Overall rating | 2.5 | |
story | 2.5 | |
artwork | 2.5 |
क्या यह कॉमिक्स सचमुच SPECIAL category में शामिल होने लायक है ?...यह एक बड़ा सवाल है ..जिसका उत्तर पढने वालो को ही खोजना पड़ेगा.
कहानी>>>
अगर कहानी पर ध्यान दिया जाए तो यह राजनगर की रातों में 3 अलग रात में घटी घटनाओं पर घूमती है ..यानी सिर्फ रात है दिन गायब .
कहानी जहाँ से शुरू होती है ...वो बहुत पुराना सा घिसा पिटा sequence है ...जिसकी झलक पहले आई HUM HONGE KAAMYAAB में देखी जा चुकी है .....कहानी का केंद्रबिंदु है ....एक अनाथालय और इस अनाथालय की ख़ास बात यह है ..की इसका सारा खर्चा सालो से ध्रुव उठा रहे हैं ...यहाँ एक सुंदर सी caretaker भी है .."सितारा " जो यह भेद पहली बार खोलती है की ध्रुव "Being Human" भी हैं! .
यहाँ रहने वाला हर बच्चा SPECIAL है..इस स्पेशल होने के पीछे क्या राज़ है..यह कहानी में पढियेगा..... इसके बाद कहानी क्यूंकि सिर्फ 3 रात की है इसलिए घटनाक्रम बहुत तेज़ी से भागना शुरू होता है ....अनाथालय जल्दी ही भूत -प्रेतों का अड्डा बना नज़र आता है ..भूत आ रहे हैं ...जिन्न आ रहे हैं ...ध्रुव यहाँ से वहां भाग रहा है ...यह इतनी भागमभाग क्यूँ हो रही थी ...यह समझाने के लिए लेखक ने Page-48 से Page 56 यानी 8 page बड़े विस्तार और आराम से खर्च किये हैं .....और इसके बाद के आखिरी 5 pages ध्रुव भैया ने हँसते हुए अपनी दिमाग की बत्ती जलाकर "बड़े आराम से " ऐसे ठीक किया है सबकुछ जैसे या तो वो Amul Macho के नए brand Ambassador हो ..या लेखक ने कहानी की एक copy उन्हें पहले ही दे दी हो ..की भैया तुम हीरो हो ..तुम्हे सब पहले से पता होना चाहिए .
अब रोल्स की बात करी जाए
ध्रुव को लेकर इतनी सतही कहानी क्यूँ लिखी और पास करी गयी वो RC जाने ...लेकिन यह कहानी ध्रुव के लायक नहीं थी ...ध्रुव के crime fight की यह शैली नहीं है ...परेशानी भूत प्रेतों और तंत्र के इस्तेमाल से नहीं आई है ...ऐसा पहले हो चुका है कई बार ...परेशानी आई है ..कहानी के कथानक और treatment से ...जो बहुत ज्यादा कमजोर है .
वू-डू के लिए यह कहानी प्राणघातक साबित हुयी है ....उसकी वापसी ऐसी टटपूंजिया तरीके से कराई जायेगी कभी सोचा ना था ..कहानी में उसके होने का कोई मतलब ना था ..और जो मतलब बताया गया है ..उसने दुखी कर दिया ..कहानी खोलना नहीं चाहते ..पर सवाल बहुत सारे हैं .
वू-डू जैसे पुराने शातिर खलनायक का क्रियाकर्म हो गया इस रोल में .
एक और भाईसाहब हैं ..."किशोर" ...यह हर कहानी में एक ही रोल में नज़र आते हैं ....पहली बार इनकी किताब तो ध्रुव ने जलाकर हाथ सेक लिए थे ...अब इन्हें शायद "जल निगम " में नौकरी मिल गयी है ...कुछ नया करते ही नहीं ...और जो करते हैं वो बताने की जरूरत नहीं है .
अनाथालय की caretaker सितारा का काम कहानी में अच्छा है .
हाँ तो अब बात इस भटकी हुई कहानी के भटके हुए मुख्य विलेन की ...जैसा हमने बताया की वू-डू का होना -ना होना एक बराबर था ..तो मुख्य विलेन कोई और है ...जिसकी बड़े ही आराम से Macho Man SCD से हार हो जाती है ....कहानी समाप्त
आर्टवर्क>>
बिलकुल नए आर्टिस्ट सुनील पासवान जी का आर्टवर्क है ....और inking भी मुख्यत: उनकी ही है ..सागर थापा जी ने काफी कम pages को इंक किया है!
आर्टवर्क के मामले में भी यह कॉमिक्स निहायत ही कमजोर साबित हुई है ...जिसे पूरी तरह से खारिज तो नहीं किया जा सकता ...लेकिन इसमें बहुत भारी कमियां हैं ...तो कुछ points पर अच्छाईयां भी हैं .
