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Wednesday, 31 December 2014

The Hangover Trilogy (2009-2013)

The Hangover Trilogy (2009-2013)
Rated-R (18+)
Genre- Comedy,Adventure,Thriller
Cast- Bradley Cooper,Ed Helms,Zach Galifianakis,Justin Bartha,Ken Jeong,Mike Tyson (cameo)
The Hangover (2009)
★★★★★★★★☆☆
इस तीन पार्ट की सीरीज की शुरुआत 2009 में The Hangover से होती है!
Doug Billings (Justin Bartha) की शादी होने वाली है! शादी से पहले बैचलर पार्टी करने के लिए वो अपने जिगरी दोस्तों Phil Wenneck (Bradley Cooper) जो एक स्कूल टीचर है, Stu Price (Ed Helms) एक डेंटिस्ट है...और अपनी मंगेतर के भाई और अपने साले Alan (Zach Galifianakis) जो है 40 साल का लेकिन दिमाग से बिलकुल बच्चा...को लेकर अपने होने वाले ससुर की विंटेज कार से Los Vegas के लिए रवाना होता है!
यह लोग होटल में चेक इन करते हैं....रात में होटल की छत पर दारु पीते हैं...और अगली सुबह जब उठते हैं..तो इन्हें पिछली रात क्या हुआ..यह याद नहीं होता! इनके कमरे में एक शेर बैठा है..सब तहस नहस है! और इनका दोस्त Doug Billings लापता है! इसके बाद अपने दोस्त को खोजने की इनकी भागमभाग कोशिशो में ऐसे-ऐसे किस्से होते हैं...जो ठहाके लगाने को मजबूर कर देते हैं!
अंत में Doug मिल जाता है...और किसी तरह से उसकी शादी पूरी होती है!
The Hangover II (2011)
★★★★★★☆☆☆☆
इस वाकये के 2 साल के बाद डेंटिस्ट Stu Price बैंकाक में शादी करने की तैयारी में हैं! इसलिए एक बार फिर चारो दोस्त एक साथ शादी के लिए रवाना होते हैं! वहां  Stu Price अपने साले Teddy को लेकर Phil और Alan के साथ रात में दारु पीते हैं...और एक बार फिर सुबह किसी अनजानी जगह पर उठते ही..किसी को कुछ याद नहीं रहता..कि पिछली रात क्या हुआ था! इस बार Teddy लापता हो जाता है! इस सबके बीच इनका एक chinese अपराधी दोस्त Chow भी कहानी में अहम् हिस्सा है..जिसकी तलाश पुलिस को है! दोबारा भागमभाग के अंत में Teddy मिल जाता है..और Stu Price की शादी संपन्न होती है!
The Hangover III (2013)
★★★★★☆☆☆☆☆
पहली दो फिल्में जहाँ कॉमेडी genre की थी...इसका यह तीसरा पार्ट क्राइम थ्रिलर बनाया गया है...जिसमे कॉमेडी लगभग गायब दिखती है! कहानी की शुरुआत उसी चीनी अपराधी से होती है..जो जेल ब्रेक करके फरार हो चुका है! इधर दिल के दौरे से Alan (Zach Galifianakis) के पिता की मौत  होती है...जिसके बाद सभी लोग Alan को रिहैबिलिटेशन सेंटर में  इलाज़ करवाने की सलाह देते हैं..ताकि वो नार्मल ज़िन्दगी जी सके! चारो दोस्त जब Arizona के rehab जा रहे होते हैं..तब एक गैंगस्टर "मार्शल" इनको पकड़ लेता है..और Chow का पता मालुम करने के लिए कहकर Doug को kidnap कर लेता है!
एक बार फिर से तीनो दोस्तों को Chow की खोज में निकलना पड़ता है..जिसमे Los Vegas की पुरानी यादें ताज़ा होती हैं!
अंतिम पार्ट इस कड़ी का सबसे कमजोर हिस्सा साबित होता है! लेकिन इसमें जहाँ मनोरंजन के पल कम हैं वहीँ किरदारों को मजबूती दी जाती है! Alan की ज़िन्दगी में सुधार आता है...उसकी शादी होती है...और चारो दोस्त सेटल हो जाते हैं!
यह तीन पार्ट दोस्तों के साथ देखने लायक हैं...कॉमेडी और मस्ती से भरपूर!

Sunday, 21 December 2014

Into The Storm (2014)


Into The Storm (2014)
Genre- Weather Disaster, Road Thriller
Link-

My Rating- ★★★★★★★☆☆☆
Into The Storm फिल्म मुख्यतः अमेरिका में हर साल आने वाले Tornedos पर केन्द्रित है....जिसके बारे में रिसर्च करने वाले एक दल को दिखाया गया है..जो आने वाले Tornedo पर फिल्म बना रहा है! लेकिन उनकी उम्मीद से ज्यादा भयंकर Tornedo आ जाते हैं जो इससे पहले नहीं आये और सबको जान बचाने के भी लाले पड़ जाते हैं!
इसके अलावा एक दूसरी कहानी चल रही है जिसमे...2 जवान लडको के पिता जो वैसे तो काफी सख्त हैं...लेकिन Tornedo में फंस गए अपने एक बेटे को बचने की कोशिश में किस तरह से परेशान हैं...कि अपनी जान की परवाह भी उन्हें नहीं होती..यह देखना सुखद लगता है! ऐसा ही हाल उनके मुसीबत में फंसे बेटे का है..जिसको अपने पिता साधारण परिस्थिति में ज्यादा पसंद नहीं थे...लेकिन मुश्किल हालात  में उनके करीब आ जाता है!
एक सीन में जब Tornedo ज़मीन पर लगी आग के संपर्क में आता है...और आसमान तक एक आग की लकीर बन जाती है...जिसमे एक व्यक्ति की मौत भी हो जाती है...वो इस तरह फिल्माया गया अभूतपूर्व दृश्य है!
ऐसा देखा गया है कि मानवीय संवेदनाएं किसी विपत्ति के सामने आने पर ही ज्यादा प्रबल हो जाती हैं! आपको दूसरो के साथ अपने रिश्ते अच्छे या बुरे जैसे भी हो..उनको स्वीकार करने के लिए सामने खड़ी  मौत तुरंत प्रेरणा दे देती है! ऐसा आपने 2012 मूवी में भी महसूस किया था! Into The Storm में भी इस चीज़ को ज्यादा करीब से दिखाने की कोशिश करी गई है!
फिल्म देखने की वज़ह है कि अपने Genre में यह एक अच्छी फिल्म है...जिसमे आप हमेशा सड़क पर मौजूद होकर तूफ़ान के वातावरण का आनंद लेते हुए महसूस करेंगे..कि प्रकृति कितना भयानक रूप ले सकती है! Tornedos के सभी दृश्यों में तकनीक और स्पेशल इफेक्ट्स का बहुत जबरदस्त प्रयोग किया गया है!
इससे पहले एक फिल्म आई थी 1996 में..जिसका नाम था Twister...वो भी इसी तरह की कहानी पर आधारित है...मौका मिले तो उसको भी जरूर देखिये!

Friday, 19 December 2014

See No Evil (2006) & See No Evil (2014)

See No Evil सीरीज
www.warriorsstrike.blogspot.com/2014/12/see-no-evil-2006-see-no-evil-2014.html
My Ratings-
See No Evil (2006) - ★★★★★☆☆☆☆☆
Link-
www.mp4moviez.in/site_see_no_evil_2_2014_full_movie_hd.xhtml
See No Evil 2  (2014)-★★★★★★☆☆☆☆
Link-
http://filmwapi.in/video/list/3151651?get-movie=MP4
See No Evil (2006) की शुरुआत एक पुलिस रेड से होती है..जिसमे एक पुलिस वाला Frank Williams फिल्म के मुख्य खलनायक  Jacob Goodnight (Kane) को उस वक़्त गोली मार देता है..जब वो एक लड़की को बचाने एक घर में घुसे थे!
इसके बाद कहानी 4 साल बाद आ जाती है! जिसमे 8 सजायाफ्ता कैदी (4 लड़के 4 लड़कियां) एक पुराने बंद पड़े होटल की सफाई में सार्वजनिक कार्य करके अपनी सजा को कुछ कम करने के लिए ले जाए जाते हैं! Frank Williams को इनकी निगरानी का ड्यूटी करनी है! इसके बाद कहानी यह है कि Jacob Goodnight जो कि इस होटल के नीचे भूलभुलैया जैसे  तहखानो में रहता है..वो सबको एक एक करके मारना शुरू कर देता है! उसका थोडा origin भी दिखाया जाता है!
Jacob का तरीका है...अपने शिकार की दोनों आँखें निकाल लेना और अपने Eye कलेक्शन को बढ़ाना! इसकी वज़ह है उसकी पागल माँ...जिसने बचपन से ही उसको यह सिखाया है कि Evil को ख़त्म करने के लिए उसको लोगों को मारना है..और उनकी आँखें निकाल लेनी है...क्यूंकि आँखों से ही इंसान के अन्दर गंदगी का प्रवेश होता है! अगर आँखें निकाल ली जाएँ..तो व्यक्ति के अन्दर की आत्मा शुद्ध हो जाती है! :P
इस खूनी खेल के अंत में सिर्फ 3 लोग बचते हैं! और Jacob Goodnight मारा जाता है!
See No Evil 2  (2014) में कहानी आ जाती है एक अस्पताल में जहाँ  Jacob Goodnight की लाश को लाया गया है! रात के वक़्त सिर्फ 2 डॉक्टर और 1 अपाहिज बॉस morgue में तैनात हैं! इत्तेफाक से एक डॉक्टर का जन्मदिन है..इसलिए उसके दोस्त surprise party के लिए Morgue में ही आ जाते हैं! इधर पार्टी हो रही है...और उधर अचानक से  Jacob Goodnight जिंदा हो जाता है!...सभी Exits को बंद करके वो एक एक करके सभी को कैसे मारता है..यही आगे की कहानी है!
Slasher Genre में कहानी एक जैसी सपाट ही रहती है! जिनमे किसी इंसानी ग्रुप के सभी मेम्बर एक एक करके मार दिए जाते हैं! दर्शक सिर्फ इन खूनों के होने का मज़ा लेते हैं....और कहानी में कौन बचेगा यह सोचते हुए अंत तक देखना पसंद करते हैं!
जिन लोगों की रूचि किसी ज़माने में WWF में रही है...वे Kane का नाम जरूर जानते होंगे! जो मशहूर पहलवान हैं! यह दोनों फिल्में उन्ही के लिए देखने लायक हैं! Jacob Goodnight के रोल में उनका विशालकाय शरीर और खूनी तेवर देखने लायक हैं!
इन दोनों कहानियों में Cold prey सीरीज की काफी हद तक समानता है! इसलिए जिन्होंने वो सीरीज नहीं देखी... इसको देखकर कमी पूरी कर सकते हैं!
2016 में इसका तीसरा भाग आने की घोषणा है!

Monday, 15 December 2014

As Above So Below (2014)

As Above So Below (2014)
Genre- Supernatural Horror
My Ratings- ★★★★☆☆☆☆☆☆
Plot- कहानी  Scarlett Marlowe नाम की एक लड़की की है..जो पुरातत्व और प्राचीन समय की चीज़ों,लिखित किताबो में मौजूद किवदंतियों के रहस्यों की खोज करती है! फिल्म की शुरुआत में यह ईरान की किसी गुफा में कुछ पत्थर पर लिखी लिपियों को खोजती है! फिर इस खोज को आगे बढ़ाते हुए पहुँच जाती है पेरिस! वहां उसको पता चलता है कि उसकी खोज ज़मीन के नीचे जाकर पूरी होगी! इसलिए वो एक गाइड Papillon और उसकी टीम को इस काम पर साथ चलने के लिए राज़ी कर लेती है! इनके अलावा Scarlett का  एक पुराना साथी  George और दोस्त Benji भी साथ हैं!
ज़मीन के नीचे जाने के लिए यह सभी चुनते हैं पेरिस के मशहूर Catacombs को! और जिन्होंने Catacombs (2007) फिल्म पहले देखी है..वो जानते हैं कि वो कितनी खतरनाक जगह है! फिल्म को Hand camera से शूट किया गया है! यानी हमेशा यही लगता रहता है कि आप फिल्म नहीं देख रहे..बल्कि खुद उसका एक हिस्सा हैं! इसलिए काफी हद तक फिल्म डराने में आपको कामयाब रहती है!
नीचे जाने के बाद जैसा कि होता है..अजीबो गरीब घटनाएं होने लगती हैं...जिसमे आत्माएं,चलती फिरती लाशें,और तमाम तरह के बंद सुरंगें और खून की नालियाँ दिखाकर डराने की कोशिश करी गई है! एक एक करके Scarlett के साथी मरते जाते हैं और सभी और नीचे Hell(नरक) तक पहुँच जाते  है! फिल्म की कहानी यहीं तक बढ़िया थी..इसके बाद फिल्म का अंत ऐसा दिखाया जाता है कि पूरी मेहनत बर्बाद हो गई है! :/
Hell के नीचे एक मेनहोल का ढक्कन हटाकर 3 बचे हुए लोग  पेरिस की सड़क पर वापस पहुंच जाते हैं!
मतलब लॉजिक का हलवा यह..कि यह लोग एक तरफ से घुसे और दूसरी तरफ से जाने कैसे उलटे होकर सीधे बाहर निकल आये! हमारी हंसी छूट गई! कुल मिलाकर यह फिल्म का दुखद अंत था! इस वज़ह से यह कई दर्शको को बोगस भी लगेगी!
हमारे नज़रिए में भी यह एक Below average फिल्म है! Under the earth कांसेप्ट horror पर इससे ज्यादा अच्छी फिल्में आ चुकी हैं!
हॉरर के मामले में हॉलीवुड हमेशा ही नए- नए एक्सपेरिमेंट करता रहता है! जिसकी वज़ह से इस तरह की फिल्मो में दर्शक रूचि लेते हैं!
अब तक लगभग हर तरह की कहानी बनाई जा चुकी है...तो नए के चक्कर में ऐसी फिल्में भी बनती रहती हैं!
As Above So Below एक उदाहरण है...कि कैसे एक अच्छे आईडिया को ठीक से निर्देशक संभाल नहीं पाए!

Sunday, 14 December 2014

Babe (1995)


Babe (1995)
My Ratings- ★★★★★★★★★★
Genre- Drama,Comedy
Link- http://hdmp4movies.youclip.mobi/info/141943.xhtml
Plot- कहानी एक छोटे से Piglet 'babe' की है! जिसको एक किसान Arthur Hoggett आधे मन से एक मेले में जीत जाता है! उसकी बीवी कहती है कि piglet क्रिसमस पर खाने के काम आएगा! इसलिए तब तक उसको मोटा ताज़ा करा जाए!
Hoggett के फार्म हाउस पर एक कुत्ते का जोड़ा,बतख,गाय वगैरह सभी पालतू जानवर हैं! इनके साथ babe के रिश्ते फिल्म में दर्शाए जाते हैं! क्यूंकि Babe एक सूअर है...इसलिए सभी उसको सिर्फ इतना मानते हैं कि बड़ा होने पर किसान का परिवार उसको खा लेगा! फिर भी कुतिया उसको प्रेम करती है और अपने बच्चे की तरह रखती है!
कहानी में Hoggett का मुख्य व्यवसाय भेड़ो की ऊन का है! इसके लिए उसके पास बहुत सारी भेड़े हैं..जिनकी रखवाली का काम उसके कुत्ते करते हैं!
कुतिया को अपनी माँ की तरह समझने वाला मासूम Piglet Babe भी धीरे धीरे इस काम में रूचि लेने लगता  है! और उसकी हिंसक की जगह प्यार से भेड़ो को संबोधित करके सारे काम करवा लेने वाली कला  से  Hoggett भी प्रभावित होता है! जिसके बाद वो निश्चय करता है कि हर साल होने वाली "भेड़ो के चरवाहे कुत्तो" की प्रतियोगिता में इस बार Babe को भेजेगा! थोड़ी मुश्किल के बाद अंत में Babe खुद को साबित करके दिखाता है,कि वो भी एक काम का प्राणी है!सभी कुत्तो से अधिक 100% अंक पाकर वो विजेता बनता है और Hoggett भी उसपर गर्व महसूस करता है!
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बच्चो के लिए यह फिल्म काफी शिक्षाप्रद और मनोरंजक  फिल्म है! सभी जानवरों के द्वारा कमाल की एक्टिंग करवाई गई है! एक छोटे से सूअर को मुख्य पात्र के रूप में देखना अलहदा अनुभव रहेगा!

