी याददाश्त गायब है...वो एक ऐसी जगह रह रहा है..जिसमे उसे सिर्फ अन्धकार नज़र आ रहा है..लेकिन फिर भी वो जुटा हुआ है अपराध उन्मूलन के अपने लक्ष्य को याद रखते हुए आज भी उसी ईमानदारी से पूरा करता हुआ,एक नए नाम,नए रूप में एक नए समाज के लिए! इतना काफी है यह समझाने के लिए कि सुपर कमांडो ध्रुव एक विश्वविख्यात सुपर हीरो क्यूँ है!

“रिचा/ब्लैक कैट” – “कोड नेम कॉमेट” में रिचा को खासतौर से रेखांकित किया जा सकता है ! लेखक ने रिचा की ज़िन्दगी के अनसुलझे हिस्सों को सुलझाने की बेहतरीन कोशिश करी है ! रिचा का ध्रुव से अपने रिश्ते पर बेबाक राय रखना..एक नयी जगह नौकरी के लिए जाना और ब्लैक कैट के रूप में अपराध रोकने की कोशिश उसके characterization के लिए पॉजिटिव signs हैं !जो उसकी अहमियत को ध्रुव सीरीज में एक मुख्य स्तम्भ के रूप में पुनः स्थापित करने में सहायक बनते हैं !

“श्वेता” –भाई न रहे तो उस बहन की हालत क्या होगी समझी जा सकती है! श्वेता के हिस्से में फिलहाल दुःख के बहुत ग़मगीन क्षण आये हैं! वो शोकाकुल है और नयी परिस्थितियों को समझने का प्रयास कर रही है,जिसमे आतंरिक मानसिक द्वन्द बहुत ज्यादा है..हो सकता है आगे वो कोई बड़ा फैसला ले !

“नताशा” – “रिपोर्टर नताशा”...”कमांडर नताशा”...”शाळा” और अब “ऑफिसर नताशा” ऑफ़ कमांडर फ़ोर्स(जो राजनगर में तब अपराध रोकने की कोशिश में लगी है जब ध्रुव के मरने/गायब होने की सुई उसके पिता रोबो की ओर घूमी हुई है!)
नताशा का रोल हर बार की तरह नए रहस्य से भरा लग रहा है..और अगर ध्रुव भी उससे नाराज़ है तो मामला गंभीर होने की पूरी गुंजाइश है..यह कितना घूमा हुआ एंगल है.यह भी आगे पता चलेगा!
मीशा...मास्टर M..."रोनिन" अन्य नए चेहरे हैं..और हाँ एक जल मानव भी..जिसका राज़ अगले भाग में खुलेगा!
नारका जेल पर हुए हमले पर कहानी अप्ल विराम लेती है...आगे की कहानी के लिए "ब्रेकआउट" का इंतज़ार शुरू !

आर्टवर्क –

पेंसिल- हेमंत कुमार जी के बनाये आर्टवर्क की अब आदत हो गयी है..बाकी सीरीज की तरह सुपर कमांडो ध्रुव को भी उन्होंने उम्दा ढंग से संभाला हुआ है... सुपर कमांडो ध्रुव एक नवयुवक का पूरा एहसास कराता है! “कोड नेम कॉमेट” में परिस्थितीवश ध्रुव में कहानी की मांग के हिसाब से काफी परिवर्तन हुए हैं..छोटे छोटे बाल...काम करने का अलग अंदाज़ होने की वज़ह से कॉमेट और सुपर कमांडो ध्रुव में अंतर रखने में हेमंत जी कामयाब रहे हैं! रिचा को बहुत खूबसूरत बनाया है उन्होंने...ब्लैक कैट के रूप में भी..प्लस पॉइंट

हाँ एक बात सच में बहुत गैर जरूरी सी लगती है..कि कॉमिक्स में श्वेता को बहुत Outdated बनाया हुआ है..अगर वो विदेश से पढ़कर आई है तब भी और अगर आज तक आई पुरानी कॉमिक्स में मुख्यतः उसको जैसी बनाया जाता रहा है तब भी कम से कम उसके तेल में डूबे हुए चिपके बाल...पूरी कॉमिक्स में सिर्फ एक पीले रंग की सलवार कमीज़ पहनाये रखने से बचा जा सकता था..दुखी दिखने के लिए देहातन बना देना बहुत पुराना आईडिया है ! हेमंत जी को अगली कॉमिक्स में श्वेता में परिवर्तन लाने चाहिए!
सुशांत जी के बनाये हुए 2 क्लासिक पेज बहुत अच्छे बने हैं !

इंकिंग –ईश्वर जी ने उम्मीद से कहीं बेहतर और “परफेक्ट से कम” काम इंकिंग में किया है! उनके अन्दर विनोद कुमार और जगदीश जी की तरह सफल इंकर आर्टिस्ट बनने की क्षमता है...कुल मिलाकर उनका काम अच्छा है..कुछ पेज में कई जगह पर बॉडी के मूवमेंट्स में गड़बड़ रही है..जैसे शरीर असली ना होकर कोई बेजान तस्वीर चिपकी हो..नए होने की वज़ह से उनमे बहुत Potential है...उन्हें और मौके दिए जाते रहने चाहिए जिससे वो और उम्दा निखार ला सकें !

रंग-संयोजन-शादाब सिद्दीकी जी का रंग है...और सबसे राहत की बात यह है कि कोड नेम कॉमेट में वापस "कलरिंग इफेक्ट्स" भी करे गए हैं..जिनकी वज़ह से कॉमिक्स का पूरा लुत्फ़ मिला है..इफेक्ट्स के बिना कॉमिक्स की कल्पना करना अब नामुमकिन बात है..कृपया पूरी कोड नेम कॉमेट सीरीज को इफेक्ट्स के साथ ही पूरी करें !
शब्दांकन भी लेखक मंदार गंगेले जी का है..इक्का-दुक्का जगह छोटी गलती रह गयीं..लेकिन पूरी कॉमिक्स में मेहनत से दिखाई देता है...खासकर बड़ी आवाजों में...जिसमे फ्रेम्स में सिवाय सीन्स के अलावा और कुछ नहीं होता !कैप्शन बॉक्सेस में हुए प्रयोग उम्दा रहे हैं!

अंत में यह बात जाहिर सी है..कि "कोड नेम कॉमेट" जो 4 भाग लम्बी कहानी का पहला अंश और शुरुआत भर ही है..बहुत से सवाल भी छोड़ती है..उनके जवाब आगे के भागों में मिलने की उम्मीद है...इसलिए तटस्थ रूप में यह पहला भाग पूरी कहानी को एक अच्छी शुरुआत दे चुका है...“कोड नेम कॉमेट” का लुत्फ़ उठाइये!

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