ध्रुव पूरी कॉमिक्स में खराब बना है ...पत्थर जैसी शक्ल और उसके भाव ,motions...उसके famous Hair style की बहुत भद्द पीटी गयी है ..और बॉडी को कई जगह ऐसा चपटा बनाया गया है ..जैसे कोई road roller ऊपर से गुजर गया हो ..जैसे -page- 12,16,22,36 आदि को देखा जा सकता है ....ध्रुव की ऐसी हालत दिल दुखाने वाली रही ...उसके action scenes..running scenes भी बहुत खराब बने हैं .
ध्रुव के चेहरे पर इतने ज्यादा experiments शायद ही कभी देखने को मिले हैं ....ऐसा लगता है पूरे bollywood aur cricket teams के लोगों के चेहरे हर नए frame में SCD पर आजमाए गए हैं .
Page-48>>Frame-1-Vivek Oberoi
Page-48>>Frame-4-Akshay Kumar
Page-51>>Frame-2-Reitesh Deshmukh
Page-55>>Frame-1-Mahela Jayawardena
भैया और नहीं लिखा जा रहा ...जिसे जो मिल जाए ..खोज लेना .
अब बाकी कॉमिक्स का आर्ट वर्क >>
हैलोविन के बच्चे ,वू-डू ,सितारा और बाकी सभी रोल्स ठीक ठाक बने हैं ..लेकिन वह भी हर पेज में अलग ही नज़र आते हैं ..तारीफ में कसीदे पढने लायक नहीं हैं .
एक और बात .... पूरी कहानी में ऐसा feel नहीं आया की वो राज नगर में सबकुछ हो रहा है ...राज नगर एक समुद्र किनारे बसी city है ....और इसमें Hallowin दिखाने के लिए बड़े बड़े Cross...छोटी पहाड़ियों के बीच wheat farms..और घर रुपी Huts ऐसे लगते हैं ...जैसे Mexico के किसी गाँव में कहानी चल रही है!
रंग(शादाब सिद्दीकी ) और शब्दांकन(मंदार गंगेले) जी का काम है..रंग-सज्जा में कुछ ज्यादा कहने लायक नहीं है..पुराने कामो की तुलना में यहाँ ज्यादा variety नहीं है!
...story+artwork के मामले में यह बहुत सतही ,कमजोर लेखन , बचकानी सी ,और साधारण से भी नीचे कही जा सकने वाली कॉमिक है ..अब क्यूंकि ध्रुव की कॉमिक्स है ...अपना collection 100% रखने के लिए लेनी पड़ेगी ..लेकिन मनोरंजन लायक material इसमें नहीं है ...2 बार पढके तीसरी बार शायद ही कोई पढना चाहे .
अंत में Specials को पढ़कर और आर्ट वर्क का जायका लेकर आप भी आँखें गीली कर सकते हैं ,लेकिन वो आंसू ख़ुशी के होंगे या गम के ..वो आपके ऊपर है .
कहानी>>>
अगर कहानी पर ध्यान दिया जाए तो यह राजनगर की रातों में 3 अलग रात में घटी घटनाओं पर घूमती है ..यानी सिर्फ रात है दिन गायब .
कहानी जहाँ से शुरू होती है ...वो बहुत पुराना सा घिसा पिटा sequence है ...जिसकी झलक पहले आई HUM HONGE KAAMYAAB में देखी जा चुकी है .....कहानी का केंद्रबिंदु है ....एक अनाथालय और इस अनाथालय की ख़ास बात यह है ..की इसका सारा खर्चा सालो से ध्रुव उठा रहे हैं ...यहाँ एक सुंदर सी caretaker भी है .."सितारा " जो यह भेद पहली बार खोलती है की ध्रुव "Being Human" भी हैं! .
यहाँ रहने वाला हर बच्चा SPECIAL है..इस स्पेशल होने के पीछे क्या राज़ है..यह कहानी में पढियेगा..... इसके बाद कहानी क्यूंकि सिर्फ 3 रात की है इसलिए घटनाक्रम बहुत तेज़ी से भागना शुरू होता है ....अनाथालय जल्दी ही भूत -प्रेतों का अड्डा बना नज़र आता है ..भूत आ रहे हैं ...जिन्न आ रहे हैं ...ध्रुव यहाँ से वहां भाग रहा है ...यह इतनी भागमभाग क्यूँ हो रही थी ...यह समझाने के लिए लेखक ने Page-48 से Page 56 यानी 8 page बड़े विस्तार और आराम से खर्च किये हैं .....और इसके बाद के आखिरी 5 pages ध्रुव भैया ने हँसते हुए अपनी दिमाग की बत्ती जलाकर "बड़े आराम से " ऐसे ठीक किया है सबकुछ जैसे या तो वो Amul Macho के नए brand Ambassador हो ..या लेखक ने कहानी की एक copy उन्हें पहले ही दे दी हो ..की भैया तुम हीरो हो ..तुम्हे सब पहले से पता होना चाहिए .
अब रोल्स की बात करी जाए
ध्रुव को लेकर इतनी सतही कहानी क्यूँ लिखी और पास करी गयी वो RC जाने ...लेकिन यह कहानी ध्रुव के लायक नहीं थी ...ध्रुव के crime fight की यह शैली नहीं है ...परेशानी भूत प्रेतों और तंत्र के इस्तेमाल से नहीं आई है ...ऐसा पहले हो चुका है कई बार ...परेशानी आई है ..कहानी के कथानक और treatment से ...जो बहुत ज्यादा कमजोर है .