Saturday, 13 December 2014

Terminator Film Series

Terminator सीरीज हॉलीवुड की सबसे सफल साइंस फिक्शन सीरीजो में से एक है! इसको बनाया था..हॉलीवुड के  टॉप डायरेक्टर्स में से एक जेम्स कैमरून ने! इस सीरीज की शुरुआत 1984 में अपने पहले पार्ट The Terminator (1984) से हुई!
कहानी Los Angeles से शुरू होती है जहाँ 2029 के भविष्य से एक  Terminator T-800 Model 101 (Arnold Schwarzenegger) 1984 में भेजा जाता है! इसका मकसद है एक लड़की Sarah Connor को मारना! Terminator अपने इस मकसद में कामयाब ना हो सके इसलिए उसी भविष्य से एक इंसानी प्रतिरोधी भेजा जाता है! जैसा कि अंत में हमेशा होता है...Sarah बच  जाती है और Terminator मारा जाता है!
इस मिशन की वज़ह यह थी कि निकट भविष्य में इंसानों द्वारा बनाये गए Skynet नाम के एक Artificial intelligence defense network के अन्दर खुद के लिए काम करने और दुनिया से इंसानों का सफाया करके मशीनों का राज़ बनाने की इच्छा जाग जाती है! इसलिए वो एक ख़ास दिन पूरी दुनिया में नाभिकीय युद्ध के द्वारा इंसानी आबादी को नष्ट कर देता है! इस दिन को Judgement Day कहा गया है! नाभिकीय हमले के बाद बचे खुचे इंसानों का प्रतिनिधित्व John Conner नाम का शख्स करता है! वो  Skynet को तबाह करने में काफी कामयाब होता है! इसलिए Skynet भूतकाल में John की माँ   Sarah Connor को मरवाने  की चाल चलता है..ताकि John को भविष्य में पैदा होने से रोका जा सके! खैर उसकी चाल पूरी नहीं हो पाती! इसलिए कहानी बढती है सीरीज की दूसरी फिल्म  Terminator 2: Judgment Day (1990) में!
इसमें एक बार फिर से एक दूसरा ज्यादा advanced  Terminator (T-1000) भविष्य से वर्तमान में भेजा जाता है, 10 साल के हो चुके John Conner को मारने के लिए!
क्यूंकि पहली बार की तुलना में Terminator ज्यादा शक्तिशाली है! इसलिए इंसान उसका मुकाबला करने के लिए किसी इंसान को नहीं बल्कि पुराने मॉडल के उसी टर्मिनेटर को Re-program करके भेजते हैं..T-800 Model 101 (Arnold Schwarzenegger)! यानी जो पहली मूवी में विलेन था..इसमें हीरो बन  जाता है!
John को बचाने के अपने मकसद के अलावा एक और काम पूरा करता है...वो है वर्तमान में उस वैज्ञानिक से Skynet को बनाने की शुरूआती तकनीक को ख़त्म करवाना...जो आगे जाकर परेशानी बन गई थी....सभी कामो में कामयाबी पाने के बाद Arnold भी अपना बलिदान दे देता है!
इसके बाद कहानी 2004 में आ जाती है सीरीज की तीसरी फिल्म Terminator 3: Rise of the Machines में!
पहले Judgment Day के बारे में माना गया था की यह 1997 में होगा...पर जब ऐसा नहीं हुआ तब John Conner छुपकर अपनी ज़िन्दगी बिताने लगा! मगर भविष्य में मौजूद Skynet ने अपने पहले के 2 हमलो से सबक लेते हुए इस बार John Conner को वर्तमान में खोज नहीं पाता...इसलिए वो उसके सभी साथियों को खत्म करने के लिए इस बार भविष्य से भेजता है एक लेडी Terminator T-X ! जैसा हमेशा होता आया है...भविष्य से इसको रोकने दोबारा आ जाता है Arnold का Cyborg!
तमाम  मुश्किलों के बाद यह रहस्य खुलता है कि यह सब Judgment Day की तबाही से वर्तमान के John Conner को बचाने के लिए किया गया है! जिसको धमाके के समय एक सुरक्षित बंकर में पहुँचाने की ज़िम्मेदारी Arnold की थी!
सीरीज का तीसरा भाग समाप्त होते ही यह तय हो जाता है! कि Skynet अपनी 3 कोशिशो के बाद भी वर्तमान को बदल नहीं पाता है!
2009 में इस सीरीज की चौथा भाग आता है-Terminator Salvation!
यह भाग John Conner के Skynet से भविष्य में हो रहे युद्ध पर केन्द्रित किया गया है! John Conner का रोल सबके चहेते सितारे Christian Bale निभाते हैं! और इस सीरीज में पहली दफा  Arnold Schwarzenegger फिल्म में नामौजूद हैं!
Arnold की जगह cyborg के किरदार में Marcus Wright (Sam Worthington) फिल्म में नज़र आते हैं! जिनको Avtaar फिल्म से सभी पहचानते हैं!
फिल्म की कहानी Skynet के मुख्य अड्डे पर पहुंचकर उसको तबाह करने के John Conner के मिशन की है..जिसमे Marcus Wright उसकी मदद करता है! फिर भी अंत में लड़ाई अधूरी रह जाती है...जिसको आगे दिखाया जाएगा इसके 5th भाग Terminator Genisys में..जो 2015 में आने की सम्भावना है! ख़ुशी की बात यह है कि इसमें एक बाद फिर से Arnold Schwarzenegger T-800 मॉडल के Terminator के रूप में वापसी करेंगे! लेकिन Christian Bale इसका हिस्सा नहीं होंगे!
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Terminator सीरीज Sci-Fi और एक्शन का मिलाजुला रूप है! सभी पार्ट्स की कहानियां बहुत सरल हैं! Arnold की वज़ह से यह सभी बहुत रोमांचक और हैरतंगेज़ एक्शन का एहसास कराती हैं!

Monday, 8 December 2014

Memento (2000)

Memento(2000)
Director- Christopher Nolan
Genre- Psychological Crime Thriller
Link- http://moviesmobile.net/hollywood-mobile-movies/memento/
My Ratings- ★★★★★★★★☆☆
Plot- Leonard Shelby (Guy Pearce) एक मोटेल रूम में रुका है! इसको तलाश है किसी John G नाम के आदमी की...जिसने इसकी बीवी का रेप और क़त्ल किया था! Leonard को Anterograde amnesia नाम का डिसऑर्डर है..जिसकी वज़ह से वो नयी घटनाएं याद नहीं रख पाता! इसलिए वो अपने शरीर पर जरूरी बातें  लिख लेता है...और जिससे भी मिलता है उसकी फोटो क्लिक करके याद रखता है! John G को खोजने की अपनी कोशिशो में कैसे वो कामयाब होता है..इसकी एक बहुत घुमावदार कहानी बनाई गयी है! जिसकी वज़ह से फिल्म 2 sequence में चलती है! एक B/W और दूसरी Colored जिसमे घटनाओं को आगे पीछे करके दिखाया जाता है! अगर आपने 5 मिनट भी कहानी को दिमाग से दूर होने दिया तो भटक जाते हैं! Christopher Nolan की हर मूवी में जो एडिटिंग का ख़ास हिस्सा मौजूद होता है! वही इस फिल्म को भी अलग बनाता है!
गजिनी इसी फिल्म से inspired होकर बनाई गयी थी! जिसमे प्यार और नाच गाने के एंगल डालकर मसाला फिल्म बनी!
Memento में कोई मसाला नहीं है..बिलकुल सीधी और मुद्दे पर ही आधारित रहती है! उन दर्शको के लिए यह फिल्म अच्छी है जिन्हें दिमाग से फिल्म देखना पसंद है! मनोरंजन के लिए यह फिल्म नहीं है! उस स्तर के हिसाब से गजिनी ज्यादा बेहतर है!

Friday, 5 December 2014

Hachi: A Dog's Tale or Hachiko A Dog's Story (2009)



Hachiko A Dog's Story (2009)
www.youtube.com/watch?v=cSkgXhHbCSw
My Ratings- ★★★★★★★★★☆
Cast- Richard Gere
Genre- Animal,Biopic,Drama
Plot- यह जापान में घटी एक सत्य घटना पर आधारित फिल्म है!
फ़िल्मी रूपांतरण में  Hachiko और उसके मालिक प्रोफेसर Parker Wilson के बीच प्रेम मयी रिश्ते को दिखाया गया  है! जिसमे एक छोटा सा पिल्ला Parker को ट्रेन स्टेशन पर मिलता है! पत्नी के शुरू में खिलाफत के बाद आखिर मान जाने पर वो  Hachiko को अपना लेते हैं!
हर दिन Hachiko अपने मालिक के साथ स्टेशन तक ट्रेन तक छोड़ने जाता है..और उनके वापस ट्रेन से स्टेशन पर आने पर उनको वहीँ मिलता है! यही रोज का रूटीन है! क्यूंकि छोटा सा शहर है..तो इनके इस रिश्ते को दूसरे लोग जिनमे स्टेशन मास्टर,एक hotdog विक्रेता, दुकानदार सभी जानते हैं! सभी के साथ Parker के बहुत अच्छे रिश्ते हैं!
एक दिन जब अपने मालिक के काम पर जाते हुए Hachiko को कुछ अनिष्ट की आशंका होती है! वो उसको रोकने की कोशिश करता है! लेकिन सफल नहीं होता! Parker की क्लास में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो जाती है! और वो शाम को स्टेशन पर नहीं आता...जहाँ Hachiko उसका इंतज़ार कर रहा है!
Parker का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है..लेकिन Hachiko को इसका  मालुम नहीं चलता! जिस वज़ह से वो गुमसुम रहने लगता है! उसकी हालत को देखते हुए Parker की बेटी उसको आज़ाद कर देती है! जिसके बाद Hachiko  10 साल तक स्टेशन पर बैठकर Parker के वापस आने का इंतज़ार करता रहता है और एक दिन parker की कब्र पर फूल चढाने शहर आई...उसकी पत्नी बूढ़े हो चुके इंतज़ार करते Hachiko को देखती है...और कहानी का अंत होता है!
कुत्ते और इंसान के बीच बहुत ही संवेदनशील कहानी दिखाई गयी है! जिसको देखकर आँखें भर आती हैं! इस फिल्म को देखकर मालुम चलता है..कि जीवन का मर्म इन्ही कुछ बातों में है..जहाँ जीवन बिताने के लिए प्रेम और समर्पण की जरूरत सबसे अधिक है!
मानवीय पक्ष में फिल्म बेहतरीन है! लेकिन इसको कम से कम 20 मिनट छोटा रखा जा सकता था! जिसमे कई गैर जरूरी सीन काटे जाते...जिनका कहानी से ज्यादा लेना देना नहीं था! आधी कहानी तक यह फिल्म आम फिल्मो जैसी ही थी! दूसरा भाग आने पर ही कहानी मुख्य मुद्दे पर केन्द्रित होती है! इस वज़ह से इसका एक अंक कम करना पड़ा! लेकिन ऐसी उद्देश्यपरक  फिल्म को अपने कलेक्शन में रखना गर्व की बात है!

फिल्म के अंत में बताया  जाता है कि 1923 में टोक्यो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर eisaburo Ueno के Akita Inu नस्ल के कुत्ते Hachiko ने उनके मरने के 9 साल बाद तक उनके वापस आने के इंतज़ार में  हर दिन Shibuya नाम की जगह के ट्रेन स्टेशन पर इंतज़ार करते  हुए 1934 में आखिरी सांस ली! इस घटना की याद में आज भी Hachiko की एक कांसे की प्रतिमा स्टेशन के बाहर उसी जगह बनाई गई है..जहाँ Hachiko रोज इंतज़ार करता था! यह जानकारी पाकर बहुत ज्यादा ख़ुशी महसूस हुई!

Hachiko की प्रतिमा >


Thursday, 4 December 2014

Vertical Limit (2000)

Vertical Limit (2000)
Genre- Weather Disaster
Link- http://movievilla.in/site_vertical_limit_hindi_hd_avi.xhtml
My Ratings-  ★★★★★★★☆☆☆
Plot- कहानी की शुरुआत न्यूज़ीलैंड में एक पहाड़ चढ़ते हुई  दुर्घटना से होती है...जिसमे Peter (O'Donnell) उसकी बहन  Annie Garrett (Tunney) अपने पिता को खो देते हैं!
इसके बाद कहानी कुछ साल बाद पाकिस्तान (POK) में आ जाती है..जहाँ पर्वतारोही दल जमा हैं...उनका मकसद है दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे पहाड़ K2 पर फतह हासिल करना!
मौसम के ख़राब होने की एक बूढ़े Wick द्वारा की चेतावनी को नज़रंदाज़ करते हुए Annie,Elliot Vaughn,Tom McLaren और इनके कुछ साथी K2 पर Avalanche का शिकार हो जाते हैं! और एक गहरे दर्रे में जा गिरते हैं..जो ऊपर से बर्फ से बंद हो जाता है...अब इनके पास 36 घंटे हैं..जिंदा रहने के लिए..जिसके बाद यह मर जायेंगे!
walky-talky से संपर्क द्वारा नीचे बेस कैंप में बैठे  Peter और बाकी लोग 6 लोगों का बचाव दल बनाते हैं..जिसमे पाकिस्तानी आर्मी द्वारा उन्हें  nitroglycerin बम के घटिया कनस्तर बिना जरूरी हिदायत के देकर भेज दिया जाता है! बाद में nitroglycerin रखे आर्मी का कैंप नीचे उड़ जाता है और 2 बम ऊपर रास्ते में टीम को ले उड़ते हैं! मुश्किल हालात में एक समय तो बचाव दल को खुद ही बचाव की जरूरत महसूस होने लगती है! :v
लेकिन इन्हें उसी पुराने बूढ़े Wick का साथ मिलता है..जिसकी अपनी एक कहानी है! खैर अंत में Peter अपनी बहन Annie को बचा लेता है! लेकिन इसमें कई लोगों की क़ुरबानी चढ़ जाती है!
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इस तरह की एडवेंचर फिल्में जिन्हें पसंद हैं उनके लिए यह एक बेहतरीन फिल्म है...जिसमे हर सीन में  रोमांचक चढ़ाई में आने वाली मुश्किलें कूट-कूट कर डाली गई हैं! इसको देखने का यही सही समय भी है!

Thursday, 27 November 2014

Review : Happy New Year (2014)

warriorsstrike.blogspot.in/2014/11/review-happy-new-year-2014.html
हैप्पी न्यू ईयर देखी!
कहानी सबको पता है! उसको बताने का तुक नहीं बनता! हम यह बताते हैं कि हमें कैसा फील हो रहा था!
2 महीने पहले Ocean's Trilogy के बारे में यहाँ लिखा था..और यह आधी से ज्यादा फिल्म उसके थीम पर ही बनाई गई है! अब कहने वाले कह सकते हैं..कि दोनों में कोई जुड़ाव नहीं है..पर यह सिर्फ दिल को तसल्ली देने वाली बात है! अगर आपने "हैप्पी एंडिंग" फिल्म में गोविंदा के रोल को देखा है..तो आप आसानी से समझ जायेंगे कि बॉलीवुड में कॉपी कैसे करी जाती है..और किस दर्शको के लिए वो कॉपी भी अपनाने लायक बनाई जाती है!
वैसे हमें inspiration लेने से कभी आपत्ति नहीं होती...पर अगर ली है तो मान भी लेना चाहिए! अब सारी दुनिया जानती है कि कॉपी है..और नक़ल करने वाला चिल्लाता रहे कि original आईडिया है..तो यह बेवकूफाना हरकत कही जायेगी!

खैर हैप्पी न्यू ईयर को सिर्फ भारतीय रंग देने के लिए नाच गाना...और बाप की मौत का बदला जैसी 2 ऐसी पुरानी बातें जोड़ दी गई..जो बॉलीवुड फिल्म की पहचान होती हैं!
अब बात आती है Entertainment की...तो इतनी भव्य फिल्म बनाना और उसमे आधे से ज्यादा डायलॉग्स पुरानी फिल्मो से उठाकर रख देना...बहुत घटिया हरकत थी!
भाई आप कहानी चुरा रहे हैं...तो कम से कम संवादों पर तो original काम होना चाहिए था! वो भी चलताऊ समझ कर किया गया! निर्देशिका को यह लगा होगा कि लोगों को बहुत हंसी आएगी...पर सिर् दर्द कर दिया संवादों ने!
2 ही गाने याद रहे...एक "लवली" दूसरा "हम इंडिया वाले"

अभिषेक बच्चन के किरदार में हमें कोई ख़ास बात नहीं लगी..फिल्म में जगह जगह उल्टी करना,अजीब से हाथ पैर चलने वाले डांस और नाटक को जाने क्यूँ लोग इतना बढ़ा चढ़ाकर बताते जा रहे थे..जैसे कि यह अभिषेक का बेस्ट रोल हो!
उससे बेहतर तो सोनू सूद लगे..जो कम से कम अपने किरदार के मुताबिक रहे!
बोमन ईरानी average थे..और दीपिका पादुकोण ने खुद को रिपीट ही किया है...अपनी पिछली फिल्मो की तरह!

असल में दोष फराह खान जैसो का नहीं है...यह लोग सिनेमा को सिर्फ पैसा कमाने की चीज़ मानकर फिल्म बनाते हैं! लेकिन शाहरुख़ खान जैसे बड़े अभिनेताओं को अपनी तरफ से ऐसी बातों का ध्यान रखना चाहिए..क्यूंकि यह गलत चीज़ों को सही करवा सकते हैं!
अगर फिल्म पर मेहनत करी जाती तो सच में चाहे यह inspired होती...इसकी तारीफ होती!

जया बच्चन जी ने जो इस फिल्म के बारे में कहा था..वही सही बात है! और इस फिल्म पर उनसे ज्यादा सटीक टिप्पणी और कोई नहीं कर सकता!

फिल्म बनाने वाले तब तक अपनी अक्ल लगाकर काम नहीं करेंगे जब तक जनता ऐसी फिल्मो के जाल से बाहर नहीं आएगी! हाँ एक बात सही है कि लोग 3 घंटे मनोरंजन करने के लिए सिनेमा हाल में जाते हैं...पर यह बात किसी भी बुरे सिनेमा को अच्छा साबित नहीं कर सकती! हाँ यह कहा जा सकता है कि 3 घंटे और 300 रुपये में आप किसी चिड़ियाघर में जानवरों को देखते बिताते हुए  उनको खाना खिला देते..उसमे भी आपका 100% मनोरंजन हो जाता! कम से कम वहां से बाहर आकर आपको नकली ख़ुशी,तारीफ और झूठ बोलने की जरूरत नहीं पड़ती! क्यूंकि इस फिल्म ने भी करोडो कमाए हैं तो इसकी ख़ुशी में फराह खान आगे भी ऐसी फिल्में बनाती रहेगी जिनका इंतज़ार नहीं रहेगा!

My Ratings : ★★★☆☆☆☆☆☆☆

Friday, 21 November 2014

6-5=2 (2014) Hindi Review

6-5=2 (2014) Hindi Review

Genre- (Found Footage) Supernatural Horror
My Ratings - ★★★★★★★☆☆☆
Link-http://63download.blogspot.in/2014/11/download-6-52-hindi-bollywood-movies.html
Plot-
23 अक्टूबर 2010 को
4 लड़के हैं- सिद्धार्थ ,हर्ष लुल्ला,भानु जयराज,राजा
2 लड़कियां सुहाना और प्रिया  ट्रैकिंग के लिए ------ के जंगलों में जाते हैं! लेकिन वापस सिर्फ राजा आ पाया!
इसके 9 दिनों के बाद रेस्क्यू टीम को सिद्धार्थ का HD कैमरा जंगल में मिलता है! जिसको फिल्म की तरह दिखाया गया है!
जंगल में शुरूआती 2 दिनों के वक़्त में इनके बीच आम दोस्तों की तरह की अच्छे खासे हंसी मजाक से भरे पल दर्शाए गए हैं..जिनमे सभी ने प्रकृति के मनोरम दृश्यों का मज़ा लिया है! हर्ष लुल्ला इनमे सबसे ज्यादा बातूनी बंदा है..जो शरीर से भारी भरकम भी है! उसकी वज़ह से सभी का मन लगा रहता है! सभी अपने बारे में  बातें करते हुए चलते जाते हैं... इस ट्रैकिंग जर्नी में ऐसा तय होता है कि एक पहाड़ी के टॉप पर पहुंचकर वापस स्टार्टिंग पॉइंट पर आ जायेंगे!
तीसरा दिन - दिन भर के थके सफ़र के बाद रात में जब यह लोग एक जगह रुकना तय करते हैं..तब कुछ अजीब सी चीज़ें होती हैं..आवाजें और एक पेड़ पर टंगी हुई अनगिनत कंकाल खोपड़ियाँ और वू डू गुड़ियाँ!
चौथा दिन- राजा को बुखार होता है..तो बाकी 5 लोग आगे का सफ़र उसके बिना करने का तय करते हैं! राजा वहीँ पर रुक जाता है! आखिरकार पहाड़ी के टॉप पर यह लोग पहुँच जाते हैं..लेकिन वहां अचानक से सिद्धार्थ के बैग में लगी आग की वज़ह से इनका सारा खाना जल जाता है! कई अजीबोगरीब बातें होती हैं! जिनकी वज़ह से यह लोग डर भी जाते हैं..और वापसी का रास्ता भी भटक जाते हैं!
पांचवा और अंतिम दिन- दिन भर चक्कर काटने पर भी इन्हें सही रास्ते का कुछ पता नहीं चलता! और रात होते ही सबका काम तमाम!
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इस फिल्म को क्यूंकि हैण्ड कैमरा से शूट किया गया है..इसलिए हर वक़्त इमेज इधर हिली..उधर हिली..कहीं से भी सीन शुरू कहीं पर ही ख़त्म वाला मामला है! पर अच्छी एडिटिंग की वज़ह से यह अंत में perfect देखने लायक material कही जा सकती है!
जैसा कि इसमें पेड़ पर लटकी मुण्डियाँ और डॉल्स हैं..यह फिल्म "ब्लेयर विच प्रोजेक्ट" से inspired जरूर है! जैसा कि इसके निर्देशक भी मानते हैं! इसलिए यह मुद्दा ख़त्म है!
हम यह जरूर कहेंगे..क्यूंकि इस फिल्म में होने वाले हादसों और घटनाओं का कोई पुराना explanation देना जरूरी नहीं था..इसलिए कंकाल टांगने वाले पेड़ के दृश्य  अगर ना होते..या कुछ और आईडिया डाला जाता तो यह फिल्म उनके लिए ज्यादा बेहतर कही जाती जिन्होंने "ब्लेयर विच प्रोजेक्ट" देखी हुई है!
बहरहाल अपनी Unique Genre में यह इंडियन फीलिंग के हिसाब से एक बढ़िया फिल्म बनाई गई है! 6 दोस्तों के बीच जिस तरह से शुरू में ख़ुशी और अंत में खौफ का वातावरण बन जाता है...वो युवाओं को बहुत पसंद आएगा!
ऐसी फिल्में बहुत जरूरी सन्देश भी देती हैं..कि किस तरह दुनिया भर में लोग सैर सपाटे के जरूरी नियम और कायदे के साथ सावधानी बरतें..तो उनके साथ हादसे ना हो!
सभी एक्टर्स में नेचुरल एक्टिंग करी है! खासकर हर्ष लुल्ला का किरदार आपको हमेशा याद रहेगा!
भारत में हॉरर movies बहुत कम बनती हैं! इस फिल्म ने बहुत कम समय में काफी नाम कमाया है! और काफी हद्द तक यह उस नाम के लायक है!
अंत में 6-5=2 documentry की तरह ना देखें!
फिल्म को आप अगर ऐसे देखें जैसे खुद उसके अन्दर शामिल हो..तो आपको देखने में बहुत आनंद मिलेगा!

Thursday, 20 November 2014

Kill Dill (2014) Review

Kill Dill (2014) Review
Genre- Romance/ Crime Thriller
Cast- Ranveer Singh,Ali Zafar,Parineeti Chopra & Govinda
My Ratings - ★★★★★★☆☆☆☆
Plot- कहानी 2 अनाथ लडको की है- देव (रनवीर) और  टुट्टू (अली) जिन्हें एक गैंगस्टर भैयाजी (गोविंदा) ने पाला है! अब यह दोनों उसके हेड शूटर्स हैं..यानी सुपारी किलर्स! एक दिन देव को मिलती है दिशा(परिणीती) जिसके प्यार में वो भैयाजी को छोड़ने का मन बना लेता है! भैयाजी नहीं मानते और कहते हैं..या तो मेरे साथ दारु ले  या भगवान् के साथ गंगाजल! देव अधर में लटक जाता है! तब टुट्टू देव से कहता है कि वो दिशा के साथ भी अपनी ज़िन्दगी जीता रहे..और भैयाजी के साथ भी रहने का नाटक करता चले! देव एक बीमा एजेंट की नौकरी करते हुए सब सही रखने में लगा है! लेकिन कब तक?
भैयाजी को एक दिन पता चल जाता है..वो देव को वापस लाने के चक्कर में कुछ ऐसी गलती कर देते हैं..कि अंत में खुद ही अपने दुश्मनों के हाथो टपका दिए जाते हैं!
देव के रास्ते का काँटा जब हट चुका है..तो टुट्टू भी बीमा एजेंट बनकर सच्चाई के रास्ते पर चल पड़ते हैं!
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कहानी में नया कुछ नहीं है! एक गैंगस्टर जिसने 2 बच्चे पाले...बड़े होकर वो उसके दायें-बायें हाथ बनते हैं..फिर उनको प्यार होता है..जिससे उन्हें अच्छाई का कीड़ा काट लेता है! यह कहानियां तो अमिताभ बच्चन के जमाने से हर दूसरी अंडरवर्ल्ड मूवी में होती है! यहाँ भी वही है!
कहानी पर पहला आधा भाग बहुत धीमा और उबाऊ है! वज़ह- यह हज़ारो फिल्मो में देखा जा चुका है! कॉमेडी के लिए यह फिल्म नहीं बनाई गई है..जैसा लग रहा था!
कहानी में थोडा मज़ा दूसरे भाग से आता है..जब देव नौकरी की तलाश में निकलता है!
फिल्म में देखने लायक सिर्फ देव और टुट्टू की दोस्ती है! और इनके किरदारों को समझने में मिलने वाली प्रेरणा है!
देव मासूम है..पर काम का पक्का है..क़त्ल करते हुए एकदम ठंडा रहता है!..पर उसके दिल में गरीबो के लिए प्यार है! जब उसको मौका मिलता है कि बुराई छोड़ सके तो वो पूरी कोशिश करता है! उसकी वज़ह से ही टुट्टू भी सही रास्ते पर आ जाता है! रनवीर हमेशा की तरह इस बार भी नेचुरल एक्ट करने में सफल रहे! खासकर उनका क्लीन शेव लुक काफी हटकर नज़र आता है!
टुट्टू थोडा कठोर है...पर 2 की जोड़ी में हमेशा एक बंदा ऐसा ही मिलता है! अली ज़फर ने उम्दा काम किया है! असल में जब अली के पास ना कोई हीरोइन ना कोई Solo गाने थे..वो तब भी कहानी में अपनी छाप छोड़ जाते है!
परिणीती का कहानी में ख़ास हिस्सा नहीं है..जगह भरने तक सीमित किरदार में वो अपने पुराने चुलबुल रूप में ही इसमें नज़र आएँगी!
गोविंदा... सच कहा जाए तो उन्हें अपराधी के रूप में देखना वो भी अंत में मारे जाने वाले अपराधी की तरह तो शिकारी जैसी फिल्म में पहले भी अच्छे नहीं लगते थे..आज भी नहीं लगते! फिर या तो पूरी तरह से उन्हें गंभीर किरदार में रखा जाए..अब वो हंस भी रहे हैं..नाच भी रहे हैं..गाने भी गाते हैं..लेकिन प्यार के सख्त खिलाफ हैं...अब बताइए...देव और टुट्टू द्वारा उनका काम भी ईमानदारीपूर्वक हो रहा है..फिर भी इन्हें बैठे हुए चुलबाजी मचती है कि आखिर देव को प्यार हुआ कैसे?
भैयाजी के रूप में गोविंदा को देखना उतना सुखद हमें नहीं लगा...वज़ह यह कि यशराज वालो ने कुछ साल पहले टशन फिल्म में अनिल कपूर को बिलकुल ऐसा ही रोल पकडाया था! उनकी लुटिया डूब गयी थी! जबकि वो एक्शन हीरो रहे हैं! यहाँ तो अपने चीची भैया थे..जिनकी इमेज हंसाने वाली रही है..ना कि खून खराबा करने की!अब अगर कोई कहे कि वो करियर के इस मोड़ पर कुछ हटके करने के चक्कर में ऐसे रोल कर रहे हैं तो भगवान् जानता है..उन्हें बेस्ट विलेन का अवार्ड मिलने से रहा!
फिल्म में उनका रोल मुश्किल से 20-22 मिनट का होगा! बेचारे अंत में मरने से पहले एक्शन तक नहीं कर सके!
डायरेक्टर फिल्म को शुरू में काट छांटकर करके कुछ छोटा रखते...और गोविंदा का रोल बढ़ाकर  अंत में उन्हें भी सही रास्ते पर ले आने का ट्रैक डालते तो शायद कहानी कुछ अच्छी लगती! कहानी का अंत कुछ ऐसा लगता है जैसे भैयाजी की लाश पर देव और टुट्टू अपनी ज़िन्दगी सुधारते हैं! क्यूंकि भैयाजी जब मरने वाले होते हैं तो उन्हें देव और टुट्टू की सहायता भी नसीब नहीं होती! जबकि मुसीबत उन्ही दोनों की वज़ह से आई थी!
संगीत में अपने Title Track KKK किल दिल के अलावा सभी अजीबोगरीब Lyrics वाले चलताऊ गाने हैं!
खैर फिल्म जैसी है आपके सामने है! हमारे विचार में इसको 1 time watch की संज्ञा दी जा सकती है!

Wednesday, 19 November 2014

Jack the Giant Slayer(2013) Review

Jack the Giant Slayer(2013)
My Ratings : ★★★★★★☆☆☆☆
Star- Nicholas Hoult
Genre- Adventure,Fantasy
Link : http://filmwapi.in/video/list/281657?hollywood-hindi-dubbed-movie-Jack%20the%20Giant%20Slayer%20%282013%29%20Hindi%20[BRRip]
Plot- राजा-महाराजो के कालखंड की यह फिल्म English fairy tales "Jack the Giant Killer" का फ़िल्मी रूपांतरण है! जिसके अनुसार प्राचीन काल में राजा Erik ने धरती और स्वर्ग के बीच रहने वाले ऐसे महाकाय 50 फुट ऊंचे राक्षसों को एक ताज की वज़ह से हरा दिया था..जो ज़मीन पर कुछ special बीजो से उगे एक महावृक्ष से धरती पर आ गए थे!
Cloister साम्राज्य में यह कहानी फिल्म के हीरो Jack और फ़िल्म की हीरोइन राजकुमारी isabelle बचपन से सुनते आ रहे हैं! सही है या गलत उन्हें भी नहीं मालूम!
10 साल के बाद जवान हो चुका Jack एक दिन शहर में अपने घोडा बेचकर कुछ पैसे कमाने निकलता है! इधर एक पादरी उन्ही special बीजो को महल से चुराकर Jack को देकर उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के लिए कहता है! परिस्थितीवश कुछ ऐसा होता है कि उन बीजो से एक महावृक्ष बनता है जिसमे राजकुमारी isabelle ऊपर राक्षसों के साम्राज्य में पहुँच बंधक जाती है! उसकी खोज में फिर राजा Brahmwell अपने विश्वासपात्र मंत्री Roderick कुछ सिपाही और Jack को ऊपर भेजता है!
Roderick एक धूर्त है..वो अपने साथियों को धोखा देकर राक्षसों की सेना के साथ पृथ्वी पर हुकूमत करने का सपना पाले हुए है! लेकिन सेनापति Elmont उसके प्लान की धज्जियाँ उड़ा देता है..और राजकुमारी को Jack के साथ सकुशल नीचे ले आता है तथा महावृक्ष को काट दिया जाता है!
लेकिन बदकिस्मती से राक्षसों के हाथ Roderick की लाश से उन्ही special बीजो की पोटली लग जाती है...वो महावृक्ष के निर्माण करके नीचे धरती पर उतरकर उत्पात मचाते हैं! अंत में Jack अपनी  कुशलता और चालाकी से  राक्षसों को हराकर वापस भेजता है! राजा Brahmwell उसकी बहादुरी का ईनाम राजकुमारी का हाथ उसको सौंपकर देते हैं!
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Jack के किरदार में Nicholas Hoult हैं...जिन्हें X-Men: First Class में सभी ने Hank McCoy के रोल में पसंद किया था! उनका काम अच्छा है!
कहानी तो वैसे औसत ही कही जायेगी...ज्यादा घुमावदार plot नहीं मिलेगा...जिसमे हीरो का हीरोइन को बचाने का एक छोटा सा मिशन है! पर अपने स्पेशल इफेक्ट्स के कारण यह फिल्म देखने योग्य लगती है! भीमकाय राक्षसों को देखकर रोमांच होता है! अगर आप प्राचीन वेशभूषा और कहानियों के प्रेमी हैं तो इसको मज़ा ले सकते हैं!