वू-डू के लिए यह कहानी प्राणघातक साबित हुयी है ....उसकी वापसी ऐसी टटपूंजिया तरीके से कराई जायेगी कभी सोचा ना था ..कहानी में उसके होने का कोई मतलब ना था ..और जो मतलब बताया गया है ..उसने दुखी कर दिया ..कहानी खोलना नहीं चाहते ..पर सवाल बहुत सारे हैं .
वू-डू जैसे पुराने शातिर खलनायक का क्रियाकर्म हो गया इस रोल में .
एक और भाईसाहब हैं ..."किशोर" ...यह हर कहानी में एक ही रोल में नज़र आते हैं ....पहली बार इनकी किताब तो ध्रुव ने जलाकर हाथ सेक लिए थे ...अब इन्हें शायद "जल निगम " में नौकरी मिल गयी है ...कुछ नया करते ही नहीं ...और जो करते हैं वो बताने की जरूरत नहीं है .
अनाथालय की caretaker सितारा का काम कहानी में अच्छा है .
हाँ तो अब बात इस भटकी हुई कहानी के भटके हुए मुख्य विलेन की ...जैसा हमने बताया की वू-डू का होना -ना होना एक बराबर था ..तो मुख्य विलेन कोई और है ...जिसकी बड़े ही आराम से Macho Man SCD से हार हो जाती है ....कहानी समाप्त
आर्टवर्क>>
बिलकुल नए आर्टिस्ट सुनील पासवान जी का आर्टवर्क है ....और inking भी मुख्यत: उनकी ही है ..सागर थापा जी ने काफी कम pages को इंक किया है!
आर्टवर्क के मामले में भी यह कॉमिक्स निहायत ही कमजोर साबित हुई है ...जिसे पूरी तरह से खारिज तो नहीं किया जा सकता ...लेकिन इसमें बहुत भारी कमियां हैं ...तो कुछ points पर अच्छाईयां भी हैं .
ध्रुव पूरी कॉमिक्स में खराब बना है ...पत्थर जैसी शक्ल और उसके भाव ,motions...उसके famous Hair style की बहुत भद्द पीटी गयी है ..और बॉडी को कई जगह ऐसा चपटा बनाया गया है ..जैसे कोई road roller ऊपर से गुजर गया हो ..जैसे -page- 12,16,22,36 आदि को देखा जा सकता है ....ध्रुव की ऐसी हालत दिल दुखाने वाली रही ...उसके action scenes..running scenes भी बहुत खराब बने हैं .
ध्रुव के चेहरे पर इतने ज्यादा experiments शायद ही कभी देखने को मिले हैं ....ऐसा लगता है पूरे bollywood aur cricket teams के लोगों के चेहरे हर नए frame में SCD पर आजमाए गए हैं .
Page-48>>Frame-1-Vivek Oberoi
Page-48>>Frame-4-Akshay Kumar
Page-51>>Frame-2-Reitesh Deshmukh
Page-55>>Frame-1-Mahela Jayawardena
भैया और नहीं लिखा जा रहा ...जिसे जो मिल जाए ..खोज लेना .
अब बाकी कॉमिक्स का आर्ट वर्क >>
हैलोविन के बच्चे ,वू-डू ,सितारा और बाकी सभी रोल्स ठीक ठाक बने हैं ..लेकिन वह भी हर पेज में अलग ही नज़र आते हैं ..तारीफ में कसीदे पढने लायक नहीं हैं .
एक और बात .... पूरी कहानी में ऐसा feel नहीं आया की वो राज नगर में सबकुछ हो रहा है ...राज नगर एक समुद्र किनारे बसी city है ....और इसमें Hallowin दिखाने के लिए बड़े बड़े Cross...छोटी पहाड़ियों के बीच wheat farms..और घर रुपी Huts ऐसे लगते हैं ...जैसे Mexico के किसी गाँव में कहानी चल रही है!
रंग(शादाब सिद्दीकी ) और शब्दांकन(मंदार गंगेले) जी का काम है..रंग-सज्जा में कुछ ज्यादा कहने लायक नहीं है..पुराने कामो की तुलना में यहाँ ज्यादा variety नहीं है!
...story+artwork के मामले में यह बहुत सतही ,कमजोर लेखन , बचकानी सी ,और साधारण से भी नीचे कही जा सकने वाली कॉमिक है ..अब क्यूंकि ध्रुव की कॉमिक्स है ...अपना collection 100% रखने के लिए लेनी पड़ेगी ..लेकिन मनोरंजन लायक material इसमें नहीं है ...2 बार पढके तीसरी बार शायद ही कोई पढना चाहे .
अंत में Specials को पढ़कर और आर्ट वर्क का जायका लेकर आप भी आँखें गीली कर सकते हैं ,लेकिन वो आंसू ख़ुशी के होंगे या गम के ..वो आपके ऊपर है .
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