Tuesday, 18 November 2014

WARM BODIES (2013) Review

Warm Bodies (2013)(English) based on Isaac Marion's novel of the same name.
Genre- Zombie,Romance
Ratings : ★★★★★★★★☆☆
Link : http://mp4mobilemovies.net/showmovie.php?id=3035
Plot- Plague Apocalypse के गुजरने के कई सालो के बाद दुनिया  Zombies और Humans में बंट चुकी है! ऐसे बंटे हुए माहौल में एक airport को दिखाया जाता है..जहाँ पर Zombies रहते हैं! इनमे एक युवा zombie है "R" जो कुछ हद तक इंसानों के words बोल लेता है और अति हिंसक नहीं है!
एक दिन R अपने साथियों के साथ इंसानी आबादी में चला जाता है..जहां इनके शिकार कुछ युवा हो  जाते हैं..लेकिन R का दिल Julie नाम की एक लड़की पर तब आ आता है..जब वो Julie के बॉयफ्रेंड Perry का दिमाग खा लेता है! जिसकी वज़ह से Perry की सभी संवेदनाएं R के अन्दर आ जाती है! R julie को अपने साथ Airport ले आता है! कुछ दिन साथ रहते हुए इनके बीच दोस्ती का रिश्ता पनपता है! जो बाद में प्यार में बदल जाता है!
लेकिन R के यह बताने पर की उसी ने Perry को मारा था...Julie वापस इंसानों के बीच चली जाती है!
इधर Zombies के अन्दर परिवर्तन शुरू हो जाते हैं..जिसकी वज़ह से उनमे Emotion,Dreaming और वापस इंसानी लक्षण पैदा होने लगते हैं! मगर यह बदलाव उन Skeleton Zombies को मंजूर नहीं जो बिना हाड-मांस वाले corpse हैं! और अब तक इनके साथ ही रहते आये हैं!
R Zombies में हुए बदलावों को इंसानों को बताने का निश्चय करता है..ताकि उन्हें ठीक किया जा सके! और इसके लिए वो Julie के पास जाता है! शुरू में इंसानों को भरोसा नहीं होता..पर जब  Skeleton Zombies इंसानों पर हमला करते हैं..और R के साथी इंसानों की तरफ से मदद करते हैं तो चीज़ें सही होने लगती हैं!
Ending में दिखाया जाता है..कि Zombies अब इंसानों के साथ ही रहते हैं.. इंसान उनको वापस ठीक करने में हर तरह की मदद कर रहे हैं..जिसके सकारात्मक नतीजे आ रहे हैं! R लगभग पूरी तरह से ठीक हो चुका है!
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यह अपनी तरह की एक अलग कहानी है! Zombies को वापस ठीक किया जा सकता है..ऐसा कांसेप्ट अलग रहा था अब तक इस Genre में! कहानी मुख्यतः R के perspective से दिखाई जाती है..कि वो Zombies और इंसानों के बीच क्या links सोचता है वहीँ कहानी में Julie के साथ उसको रिलेशनशिप main Focus है! यहाँ Zombies भी Fast moving इस्तेमाल किये गए हैं!..जिससे terror ज्यादा बढ़ जाता है! इस Genre को explore करने में यह फिल्म काफी सहायक रहेगी! और Nicholas Hoult के R के किरदार में शानदार अभिनय  के लिए भी इसको जरूर देखिये!

Monday, 17 November 2014

Review : The Shaukeens (2014)

Review- The Shaukeens (2014)
Genre- Comedy Drama
Cast- Akshay Kumar,Lisa Hayden,Anupam Kher,Anu Kapoor,Piyush Mishra
Ratings : ★★★★☆☆☆☆☆☆

दिल्ली के 3 बुड्ढे अपने ठरकी शौक पूरे करने के लिए मॉरिशस आते हैं! यहाँ इन्हें मिलती है..एक लड़की जो सुंदर कम पगली ज्यादा है! यह लड़की अक्षय कुमार की फैन है और इसको पटाने के लिए तीन बुढ्ढे अक्षय से इसको 3 बार मिलवाते हैं! थोड़ी नाटक नौटंकी के बाद फिर अक्षय अपने रास्ते और यह अपने.....अंत में कहानी हैप्पी एंडिंग!

दी शौकीन्स को देखते हुए हमें एक बात कहनी पड़ रही है कि इसको देखने से अच्छा था कि ओरिजिनल मूवी दोबारा देख लेते!
अक्षय की मूवी तो यह है नहीं..इसलिए उसकी तरफ से कोई कमी नहीं दिखती..बल्कि जितनी देर वो रहा..मूवी में intrest बना रहा!
इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसके डायलाग राइटर "तिग्मांशु धूलिया" निकले! 
तिग्मांशु को जहाँ तक सभी जानते हैं शायद कॉमेडी फिल्म ना खुद बनाते हैं..और ना उसमे काम करने का कोई ख़ास तजुर्बा है इन्हें! फिर भी ना जाने किसने इन्हें फिल्म के संवाद लिखने का काम सौंप दिया! बहुत निराश किया इन्होने! ऐसा एक भी चुटीला संवाद नहीं सुनाई दिए..जिसको याद रखा जा सके!
हमारे तीन बुढ्डे अपनी तरफ से कोशिश करते दिखे जरूर पर निकल के वो बात आई नहीं..जिसकी उम्मीदें थी!
अनुपम खेर सपाट अभिनय कर रहे थे! जोश और फिल्म करने की कोई ख़ुशी नज़र नहीं आई!
ऐसा लगा जैसे यह फिल्म वो टाइमपास के लिए कर बैठे!
पियूष मिश्रा थोड़ी सम्भावना लायक लगे..पर इन्हें क्यूंकि तीसरे दर्जे पर रखा गया था..तो यह सिर्फ सहायक बनकर रह गए! फिल्म के आखिर में इन्हें जो 10 मिनट मिले! वही कुछ ठीक थे!
अनु कपूर के ऊपर यह फिल्म बाकी समय काफी हद तक टिकाई गयी है! और हमारे हिसाब से इन्हें जो रोल दिया गया..वो इन्होने जितना हो सकता था..अच्छे से करने की कोशिश करी! लेकिन इनके आड़े आ गयी..इनकी कम फिल्में करने की आदत..जिसने इनको उभरने से रोक रखा है!
इस फिल्म को सही लोगों के साथ बनाया नहीं गया है! शायद बोमन ईरानी अगर इसमें होते तो कुछ फर्क आ सकता था! या सबसे अच्छा होता कि इसमें थोड़े बड़े नाम लिए जाते...जैसे नसीरुद्द्दीन शाह या पंकज कपूर..जो अपनी दमदार एक्टिंग से स्क्रिप्ट की कमियों को काफी हद तक ढँक देते हैं!

आजकल जिस तरह से लाउड कॉमेडी लोग पसंद करते हैं..यह फिल्म बहुत ज्यादा dull लगती है!..कोई ख़ास चमक दमक नहीं...ना कोई ख़ास सिचुएशन बनाई गयी! जिससे कहानी को मदद मिले!
लिसा हैडेन को देखना सिरदर्द से कम नहीं था..इतनी ओवर एक्टिंग और घटिया डायलाग डिलीवरी काफी समय बाद देखने को मिली है!

फिल्म दर्शको को पसंद आ रही है...ऐसा सुना..अब इसमें क्या कहा जा सकता है! लोगों की पसंद और नापसंद कब क्या गुल खिला देती है!
डायरेक्टर अभिषेक शर्मा "तेरे बिन लादेन" का आधा काम भी इसमें नहीं दिखा पाए! स्क्रिप्ट का महत्व क्या होता है...ऐसी फिल्मो से पता चलता है! भगवान् जाने अगर अक्षय कुमार का नाम फिल्म से ना जुड़ा रहता तो इसका क्या हाल होता!
अपने करियर में पहली बार अक्षय कुमार अपने ऊपर ही दर्शको को हंसाते हुए देखे गए! ओह माय गॉड! के बाद से वो अब ऐसी कई फिल्में करते जा रहे हैं..जिनमे उनका रोल बहुत कम होता है! यह एक खतरनाक बात है..कहीं उनके fans उन फिल्मो को भी देखना कम ना कर दें..जिनमे उनका पूरा रोल होता है! यह फिल्म अक्षय को नहीं करनी चाहिए थी! "इश्क कुत्ता है और अल्कोहोलिक 2 गाने फिल्म में रखे गए हैं..जो नयी पीढ़ी के लिए हैं.. सुनने में कर्कश!
कोई अक्षय कुमार वाला वही स्पेशल नारियल पानी हमें दे दो! हम तो शायद ही इसको कभी दोबारा देखें! :v

Saturday, 15 November 2014

FRIGHT NIGHT (2011) & FRIGHT NIGHT 2 : NEW BLOOD (2013) Review

Fright Night (2011)
Genre- Vampire Horror
Ratings : ★★★★★★★☆☆☆
Plot- Charley नाम का एक कॉलेज स्टूडेंट लॉस  वेगास में अपनी माँ के साथ रहता है! इनके पड़ोस में एक आदमी Jerry रहने आता है!Charley का दोस्त Edward जिसको वैम्पायर सब्जेक्ट पर काफी रूचि है..वो Jerry के वैम्पायर होने की बात Charley को कहता है..जो वो नहीं मानता! अचानक  एक दिन  Edward गायब हो जाता है..जिसको Jerry ने मारा है!
Charley अब Jerry के ऊपर नज़र रखने लगता है..और उसकी गैरमौजूदगी में उसके घर में घुसता है! उसको सीक्रेट रूम में एक लड़की मिलती है..जिसको Jerry अपनी खून की प्यास बुझाने के लिए बंधक बनाये हुए है! Charley लड़की को छुड़ा तो लेता है..पर सूरज के रौशनी में आते ही लड़की विस्फोट से उड़ जाती है!
Jerry को अब समझ आ जाता है कि खुद को Charley से छुपाने का कोई फायदा नहीं है..वो रात में Charley के घर को आग लगाकर उड़ा देता है!Charley अपनी माँ और प्रेमिका Amy के साथ भागता है..पर Jerry उनका पीछा करके  Charley की प्रेमिका Amy को भी काटकर वैम्पायर बना देता है!
Charley अब एक वैम्पायर शो के पागल होस्ट Peter Vincent से मदद लेना चाहता है जो  पहले मना कर देता है..बाद में काफी मुश्किल से राज़ी होता है! क्यूंकि फिल्म में यही मान्यता बताई गयी है कि एक निश्चित समय सीमा में अगर वैम्पायर मार डाला जाए तो उसके शिकार ठीक हो जाते हैं! दोनों के संयुक्त प्रयास से Jerry का अंत होता है..और उसके बनाये सभी शिकार वापस ठीक हो जाते हैं!
यह फिल्म जबरदस्त है....1985 में बनी फिल्म का यह रीमेक आज के समय में भी उतना ही डरावना लगता है! Jerry का रोल जब भी नज़र आता है... सिहरन पैदा कर देता है!
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Fright Night 2 : New Blood (2013)
Ratings : ★★★★★☆☆☆☆☆
Genre- Vampire Horror
Plot- यह कहने को तो sequel है...पर कहानी और सिचुएशन्स बिलकुल अलग है...किरदारों के नाम जरूर पहली फिल्म जैसे  ही है..Charley..अपने दोस्त Edward और प्रेमिका Amy के साथ रोमानिया में वहां की प्राचीन आर्ट और संस्कृति के बारे में एक कॉलेज टूर पर आया है! इनकी जो लोकल प्रोफेसर है Gerri Dandridge..यह  प्राचीन समय से अब तक इंसानी खून पर जिंदा दिखने में जवान लेकिन असल में बुड्ढी वैम्पायर है! यह बात उसके घर में घुसने पर Charley को पता चलती है..जो उसको एक लाश ठिकाने लगते देख लेता है!
Charley यह बात Edward को बताता है..वो इसके लिए दोबारा से वैम्पायर टीवी शो के होस्ट Peter Vincent से मदद मांगते हैं..जो पैसो के लिए राज़ी भी हो जाता है! लेकिन जब एक ट्रेन में अचानक से इनका सामना Gerri Dandridge से हो जाता है..तब Peter Vincent भाग जाता है! Edward शिकार होकर वैम्पायर बन जाता है! और Amy को Gerri Dandridge अपने साथ ले जाकर बाद में वैम्पायर बना देती है!
अंत में Charley और Peter Vincent एक बार फिर से Gerri Dandridge के अड्डे पर जाकर उसका अंत करते हैं!
पहली फिल्म की तरह इसकी storyline लगभग same है..सिवाय इसके कि वैम्पायर औरत है! फिल्म थोड़ी छोटी होती तो ज्यादा मज़ा आता..क्यूंकि जगह जगह पर लम्बे डायलॉग्स फिल्म की रफ़्तार धीमी कर देते हैं!
दोनों फिल्में ठीक ठाक हैं...पहली को बार बार देखा जा सकता है.. दूसरी average है!

Wednesday, 12 November 2014

NARAK DANSH


Review :  नरक दंश (2014)
Genre : Action-Adventure
लेखक : नितिन मिश्रा
आर्टवर्क : हेमंत कुमार
इंकिंग: विनोद कुमार,ईश्वर आर्ट्स
रंग: शादाब,अभिषेक,बसंत
शब्दांकन: मंदार गंगेले
मुख्य पात्र : नरक नाशक नागराज,नागमणि,शीतिका,तक्षिका,अग्निका,शंकर शहंशाह!

NNN की उत्पत्ति श्रृंखला अपने तीसरे पड़ाव पर आ चुकी है!
कथावस्तु 2 समय कालो में चलने के कारण अपूर्ण है! इसलिए अभी उसपर टिप्पणी करना उचित नहीं है! सारांश में यह ऐसी नज़र आती है-

भूतकाल परिदृश्य : किशोरावस्था का नरक नाशक नागराज इसमें शीतिका,तक्षिका,अग्निका को हराकर सर्पट के साथ इन्हें अपनी नागसेना में शामिल कर चुका है! लेकिन कुछ ऐसा अज्ञात अंश उसके साथ घटित हुआ है जिसकी वज़ह से फिलहाल वो नागमणि का गुलाम बनकर सिल्विया के साथ किसी बड़े अपराध को करने के लिए निकल चुका है!(नागराज के विश्व भ्रमण की खोज के लड़कियों के साथ वाले गिने सुने अफ़साने)

वर्तमान परिदृश्य : यहाँ असली mature नागराज कालदूत को परास्त करने के बाद किसी शिव मंदिर की खोज में निकला है..जो उसके अस्तित्व का पता बताएगा!(खजाना द्वितीय उड़ान के लिए तैयार है..सभी यात्रीगण अपने दिमाग की पेटियां बाँध लें!)
कहानी में इतना सबकुछ देखकर यह तो हर कोई जानता है कि लेखक ने सिर्फ आतंक हर्ता और विश्व रक्षक की कहानियों से प्लॉट्स लेकर यह उत्पत्ति श्रृंखला बनाई है! इसपर सबके अपने विचार हो सकते हैं..कि सही-गलत क्या है!(हवाई यात्राओं के कई बूढ़े हो चुके यात्रीगण इसमें अपनी जवानी का पुराना स्वाद ले रहे हैं...इसलिए उनके आनंद में खलल डालना उचित नहीं है) :v
लेकिन हमें इसमें काफी ऐसे तथ्य भी मिले जो नए जोड़े गए हैं...जैसे शंकर शहंशाह के बारे में नयी तरह से लिखा गया है..पहले जहाँ उसका किरदार आया-गया था...इसमें महत्वपूर्ण है! शीतिका,तक्षिका,अग्निका के साथ जो लड़ाई हुई..वो भी नया पक्ष था! हाँ उसमे Action sequence जरूर लेखक ने रिपीट टेलीकास्ट किये हैं! जिनमे नया कुछ नहीं था!(अंतर्द्वंद के समय भी कहा था कि तांडव सीरीज से एक्शन उठाकर यह लिखी है..आगे कुछ नया करियेगा..पर आज यह कॉमिक्स पढ़कर यही पता चला कि ढाक के तीन पात)
शंकर शहंशाह का नागमणि द्वीप से भागने वाला पूरा कांसेप्ट पूरा का पूरा पुरानी कहानी से उठाया गया है!अलग के नाम पर  विषप्रिय को जिंदा रखा गया है!
तक्षक कॉमिक्स में जो गुत्थी अधूरी छोड़कर एक गलती करी गयी थी..वो नागरत्न वाली कहानी इसमें दिखाकर लेखक ने भरपाई करी है!(पुराने लूप्स सुलझाने का स्वागत है)
लेकिन जब नागराज अंत में नागमणि का गुलाम बन ही चुका था..तब उसको जंजीरों में बांधकर नीलामी में लाना एक ओवर एक्टिंग का उदाहरण ज्यादा रहा..जैसे कि चश्मा लगाकर वो सोचता है कि कोई उसको पहचानता नहीं है! यह कहानी में कुछ मूल कमियां रही हैं!(मानता कोई है नहीं)
पंच नागों वाला हिस्सा कहानी के अंत में दिखाया है..वो बेहतर  है और कहानी में कुछ अच्छे पन्ने दे गया है! लेकिन फिर अचानक से भारती का प्रकट होकर उनसे मेल मिलाप दोबारा से कहानी को अँधेरे में धकेल देता है!(यहाँ जाने क्यूँ फ्यूल याद आ रही है)
कुल मिलाकर यही सामने आया है कि नरकदंश सिर्फ ज्ञान वर्धन की कॉमिक्स है...ना की मनोरंजन के लिए!(श्याम बेनेगल की याद आ गयी) अगर आप नरक नाशक को पढ़ते हैं तो यह सीरीज लेनी ही पड़ेगी! 50-50 के हिसाब से नया-पुराना सब जोड़कर लिखा जा रहा है!(नए लोग भी खुश और पुराने भी)

#मनोरंजनात्मक_पक्ष : मनोरंजन के लिए पंच नागों के कुछ चुटीले संवाद आखिर में है! वही कुछ ठीक लगे! बाकी कहानी तो सिर्फ overused एक्शन देखकर पुरानी यादें ताज़ा करने के नाम रही!

#आर्टवर्क: हेमंत जी का आर्टवर्क है! और पिछले भाग की तुलना में कमतर लगता है! एक बात और फिर से रेखांकित करेंगे कि 6-7 सालो के काम के बाद भी लड़कियों के facecuts अभी भी वो एक ही तरह से बनाते हैं..कोई अलग नजरिया विकसित नहीं हुआ है! हर लड़की एक जैसी दिखती है..सिवाय लिबास के! इस कमी को दूर करिए! विविधता लाइए! सुशांत जी से कुछ टिप्स लीजिये! पर भगवान् के लिए कुछ बदलाव करिए!
रंग संयोजन की वज़ह से ग्लॉसी पेजेज में आर्टवर्क काफी उम्दा दिखाई दे रहा है...अभिषेक जी ने काफी बढ़िया काम किया है! खासकर तीनो देवियों के साथ हुई भिडंत के पन्नो में!

#शब्दांकन: नए नए स्टाइल में ballons देखना हमेशा की तरह अच्छा लगा! मंदार जी के पास आइडियाज की कमी नहीं है..पापध्य्क्ष को भी नया speech bubble दिया गया है!
फिलहाल यह भाग अपूर्ण है...क्या कहा जाए क्या ना कहा जाए...समझ से बाहर! अंतिम भाग के बाद यह उत्पत्ति अपने सही रंग दिखायेगी! फिलहाल अगर आप नरक दंश का आनंद ले सकते हैं तो जरूर लें!

Ratings :
Story...★★★★★★☆☆☆☆
Art......★★★★★★★☆☆☆

#Rajcomics,#Nagraj,#Nitinmishra,Hemantkumar

MAHAMELA




Review : महामेला (2014)
Genre : Not Found
लेखक : तरुण कुमार वाही,विशाल राव मैसूर
आर्टवर्क : सुशांत पंडा
इंकिंग: दीपक कुमार
रंग: बसंत पंडा
शब्दांकन: मंदार गंगेले
मुख्य पात्र : बांकेलाल,विक्रम सिंह और विभिन्न नए  किरदार

बांकेलाल के प्यारे पाठको..समीक्षा पढने से पहले सभी एक बार कहिये.... हीहीही
महामेला की कहानी का सार कुछ यह है कि एक डाकू "झमेलासिंह" को मेलों से नफरत है...उसकी लूटपाट से विशालगढ़ त्रस्त है..बांकेलाल हमेशा की तरह उसको पकड़ने रवाना किया जाता है! उसको पकड़ने में नाकाम होने के बाद बांके को मिलता है उस डाकू का एक हमशक्ल! हीहीही... अब आगे कहानी बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी!

‪#‎हास्य_पक्ष: यह एक बिना स्क्रिप्ट की  बोरियत से भरपूर ऐसी कहानी है...जिसमे हास्य नाम की कोई चिड़िया दूरबीन लेकर खोजने से भी नहीं मिलेगी! बांकेलाल में अब शायद राज कॉमिक्स के पास कुछ नया करने को बचा नहीं है इसलिए वही ऋषि,डाकू,हमशक्ल,देवता डालकर सिर्फ सेट में बांकेलाल को पेश करने का काम किया जा रहा है! वैसे जिनको यह मुफ्त में मिल गयी थी...वो खुद को सौभाग्यशाली समझें..और जिनको पैसे देकर लेनी पड़ी..वो हीहीही का उल्टा करें!(नहीं समझे... बुहूहुहू)
राज कॉमिक्स से हम अब यह कहना छोड़ रहे हैं कि क्या और कैसी कहानियां लिखिए!(क्यूंकि यह करते करते सालों बीत गए पर हाथ में ऐसा मेला रुपी पका हुआ केला ही आता है...महीनो के इंतज़ार के बाद सेट में एक तो सिर्फ 2 कॉमिक्स और उसमे में एक ऐसी)

‪#‎आर्टवर्क‬ -
सुशांत जी का आर्ट है...और लगभग औसत दर्जे का है! वैसे भी सर्वनायक पर उनके जाने के बाद बांकेलाल से ज्यादा की उम्मीद नहीं है! इस बार तो कहानी में क्षमा भी नहीं थी...जिसको देखकर क्षमा दी जा सके!
बाकी सभी विभाग काम चलाऊ हैं! मतलब काम पूरा हुआ है!आपके पैसे का पूरा उपयोग है..कॉमिक्स रंगीन है(ब्लैक & वाइट नहीं है)..bubbles में डायलॉग्स भी हैं(हाँ भाई.पढने के लिए ही लिखे गए हैं)
पाठको.. हमने तो इस मेले की सैर कर ली..और हमें ज्यादा मिर्च मसाला पसंद नहीं था(जिसकी वज़ह इसके पहले पन्ने पर है) हमने सिर्फ फलों का आनंद लिया(मतलब आर्ट के चुनिंदा पन्नो का)...आप जरूर इस मेले में सावधानी से कदम रखते हुए ही आगे बढिए.....फिसलने का डर है!

Ratings :
Story.....★★☆☆☆☆☆☆☆☆
Art........★★★★★☆☆☆☆☆

#Rajcomics,#Bankelal

Tuesday, 11 November 2014

Die Hard Series/Franchise




Die Hard फिल्म फ्रैंचाइज़ी Bruce willis की सबसे कामयाब फिल्म कड़ी है! इसमें अब तक 5 फिल्में आ चुकी हैं!
यह एक ऐसे पुलिस ऑफिसर "जॉन मैक्लेन" के जीवन की कहानी है जिसमे वो हमेशा ऐसे समय पर किसी ना किसी आपराधिक वारदात को रोकने की मुहीम में तब फंस जाता है, जब वो ड्यूटी से अपनी छुट्टी पर होता है! साफ़ है कि अगर वो चाहे तो उस वारदात से पल्ला झाड ले..पर क्यूंकि वो बहुत ईमानदार पुलिस वाला है..इसलिए अपने नसीब और फूटी किस्मत को कोसते हुए भी..सभी वारदातों को रोकने में लग जाता है!
सबसे बड़ी ध्यान देनी वाली चीज़ है कि हमेशा उसका सामना किसी बड़े गैंग से ही होता है..जिसके पास अत्याधुनिक हथियारों और गैजेट्स की भारी मात्रा होती है! वहीँ  जॉन मैक्लेन हमेशा या तो खाली हाथ रहता है...सिर्फ अपनी पुलिस रिवाल्वर के भरोसे! फिर भी अपनी जांबाजी और जुझारूपन से हमेशा सभी पर भारी पड़ता है!
Die Hard (1988)
यह  फिल्म इस फ्रैंचाइज़ी की सबसे पहली आधारशिला है! "जॉन मैक्लेन" जो कि NYPD में Detective Lieutenant  है अपनी...पत्नी Holly के पास LA आता है! Holly जहाँ काम करती है वो है Nakatomi Plaza नाम की एक बहुत बड़ी बिल्डिंग! संयोग ने क्रिसमस की शाम ऑफिस में पार्टी चल रही है...जब एक हथियारों से सुसज्जित 12-13 लोगों का आतंकवादी दल सभी को बंधक बना लेता है!..जिसके सरगना का नाम है Hans Gruber!
इनका उद्देश्य है बिल्डिंग में मौजूद एक सेफ्टी वॉल्ट को तोडना जिसके अन्दर करोडो के bearer bonds रखे हैं!  क्यूंकि बिल्डिंग की सिक्यूरिटी के कुछ लोग भी इस प्लान में शामिल हैं..ऐसे में बाहर से पुलिस की मदद आती जरूर है..लेकिन कुछ ख़ास कर नहीं पाती!
संयोग से जॉन मैक्लेन इनके हाथो बंधक बनने से बच जाता है! अब अकेला वो यह बीड़ा उठाता है कि आतंकवादियों के मसूबे ध्वस्त करके अपनी बीवी और बाकी बंधको की जान बचाई जा सके! इसलिए यह मूवी एक One Man Show है! जो काफी बढ़िया लगता है!
यह शानदार फिल्म है...एक पूरी हथियारबंद गैंग को अकेले तबाह कर देना रोमांचित कर देता है!
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Die Hard 2 (1990)
पहली फिल्म के ठीक एक साल बाद एक और क्रिसमस की शाम आती है! "जॉन मैक्लेन" हवाई अड्डे  पर अपनी बीवी Holly को लेने आया हुआ है,जो कि कैलिफ़ोर्निया से आ रही है!
इधर  U.S. Army Special Forces में भूतपूर्व कर्नल Stuart और उसके साथी हवाई अड्डे के सभी Air Traffic Control systems को अपने अधिकार में ले चुके हैं! जिसकी वज़ह से अब बाहर से आने वाला हर हवाई जहाज़ इनके इशारों पर उड़ रहा है!  इनका उद्देश्य अपने एक बॉस डिक्टेटर और ड्रग किंग General Ramon Esperanza को छुड़ाना है! जिसको उसी हवाई अड्डे से ले जाया जा रहा है! क्यूंकि एअरपोर्ट पुलिस उसको बाहरी मानकर उसका साथ देने से मना कर देती है..क्यूंकि उसका चीफ ऑफिसर सनकी है!  आतंकवादियों की वज़ह से एक प्लेन क्रेश हो जाता है जिससे 200 से ऊपर यात्री मारे जाते हैं! जॉन मैक्लेन अब तय करता है कि वो इस सारे फसाद को अकेले रोकेगा और अपनी बीवी के साथ दूसरे यात्रियों को बचाएगा!
अपनी पहली कड़ी को टक्कर देती यह फिल्म भी बहुत बढ़िया लगती है!
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Die Hard with a Vengeance (1995)
इस सीरीज की तीसरी फिल्म केन्द्रित है..पहली फिल्म में आये विलेन Hans Gruber के भाई Simon के बदले की भावना की जिसमे वो पहले न्यू यॉर्क में एक बम फोड़ता है..और फिर दूसरे बम फोड़ने की धमकी देकर पुलिस से सस्पेंडेड "जॉन मैक्लेन" को एक ऐसे इलाके में अपने सीने पर "I hate nigers" की तख्ती लिखकर खड़ा कर देता है,जहाँ काले रंग के समुदाय की बहुतायत में आबादी है! साफ़ इरादा है..कि जॉन मैक्लेन को वहां के लोग रंगभेद के नाम पर मार डालें! ऐसा हो भी जाता लेकिन एक काला दुकानदार Zeus Carver(Samuel L. Jackson) उसको बचाता है!
Simon इसके बाद जॉन मैक्लेन और Zeus Carver के साथ खेल खेलना शुरू कर देता है..जिसमे वो शहर में जगह-जगह बम रखता है..और इन दोनों को पहेलियाँ देकर बम फटने से रोकने के काम पर भगाता रहता है! Simon और उसकी टीम का असली मकसद है...इन सभी को पुलिस के साथ बम खोजने में लगाये रखकर  Federal Reserve Bank of New York से करोडो के सोने की सिल्लियों को चुरा लेना और एक subway के रास्ते भाग जाना!
जॉन मैक्लेन कैसे इनके मंसूने एक बार फिर से बर्बाद करता है..यह आगे की कहानी है!
इस बार क्यूंकि bruce के साथ फिल्म में Samuel भी आ जाता है..इसलिए कहानी में कॉमेडी भी काफी इस्तेमाल हुयी है और जो ह्यूमर की कमी पहली 2 फिल्मो में महसूस होती है..वो दूर हो जाती है!
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Live Free or Die Hard (Die Hard 4.0) (2007)
FBI की इन्टरनेट यूनिट को पता चलता है कि कोई ऐसा ग्रुप है जो सभी टॉप के कंप्यूटर हैकर्स को मारता जा रहा है! FBI  NYPD के detective जॉन मैक्लेन को आदेश देती है कि वो Matthew "Matt" Farrell नाम के एक कंप्यूटर हैकर लड़के को उसके पास सुरक्षित पहुंचाए! ताकि उससे पता लगाया जा सके कि इन सभी खूनो के पीछे क्या वज़ह है!
जॉन मैक्लेन के Farrell के पास पहुँचने पर एक जानलेवा हमला होता है..जिससे बचने के बाद दोनों भागते हैं FBI के headquarters की तरफ!
इधर Thomas Gabriel और उसकी टीम जो इस फिल्म की विलेन है.."fire sale" नाम का एक इन्टरनेट सिक्यूरिटी अटैक कर देती है! जिससे इन्टरनेट से जुड़े हुए सभी मूलभूत संचार सेवाएं,बिजली,पानी,गैस,अर्थव्य्वस्था,बैंकिंग सेवाएं,ट्रांसपोर्टेशन  मतलब हर जरूरी सेवा उनके इशारों पर चलने लगती है! और एक तरह से पूरे देश को बंधक बना लेते है!
एक बार फिर से जॉन मैक्लेन और  Farrell मिलकर  Thomas Gabriel को पटकनी देते हैं!
यह फिल्म असल जॉन  मैक्लेन के लिए नहीं लगती...इसमें वो ज्यादातर समय अपने साथी Farrell के ऊपर निर्भर लगता है! हाँ एक्शन उसके हिस्से में ही आया है! फिर भी क्यूंकि सारा अपराध इन्टरनेट का है..ऐसे में अपनी बेटी के साथ उसके रिश्ते वाले एंगल पर ज्यादा फोकस करने का मौका कहानी ने दी दिया है!
 लेकिन ओवरआल यह भी एक ठीक ठाक मूवी बनी है!
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A Good Day to Die Hard  (2013)
यह पिछले साल ही आई थी! इसमें  जॉन मैक्लेन के बेटे Jack को दिखाया गया है..जो मास्को में CIA का अंडरकवर ऑफिसर है! और वहां  एक राजनैतिक कैदी और करोडपति  Yuri Komarov को उसके दुश्मन Viktor Chagarin से बचा रहा है..वो समझता है कि Yuri के पास कोई ऐसी फाइल है..जो उसको तबाह कर सकती है! CIA Yuri को इस बात पर मना लेती है कि वो Viktor के खिलाफ वो फाइल उसको सौंप दे..और Yuri को उसकी बेटी Irina के साथ मास्को से सुरक्षित बाहर ले जाया जायेगा! सबकुछ सही चल रहा है..लेकिन Irina दुश्मन से मिल जाती है और Yuri को गुंडे ले जाते हैं!
जॉन और जैक दोनों अब  Ukraine जाकर उस फाइल को हासिल करने की कोशिश करते हैं! जहाँ उन्हें पता चलता है कि इस सारे खेल के पीछे असली दिमाग Yuri का ही है..जो यूरेनियम की चोरी करके बेचना चाहता है!
जैसा की होना है जॉन और जैक उसके इरादे पूरे नहीं होने देते हैं!
इस सीरीज की सबसे फ़ालतू और बोरियत से भरी फिल्म यही है! इसको ना ही देखें तो बेहतर होगा!
अब इस फ्रैंचाइज़ी को बंद कर देना ही सही होगा..क्यूंकि Bruce Willis अब बूढा हो चुका है..और अब अकेले उसके बूते पर कहानी चल नहीं पा रही हैं...जैसे कि 4th फिल्म में कंप्यूटर हैकर और 5th में उसके बेटे का सहारा लेकर कहानी चलाने की कोशिश हुयी!

Sunday, 9 November 2014

Tears Of The Sun (2003)

Tears Of The Sun (2003)
Genre- War Action
Cast- Bruce Willis,Monica Bellucci
Link - http://moviesmaza.in/movie.php?id=2498
Plot-  यह कहानी है..A.K. Waters और उसकी टीम की जांबाजी की..जिसमे कई सैनिको ने इंसानियत के लिए अपनी जानें भी कुर्बान कर दी! (y)
नाइजीरिया(अफ्रीका) में तख्तापलट हो चुका है! वहां के अन्दुरुनी हालात इतने ख़राब हैं..कि Guerrilla Forces धर्मान्धता के नशे में चूर होकर ईसाईयों और दूसरी लोकल कम्युनिटीज़ का कत्लेआम कर रही हैं!
इस सबके बीच U.S. Navy SEAL में लेफ्टिनेंट A.K. Waters (Bruce Willis) को अपनी टीम के साथ आदेश मिलता है..कि वो नाइजीरिया में तैनात Dr. Lena Fiore Kendricks (Monica Bellucci), जो एक अमरीकी नागरिक है और कुछ एक पादरी और नन  को सुरक्षित ठिकाने तक पहुचने का!
Dr. Lena जाने से इसलिए इनकार कर देती है..कि वो अकेली जाए और उसके सभी नाइज़िरिआइ आदिवासी मरने के लिए वहां अकेले छोड़ दिए जाएँ!
A.K. Waters पहले सभी आदिवासियों को लेकर चलने के लिए राज़ी होता है..लेकिन एन वक़्त पर हेलीकाप्टर आने पर सबको ले जाने के वादे से मुकर जाता है! और जबरदस्ती Dr. Lena को लेकर उड़ जाता है! रास्ते में अचानक से उसको नीचे हो रहे खून खराबे को देखकर आत्मग्लानि होती है! अपने आला अधिकारियों के आदेश को ना मानकर वो वापस जाता है और अपनी टीम के साथ मिलकर यह तय करता है कि सभी आदिवासियों Cameroon बॉर्डर तक सुरक्षित ले जाया जाएगा!
आगे कहानी में गृहयुद्ध के घातक परिणामो को दिखाया गया है..जहाँ एक कबीले में हैवानियत के मर्मान्तक दृश्य विचलित कर देते हैं! :'(
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Bruce Willis की जितनी फिल्में देखी हैं...उसकी छवि एक ऐसे एक्टर की बन गई है..जिसको असंभव को संभव करके दिखाने में मज़ा आता है! जब भी वो यह कहता है कि वो यह काम 100 % करके दिखायेगा...दर्शको में रोमांच उठ जाता है..कि अब कोई ताकत उसको रोक नहीं सकती! पूरी फिल्म में वही छाया हुआ है!..Monica Bellucci सिर्फ जगह भरने लायक रही! जंगल के बीच की लड़ाई ज्यादा इफेक्टिव नहीं ban पाई है..क्यूंकि उसमे धुंआ और पेड़ इतने ज्यादा थे..कि असल हाथापाई हो ही नहीं पाई! यह एक कमजोर पहलु माना जा सकता है कि फिल्म अपने इमोशनल एंगल्स पर ज्यादा केन्द्रित रहती है! फिर भी यह देखने लायक है!

Thursday, 6 November 2014

Aftab Shivdasani : A View



आफताब शिवदासानी के बारे में जब लिखने का मन हुआ..तो दिमाग में समय काफी पीछे चला गया! 1999 में रामगोपाल वर्मा एक बड़ा नाम हुआ करता था! रामू की फिल्म Mast में एक लड़का बॉलीवुड में कदम रखता है! फिल्म कामयाब थी..और "हुई हुई मैं मस्त" गाने में अपने से ज्यादा उम्र की उर्मिला के साथ नाचता आफताब कूल लगा!
आफताब नज़रो में चढ़ा अपनी दूसरी फिल्म Kasoor से...जो भट्ट कैंप की थी! उस वक़्त लिसा रे के साथ आफताब के हॉट सींस को फिल्म में काफी प्रचारित किया जाता था! वैसे फिल्म अपने कथानक पर अच्छी थी! आफताब ने बहुत अच्छा  काम किया था! पूरी फिल्म में जिस मासूमियत के साथ उसने खूनी होने का अपना राज़ बचाए रखा! और अंत में जो नेगेटिव परफॉरमेंस दी! शानदार थी!
2002 में एक ऐसी फिल्म है जिसको याद रखा जा सकता है Kya Yehi Pyaar Hai जिसमे अमीषा पटेल के साथ आफताब की लव स्टोरी थी...बड़े भाई जैकी श्राफ.. जहाँ आफताब को करियर के लिए ध्यान देने की बात करते थे..उसमे आफताब ने सिर्फ प्यार में पड़े युवा का रोल निभाया था! फिल्म अच्छी थी! और positive सन्देश देती है!
इसके बाद आफताब काफी कम फिल्मो में नज़र आया! जिसमे से Love Ke Liye Kuchh Bhi Karega,Awara Paagal Deewana,Darna Mana Hai, Hungama और Masti ऐसी गिनी चुनी फिल्में हैं..जिनमे उसका काम बढ़िया लगता है! यह 2005 का समय था! और आफताब ज्यादातर multistarer करने लगा था!
आफताब के साथ एक और परेशानी रही..कि उसने रामगोपाल वर्मा के साथ थोड़ी ज्यादा निर्भरता दिखाई! जिसकी वज़ह से फैक्ट्री के बंद होने का असर उसके करियर पर भी पड़ा!  
2006 में आई Mr Ya Miss एक बड़ा हादसा साबित हुई...रितेश और आफ़ताब दोनों के लिए! अंतरा माली तो इस फिल्म के बाद बॉलीवुड से गायब ही हो गई!
आफताब के लिए यहाँ से वक़्त खराब चल पड़ा...फिल्में या तो मिल नहीं रही थी.या जो मिली..उसमे रोल किसी काम का नहीं था...जैसे Shaadi Se Pehle!
ऐसी नाटकबाजी वाली कई घटिया फिल्में करने के बाद आफताब की एक फिल्म हमें बहुत पसंद आई थी...2008 में De Taali
फिल्म कॉमेडी थी...और रितेश देशमुख के साथ आफताब की जोड़ी अच्छी लगती है! लेकिन अफ़सोस ...रिमी सेन और आयशा टाकिया के होने के बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर लुढ़क गई! 2009 में Kambakkht Ishq करके आफताब ने बहुत बड़ी गलती करी..क्यूंकि अक्षय कुमार के साथ यह फिल्म आफताब के साथ अक्षय के लिए भी घातक रही! :v   
2012 में आई विक्रम भट्ट की 1920 - Evil Returns एक ख़ास दर्शक वर्ग के लिए थी! आफताब का यह सीरियस रोल average रहा! फिल्म की हीरोइन आफताब से ज्यादा काबिल निकली!   
2013 में आई     Grand Masti आफताब को घर बैठे मिल गई..फिल्म में उसकी परफॉरमेंस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है!..क्यूंकि यह फिल्म एक्टिंग के लिए थी ही नहीं!  फिल्म देखकर हमें आफताब से निराशा नहीं हुई!
आफताब शिवदासानी में काबिलियत काफी थी...लेकिन उसकी फिल्मो को चुनने की गलतियाँ उसपर भारी पड़ी!
उसने अच्छी फिल्मो से ज्यादा बुरी फिल्में करी है! जिनका कोई नाम भी याद नहीं करना  चाहेगा! ऐसा ज्यादातर हीरोज के साथ होता रहा है! आफताब अब तक बॉलीवुड में टिका है,यह किस्मत की ही बात है!
2012 में उसने Nin Dusanj नाम की लड़की से शादी करी है! ज़िन्दगी में आया यह बदलाव उसकी किस्मत चमका दे, इसके लिए दुआ करी जा सकती है!

Wednesday, 1 October 2014

DRAGON KING

Review : ‪#‎ड्रैगन_किंग‬
Genre : Action-Adventure,Sci-Fi
लेखक/आर्टवर्क : अनुपम सिन्हा
इंकिंग: विनोद कुमार
रंग: बसंत पंडा
शब्दांकन: नीरू,मंदार गंगेले
मुख्य पात्र : नागराज,सौडांगी,महात्मा कालदूत और सुआरा!

Ratings :
Story : 4/5
Art : 4.5/5

‪#‎विश्वरक्षक‬­_नागराज ...ड्रैगन किंग कॉमिक्स से यही नया नाम आपके चहेते महानगर में रहने वाले नागराज को मिला है!
"विश्वरक्षक" यह नाम किसी सुपर हीरो को मिलने का एक ही मतलब निकलता है कि वो किसी एक नगर या देश का ना होकर पूरी पृथ्वी का नायक है..अपितु नागराज का काम करने की सीमा ब्रह्माण्ड से भी परे मिल जायेगी! लेकिन फिलहाल "ड्रैगन किंग" में वो विश्व रक्षा का अपना धर्म ही निभाता नज़र आता है!

"ड्रैगन किंग" इस कॉमिक का यह नाम क्यूँ पड़ा इसके बारे में लेखक ही ज्यादा बेहतर बता सकते हैं..लेकिन "डायनासोर किंग" अगर होता तो कथावस्तु के ज्यादा करीब हो सकता था! जैसे कि कुछ पाठको ने यह सवाल उठाया भी है! ड्रैगन और डायनासोर में एक ही बड़ा अंतर माना जाता है कि ड्रैगन किवदंतियों पर आधारित काल्पनिक जीव होते हैं..जो शायद ही कभी सचमुच जीवित थे..लेकिन डायनासोर का अस्तित्व करोडो वर्ष पुराना था! यानी यह सच में एक प्रजाति थी! खैर हम भी सोच लेते हैं नाम में क्या रखा है..ड्रैगन किंग रख दिया गया तो अब यही रहेगा!
जैसा कि आजकल आ रही ज्यादातर कहानियों के साथ होता है..यह कहानी भी एक बार में शायद ही किसी को पूरी तरह से समझ आएगी...इसलिए 2-3 बार पढना जरूरी था!

‪#‎नागराज‬ के कंधो पर पूरी तरह से कहानी का भार था..वो भी अपनी पुरानी शैली में ही इसमें नज़र आया...फिर भी अपनी नयी और पुरानी दोनों शक्तियों का इस्तेमाल करके भी उसको अंत में काफी जूझना पड़ा! अगर वो दिमाग का इस्तेमाल ना करता तो सिर्फ शक्तियों के बल पर जीतना मुश्किल था! वैसे यह लग रहा है कि उसकी नयी वाली शक्तियों में कमी होने जा रही है..लेखक का यह कदम स्वागतयोग्य है!

ड्रैगन_किंग : सालों बाद किसी नए करैक्टर के बारे में बहुत दुःख हुआ! यहाँ हम लेखक से थोड़े निराश हुए कि उन्होंने इस करैक्टर को मौत दे दी! नागराज कि पूरी सीरीज में ऐसे अनगिनत गधे भरे पड़े हैं..जिन्हें देखने की कोई इच्छा नहीं होती है..लेकिन वो आज भी जीवित हैं...वहीँ जिस प्राणी ने नागराज को यह युद्ध जीतने में मदद करी और शक्ति और सामर्थ्य में महात्मा कालदूत तक को टक्कर देने का दमखम रखता था..वो मार दिया गया! हम सिर्फ यही कह सकते हैं कि ड्रैगन किंग को वापस किसी कहानी में जीवित किया जाए!

‪#‎सुआरा‬ : वैसे वो यह देव नहीं थे..पर नागराज बार बार यही संबोधन कर रहा था..नागराज की नज़र से देखा जाए तो संरक्षक के तौर पर हर व्यक्ति उसके लिए देवता ही है! सुआरा और उसके बीच जो रक्त सम्बन्ध बताया गया है..वो एक नयी चीज़ जुडी है...अब तक नागराज को मानव और सरीसर्प के बीच की कड़ी माना जाता था..मगर अब उसमे Biorobots के DNA भी हैं..यानी उसकी powers में और इजाफा हुआ है!

‪#‎महात्मा_कालदूत‬ : हमने जगह-जगह इस कॉमिक्स के प्रमोशन में सुना था कि इस बार कालदूत नए रूप में आयेंगे और अपने माथे पर लगे धब्बो को धो डालेंगे..मगर जैसे कि उम्मीद थी..बदलाव कुछ नहीं आया...पहले भी पिटते थे..इसमें भी पिट गए!
पहली बात तो यह अब कहानियों में मूक दर्शक से अधिक कुछ लगते नहीं..जितनी इज्ज़त कॉमिक्स के अन्दर इनको दी जाती है..पाठको की दुनिया में यह उतने ही ज्यादा कुख्यात हैं...वैसे इस कहानी में योध्धा कालदूत के रूप में इन्होने काफी अच्छे से खुद के सामर्थ्य का प्रदर्शन किया है..लेकिन ढलती उम्र और बुढ़ापे ने अब इनके हर fighting report card पर Looser का ही ठप्पा हर बार लगाने का निर्णय कर लिया लगता है! अब तो बस यही कहा जा सकता है कि यह बार-बार लड़ाई में उतरकर बेईज्ज़ती झेलने से बेहतर एकांत में अपनी गुफा में बैठे रहे और नागराज को अपनी प्रलय वाली वो अधूरी कहानी सुना दें..जिसका इंतज़ार पाठको को भी बरसो से है!लेखक ने पेज 72 पर इन्ही एक विस्फोट से उड़ा दिया..लेकिन आखिर में पेज 94 पर यह वापस आ गए! जबकि सौरारी कह रहे थे..कि अपने टुकड़े जोड़ने में इन्हें कई घंटे लग जायेंगे! संवाद कुछ और कहते हैं और कहानी में कुछ और दिखाया जाता है! यह अच्छी बात है कि जोशीले संवाद सुनकर पाठको को भी जोश आ जाता है..लेकिन इस जोश को कहानी में भी दर्शाया जाना चाहिए!

‪#‎सौडांगी‬ को जहाँ कहानी में थोडा बेहतर रोल मिला है..वहीँ ‪#‎विसर्पी‬,‪#‎पंचनागो‬ ने निराश किया है! असल में यह उन लोगों में से ही हैं..जो अपने गुरु महात्मा कालदूत के नक्शेकदम पर चलते हैं...अकड़ आसमानी और कसर ज़मीनी!

***Warning : (Mega Spoilers ahead)
आगे वही लोग समीक्षा पढ़ें जिन्होंने कॉमिक्स का लुत्फ़ उठा लिया है! वरना यह हिस्सा SKIP करने "मनोरंजनात्मक पक्ष" से आगे बढें !.
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कहानी शुरू होती है..महानगर में स्थित पुरानी पर्वत कंदराओ में पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा एक जीव "सुआरा" के जाग जाने से! जैसा कि 90% ऐसे हालत में जागा हुआ प्राणी करता है..महानगर को तोडना शुरू...वही नागराज की heroic entry भी हो जाती है! "सुआरा" को यह तो याद था कि सौरारी कभी पृथ्वी पर नहीं आ सकते..लेकिन वो नागराज को बार-बार "संधक" बोलकर महानगर को तोड़ता रहा! अब आप लोग कहेंगे संधक क्या था! "संधक" वो biorobots थे जिन्हें सौरारियों ने बनाया था! जैसे अंत में आया कापालिक!
सुआरा को नागराज से उलझने कि इतनी जल्दी थी कि उसने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि "नागराज संधक नहीं बल्कि मानव है!" (उसकी सूंघने/महसूस करने की शक्ति फिर किस काम की थी)
कहानी के अंत में बताया गया है कि करोडो साल पहले चाँद के टकराने से पूर्व ड्रैगन सिटी के बारे में सुआरा पहले से जानता था...इसलिए उसको जागने के बाद मिश्र के पिरामिडो में जाना चाहिए था..ना कि वहीँ पर तोड़ फोड़ शुरू करनी चाहिए थी!
एक और अनसुलझा प्रश्न मिलता है कि पेज 80 पर लेखक के द्वारा यह बताया गया है कि जब सौरारी छोटे चाँद को पृथ्वी से टकरा रहे थे..तब सुआरा पृथ्वी के चारो तरह अदृश्य कवच का कण्ट्रोल सेंटर स्थापित कर रहा था..वहीँ "ड्रैगन किंग"चाँद को उड़ाने में मशगूल थे! अब यहाँ पर यह तो बताया ही नहीं गया कि पृथ्वी पर अदृश्य कवच का कण्ट्रोल सेंटर और उसका कोड नाम की 2 चीज़ें बनाई गई हैं..यह बात उस बेहद गह्मागेह्मी के माहौल में सौरारियों को कहाँ से और किससे पता चली थी? जबकि वो खुद छोटे चाँद से बड़े चाँद पर भागने में लगे थे! क्यूंकि या तो यह बात सिर्फ ड्रैगन किंग जानता था या सुआरा और दोनों ही सौरारियों के दुश्मन थे! इतने लम्बे वक़्त में सौरारी जिस चीज़ को खोजने में लगे थे..उसका पता उनको चला कैसे था?
वैसे यह कहानी और भी हास्यास्पद लगती है कि जो सौरारी 65 करोड़ वर्षो तक किसी चमत्कार के होने की आस में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे...वो भी तब जब उनके द्वारा बनाये गए अनगिनत biorobots पृथ्वी पर मौजूद थे..मान लिया जाए कि अगर किसी तरह से उन्होंने यह अंदाज़ा लगा लिया था कि अद्रश्य कवच का कोई कण्ट्रोल सेंटर पृथ्वी पर मौजूद है तो करोडो साल का इंतज़ार करने से ज्यादा बेहतर रास्ता उस सेंटर की खोज करवाना था! क्यूंकि तब तो कोई आधुनिक मानव नाम की चीज़ भी पृथ्वी पर मौजूद नहीं थी..जो उनको रोक सकती.... ऐसा उन्होंने क्यूँ नहीं किया इसपर प्रकाश डाला जाना चाहिए था!

कुछ मित्रो को कहानी में कुछ कमियां लगी..लेकिन हमारे हिसाब से वो कमियां नहीं हैं..उन्हें थोडा सा समझने की जरूरत है!
1- सौडांगी को जो कहानी में उड़ता हुआ दिखाया गया है..उसके पीछे उसका तंत्र-मंत्र का ज्ञाता होना ज़िम्मेदार है..पहले नागराज के साथ उसको उड़ने की जरूरत नहीं महसूस हुई इसलिए उसने कभी उड़ने की शक्ति का प्रयोग नहीं किया..क्यूंकि उड़ने में उसकी तंत्र शक्ति जल्दी क्षरण भी होती है!
2- पेज 12 पर जो "मौत" नाम का सौरारी था वो कोई जीवित व्यक्ति ना होकर सिर्फ एक परछाई थी! यह कुछ वैसी ही चीज़ थी जैसे आपने राजनगर की तबाही कॉमिक्स में IMAGE नाम से देखी हुई है! इसलिए सौरारी कभी भी अपने असली शरीर के साथ पृथ्वी पर नहीं आ सकते थे!
3-पेज-14 पर नागराज अपने शरीर से इच्छाधारी रूप को बाहर नहीं निकालता है..बल्कि वो पहले फ्रेम में सिर्फ कन्वर्ट हो रहा है...और 3 सेकंड के बाद वापस सामान्य हो जाता है! अगर उसकी शक्तियां बढ़ी हैं तो यह भी माना जा सकता है कि पहले के 3 पल अब बढ़कर 5-10 सेकंड भी हो सकते हैं..इसलिए आर्टवर्क से धोखा ना खाइए!
4- एक सवाल और पूछा गया था...कि जब ड्रैगन किंग नागराज को सारी कहानी flashback मे सुनाता है तब वो ये बताता है की जब सौरारियों को ये पता लग जाता है कि ड्रैगन किंग ये समझ गया है ये सौरारी ही हैं जो उसकी प्रजाति को खत्म कर रहे हैं तब सौरारी सभी बायो-रोबोट्स को निष्क्रिय कर देते हैं लेकिन तब सुआरा निष्क्रिय क्यों नहीं होता???
जवाब- ड्रैगन किंग को जब सौरारियों के biorobots कि जानकारी मिलती है तो आनन्-फानन में सौरारी पूरी पृथ्वी पर मौजूद हर biorobot को सुषुप्तावस्था में भेज देते हैं...लेकिन क्यूंकि सुआरा उन सभी का नायक था...और सौरारी इस बात से अनजान थे कि सुआरा पाला बदल चुका है..उन्होंने उसको जानबूझकर निष्क्रीय नहीं किया यह सोचकर कि वो उनकी योजना के क्रियान्वयन में काम आएगा! (पेज-80 को पढ़ें)
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‪#‎मनोरंजनात्मक_पक्ष‬ :
कहानी में जो 2-3 तार्किक कमियां मौजूद हैं...अगर उनपर ध्यान ना दिया जाए...यानी कि जैसा कई पाठको का कहना होता है कि कॉमिक्स हमेशा ही बिना दिमाग के पढ़ी जानी चाहिए तो कहानी बहुत जबरदस्त ही है!
ड्रैगन किंग की कहानी बहुत तेज़ गति में चलती है...इसमें सिर्फ एक जगह पर थोड़ी ढीलापन मिलता है वो है मिश्र के पिरामिडो वाला सीक्वेंस! लेकिन ड्रैगन किंग के नज़र आते ही वापस कहानी रफ़्तार पकड़ लेती है!
इसमें "राजनगर की तबाही" कॉमिक्स की तरह ही कई चीज़ें बनाई गई हैं...Image का आना...पृथ्वी के बाहर चाँद के पास परग्रहियों का जमावड़ा जो धरती पर कब्ज़ा करना चाहते हैं! फिर भी यह उस कॉमिक्स का आधा मनोरंजन मात्र ही दे पाती है!
अगर आपको कहानी से ज्यादा मतलब ना होकर सिर्फ एक्शन देखना पसंद है तो कॉमिक्स के रूप में यह बेहतरीन है...नॉन स्टॉप लड़ाई हर पन्ने में मौजूद है! अंत में नागद्वीप पर हुआ हमला और बेहतर बनाया जा सकता था! फिर एक एक से कहानी का अंत हो जाना और सौरारियों को पांसा पलटने का मौका ना मिलना खलता है! ड्रैगन किंग का अंत भी अनुपम जी की हर पूर्ववर्ती आई कॉमिक्स की तरह ही sudden end जैसा है!

‪#‎आर्टवर्क‬:

हालियाँ विश्वरक्षक नागराज की Negatives के बाद यह दूसरी कॉमिक्स आई है..जिसमे विनोद कुमार जी की इंकिंग है...और यह सभी को पता है कि जिस कॉमिक्स के आर्टवर्क क्रेडिट्स में "अनुपम-विनोद" जुड़ जाए..उसका मुकाबला नहीं हो सकता है! इसलिए आप आँख बंद करके इसके आर्टवर्क को पूरे अंक दे सकते हैं और इसके हर पन्ने का लुत्फ़ उठाइए! रही बात एनाटोमी की बारीकी जांचने की....तो उसके लिए कॉमिक्स नहीं पढनी चाहिए बल्कि किसी आर्ट इंस्टिट्यूट में दाखिला लेना जरूरी है और अपनी कला जांचने की ग्रंथि को संतुष्ट करना चाहिए! एक आम पाठक सिर्फ साफ़ सुथरा आर्टवर्क देखना चाहता है..जिसमे उसको आनंद आये...और हमारा दावा है..ऐसा आनंद इस कॉमिक्स में मिलेगा..बाकी जिन्हें यह आनंद नहीं मिल पाया है..उन्हें आगे भी कभी नहीं मिलेगा ..क्यूंकि आनंद भी व्यक्ति देखकर खुद को उसमे समाता है! और नकारात्मक दिमाग भी कभी सकारात्मक चीज़ें ग्रहण नहीं कर सकता! यह बात सच में महान हास्यास्पद लगती है जब कोई व्यक्ति अनुपम-विनोद जी की भारतीय कॉमिक्स के महानतम आर्टिस्ट्स की कला का अपमान करता है!

हालांकि रंग संयोजन में जरूर ज्यादा बेहतर काम होना चाहिए था...जिस तरह के इफेक्ट्स की उम्मीद थी वैसा नहीं मिला है...Negatives की तुलना में यहाँ बेहद साधारण स्तर के इफेक्ट्स हुए हैं! फिर भी हमें लगता है कि इस वाजिब मूल्य पर जो काम मिला है..वो संतोषजनक है! लेकिन यहाँ भी सुधार की पूरी गुंजाइश मौजूद हैं!

‪#‎शब्दांकन‬: सबसे पहले तो हमें कवर पर इस्तेमाल हुए टाइटल के FONT को देखकर प्रसन्नता हुई! ऐसे ही अलग आइडियाज आगे भी जारी रखें!
कॉमिक्स के अन्दर फुसफुसाकर बोलने के लिए Dotted Bubbles का इस्तेमाल पहली बार इसी सेट में हुआ है! ड्रैगन किंग के लिए भी अलग तरह के Bubbles इस्तेमाल हुए हैं! यह कला भी अब हर नयी कॉमिक्स के साथ नए आईडिया लेकर चल रही है! जो स्वागतयोग्य कदम है!
और अंत में

‪#‎Reviewer_Note‬:

अनुपम जी ने एक से बढ़कर एक एक्शन कॉमिक्स बनाई हैं..लेकिन अगर तुलना करें तो ड्रैगन किंग उस ऊँचाई को नहीं छू पाई है..जिसकी आशा थी...लेखक इससे ज्यादा बेहतर और मुश्किल कथावस्तु दे चुके हैं..जैसे "नागराज के बाद" और "हेड्रान सीरीज!" हाँ पढने वालो के लिए इनके अन्दर भी हज़ार कमियां हैं..लेकिन कमियों से ज्यादा अच्छाईयों से यह सभी कॉमिक्स भरी थी!
अनुपम जी को इनसे आगे की हाई लेवल साइंस फिक्शन स्टोरीज लिखनी चाहिए! यहाँ पर भी कई पाठको में मतभेद हो सकता है कि मुश्किल कहानियां क्यूँ लिखी जानी चाहिए?...हमारा तर्क यह है कि एक तरफ नरक नाशक नागराज और आतंक हर्ता नागराज में हम सभी को इस वक़्त बहुत आसान और लगभग पुराने कथानको वाली विषयवस्तु की कहानियां मिल रही हैं....जिन्हें लोग कभी यह नहीं कहते दिखते कि यह तो पुराने जैसा ही है.....पिछले साल भी एक बड़ी चर्चित सीरीज जो सिर्फ अपनी endorcement policy की वज़ह से हिट हुई...नहीं तो कथानक में कमियों की खान थी..उसपर भी कोई चर्चा नहीं करना चाहता..... वहीँ अनुपम जी ही फिलहाल एकमात्र ऐसे लेखक हैं...जो कठिन से कठिन साइंस फिक्शन कहानियों को नई उंचाई दे सकते हैं....पाठक उनसे भी अगर 20 साल पुराने ढर्रे की ही मांग करते रहेंगे तो शायद ही कभी कहानियों में बदलाव आएगा! इसलिए आप पाठक-गण भी थोडा प्रैक्टिकल बनिए..हाई लेवल sci-fi पढने के लिए खुद को तैयार करिए ना की लेखक को ऐसे कथावस्तु लिखने से रोकिये! अभी तक कॉमिक्स को GENRE WISE पढने और लिखने की कोशिश नहीं करी गयी हैं...हमने इसलिए ही अब से समीक्षा को genre के according देने का फैसला किया है..ताकि आप सभी लेखक द्वारा लिखी कहानियां पढने के बाद उनको फिल्मों की तरह व्यवस्थित करके उनकी महत्व को पहचाने और उन्हें ज्यादा करीब से पढना और समझना शुरू करें!
ड्रैगन किंग sci-fi genre में एक संतोषजनक कॉमिक्स है! हम इसको अनुपम जी द्वारा लिखी गई पुरानी कहानियों से एक कदम आगे की रचना तो नहीं कह सकते...लेकिन यह एक नवीन कदम जरूर है!
हमारा काम एक ईमानदार समीक्षा लिखना होता है...वो हमने कर दिया है! पाठको की अपनी पसंद और नापसंद को मापना आसान काम नहीं है...हम सिर्फ कहानी कैसी बनी है ... यह बता सकते हैं...अब वो अलग-अलग लोगों के स्वाद पर खरी उतरी या नहीं यह नहीं कहा जा सकता है!उसी तरह से ड्रैगन किंग से भी निराश लोग यहाँ मौजूद हैं...लेकिन इसके लिए भी कुछ हद तक वही लोग खुद ज़िम्मेदार हैं! अव्वल तो किसी साईट से डाउनलोड करके 1 बार पढ़ी कहानी की अधकचरी जानकारी अपने दिमाग में भरकर यहाँ वहां फैला देना आसान काम लगता जरूर है...पर उससे किसी को हासिल कुछ नहीं होता है! क्यूंकि कहना वही चाहिए जो आप सामने रखकर हजारो लोगों के बीच प्रूफ कर सकें! और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो गलती लेखक की नहीं है!
बाकी कॉमिक्स सुपरहिट घोषित हो ही चुकी है! जिसकी हमें भी प्रसन्नता है! लेकिन आगे और बेहतर कहानियों की आशा आप सभी की तरह हम भी रखते हैं!


SARV SANGRAM




Review : ‪#‎सर्व_संग्राम‬ (2014)
Genre : Action-Adventure,Sci-Fi,Mytho
लेखक : नितिन मिश्रा
आर्टवर्क : सुशांत पंडा
इंकिंग: विनोद कुमार
रंग: प्रदीप सहरावत,अभिषेक सिंह
शब्दांकन: मंदार गंगेले
मुख्य पात्र : परमाणु,प्रचंडा,तिलिस्मदेव और शक्ति,अडिग एवं युगम!

Ratings :
Story : 3.5/5
Art : 3.5/5

सर्वनायक श्रृंखला का प्रस्तुत तृतीय खंड अपने पहले आये खंडो की तुलना में सर्वथा अधिक रोचक भी दिखाई दे रहा है और गहरा भी! सर्वदमन के अंत तक आप जान चुके थे..कि युगम द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में परमाणु और प्रचंडा बराबरी पर थे! इस भाग में उनके इस द्वन्द का फैसला तो होता ही है तथापि कहानी में अभूतपूर्व घटनाचक्र भी दृष्टिगोचर हुए हैं! आइये जानते हैं कि इस किताब में क्या गूड बातें छिपी हुयी हैं!

‪#‎प्रस्तावना‬:अनश्वरेश्वर
यह शुरुआती 9 पन्नों में है...जो बिलकुल ही अलग कालखंडो में दर्शाई कुछ जटिल घटनाओं की सिर्फ सूचना मात्र तक सीमित हिस्से हैं!
द्वापरयुग में घूमता इतिहास ,वर्तमान में गगन,विनाशदूत और ग्रहणों,और 5099 का बूढा ध्रुविष्य अपनी बेटी के साथ चंडकाल से लड़ते नजर आते हैं! कोई डिटेल लेखक नहीं देते इसलिए ये पन्ने कोई ख़ास टिप्पणी योग्य नहीं है!

‪#‎प्रथम_अध्याय‬ : आत्मशत्रु (काल रण)
कहानी पढने का सबसे मुख्य कारण है यह जानना कि परमाणु और प्रचंडा के बीच आखिर जीत किसकी होती है! यहाँ पर देखना दिलचस्प था कि आखिर लेखक किस तरह से इन दोनों को बराबर रख पाते हैं! और इस बारे में हम लेखक को पूरे अंक देते हैं कि वो सभी को संतुष्ट करने में सफल रहे हैं! परमाणु और प्रचंडा अपने आखिरी पड़ाव में जिस तरह से जूझे और सिर्फ 19-20 के अंतर से इस द्वन्द का विजेता सामने आया! यह सिर्फ लड़ाई ना होकर जिस तरह से पुराने घटनाक्रमों के साथ जुडी परिस्थितियां सामने रखते हुए सब कुछ दिखाया जा रहा है, इसको देखते हुए इस पूरे भाग का लेखन प्रशंषा के योग्य है! लेकिन प्रचंडा के अतीत का हिस्सा अभी भी पूरी तरह से खुला नहीं है! हमें इंतज़ार रहेगा कि लेखक उसको पूरी तरह से सामने लायें!

‪#‎तिलिस्मदेव‬ : शक्ति बड़ी अनजानी है...सपना है, सच है, कहानी है...देखो ये पगली...बिल्कुल ना बदली..यह तो वही दीवानी(महक ) है!
‪#‎शक्ति‬- अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो..80-90 पूरे सौ
सौ जन्मों का प्रण जो लूँ...तिलिस्मदेव हो उड़न छु

तिलिस्मदेव और शक्ति के मध्य हुआ द्वन्द अपितु काफी छोटा था..लेकिन सम्पूर्ण कहा जा सकता है! हमें एक आशंका पहले थी कि जिन पाठको को पूर्व काल के नायको के बारे में जानकारी नहीं है..कहीं उनको कहानी समझने में दिक्कत आ सकती है..लेकिन लेखक ने जिस तरह से पुरानी घटनाओं को दोबारा से स्मरण करते हुए यह प्रतियोगिता दिखाई है..वो अद्भुत सोच का परिणाम है! कौन सोच सकता था कि लेखक चंदा के जीवन के स्याह हिस्से को युगों पुराने तिलिस्मदेव के अतीत से जोड़ देंगे! लेकिन यह करके लेखक ने अपनी उच्च कल्पनाशीलता का परिचय दिया है! हमने यह भाग बहुत पसंद किया है! तिलिस्मदेव और शक्ति के बीच की लड़ाई पर हमारी टिप्पणी यही है कि ये पाठको को कुछ हद तक एक तरफ़ा लग सकती है! जहाँ एक पक्ष ने अपना पूरा पराक्रम दिखाया ही नहीं..और मुकाबला बेमेल सा नज़र आने लगा! पर जिस "पेनल्टी" की बात युगम इसके अंत में करता है..वो शायद आगे प्रतियोगिता का भाग्य बदल दे!
अब अगला द्वन्द है शुक्राल और तिरंगा के बीच !

‪#‎शुक्राल‬: मैं खिलाडी तू अनाड़ी
‪#‎तिरंगा‬ : तू कबाड़ी मैं जुगाड़ी

एक बड़ा पाठक वर्ग मानकर चल रहा है कि यह एक बेमेल मुकाबला होने वाला है जिसमे तिरंगा के जीतने के चांस सिर्फ 10 % हैं! हम भी इस सोच से अलग नहीं हैं! और वैसे भी जिस तरह से शुरू के इन 2 द्वंदों का परिणाम आया है..यह भविष्यवाणी बहुत आसान है कि अगला विजेता कौन होने वाला है! परन्तु लेखक इसको किस तरह से पूरी तरह औचित्यपूर्वक दर्शाते हैं..आगे यह देखना दिलचस्प रहेगा!

तो अब तक आपने जान लिया है कि कहानी के मुख्य बिंदु क्या थे...इनके अलावा कुछ अन्य छोटे हिस्से भी चल रहे हैं...जिसमे एक में नया किरदार "नरकपुत्र रक्ष" जुड़ने वाला है! इसको लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता है..क्यूंकि यह एक ऐसा किरदार लग रहा है..जो आत्मघाती भी हो सकता है!

भीमकाय अडिग के बाद यह दूसरा किरदार इस श्रृंखला की खोज कहा जा सकता है! फिलहाल इसकी सिर्फ एक झलक देखने को मिलती है!
असुरलोक में शम्भुक और शुक्राचार्य कुछ नया गुल खिलाने में चक्कर में हैं..लेकिन महामानव के हिस्से को अभी भी अबूझ पहेली बनाकर रखा गया है!

‪#‎सुपर_कमांडो_ध्रुव‬ : कहानी में ध्रुव अभी तक सारी बागडोर खुद संभाले हुए है...और उसकी सूझबूझ से ही पश्चात काल आगे है...वो अपने सह प्रति द्वंदी शुक्राल और संचालक युगम के हर पैंतरे को विफल करता जा रहा है! लेकिन यह देखना और दिलचस्प होगा कि शुक्राल के सामने तिरंगा को उतारने का उसका निर्णय इस बार किस करवट बैठता है...जिससे ध्रुव अपने आपको किसी भी आक्षेप से बचा सके!

‪#‎समयकाल_की_अनभिज्ञता‬ : सर्वनायक में एक चीज़ जिस पर पाठक अभी ध्यान नहीं दे रहे हैं वो है समयकालो की जानकारी की कमी!
यह प्रश्न अभी उत्तर नहीं खोज पाया है कि आखिर तीनो युगों में चल रहा यह सबकुछ एक साथ ही क्यूँ घटित हो रहा है?

युगम जो कर रहा है वो एक अलग मसला हो सकता है..लेकिन
1- इतिहास का अचानक से एकाएक भूतकाल में पहुँच जाना!
2- महामानव जिस समय काल में है उसका उल्लेख ना होना!
3- हरुओं के बारे वो जानकारी जो कभी वर्तमान के किसी नायक को नहीं रही..उसके बारे में गगन और विनाशदूत को पहले से पता होना!
4- हरूओ की सृष्टि देव और असुर से अलग है! वो उन नियमो को नहीं मानती..जो यह दोनों मानती हैं! कोहराम में आया हरु भी सिर्फ एक उर्जा का रूप था..जिसने मानव का शरीर धारण किया था! वो चाहता तो किसी दूसरे पदार्थ से अपना शरीर बना लेता! खैर महामानव के सामने जो हरु दर्शाए गए हैं..वो भी मानव रूप में हैं! या तो यह एक गलती है...या फिर वो मानव कौन थे जिनके शरीर पर हरूओ का कब्ज़ा है..यह लेखक को बताना चाहिए!
5- पेज 66 पर जो महाखलनायको का जमावड़ा लगा हुआ है..उसका समय काल भी नहीं लिखा गया है! त्रिफना सीरीज के बाद हो रही यह घटना वर्तमान में हुई घटना से पहले कब की है यह बताने के साथ साथ यह भी बताया जाना जरूरी था..कि शाकूरा,सपेरा,मिस किलर,वामन,चुम्बा,ध्वनिराज आदि असंख्य विलेन जो या तो कहीं कैद थे..या अपने ग्रहों पर चले गए थे! एक साथ कैसे कहानी में टपका दिए जा रहे हैं!आखिर हम इन सभी घटनाओं को किस तरह से आपस में जोड़े कि वो पहले आई कहानियों से मेल खा सकें?
6 - अंत में महारावण कहता है कि वो वर्तमान पर कब्ज़ा करने आया है! लेकिन यह निर्णय और जानकारी उसको कैसे हो सकती है कि वर्तमान आखिर है क्या? क्यूंकि महारावण के लिए वर्तमान वो है जिसमे उसने जन्म लिया था..यानी की द्वापर युग! अगर वो कालदूत के समय में अब लड़ने आया है तो यह उसके लिए भविष्य है ना की वर्तमान!
7- एक और अच्छा सवाल है..कि यह मान लिया कि महक का प्रेम युगों युगों से चला आ रहा है और कभी सफलता नहीं पा सका...यह भी सही है कि तिलिस्मदेव अमर हैं...तो अगर लेखक का कथन यह है कि चंदा ही महक का पुनर्जनम् है..तो इसका मतलब यही हुआ कि तिलिस्मदेव भी वर्तमान में जरूर कहीं ना कहीं जीवित होंगे! लेखक ने वर्तमान में मौजूद तिलिस्मदेव को क्यूँ उजागर नहीं किया है!

युगांधर से लेकर अब तक की कहानी में सिर्फ सवाल ही सवाल हैं...और उत्तर देने में कोई प्रोग्रेस नहीं हुई है! इसको हम आलोचना तो नहीं कहेंगे..लेकिन सर्वनायक प्रतियोगिता के अतिरिक्त दूसरी तरफ की सभी कहानियों में जो कुछ भी दिखाया जा रहा है या जाता रहेगा...वो उलझाऊ होने के साथ-साथ मूल कहानी से जुड़ा प्रतीत होने के बाद भी जुड़ा नहीं लग रहा है!
हम एक छोटा सा सवाल और करते हैं..कि सर्वनायक प्रतियोगिता में युगम ने सिर्फ कुछ ख़ास नायको को क्यूँ चुना और बाकी को क्यूँ नहीं चुना?
आईपीएल की तर्ज़ पर खेलकूद प्रतियोगिता जो चल रही है वो हमें भी पता है कहानी का मुख्य केंद्र नहीं है...जिस दिन यह प्रतियोगिता ख़त्म हो जायेगी..उसी दिन दूसरी घटनाओं में जो अबूझ पहेलियाँ हैं..वो सतह पर आकर नए प्रश्न खड़े कर देंगी!
खैर सवाल तो हर भाग में 10 नए बन रहे हैं! अगर लेखक कहानी में साथ ही साथ छोटी छोटी बातों में कुछ के उत्तर भी देते जाएं..तो कहानी ज्यादा मजबूत लगने लगेगी!

एक और तार्किक प्रश्न ने जन्म लिया हमारे दिमाग ने...कि अब तो यह कहानी युगांधर से अब तक 4th पार्ट में आ चुकी है...लेकिन क्या किसी ने ध्यान दिया कि हमारे सभी जोशीले सुपर हीरोज़ ने अब तक इतनी लड़ाइयाँ और कसरत कर ली है...लेकिन युगम ने किसी को पानी तक नहीं पूछा...मतलब कम से कम खाने को ही कुछ दे देता...बेचारे भूखे पेट ही लगातार लडे जा रहे हैं.....इस विषय को ख़त्म करने के लिए एक "सर्व लंगर " का भी आयोजन लेखक को करना चाहिए!

‪#‎आर्टवर्क‬ -

सर्व संग्राम में पिछले भागो कि तुलना में मन को मोह लेने वाला आर्टवर्क है...सुशांत जी और विनोद कुमार जी ने साथ में एक बेहतरीन काम देकर वापस श्रृंखला को जीवंत कर दिया है!
अपितु फिर भी यहाँ उतार चड़ाव मौजूद हैं...35वे पन्ने के बाद आर्ट में गिरावट देखने को मिलती है..फिर 50 वे पन्ने से 65 तक वापस पटरी पर आती है...लेकिन 66वे से वापस डूब जाती है....73वे से अंत तक आर्ट वैसा नहीं रहता जैसा शुरुआत में था!
खैर बीच-बीच में दूसरे आर्टिस्ट्स द्वारा बनाये गए पन्ने बहुत आकर्षक बने हैं! रंग संयोजन भी ठीक ठाक है!
सिर्फ सुशांत जी थोडा और समय लगाकर पूरी किताब में एक जैसा ही चित्रांकन बनाये रखें !

अंत में कॉमिक्स का मनोरंजनात्मक पक्ष :

‪#‎हास्य_पक्ष‬:
वैसे यह कहानी हास्य बोध के लिए नहीं है..लेकिन लेखक ने अपनी तरफ से बीच बीच में कई जगह हास्य का पुट दिया है..युगम जब पेज 44 पर अपने फिल्मों के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करता है..तो उसपर परमाणु का कटाक्ष ठहाके लगाने को मजबूर कर देता है!
ऐसे ही युगम द्वारा शुक्राल के ऊपर अवधि को लेकर किये कटाक्ष पर शुक्राल का झेंप जाना और आर्टिस्ट द्वारा दोनों के भावो का सुंदर चित्रण मजेदार है!
ऐसे कई दूसरे पल भी कहानी की सुन्दरता बढाते हैं!

#सर्व_संग्राम में आपको सबसे अधिक मज़ा आर्टवर्क देखने में ही आएगा! इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इससे बेहतर नहीं मिल सकेगा...बल्कि यह है कि पहले से आपको बेहतर काम मिला है..इस बात कि ख़ुशी आप महसूस कर सकेंगे!

कहानी के बारे में हमारा यही कहना है कि यह महा श्रृंखला जरूर है..लेकिन अपने मूल से अभी भी अलग है..कोई भी कहानी एक तरफ से शुरू होती है..और एक दूसरी तरफ जाकर खत्म हो जाती है! यह कहानी अब तक ना तो शुरू हुई है और ना जल्दी ख़त्म होने वाली है!
इसमें हो यह रहा है..कि अलग अलग समय में हो रही घटनाओ को एक साथ जोड़कर दिखाया गया है! कहानी वर्तमान में चलती है..और बाकी दोनों काल उसके साथ जुड़ते हैं! यहाँ किसी तरह का कोई नियम मौजूद नहीं है! जैसे चाहे कहानी को चलाया जा रहा है!
पाठको को ख़ुशी यह है कि उन्हें सालो बाद अपने-अपने प्रिय पात्र दोबारा से देखने को मिल रहे हैं! अगर वो एक बार उन पात्रो की आखिरी कहानी और अब दोबारा दिखाई जा रही कहानी के बीच लिंक जोड़ना शुरू करें तो उनके लिए भी हितकर होगा और श्रृंखला के लिए भी!
कहा जाता है कि कहानी को पढने में दिमाग नहीं लगाना चाहिए! बिलकुल सही बात है...कोई भी कॉमिक्स मनोरंजन के लिए पढ़ी जाती है! लेकिन सर्वनायक जैसी कोई भी विस्तृत कहानी को लिखना भी हंसी खेल नहीं है..लेखक ने बहुत मेहनत से इस कहानी को सोचा और लिखा है..उनके प्रयास को पूरा आदर दिया जाना चाहिए! अगर वो आप पाठको के लिए इतना दिमाग लगाकर गूड से गूड तथ्यों पर बारीकी से काम कर सकते हैं..तो उन्ही तथ्यों को आप लोग भी अपने अपने स्तर पर जांचकर संतुष्ट जरूर हों..क्यूंकि यही वक़्त है जब आप चीज़ें बता सकते है,उनपर ध्यान दिला सकते हैं...जो कहानी का अंत आते आते सुलझाई जा सकती हैं. बाकी के प्रश्न-उत्तर तो आगे भी चलते रहेंगे! फिलहाल इस कहानी का लुत्फ़ उठाइये!